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संजय दत्त की रिहाई !! वो जेल में थे कब??

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 25 फरवरी, 2016 10:40 AM
  • 25 फरवरी, 2016 10:40 AM
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संजय दत्त ने बेहतरीन फिल्में दी हैं. वो एक अच्छे कलाकार हैं. लेकिन इस बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि अपने परिवार के नाम की वजह से उनकी सजा उनके लिए सजा जैसी थी ही नहीं

संजय दत्त को अपने अच्छे आचरण के चलते जल्दी रिहाई दी जा रही है. वो 25 फरवरी को जेल से हमेशा के लिए आजाद हो गए हैं. सोशल मीडिया पर इस खबर की सरगर्मी देखकर लगता है कि इस बॉलीवुड प्रेमी देश में संजय दत्त की रिहाई नेल्सन मंडेला की रिहाई से कम नहीं है. मंडेला की रिहाई वास्तव में एपिक थी, लेकिन इस रिहाई के मायने समझ से परे हैं, ये उस सजा की रिहाई है जो कभी सजा जैसी थी ही नहीं.

किस जुर्म की सजा?

1993 में मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुए जिसमें 250 लोग मारे गए. इस केस में एक हाई प्रोफाइल नाम आता है, संजय दत्त का. ये नाम सुनते ही बॉलीवुड क्या पूरा देश हिल गया. अंडरवर्ल्ड से संबंध और घर में एके-56 राइफल रखने के आरोप में संजय दत्त को 1994 में गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तारी के बाद संजय दत्त ने अपना गुनाह कबूल भी कर लिया था. इस मामले की सुनवाई विशेष टाडा अदालत में 30 जून 1995 को शुरू हुई. करीब 12 साल बाद 18 मई 2007 को इसकी सुनवाई खत्म हुई. संजय दत्त टाडा के आरोपों से तो बरी हो गए लेकिन उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत 6 साल की सजा सुनाई गई.

जेल जो बन गया खेल

*सजा मिलने के बाद 31 जुलाई 2007 को संजय दत्त को पुणे के यरवदा जेल भेज दिया गया. 20 दिन बाद ही उन्‍हें जमानत मिल गई. 22 अक्टूबर 2007 को संजय फिर जेल गए, और उन्होंने फिर जमानत की अर्जी दी. 27 नवंबर 2007 को सुप्रीम कोर्ट से उन्हें फिर जमानत मिल गई.

*2013 में फिर से इस केस की सुनवाई हुई और इस बार संजय दत्त की सजा को कम कर 5 साल कर दिया गया. आत्मसमर्पण के लिए उन्हें एक महीने का समय दिया गया था. 16 मई 2013 को संजय ने आत्मसमर्पण कर दिया.

अब संजय को सिर्फ 5 साल की सजा काटनी थी, जिसमें से 18 महीने की सजा वो ट्रायल के दौरान काट चुके थे. लिहाजा अब उन्हें सिर्फ 42 महीनों की जेल काटनी थी. लेकिन इस जेल को उन्होंने खेल बना दिया.

*अपने पैर के दर्द का इलाज करवाने के लिए अक्टूबर 2013 में उन्हें 14 दिन की छुट्टी दी गई जिसे और 14 दिन...

संजय दत्त को अपने अच्छे आचरण के चलते जल्दी रिहाई दी जा रही है. वो 25 फरवरी को जेल से हमेशा के लिए आजाद हो गए हैं. सोशल मीडिया पर इस खबर की सरगर्मी देखकर लगता है कि इस बॉलीवुड प्रेमी देश में संजय दत्त की रिहाई नेल्सन मंडेला की रिहाई से कम नहीं है. मंडेला की रिहाई वास्तव में एपिक थी, लेकिन इस रिहाई के मायने समझ से परे हैं, ये उस सजा की रिहाई है जो कभी सजा जैसी थी ही नहीं.

किस जुर्म की सजा?

1993 में मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुए जिसमें 250 लोग मारे गए. इस केस में एक हाई प्रोफाइल नाम आता है, संजय दत्त का. ये नाम सुनते ही बॉलीवुड क्या पूरा देश हिल गया. अंडरवर्ल्ड से संबंध और घर में एके-56 राइफल रखने के आरोप में संजय दत्त को 1994 में गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तारी के बाद संजय दत्त ने अपना गुनाह कबूल भी कर लिया था. इस मामले की सुनवाई विशेष टाडा अदालत में 30 जून 1995 को शुरू हुई. करीब 12 साल बाद 18 मई 2007 को इसकी सुनवाई खत्म हुई. संजय दत्त टाडा के आरोपों से तो बरी हो गए लेकिन उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत 6 साल की सजा सुनाई गई.

जेल जो बन गया खेल

*सजा मिलने के बाद 31 जुलाई 2007 को संजय दत्त को पुणे के यरवदा जेल भेज दिया गया. 20 दिन बाद ही उन्‍हें जमानत मिल गई. 22 अक्टूबर 2007 को संजय फिर जेल गए, और उन्होंने फिर जमानत की अर्जी दी. 27 नवंबर 2007 को सुप्रीम कोर्ट से उन्हें फिर जमानत मिल गई.

*2013 में फिर से इस केस की सुनवाई हुई और इस बार संजय दत्त की सजा को कम कर 5 साल कर दिया गया. आत्मसमर्पण के लिए उन्हें एक महीने का समय दिया गया था. 16 मई 2013 को संजय ने आत्मसमर्पण कर दिया.

अब संजय को सिर्फ 5 साल की सजा काटनी थी, जिसमें से 18 महीने की सजा वो ट्रायल के दौरान काट चुके थे. लिहाजा अब उन्हें सिर्फ 42 महीनों की जेल काटनी थी. लेकिन इस जेल को उन्होंने खेल बना दिया.

*अपने पैर के दर्द का इलाज करवाने के लिए अक्टूबर 2013 में उन्हें 14 दिन की छुट्टी दी गई जिसे और 14 दिन के लिए बढ़ा दिया गया. (28 दिन आजाद)

*21 दिसंबर 2013 को वो 28 दिन के लिए पेरोल पर बाहर आ गए. जिसे फिर से 28 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया, इस बार उनकी पत्नी मान्यता दत्त की टीबी की शिकायत का पता लगा था. (56 दिन आज़ाद)

*दिसंबर 2014 में फिर उन्हें 14 दिन की छुट्टी दी गई. उन्हें इसे फिर से बढ़वाना चाहा तो अपील खारिज कर दी गई. (14 दिन आजाद)

*अगस्त 2015 को संजय दत्त की बेटी की नाक की सर्जरी होनी थी जिसके लिए वो पेरोल पर 30 दिन बाहर रहे. (30 दिन आजाद)

इसके अलावा भी वे अलग अलग कारणों से जेल के बाहर आते रहे. इतनी छुट्टियों को संजय दत्त ने बर्बाद नहीं किया. फिल्म पुलिसगिरी, जिला गाजियाबाद और पीके के लिए उन्होंने समय निकाल ही लिया. संजय दत्त फिल्मी हस्ती हैं, वो एक राजनीतिक परिवार से भी ताल्लुक रखते हैं, तो उनका ये एक पैर जेल में तो एक जेल के बाहर होना आश्चर्य का बात नहीं है. जेल तो सिर्फ औपचारिकता थी, जिसे निभाना तो था ही. उनके लिए जेल की हवा प्यूरिफाइड थी.

ये भी पढ़ें- संजय दत्त को जेल भेजने वाले जज खुद पर्दे पर

संजय हैं वीआईपी कैदी

वो बॉलीवुड स्टार हैं, राजनीतिक ताल्लुकात भी बहुत अच्छे हैं, ऐसे में वीआईपी ट्रीटमेंट के ऑफीशियल हकदार तो वो बन ही जाते हैं. संजय जेल में शानदार गद्दे पर ही सोते हैं, मुलायम तकिया, पंखा, मॉस्कीटो रेपलेंट, और जरूरत का सारा सामान उनके पर्सनल है. और तो और अपने शौक के लिए उन्होंने जेल में ई-सिगरट की भी मांग भी की थी, हलांकि उसे नामंजूर कर दिया गया था. बाकी सजायाफ्ता कैदियों की तरह एक स्टार रह भी कैसे सकता है.

              संजय दत्त का कहना है कि उन्होंने जेल का खाना खाकर 18 किलो वजन कम किया और सिक्स पैक बनाए

अच्छा आचरण, किसे कहते हैं

संजय की सजा अक्टूबर 2016 को पूरी होने वाली थी, लेकिन उनके अच्छे आचरण के कारण उनकी सजा के 114 दिन कम कर दिए गए. और अब वो 27 फरवरी को रिहा हो जाएंगे. पर आचरण की बात हो रही है तो ये भी याद आ रहा है कि संजय एक जमाने में ड्रग एडिक्ट थे. फिर अंडरवर्ल्ड से उनके रिश्ते उनके आचरण की अलग ही कहानी बयां करते हैं. सजा के बाद संजय जेल में भी इतने समय नहीं रहे कि वो अपने आचरण से किसी को इंप्रेस कर सकें. ऐसे में उन्हें अच्छे आचरण का रिवार्ड दिया जाना गले नहीं उतरता.

संजय दत्त ने बेहतरीन फिल्में दी हैं. वो एक अच्छे कलाकार हैं. लेकिन इस बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि अपने परिवार के नाम की वजह से उनकी सजा उनके लिए सजा जैसी थी ही नहीं, ऐसी सजा जिसे भोगकर एक कैदी को अपनी गलतियों का पछतावा होता है. छोटे-छोटे बहाने बनाकर छुट्टी लेना, पेरोल पर बाहर आना और बाहर आकर फिल्मों की शूटिंग करना, एक कैदी के लिए ये सब करना अजीब लगता है. संजय दत्त फिल्म के हीरो हो सकते हैं, पर असल जिंदगी में उनकी छवि एक खलनायक की ही रहेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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