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Sardar Udham movie सीटी बजाने वालों के लिए नहीं है, शूजित सरकार ने विक्की कौशल को निचोड़ ही लिया

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 17 अक्टूबर, 2021 03:54 PM
  • 17 अक्टूबर, 2021 02:34 PM
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शूजित सरकार (Shoojit Sircar) ने एक बार फिर साबित किया कि क्यों वे बॉलीवुड में सबसे अलग निर्देशक माने जाते हैं. विक्की कौशल (Vicky Kaushal) को लेकर सरदार उधम (Sardar Udham) के रूप में उन्होंने भारतीय सिनेमा की श्रेष्ठ बायोपिक बनाकर दिखा दिया है.

सरदार उधम देखने के बाद पिछले कई घंटों से मेरे दिमाग में सिर्फ एक बात है. आखिर वो क्या चीज है जिसे मैं यहां अपनी समीक्षा का आधार बना सकता हूं? कुछ चीजें हैं, मगर उनकी आलोचना करना क्या ऐसा नहीं होगा कि शूजित सरकार और निश्चित ही विक्की कौशल के भी ऐतिहासिक प्रयास को कमतर आंक दिया जाए. मैं लिख सकता हूं कि क्या बढ़िया होता अगर जलियावाला नरसंहार का फ्रेम कहानी में पहले स्‍थापित हो जाना चाहिए था जिसके आधार पर सरदार उधम की पूरी कहानी ही टिकी है. या यह भी कि नरसंहार के बाद का हृदयविदारक सीन बहुत लंबा खींच दिया गया. लेकिन ऐसी बात करना तो कुछ-कुछ वैसे ही है जैसे मैं किसी दिन भरपूर उत्तर भारतीय सुस्वादु थाली खाने के बाद मेजबान से यह शिकायत करूं कि मीठे में राजभोग की बजाय स्पंज होता तो कुछ ज्यादा ही मजा आता.

हमारे जो समीक्षक फिल्म को रेटिंग पॉइंट में बांध रहे हैं. मैं उनसे पूछना चाहूंगा कि क्या सरदार उधम को एक से पांच अंकों में रेट करना भी न्यायपूर्ण है? मैं सरदार उधम को कई मायनों में रेट से परे फिल्म मानता हूं.

क्योंकि सरदार उधम वो फिल्म बिल्कुल ही नहीं है जिसे देखते हुए बार-बार सीटी मारने या तालियां बजाने का मन करे. हकीकत में सरदार उधम को देखते हुए उस पीड़ा और महान दुख से होकर गुजरना पड़ता है जिसे हमारे अमर शहीदों ने भोगा- सिर्फ हमारा वर्तमान बनाने के लिए. शूजित सरकार की इस बात के लिए जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है. उन्होंने बॉलीवुड में पहली बार किसी अमर शहीद को ऐतिहासिक सन्दर्भों में मौलिक तरीके से शूट किया है. और यह भी कि भारतीय सिनेमा में अब तक इतनी सर्वश्रेष्ठ बायोपिक किसी ने भी नहीं बनाई है.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर बनी कोई एक फिल्म नजर नहीं आती जो सरदार उधम के आसपास भी हो. एक अमर शहीद के लिए शूजित की ओर शायद इससे बड़ी श्रद्धांजलि भला और क्या हो सकती है. मेरा वश चले तो मैं चाहूंगा कि शूजित सारे स्वतंत्रता सेनानियों की बायोपिक बनाए और दुनिया देखे कि भारत ने जो अतीत में भोगा था वो धरती की सबसे महान पीड़ाओं में से एक है. यह...

सरदार उधम देखने के बाद पिछले कई घंटों से मेरे दिमाग में सिर्फ एक बात है. आखिर वो क्या चीज है जिसे मैं यहां अपनी समीक्षा का आधार बना सकता हूं? कुछ चीजें हैं, मगर उनकी आलोचना करना क्या ऐसा नहीं होगा कि शूजित सरकार और निश्चित ही विक्की कौशल के भी ऐतिहासिक प्रयास को कमतर आंक दिया जाए. मैं लिख सकता हूं कि क्या बढ़िया होता अगर जलियावाला नरसंहार का फ्रेम कहानी में पहले स्‍थापित हो जाना चाहिए था जिसके आधार पर सरदार उधम की पूरी कहानी ही टिकी है. या यह भी कि नरसंहार के बाद का हृदयविदारक सीन बहुत लंबा खींच दिया गया. लेकिन ऐसी बात करना तो कुछ-कुछ वैसे ही है जैसे मैं किसी दिन भरपूर उत्तर भारतीय सुस्वादु थाली खाने के बाद मेजबान से यह शिकायत करूं कि मीठे में राजभोग की बजाय स्पंज होता तो कुछ ज्यादा ही मजा आता.

हमारे जो समीक्षक फिल्म को रेटिंग पॉइंट में बांध रहे हैं. मैं उनसे पूछना चाहूंगा कि क्या सरदार उधम को एक से पांच अंकों में रेट करना भी न्यायपूर्ण है? मैं सरदार उधम को कई मायनों में रेट से परे फिल्म मानता हूं.

क्योंकि सरदार उधम वो फिल्म बिल्कुल ही नहीं है जिसे देखते हुए बार-बार सीटी मारने या तालियां बजाने का मन करे. हकीकत में सरदार उधम को देखते हुए उस पीड़ा और महान दुख से होकर गुजरना पड़ता है जिसे हमारे अमर शहीदों ने भोगा- सिर्फ हमारा वर्तमान बनाने के लिए. शूजित सरकार की इस बात के लिए जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है. उन्होंने बॉलीवुड में पहली बार किसी अमर शहीद को ऐतिहासिक सन्दर्भों में मौलिक तरीके से शूट किया है. और यह भी कि भारतीय सिनेमा में अब तक इतनी सर्वश्रेष्ठ बायोपिक किसी ने भी नहीं बनाई है.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर बनी कोई एक फिल्म नजर नहीं आती जो सरदार उधम के आसपास भी हो. एक अमर शहीद के लिए शूजित की ओर शायद इससे बड़ी श्रद्धांजलि भला और क्या हो सकती है. मेरा वश चले तो मैं चाहूंगा कि शूजित सारे स्वतंत्रता सेनानियों की बायोपिक बनाए और दुनिया देखे कि भारत ने जो अतीत में भोगा था वो धरती की सबसे महान पीड़ाओं में से एक है. यह वो फिल्म है जिसे दिखाकर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से सवाल पूछा जाए कि जलिवालाबाग़ नरसंहार के 100 साल बाद भी आखिर क्यों इग्लैंड ने आधिकारिक रूप से अबतक पश्चाताप नहीं किया?

सरदार उधम के जलियावालाबाग़ नरसंहार सीन में विक्की कौशल. फोटो- अमेजन प्राइम वीडियो से साभार.

सरदार उधम, स्वतंत्रता सेनानी सरदार उधम सिंह के बलिदान, उनके संघर्ष और ब्रिटिश सरकार की बेइंतहा उत्पीड़न की दास्तान है. लोगों को सरदार उधम की कहानी पहले से पता है. कहानी कैसे शुरू हुई कहां ख़त्म हुई यह पढ़ने-सुनने की बजाय देखने की चीज है. हां इतना बताना जरूरी है कि फिल्म में सरदार की उसी कहानी को कुछ विशेष और नई सूचनाओं, नजरिए और तमाम संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया गया है.

भारतीय सिनेमा के लिए यह गर्व का विषय है कि हमारे पास शूजित सरकार जैसा निर्देशक है जिसमें वर्ल्ड क्लास सिनेमा रचने की कूव्वत है. जो दुनिया को दिखा सकता है कि हम सिर्फ नाच-गाना और भड़कीला मनोरंजन भर नहीं करते, बल्कि अच्छी फ़िल्में भी बना लेते हैं. उन्होंने वादा किया था कि एक श्रेष्ठ सिनेमा देने की कोशिश करेंगे. सरदार उधम में वो पूरी तरह सफल हुए. फिल्म की कहानी, क्राफ्ट, संवाद, अभिनय, बैकग्राउंड स्कोर, सेट-लोकेशन, सिनेमैटोग्राफी (अविक मुखोपाध्याय का) या किसी दूसरी चीज को भी उन्होंने शानदार बनाने से नहीं छोड़ा है.

पीरियड ड्रामा के लिए जिस तरह उन्होंने सेट बनाए वो लाजवाब है. विंटेज कारें, ड्रेस उस जमाने के होटल, कम्युनिकेशन आदि के बारे में जितनी बारीकी हो सकती थी उन्होंने वैसा ही काम किया. ब्रिटिश इंडिया और उस जमाने का इग्लैंड देखना इतना मौलिक है कि क्या ही कहा जाए. मौलिकता शूजित की यूएसपी रही है. उन्हें शहर के भीतर का शहर और घर के भीतर का घर दिखाने के लिए जाना जाता है. ये उनकी काबिलियत है कि एक इंसान के भीतर के इंसान को बाहर निकाल लाते हैं. परदे पर सरदार उधम को दिखाने के लिए शूजित ने जिस तरह विक्की कौशल को निचोड़ा है उसका कोई सानी नहीं. विक्की कौशल अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभा गए. इस फिल्म के बाद अगर कहा जाए कि वे शूजित की हमेशा पहली पसंद होंगे तो शायद गलत नहीं होगा.

विक्की कौशल ने हर फ्रेम में जान लगा दी है. फिल्म के अलग अलग फेज में उनका ट्रांसफॉरमेशन कमाल का दिखता है. किशोर उधम, युवा उधम और क्रांतिकारी उधम का फर्क साफ़ देखा जा सकता है. किशोर उधम में तो विक्की पहचान में ही नहीं आते कि परदे पर वही हैं. जलियावाला बाग़ नरसंहार का दृश्य के बारे में लोग ठीक ही कह रहे हैं कि किसी भी फिल्म में आजतक उस नरसंहार को इतने प्रभावी तरीके से नहीं दिखाया गया. इंटरोगेशन के सीन भी  जलियावाला बाग़ नरसंहार से कम भयावह नहीं हैं. क्लाइमैक्स के कोर्ट रूम सीन में बहस करते विक्की कौशल को देखना एक एक श्रेष्ठ और अभिनय की सर्वोच्च उंचाई को अनुभव करना है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर का अभिनय और फ्रेम. विक्की कौशल के अलावा अन्य कलाकारों ने भी उम्दा काम किया है. लगान के बाद अब बॉलीवुड की इकलौती फिल्म बन गई है जिसमें सबसे ज्यादा विदेशी एक्टर्स ने काम किया है. अच्छा काम. 

शूजित सरकार ने एक जानी समझी कहानी को क्राफ्ट के जरिए बेहद उम्दा बना दिया है जो बॉलीवुड की परंपरागत फिल्मों से अलग ही धारा में है. निश्चित ही देश की एक बड़ी आबादी फिल्म के जरिए सरदार उधम और उनके संघर्ष के बारे में जानकार कृतज्ञ होगी. सरदार उधम शूजित सरकार के साथ ही विक्की कौशल की फिल्मोग्राफी में जड़ चुका एक ऐसा हीरा है जिसकी चमक हमेशा बरकरार रहेगी.

सरदार उधम अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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