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Rosh Review: निर्देशक, एक्टर, प्रोड्यूसर आखिर किसकी सजा का फल है ‘रोष’

    • तेजस पूनियां
    • Updated: 11 मई, 2023 06:10 PM
  • 11 मई, 2023 06:10 PM
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फ्रॉड किसी भी किस्म का हो सजा तो मिलनी चाहिए ना? और फिर संविधान भी तो यह हक़ देता है आपको की आप रिपोर्ट करें फ्रॉड की. अब यहां फिर से फर्ज कीजिए आपने रिपोर्ट कर दी लेकिन हुआ कुछ नहीं तो क्या करेंगे?

फ़र्ज कीजिए आप किसी बड़े घर में रहते हैं. बाहर घूमते रहते हैं, पार्टियां करते रहते हैं. घर में आपके अलावा कोई नहीं बस दो लड़कियां हैं. पर कमाता कौन है? सारे दिन तो आप घर में रहते हैं या बाहर? अब आप कहेंगे घर बैठे भी कमाया जा सकता है. जी बिल्कुल पर कोरोना के अलावा ऐसा कौन सा वायरस आया अब तक जिसमें आपने घर बैठे कमाया हो? मैं बताता हूँ एक धंधा है लोगों को फोन करना और उनसे ओटीपी, बैंक डिटेल्स आदि मांग कर उनके बैलेंस को उड़ा देना. अब आप कहेंगे ये तो चोरी हुई और चोरी की सजा तो मिलेगी ही. बिल्कुल फ्रॉड किसी भी किस्म का हो सजा तो मिलनी चाहिए ना? और फिर संविधान भी तो यह हक़ देता है आपको की आप रिपोर्ट करें फ्रॉड की.

अब यहां फिर से फर्ज कीजिए आपने रिपोर्ट कर दी लेकिन हुआ कुछ नहीं तो क्या करेंगे? तो भाई साहब आपको एक सलाह मैं देता हूं 12 मई को सिनेमाघरों में 'रोष' देख लीजिए मगर रोष में होश खो गये तो जरुरी नहीं जैसा फिल्म में हुआ वैसा आपके साथ भी हो. अब कहानी सुनेंगें फिल्म की? चलो थोड़ी बता दूं एक डिलवरी बॉय जिसका एक अमीर लड़के और दो बिगड़ी लड़कियों की गाड़ी से एक्सीडेंट हो गया लेकिन थोड़ी देर बाद एक डिलीवरी बॉय उन्हीं के घर में घुस आया.

रोष जिस तरह की फिल्म है, थोड़ी मेहनत और होती तो इस फिल्म को अच्छा बनाया जा सकता था

मजे की बात ये डिलवरी बॉय उनकी सारी जानकारी साथ लाया है. जबरदस्ती कर कराके उनके घर में बाथरूम तक आ गया उसके बाद जो हुआ वो कहानी के हिसाब से तो सस्पेंस बनाये रखता है, थ्रिल भी देता है लेकिन क्या हो सिर्फ कहानी अच्छी हो एक्टिंग सबकी आपको ना लुभाए. दारु कम हो और पानी ज्यादा तो नहीं चलता ठीक जैसे दारु ज्यादा और पानी कम होने पर हजम नहीं होती.

निर्देशक भाई साहब कहानी, संवाद, पटकथा के माध्यम से तो आपने 'रोष' खूब दिखाया लेकिन...

फ़र्ज कीजिए आप किसी बड़े घर में रहते हैं. बाहर घूमते रहते हैं, पार्टियां करते रहते हैं. घर में आपके अलावा कोई नहीं बस दो लड़कियां हैं. पर कमाता कौन है? सारे दिन तो आप घर में रहते हैं या बाहर? अब आप कहेंगे घर बैठे भी कमाया जा सकता है. जी बिल्कुल पर कोरोना के अलावा ऐसा कौन सा वायरस आया अब तक जिसमें आपने घर बैठे कमाया हो? मैं बताता हूँ एक धंधा है लोगों को फोन करना और उनसे ओटीपी, बैंक डिटेल्स आदि मांग कर उनके बैलेंस को उड़ा देना. अब आप कहेंगे ये तो चोरी हुई और चोरी की सजा तो मिलेगी ही. बिल्कुल फ्रॉड किसी भी किस्म का हो सजा तो मिलनी चाहिए ना? और फिर संविधान भी तो यह हक़ देता है आपको की आप रिपोर्ट करें फ्रॉड की.

अब यहां फिर से फर्ज कीजिए आपने रिपोर्ट कर दी लेकिन हुआ कुछ नहीं तो क्या करेंगे? तो भाई साहब आपको एक सलाह मैं देता हूं 12 मई को सिनेमाघरों में 'रोष' देख लीजिए मगर रोष में होश खो गये तो जरुरी नहीं जैसा फिल्म में हुआ वैसा आपके साथ भी हो. अब कहानी सुनेंगें फिल्म की? चलो थोड़ी बता दूं एक डिलवरी बॉय जिसका एक अमीर लड़के और दो बिगड़ी लड़कियों की गाड़ी से एक्सीडेंट हो गया लेकिन थोड़ी देर बाद एक डिलीवरी बॉय उन्हीं के घर में घुस आया.

रोष जिस तरह की फिल्म है, थोड़ी मेहनत और होती तो इस फिल्म को अच्छा बनाया जा सकता था

मजे की बात ये डिलवरी बॉय उनकी सारी जानकारी साथ लाया है. जबरदस्ती कर कराके उनके घर में बाथरूम तक आ गया उसके बाद जो हुआ वो कहानी के हिसाब से तो सस्पेंस बनाये रखता है, थ्रिल भी देता है लेकिन क्या हो सिर्फ कहानी अच्छी हो एक्टिंग सबकी आपको ना लुभाए. दारु कम हो और पानी ज्यादा तो नहीं चलता ठीक जैसे दारु ज्यादा और पानी कम होने पर हजम नहीं होती.

निर्देशक भाई साहब कहानी, संवाद, पटकथा के माध्यम से तो आपने 'रोष' खूब दिखाया लेकिन क्या निर्देशन करते समय या सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग, एक्टिंग, मेकअप आदि करवाते समय, कैमरामैन को समझाते समय, म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर बनवाते समय, वी एफ एक्स देखते समय आपके हाथ और आंख बांध दिए थे किसी ने?

या सब कुछ आपने अपना कहानी, पटकथा और संवादों को लिखते समय ही खत्म कर दिया था? एक-दो विभाग या एक दो एक्टर आदि को छोड़ बस जुबिन नौटियाल के गाने की वजह से दर्शक इसे देख ले तो बेहतर. लेकिन आपने जाते-जाते जो मैसेज दिया स्क्रीन पर वह ज्यादा सूटेबल रहा. पूरी फिल्म में आपने वैसे सच कहूंकोई और इसके अलावा मैसेज दिया नहीं है.

बैंक फ्रॉड के मामले हमारे देश में सबसे ज्यादा होते हैं पढ़े-लिखे लोग भी पैसों के लालच में कब आ जाए कहा नहीं जा सकता. लेकिन जयवीर पंघाल उर्फ़ निर्देशक महोदय और आपकी टीम मिमोह चक्रवर्ती, यशराज, निकिता सोनी, अलीना राय, व्रजेश हीरजी, गोविन्द पाण्डेय, रुचि तिवारी, मोंटी शर्मा, अभय आनन्द, आलोक सिंह आदि से थोड़ा और दमखम लगवाते खुद भी लगाते तो जो वन टाइम वॉच की सजा है उसे दर्शक बिना किसी शिकवा, शिकायत के मोहब्बत के साथ देख पाते.

हां आपको यदि सस्पेंस, थ्रिल, मारधाड़, धोखाधड़ी आदि वाला सिनेमा पसंद है तो यह आपको जरुर रोचक लगेगी. फैसला आपके हाथ में है रिव्यू पढ़ लीजिए या सिनेमाघरों में जाकर आपके किस्म का सिनेमा है तो देख आइये अच्छा लगेगा. बस ‘रोष’ में आकर होश ना खो बैठिएगा. अपनी रेटिंग- 2 स्टार


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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