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संजय दत्त को जेल भेजने वाले जज खुद पर्दे पर

    • चंदन कुमार
    • Updated: 03 जून, 2015 08:06 PM
  • 03 जून, 2015 08:06 PM
offline
संजय दत्त केस का फैसला सुनाने वाले जस्ट‍िस कोडे रिटायर होने के बाद दोबारा 'जज' बने हैं. पर्दे पर.
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संजय दत्त केस का फैसला याद है? फैसला सुनाने वाले जस्ट‍िस कोडे? 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में संजय दत्त को अवैध हथियार रखने पर उन्होंने ही जेल भेजा था. इस साल रिटायर हो गए. लेकिन जस्ट‍िस कोडे अब फिर सुर्खियों में हैं. वे दोबारा जज बन गए हैं. पर्दे पर.
 
एक फिल्म बन रही है - जेडी. इसकी कहानी एक पत्रकार जय द्विवेदी के इर्द-गिर्द घूमती है. रेप का आरोप झेल रहे इस पत्रकार का मामला जिस कोर्ट में पहुंचता है, वहां जज की भूमिका में हैं रिटायर्ड जस्ट‍िस पीडी कोडे.
 
कोर्ट में वकीलों की दलीलें और गवाहों को सुनने के बाद जज साहब अपना फैसला सुनाते हैं और एक आवाज आती है - 'कट'. यूनिट के सभी लोग तालियां बजाते हैं. एक ही टेक में जस्ट‍िस कोडे का सीन कैमरे में कैद हो चुका था और डायरेक्टर की ओर से फाइनल भी. दरअसल रियल हो या रील, जस्ट‍िस कोडे के काम करने का तरीका ही यही है.
 
आज जब यह लिखा जा रहा है तो सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि मामला एक ऐसे जज से जुड़ा है, जिसने संजय दत्त को सजा दी थी. जस्ट‍िस कोडे की कहानी के जरिये हम आप तक काम के प्रति लगन, कभी न थकने वाली मानसिकता के साथ-साथ एक इंसान की संवेदनशीलता का उदाहरण पेश करना चाहते हैं. तो आइए जानते हैं क्यों जस्ट‍िस कोडे का नाम ज्यूडिशयल सर्किल के अंदर बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता है:
 
- जस्ट‍िस पीडी कोडे ने 1996 से लेकर 2007 तक (जब तक मुंबई बम ब्लास्ट और संजय दत्त मामला चला) कभी कोई छुट्टी नहीं ली.
- सुनवाई के दौरान इनके माता-पिता की मौत भी हुई. इसके बावजूद वे लगातार काम करते रहे.
- एक सुबह नहाते समय फिसल कर गिर जाने के कारण इनका हाथ टूट गया. पेन किलर खाया और कोर्ट पहुंच गए.
- मुंबई बम ब्लास्ट से जुड़े कुछ आरोपियों को हज पर जाने की इजाजत दी थी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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