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सुरों से आंख में पानी भर देने वाली लता

    • मनीष जैसल
    • Updated: 28 सितम्बर, 2018 06:38 PM
  • 28 सितम्बर, 2018 06:35 PM
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लता मंगेशकर को कुछ कहना सूरज को दीया दिखाना है. उनके जन्मदिन पर हम यही कामना करेंगे कि हमारे जीवन में उनके गीत ऐसे ही बरकरार रहें

28 सितंबर 1929 को इंदौर में जन्मीं स्वर कोकिला लता मंगेशकर मधुर आवाज का प्रतिबिंब मानी जाती हैं. आवाज की मधुरता को किसी एक शब्द में समेटना हो तो सिर्फ आप लता दीदी कहिए और प्रसंग पूरा हो जाएगा. गीतों की क्वालिटी और क्वान्टिटी दोनों में लता मंगेशकर ने ख्याति अर्जित की है. स्वर कोकिला ने अपने कैरियर में क्वान्टिटी को क्वालिटी पर कभी हावी नहीं होने दिया, इसीलिए उनके सभी गीतों में एक अलग तरह की रसानुभूति हमें महसूस होती है.

89 साल की लता मंगेशकर अब तक करीब 30 हजार से अधिक गीत गा चुकी हैं. उनमें से कइयों को प्रतीक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण से समझे तो पाएंगे कि फिल्म आवारा का गीत 'घर आया मेरा परदेसी' आज भी परदेस से लौटने वाले पति को समर्पित किया जाता है. महिलाएं मजाक में ही सही पर इसे गाती जरूर हैं. साथ ही मन डोले मेरा मन डोले, प्यार हुआ इकरार हुआ, प्यार किया तो डरना क्या, कबूतर जा जा जा, दीदी तेरा देवर दीवाना और दिल तो पागल है जैसी अनेकों गीत आज हर वर्ग में लोकप्रिय हैं जिन्हें कभी भी कोई भी गुनगुनाते हुए देखा जा सकता है.

व्यक्ति कितना भी उदास हो लता जी के गए हुए गाने निश्चित ही उसे सुकून देंगे

मराठी फिल्म 'कीती हसाल' से पार्श्‍वगायन की शुरूआत करने वाली लता के लिए यह भले ही दुखद रहा हो कि यह गीत फिल्म से काट दिया गया मगर बाद में1947 में वसंत जोगलेकर ने जब अपनी फिल्‍म 'आपकी सेवा में' लता को गाने को मौका दिया, तब फिल्‍म के गीत को काफी पसंद किया गया. उस दौर की अभिनेत्री मधुबाला के लिए गाना जैसे लता के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. 1949 में फिल्म महल के लिए गाया 'आने वाला आएगा' लता और मधुबाला दोनों के लिए फायदेमंद रहा था.

लता मंगेशकर अपनी आवाज से हर दर्शक वर्ग में एक अजीब सी स्फूर्ति पैदा कर देने वाली...

28 सितंबर 1929 को इंदौर में जन्मीं स्वर कोकिला लता मंगेशकर मधुर आवाज का प्रतिबिंब मानी जाती हैं. आवाज की मधुरता को किसी एक शब्द में समेटना हो तो सिर्फ आप लता दीदी कहिए और प्रसंग पूरा हो जाएगा. गीतों की क्वालिटी और क्वान्टिटी दोनों में लता मंगेशकर ने ख्याति अर्जित की है. स्वर कोकिला ने अपने कैरियर में क्वान्टिटी को क्वालिटी पर कभी हावी नहीं होने दिया, इसीलिए उनके सभी गीतों में एक अलग तरह की रसानुभूति हमें महसूस होती है.

89 साल की लता मंगेशकर अब तक करीब 30 हजार से अधिक गीत गा चुकी हैं. उनमें से कइयों को प्रतीक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण से समझे तो पाएंगे कि फिल्म आवारा का गीत 'घर आया मेरा परदेसी' आज भी परदेस से लौटने वाले पति को समर्पित किया जाता है. महिलाएं मजाक में ही सही पर इसे गाती जरूर हैं. साथ ही मन डोले मेरा मन डोले, प्यार हुआ इकरार हुआ, प्यार किया तो डरना क्या, कबूतर जा जा जा, दीदी तेरा देवर दीवाना और दिल तो पागल है जैसी अनेकों गीत आज हर वर्ग में लोकप्रिय हैं जिन्हें कभी भी कोई भी गुनगुनाते हुए देखा जा सकता है.

व्यक्ति कितना भी उदास हो लता जी के गए हुए गाने निश्चित ही उसे सुकून देंगे

मराठी फिल्म 'कीती हसाल' से पार्श्‍वगायन की शुरूआत करने वाली लता के लिए यह भले ही दुखद रहा हो कि यह गीत फिल्म से काट दिया गया मगर बाद में1947 में वसंत जोगलेकर ने जब अपनी फिल्‍म 'आपकी सेवा में' लता को गाने को मौका दिया, तब फिल्‍म के गीत को काफी पसंद किया गया. उस दौर की अभिनेत्री मधुबाला के लिए गाना जैसे लता के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. 1949 में फिल्म महल के लिए गाया 'आने वाला आएगा' लता और मधुबाला दोनों के लिए फायदेमंद रहा था.

लता मंगेशकर अपनी आवाज से हर दर्शक वर्ग में एक अजीब सी स्फूर्ति पैदा कर देने वाली शख्सियत हैं. कभी दो प्यार करने वाली आंखों के बीच लता की आवाज पुल का काम करती है. तो बिछड़ने के बाद दिलों को ठंडक भी देती है. अपनी निजी जिंदगी को कोई भी व्यक्ति 'कोरा कागज़ है मन मेरा' गाकर किसी से भी अभिव्यक्त कर सकता है, तो दिल तो पागल है जैसे गीतों से पहले प्यार का इज़हार भी किया जा सकता हैं. इन सबमें अगर उस बात पर गौर करें कि हम आज कितना भी आधुनिक युग में जी रहे हों लेकिन कबूतर जा जा जा को बिना गुनगुनाए प्यार को अभिव्यक्त शायद ही करा जा सके.

सीधे तौर पर कहें तो लगभग 30000 से अधिक और 30 से अधिक भाषाओं में गाए लता के गीतों में जीवन का मर्म छिपा है. कोई सिनेमा और संगीत का शोधार्थी अगर इन गीतों के लिरिक्स पर ही अध्ययन करें तो वह जीवन का पूरा सार सुरों के सहारे जान सकता है, जिसे लता ने अपनी आवाज से पिरोया है. यही उनकी जीवन भर की कमाई है.

1962 में भारत चीन से हार चुका था. हम सभी हतोत्साहित थे. इसी युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को याद करने के लिए 26 जनवरी 1963 को नेशनल स्टेडियम में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों’ को जब सी रामचन्द्र ने संगीत और लता ने अपनी आवाज से देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के समक्ष प्रस्तुत किया तो पंडित नेहरू समेत वहां उपस्थित जनों की आंखों में आंसू आ गए. इस गीत का हर एक शब्द जैसे भारत का भविष्य तय करता दिखता है. हमें जंग से मिली हार को भूल नए पथ पर चलने की ओर अग्रसर करता है.

आप देखेंगे कि इस गीत को कई बड़े से बड़े गीतकारों और संगीतकारों ने गया और संगीत दिया लेकिन आज भी इस गीत को लता की आवाज में ही सर्वाधिक पसंद किया जाता है. लता के सुरों में वह ताकत है जो आज भी आंख में पानी ला सकती है. आप दीर्घायु हों. इसी उम्मीद के साथ हम अपनी बात को विराम देंगे कि ऐसे ही हमारे जीवन में गीत और संगीत की लत लगी रहे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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