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RRR में रामायण की छवियों का जमकर इस्तेमाल, राजमौली की फिल्म से क्यों गायब हैं गांधी-नेहरू?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 28 मार्च, 2022 12:52 PM
  • 28 मार्च, 2022 12:52 PM
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हिंदुत्व और गैर हिंदुत्व प्रतीकों पर आधारित फिल्मों में उन छवियों की अनुपस्थिति दिखती है जिन्हें हिंदू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा सामंजस्य के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. गांधी लोकप्रिय सिनेमा में ऐसे ही संदर्भों के लिए आते रहे हैं. लेकिन RRR में उन्हें गायब कर दिया गया.

हाल ही में विधानसभा चुनावों के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान के ऑफिस की कुछ तस्वीरें बाहर आई थीं. मान के पीछे दीवार पर दो तस्वीरों और एक प्रतीक ने लोगों का ध्यान खींचा था. दीवार पर सिर्फ दो महापुरुषों की तस्वीर थी. एक में अमर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद-ए-आजम भगत सिंह थे और दूसरा फोटो संविधान रचयिता, दलित और हाशिए के समाज के मानव अधिकार को यथार्थ बनाने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का है. तस्वीरों के साथ एक और कॉमन चीज थी. भगत सिंह और भगवंत मान की पगड़ी का रंग पीला था. खैर यह विवाद का विषय नहीं था. सरकारी कार्यालयों में दोनों महापुरुषों की तस्वीर प्राय: नजर आती है. लोग हैरान सिर्फ इस बात पर थे कि आखिर महात्मा गांधी की तस्वीर दीवार पर क्यों नहीं थी?

आम आदमी पार्टी के तमाम नेता आंदोलन के दिनों से गांधी के नाम, काम और उनकी तस्वीर को अपने साथ जोड़े रहते थे. पूरे एपिसोड पर खूब सारी बहस हुई और अभी भी हो रही है. महात्मा गांधी की तस्वीर का गायब होना जरूर हैरानी का विषय था. तो क्या इसका मतलब यह है कि देश के नए इको सिस्टम में अब गांधी की प्रासंगिकता बहुत मायने नहीं रखती. दरअसल, प्रासंगिकता को लेकर सवाल भगवंत एपिसोड के बाद अब एसएस राजमौली की पीरियड ड्रामा RRR की वजह से भी बहस तलब है. गांधी और RRR को लेकर मार्च के दूसरे हफ्ते से बहस शुरू हो गई थी.

इसी गाने में महापुरुषों का संदर्भ दिखता है.

RRR 25 मार्च को रिलीज हुई है. यह फिल्म अंग्रेजों से स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. हालांकि राजमौली ने फिल्म की कहानी के लिए कल्पना का खूब सहारा लिया है. फिल्म की कहानी कोमाराम भीम और अल्लूरी सीताराम राजू की है. यह दोनों भूमिकाएं क्रमश: जूनियर एनटीआर और रामचरण ने निभाई हैं. RRR का एक गाना (Etthara...

हाल ही में विधानसभा चुनावों के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान के ऑफिस की कुछ तस्वीरें बाहर आई थीं. मान के पीछे दीवार पर दो तस्वीरों और एक प्रतीक ने लोगों का ध्यान खींचा था. दीवार पर सिर्फ दो महापुरुषों की तस्वीर थी. एक में अमर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद-ए-आजम भगत सिंह थे और दूसरा फोटो संविधान रचयिता, दलित और हाशिए के समाज के मानव अधिकार को यथार्थ बनाने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का है. तस्वीरों के साथ एक और कॉमन चीज थी. भगत सिंह और भगवंत मान की पगड़ी का रंग पीला था. खैर यह विवाद का विषय नहीं था. सरकारी कार्यालयों में दोनों महापुरुषों की तस्वीर प्राय: नजर आती है. लोग हैरान सिर्फ इस बात पर थे कि आखिर महात्मा गांधी की तस्वीर दीवार पर क्यों नहीं थी?

आम आदमी पार्टी के तमाम नेता आंदोलन के दिनों से गांधी के नाम, काम और उनकी तस्वीर को अपने साथ जोड़े रहते थे. पूरे एपिसोड पर खूब सारी बहस हुई और अभी भी हो रही है. महात्मा गांधी की तस्वीर का गायब होना जरूर हैरानी का विषय था. तो क्या इसका मतलब यह है कि देश के नए इको सिस्टम में अब गांधी की प्रासंगिकता बहुत मायने नहीं रखती. दरअसल, प्रासंगिकता को लेकर सवाल भगवंत एपिसोड के बाद अब एसएस राजमौली की पीरियड ड्रामा RRR की वजह से भी बहस तलब है. गांधी और RRR को लेकर मार्च के दूसरे हफ्ते से बहस शुरू हो गई थी.

इसी गाने में महापुरुषों का संदर्भ दिखता है.

RRR 25 मार्च को रिलीज हुई है. यह फिल्म अंग्रेजों से स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. हालांकि राजमौली ने फिल्म की कहानी के लिए कल्पना का खूब सहारा लिया है. फिल्म की कहानी कोमाराम भीम और अल्लूरी सीताराम राजू की है. यह दोनों भूमिकाएं क्रमश: जूनियर एनटीआर और रामचरण ने निभाई हैं. RRR का एक गाना (Etthara Jenda Video Song) है जिसे फिल्म रिलीज से कुछ दिन पहले ही जारी किया गया था. यह RRR का एंथम सॉंग है जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई शीर्ष सेनानियों को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है.

RRR के बहाने गांधी पर चर्चा क्यों?

छत्रपति शिवाजी महाराज, सरदार वल्लभ भाई पटेल, तंगुतुरी प्रकाशम, सुभाष चंद्र बोस और तमाम जननायकों की तस्वीरें दिखती हैं मगर महात्मा गांधी का कोई संदर्भ नहीं है. जबकि अल्लूरी सीताराम राजू खुद खुद गांधी से प्रभावित होकर ही स्वतंत्रता संग्राम में कूदे थे. लोग हैरान इसी बात से हैं और Etthara Jenda Song में दिखे महापुरुषों का कोलाज फोटो साझा कर गांधी को लेकर सवाल पूछ रहे हैं. हालांकि इन सवालों के बचाव में जो प्रतिक्रियाएं हैं उनमें कहा जा रहा है कि इसके पीछे वजह सिर्फ यह है कि फिल्म दो स्वतंत्रता सेनानियों के क्रांतिकारी जीवन पर है. इसीलिए इसमें गांधी का संदर्भ नहीं हैं. गांधी अहिंसक क्रांति के प्रतीक पुरुष हैं ना कि आजादी के हिंसक संघर्ष के. जबकि शहीद ए आजम भगत सिंह तक पर बनी तमाम फिल्मों में गांधी का प्रसंग वैसे ही आता है जैसे आना चाहिए. अब पूछा जाए कि पटेल तो क्रांतिकारी नहीं थे. क्या उनका इस्तेमाल हिंदुत्ववादी छवि की वजह से तो नहीं किया गया? उधर, कुछ लोग सवाल पर 'सवाल' के जरिए बचाव कर रहे कि तमाम गांधीवादी फिल्मों में बाबा साहेब अंबेडकर का भी तो संदर्भ नहीं दिया जाता है.

बहस से अलग सोशल मीडिया पर अन्य चीजें देखते हैं तो एकबारगी इस बात से इनकार करना मुश्किल होता है कि- बस सामान्य बात है. जैसा बचाव में लोग कह भी रहे हैं. फिल्म में ऐसे दर्जनों पौराणिक-ऐतिहासिक प्रतीक इस्तेमाल किए गए हैं जिनका संकेत समझना कोई मुश्किल काम नहीं. और इसमें बुराई भी नहीं. RRR में रामायण और महाभारत से बहुत सारे धार्मिक संदर्भ लिए गए हैं और लोग सोशल मीडिया पर निजी नजरिए से उसकी मीमांसा भी कर रहे हैं. पॉजिटिव मीम्स साझा किए जा रहे हैं. कोई हैरानी की बात नहीं. तमाम कहानियां, नाटक और किताब दोनों महाकाव्यों से प्रेरित होकर लिखी गईं. राजमौली खुद भी कई मर्तबा बता चुके हैं कि रामायण और महाभारत का उनपर कितना असर है. उनकी मगधीरा से लेकर बाहुबली के दोनों हिस्सों में असर भी साफ दिखता है. मौजूदा इको सिस्टम के लिहाज से RRR में दिख रही तमाम चीजों को हिंदुत्व की राजनीति से प्रेरित मान सकते हैं.

रामायण-महाभारत का प्रतीकात्मक संदर्भ

RRR में रामायण और महाभारत का प्रतीकात्मक संदर्भ साफ़ दिखता है. रामचरण तेजा का किरदार वनवासी भगवान राम के जीवन से प्रेरित है. आलिया भट्ट को सीता के रूप में दिखाया गया है जबकि जूनियर एनटीआर का किरदार हनुमान से प्रभावित दिखता है. तीर धनुष लिए रामचरण की छवि भगवान राम के उसी उग्र स्वभाव का प्रतिनिधित्व करती है जो उनके वनगमन और बाद में रावण से संघर्ष के दौरान नजर आता है. भारतीय परंपरा में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि दी जाती है और पहली बार राम मंदिर आंदोलन के दौरान एक अलग ही तस्वीर सामने आई थी जिसे रामसेतु के संदर्भ में भगवान के उग्र स्वरूप को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

RRR के प्रशंसक और तमाम फैन पेज पर तस्वीरों की भरमार मिलेगी. फिल्म की तस्वीर के साथ पौराणिक संदर्भों का कोलाज देखने को मिलता है. उदाहरण के लिए किसी तस्वीर में रामचरण, जूनियर एनटीआर को पिस्टल चलाते नजर आ रहे हैं. तस्वीर कुछ-कुछ वैसी ही है जैसे महाभारत से प्रेरित लोकप्रिय कैलेंडर में सारथी के रूप में भगवान कृष्ण युद्धभूमि की ओर इशारा कर रहे हैं और अर्जुन तीर कमान साध रहे हैं. एक कोलाज में संन्यासी वेश में रामचरण , जूनियर एनटीआर के कंधे पर बैठे और उनके दोनों हाथों में हथियार है. इस फोटो के साथ कोलाज में राम को कंधे पर हनुमान को बिठाए दिखाया गया है.

एक और फोटो में रामचरण-आलिया के साथ एनटीआर दिख रहे हैं. कोलाज में पौराणिक फोटो राम दरबार की है जिसमें भगवान राम और सीता खड़े हैं हनुमान भी उनके साथ है. और भी कई दृश्य रामायण महाभारत से प्रेरित हैं जो फिल्म में इस्तेमाल किए गए हैं और सोशल मीडिया पर उनकी व्याख्या की जा रही है. मजेदार यह भी है कि किरदारों के वास्तविक नाम भी पौराणिक संदर्भों का अहसास करते रहते हैं. सीताराम, सीता और भीम.  

क्या यह ऐतिहासिक समय है जिसमें गांधी की प्रासंगिकता नहीं रही

आजकल सिनेमा में प्रतीकों का इस्तेमाल बढ़ा है. RRR ताजा उदाहरण है. अगर एक पर एक रिलीज हो रही फ़िल्में और उनमें इस्तेमाल ऐतिहासिक संदर्भों को जोड़े तो समझ में आता है कि राजनीति में दिख रही चीजें कैसे अन्य जगहों पर भी प्रभावी साबित हो रही हैं. अनाधिकारिक ही सही लेकिन सोशल मीडिया पर RRR का प्रचार भी भारतीय परंपरा और हिंदुत्ववादी फिल्म के रूप में किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की भरमार मिलेगी जो बता रहे कि बॉलीवुड की हिंदू विरोधी लॉबी की तुलना में दक्षिण किस तरह परंपरा को देखता है और सिनेमा बनाता है.

हिंदुत्व और गैर हिंदुत्व प्रतीकों पर आधारित फिल्मों में उन परंपरागत छवियों की अनुपस्थिति दिखती है जिन्हें हिंदू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा, अमीर-गरीब सामंजस्य के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. गांधी और नेहरू लोकप्रिय सिनेमा में ऐसे ही संदर्भों के लिए आते रहे हैं. लग रहा कि यह ऐतिहासिक बदलाव का वक्त है. जिसमें कम से कम गांधी-नेहरू की प्रासंगिकता नहीं है. तो क्या ये माना जाए कि नया सिस्टम हिंदुत्ववादी है जो गांधी को खंडित करता है. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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