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Surekha Sikri: भारतीय मां की तरह हर धर्म, संस्कृति, भाषा और रीति-रिवाज जीना जानती थीं!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 17 जुलाई, 2021 09:14 PM
  • 17 जुलाई, 2021 09:14 PM
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एक्टर सुरेखा सीकरी की मौत से बॉलीवुड और थियेटर इंडस्ट्री को गहरा आघात लगा है. बुजुर्ग किरदारों में इस बुजुर्ग अदाकारा का कोई ज़ोड़ नहीं था. वो हिन्दुस्तान की तरह थीं, वो भारत माता जैसी थीं, जिनके अभिनय के आंचल पर किस्म-किस्म की संस्कृतियो, क्षेत्रीय भाषाओं, लोक शैलियों के सितारे चमकते थे. उनकी अदाकारी के हुनर में तमाम संस्कृतियां जीने का सौंदर्य था.

एक बुजुर्ग अभिनेत्री आसमानी किरदार निभाने चलीं गईं. फिल्म- टीवी और थिएटर की अदाकारा सुरेखा सीकरी जैसी जबरदस्त अदाकार के लिए अभिनय की दुनिया अब शायद तरस जाएगी. वो सत्तर के दशक से अभिनय का सफर शुरू करके सत्तर साल की उम्र तक अपने अभिनय की छाप छोड़ती रहीं. पिछले साल ब्रेन स्ट्रोक के बाद वो शारीरक रूप से कमजोर और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों में घिर गईं थीं. बीते दिन उन्हें दिल का दौड़ा पड़ा और वो दुनिया को अलविदा कहकर अपने प्रशंसकों को ग़मग़ीन करके चली गईं. 72 बरस की उम्र की अपनी जिन्दगी में पचास साल उन्होंने अभिनय को समर्पित कर दिये थे. थियेटर से लेकर फिल्म और टीवी की दुनिया में उनकी अदाकारी का जादू सिर चढ़ कर बोला.

बुजुर्ग किरदारों में इस बुजुर्ग अदाकारा का कोई ज़ोड़ नहीं था. वो हिन्दुस्तान की तरह थीं, वो भारत माता जैसी थीं, जिनके अभिनय के आंचल पर किस्म-किस्म की संस्कृतियो, क्षेत्रीय भाषाओं, लोक शैलियों के सितारे चमकते थे. उनकी अदाकारी के हुनर में तमाम संस्कृतियां जीने का सौंदर्य था. सुलेखा द्वारा अभिनीत अलग-अलग किरदारों में हर मजहब, हर प्रांत और विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों, अंदाए-ओ-अदा के रंग झलकते थे.

सुरेखा सीकरी उन चुनिंदा एक्टर्स में थीं जिन्होंने एक्टिंग को एक नयी परिभाषा दी थी

मूल रूप से वो यूपी की थीं किंतु उनके अंदर पूरा हिन्दुस्तान बसा था. श्याम बेनेगल की फिल्म जुबैदा में मुस्लिम महिला के किरदार में सुरेखा के अंदर मुस्लिम चरित्र की भाषा-शैली, अंदाज ओ-अदाओं का कोलाज छलकने लगता था. तो कभी वो मशहूर टीवी धारावाहिक बालिका वधु में राजस्थानी बुजुर्ग महिला को कुछ इस तरह जीने लगती थीं कि कोई कह ही नहीं सकता था कि वो राजस्थान से ताल्लुख नहीं रखती थीं.

इसी तरह गुजराती, महाराष्ट्री, अमीर-गरीब, ग्रामीण-शहरी... हर...

एक बुजुर्ग अभिनेत्री आसमानी किरदार निभाने चलीं गईं. फिल्म- टीवी और थिएटर की अदाकारा सुरेखा सीकरी जैसी जबरदस्त अदाकार के लिए अभिनय की दुनिया अब शायद तरस जाएगी. वो सत्तर के दशक से अभिनय का सफर शुरू करके सत्तर साल की उम्र तक अपने अभिनय की छाप छोड़ती रहीं. पिछले साल ब्रेन स्ट्रोक के बाद वो शारीरक रूप से कमजोर और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों में घिर गईं थीं. बीते दिन उन्हें दिल का दौड़ा पड़ा और वो दुनिया को अलविदा कहकर अपने प्रशंसकों को ग़मग़ीन करके चली गईं. 72 बरस की उम्र की अपनी जिन्दगी में पचास साल उन्होंने अभिनय को समर्पित कर दिये थे. थियेटर से लेकर फिल्म और टीवी की दुनिया में उनकी अदाकारी का जादू सिर चढ़ कर बोला.

बुजुर्ग किरदारों में इस बुजुर्ग अदाकारा का कोई ज़ोड़ नहीं था. वो हिन्दुस्तान की तरह थीं, वो भारत माता जैसी थीं, जिनके अभिनय के आंचल पर किस्म-किस्म की संस्कृतियो, क्षेत्रीय भाषाओं, लोक शैलियों के सितारे चमकते थे. उनकी अदाकारी के हुनर में तमाम संस्कृतियां जीने का सौंदर्य था. सुलेखा द्वारा अभिनीत अलग-अलग किरदारों में हर मजहब, हर प्रांत और विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों, अंदाए-ओ-अदा के रंग झलकते थे.

सुरेखा सीकरी उन चुनिंदा एक्टर्स में थीं जिन्होंने एक्टिंग को एक नयी परिभाषा दी थी

मूल रूप से वो यूपी की थीं किंतु उनके अंदर पूरा हिन्दुस्तान बसा था. श्याम बेनेगल की फिल्म जुबैदा में मुस्लिम महिला के किरदार में सुरेखा के अंदर मुस्लिम चरित्र की भाषा-शैली, अंदाज ओ-अदाओं का कोलाज छलकने लगता था. तो कभी वो मशहूर टीवी धारावाहिक बालिका वधु में राजस्थानी बुजुर्ग महिला को कुछ इस तरह जीने लगती थीं कि कोई कह ही नहीं सकता था कि वो राजस्थान से ताल्लुख नहीं रखती थीं.

इसी तरह गुजराती, महाराष्ट्री, अमीर-गरीब, ग्रामीण-शहरी... हर चरित्र की रूह तक मे उतर जाती थीं. उन्होंने हिंदी के साथ मलयालय फिल्मों मे भी काम किया. तीन बार नेशनल अवार्ड हासिल करने वाली इस अभिनेत्री ने 1971 में एनएसडी से अभिनय की शिक्षा ली थी. उनकी फिल्मी अभिनय का किस्सा फिल्म 'क़िस्सा कुर्सी का' शुरू हुआ था.

सरफरोश, नसीम और जुबैदा जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने छाप छोड़ी. फिल्म मम्मो, बधाई हो और तमस में उतकृष्ट अभिनय के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड मिले. अभिनय की जादूगरनी सुरेखा ने जो रेखा खीच दी थी अभिनय की बुलंदियों की इस रेखा के आस-पास भी पंहुचना नई पीढ़ी के लिए आसान नहीं है.

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