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Sridevi: याद कीजिए बॉलीवुड की पहली सुपरस्‍टार हिरोइन को

    • अनु रॉय
    • Updated: 24 फरवरी, 2020 10:33 PM
  • 24 फरवरी, 2020 10:33 PM
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श्रीदेवी को उनकी सुंदरता से इतर उनकी पुण्यतिथि (Sridevi Death Anniversary) पर इसलिए भी याद किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने पूरे बॉलीवुड (Bollywood) को बताया कि स्टारडम क्या होता है. ये श्रीदेवी की ही काबिलियत थी कि वो जानती थीं कि फिल्म को अपने दम पर कैसे हिट कराया जाता है.

दुनिया किसी के जाने से ठहरती नहीं है (Sridevi Death Anniversary) लेकिन ये भी सच है उस किसी के चले जाने के बाद पहले जैसी तो बिलकुल नहीं रहती. कभी-कभी वो कोई अपना बेहद क़रीबी होता है तो कभी-कभी वो कोई ऐसा होता है जिसे आप जानते नहीं, मिले भी नहीं होते मगर वो अपनों से अपना होता है. श्रीदेवी (Sridevi) भी कुछ-कुछ वैसी ही तो थीं. अस्सी-नब्बे के दशक में भारत में जवान हो रहें दिलों की धड़कन. उनका अपना सितारा. एक ऐसा चेहरा जिसे देख हर कोई अपने हिसाब से सपने बुन सके. लड़कों को श्रीदेवी जैसी प्रेमिका, तो मांओं को उन जैसी बहू और लड़कियों को तो श्रीदेवी ही होना था. नब्बे के दशक में हुई हर शादी तब तक अधूरी मानी जाती जब तक, 'मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं' नहीं बजता. उम्र के सोलहवें पड़ाव में जाते हुए लड़कों के वॉक-मैन में रिवाइंड पर लगातार प्ले होता रहता. 'रंग भरे बादल से, तेरे नैनों के काजल से, इस दिल पर लिख दिया तेरा नाम चांदनी'

श्रीदेवी जैसी अभिनेत्री कि असमय मृत्यु से पूरे बॉलीवुड को गहरा आघात पहुंचा था

और फिर दिल से दिल मिलने पर लड़कियां आधी रात को घर के छज्जे पर आ कर चुपके से चांद के चादर तले बैठ कर सुना करती थी.

'मोरनी बागा में बोले आधी रात को

खन्न-खन्न चूड़ियां खनक गयी देख साहिबा

चूड़ियां खनक गयी हाथ में.'

चाहे वो पल प्यार के रहें हों या तकरार के. हर पल में अगर कोई शामिल था तो बस एक ही नाम और नाम था श्री देवी का. बोलती आंखें , ख़ामोश लब, पतली ख़ूबसूरत कमर, लम्बे बाल पहली नज़र में देख कर लगता ही नहीं था कि वो इस दुनिया की हैं. ऐसा लगता था कि ईश्वर ने ग़लती से अपनी दुनिया की सबसे प्यारी चीज़ को इस दुनिया में भेज दिया...

दुनिया किसी के जाने से ठहरती नहीं है (Sridevi Death Anniversary) लेकिन ये भी सच है उस किसी के चले जाने के बाद पहले जैसी तो बिलकुल नहीं रहती. कभी-कभी वो कोई अपना बेहद क़रीबी होता है तो कभी-कभी वो कोई ऐसा होता है जिसे आप जानते नहीं, मिले भी नहीं होते मगर वो अपनों से अपना होता है. श्रीदेवी (Sridevi) भी कुछ-कुछ वैसी ही तो थीं. अस्सी-नब्बे के दशक में भारत में जवान हो रहें दिलों की धड़कन. उनका अपना सितारा. एक ऐसा चेहरा जिसे देख हर कोई अपने हिसाब से सपने बुन सके. लड़कों को श्रीदेवी जैसी प्रेमिका, तो मांओं को उन जैसी बहू और लड़कियों को तो श्रीदेवी ही होना था. नब्बे के दशक में हुई हर शादी तब तक अधूरी मानी जाती जब तक, 'मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं' नहीं बजता. उम्र के सोलहवें पड़ाव में जाते हुए लड़कों के वॉक-मैन में रिवाइंड पर लगातार प्ले होता रहता. 'रंग भरे बादल से, तेरे नैनों के काजल से, इस दिल पर लिख दिया तेरा नाम चांदनी'

श्रीदेवी जैसी अभिनेत्री कि असमय मृत्यु से पूरे बॉलीवुड को गहरा आघात पहुंचा था

और फिर दिल से दिल मिलने पर लड़कियां आधी रात को घर के छज्जे पर आ कर चुपके से चांद के चादर तले बैठ कर सुना करती थी.

'मोरनी बागा में बोले आधी रात को

खन्न-खन्न चूड़ियां खनक गयी देख साहिबा

चूड़ियां खनक गयी हाथ में.'

चाहे वो पल प्यार के रहें हों या तकरार के. हर पल में अगर कोई शामिल था तो बस एक ही नाम और नाम था श्री देवी का. बोलती आंखें , ख़ामोश लब, पतली ख़ूबसूरत कमर, लम्बे बाल पहली नज़र में देख कर लगता ही नहीं था कि वो इस दुनिया की हैं. ऐसा लगता था कि ईश्वर ने ग़लती से अपनी दुनिया की सबसे प्यारी चीज़ को इस दुनिया में भेज दिया है. लेकिन ये दुनिया जो बिलकुल भी इस परी के लायक नहीं थी. हम दर्शक बाहर से श्री देवी की ज़िंदगी को देखते, पर्दे पर उन्हें अभिनय करते हुए, फ़िल्मी पार्टियों में खिलखिलाते हुए और सोचते थे कि कितनी पर्फ़ेक्ट है उनकी ज़िंदगी. लोग-बाग़ लड़कियों को अक्सर कह देते ज़्यादा श्री देवी बनती है या फिर ये तो श्री देवी जैसी सुंदर है.

श्रीदेवी का ऑरा ऐसा था कि शायद ही कोई लड़की आज वहां तक पहुंच पाए

तुलना जिस भी सेंस में हुई हो मगर जिस लड़की को तुलना श्री देवी से की जाती उसमें अपने आप ही ग़ुरूर सा आ जाता. परफेक्शन और ख़ूबसूरती का पैरामीटर थीं वो. उनकी जैसी ज़िंदगी का चाहना करना नॉर्मल बात थी. आख़िर क्या कमी थीं उनकी ज़िंदगी में. कुछ भी तो नहीं. दुनिया के सफल नामों में से एक नाम, अनगिनत सफल फ़िल्में, अकूत पैसा, जान से ज़्यादा प्यार करने वाला पति और दो प्यारी बेटियां. और भला क्या चाहिए ज़िंदगी में. नहीं!

मगर बाहर से जो दिखे अंदर की हक़ीक़त वही हो ज़रूरी तो नहीं. बाल कलाकार के तौर पर फ़िल्मों में काम करने की वजह से श्री देवी अपना बचपन जी नहीं पायी. जवानी की दहलीज़ पर कदम रखतीं और अपने लिए सपने बुनती इसके पहले पिता का साया सिर से उठ गया. पिता को खो देने के बाद मां ने जो भी फ़ैसले लिए वो श्री देवी को मानसिक और आर्थिक दोनों रूप से खोखला करते चले गए.

एक बहन थी उसने भी श्री को बजाय प्यार करने के पैसों को चुना. फिर जिससे प्यार हुआ वो किसी और से पहले ही शादी कर चुका था. ऐसे में उनकी ज़िंदगी में जो दूसरा बंदा आया वो भी शादी-शुदा निकला. ये और बात थी कि उस शख़्स की शादी पहले ही टूट चुकी थी मगर लोगों ने लानते श्री देवी को भेजी. वो शख़्स कोई और नहीं बोनी कपूर थे. ख़ैर दुनिया की परवाह किए बग़ैर बोनी ने श्री देवी से शादी कर ली लेकिन श्री देवी का वो सपना की वो कपूर ख़ानदान में बहू बन कर जाए ये कभी पूरा नहीं हुआ. वो सिर्फ़ पत्नी बन पायी कपूर ख़ानदान की बहू नहीं.

ये वो बातें थीं जो उस ख़ूबसूरत लड़की को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. वो टूट रही थी और इसका असर उनके हेल्थ से ले कर उनके चेहरे पर भी दिखने लगा. अंदर से हो रहे खोखलेपन को छिपाने के लिए श्री देवी बाहर से कभी अपनी नाक तो कभी अपने होंठों को कॉस्मेटिक सर्जरी के सहारे ठीक करने की कोशिश करती रहीं.

चाहे एक्टिंग रही हो या सुंदरता आज शायद ही कोई एक्टर्स श्रीदेवी का मुकाबला कर पाए

2010 के बाद की तस्वीरों में हमें वो वाली श्री देवी कभी दिखीं ही नहीं जिसके सपने आंखों  में लिए हम बड़े हुए थे. अब जो हमें दिख रही थी वो सिर्फ़ श्री देवी में बचा हुआ उनका चेहरा भर था. वक़्त ने धीरे-धीरे करके श्री देवी में से श्री देवी को ही चुरा लिया था लेकिन उतने के बाद भी वो थीं हमारे दरमियां यही काफ़ी था.

फिर 24 फ़रवरी 2018 की वो सुबह भी आयी जब जागते ही पहली ख़बर जो सुनाई पड़ी वो ये कि श्री देवी हमारे बीच नहीं रहीं. कई मिनट तक सारे न्यूज़ चैनल खंगालने के बाद ये लगा कि ख़बर सच है लेकिन ये यक़ीन करना कि वो नहीं रहीं मुश्किल महीनों तक लगता रहा. मौत ने हम से हमारी सबसे प्यारी अभिनेत्री को छीन लिया था लेकिन उनकी ज़िंदगी से जुड़े कई तथ्य अब भी बाहर आने बाक़ी थे. श्री देवी की मौत को हत्या और न जाने क्या-क्या न्यूज चैनल ठहराते रहें.

TRP के लिए उनके और मिथुन चक्रवर्ती के रिश्तों को चाशनी लगा-लगा कर लोगों के सामने परोसते रहें. जितना छिछालेदर मचाना था मचाए लेकिन इसी सब के बीच एक आदमी ने श्री देवी से जुड़ी कई बातें दुनिया के सामने रखीं. जो एक हद तक सच थीं वो थे रामगोपाल वर्मा. उन्होंने श्री देवी की मौत के बाद उनके लिए कई ओपन लेटर लिखें. उन चिट्ठियों को पढ़ कर लगता है कि कितनी उदास थी श्री. सब कुछ मिल कर भी कुछ भी तो नहीं मिला. तमाम उम्र वैलीडेशन मिलें एक बहू के रूप में, पति फ़िदा रहे इस रंग-रूप पर और बेटियों को सिक्योर फ़्यूचर मिले इसी में गुज़र गयी.

काश ज़िंदगी तुम थोड़ी मुलायम होती उस परी सरीखी लड़की के लिए. तुम सहेज कर रखती कुछ खुशियां उसके हिस्से की. अब श्री देवी आप जिस भी दुनिया में हों वहां आपको अपनी चाही खुशियां मिलें. आप को बेपनाह प्यार मिले और आप कभी भी इस दुनिया में नहीं लौटना. ये दुनिया आप जैसी शख़्सियत के क़ाबिल नहीं. आप याद आ रहीं हैं आज बेइंतेहा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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