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टेक्नोलॉजी कितनी ही मधुर हो जाए, लता का क्लोन नामुमकिन है

    • यतींद्र मिश्र
    • Updated: 28 सितम्बर, 2016 03:51 PM
  • 28 सितम्बर, 2016 03:51 PM
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लता जी के योगदान को याद करें तो हर एक दौर में जैसे उनके कंठ से उस समय की जद्दोजहद ही आकार पाती रही

एक ऐसे समय में जब आवाज़ की दुनिया भी शिल्प और तकनीकी के सहारे तराश कर गढ़ी जाने लगी है, उसमें लता जी की उपस्थिति किसी चुनौती से कम नहीं. लता मंगेशकर के 88वें जन्मदिवस के अवसर पर उनके बहाने बीते दौर के सदाबहार फिल्म संगीत को याद करना कई तरह से जरूरी लगता है. एक तो उस जमाने की गायकी को याद करने से इस बात पर भी रौशनी पड़ती है कि वह उजला दौर ही सुरीली आवाजों का ऐसा सुनहरा समय रहा था, जहां एक गीत के बनने की प्रक्रिया दरअसल पूरे समाज को कविता, संगीत, धुन और आवाज से जोड़ने का माध्यम बनती थी.

'नाइटैंगल ऑफ इंडिया'

आप, लता जी के योगदान को याद करें तो हर एक दौर में जैसे उनके कंठ से उस समय की जद्दोजहद ही आकार पाती रही. फिफ्टीज का 'चली जा चली जा, छोड़ के दुनिया, गमो की दुनिया' (हम लोग) सिक्सटीज़ में' कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी बहारों की मंजिल राही'(आरती), सेवेंटीज़ में'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए(सरस्वतीचन्द्र), एटीज़ में 'ये रातें नयी पुरानी'(जूली), नाइन्टीज़ में 'मेरे ख्वाबों में जो आये'(दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे) और बाद के समय में 'लुका छिपी बहुत हुई' (रंग दे बसंती) तक हर जगह लता मंगेशकर की स्वर्गिक आवाज का सम्मोहन बरकरार है.

ये भी पढ़ें- सचिन-लता का मजाक, ये कॉमेडी नहीं ‘ऑल इंडिया बकवास’ है!

अलग से यह भी गौर करना चाहिए कि...

एक ऐसे समय में जब आवाज़ की दुनिया भी शिल्प और तकनीकी के सहारे तराश कर गढ़ी जाने लगी है, उसमें लता जी की उपस्थिति किसी चुनौती से कम नहीं. लता मंगेशकर के 88वें जन्मदिवस के अवसर पर उनके बहाने बीते दौर के सदाबहार फिल्म संगीत को याद करना कई तरह से जरूरी लगता है. एक तो उस जमाने की गायकी को याद करने से इस बात पर भी रौशनी पड़ती है कि वह उजला दौर ही सुरीली आवाजों का ऐसा सुनहरा समय रहा था, जहां एक गीत के बनने की प्रक्रिया दरअसल पूरे समाज को कविता, संगीत, धुन और आवाज से जोड़ने का माध्यम बनती थी.

'नाइटैंगल ऑफ इंडिया'

आप, लता जी के योगदान को याद करें तो हर एक दौर में जैसे उनके कंठ से उस समय की जद्दोजहद ही आकार पाती रही. फिफ्टीज का 'चली जा चली जा, छोड़ के दुनिया, गमो की दुनिया' (हम लोग) सिक्सटीज़ में' कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी बहारों की मंजिल राही'(आरती), सेवेंटीज़ में'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए(सरस्वतीचन्द्र), एटीज़ में 'ये रातें नयी पुरानी'(जूली), नाइन्टीज़ में 'मेरे ख्वाबों में जो आये'(दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे) और बाद के समय में 'लुका छिपी बहुत हुई' (रंग दे बसंती) तक हर जगह लता मंगेशकर की स्वर्गिक आवाज का सम्मोहन बरकरार है.

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अलग से यह भी गौर करना चाहिए कि उन्होंने फिल्म संगीत में अपनी वैचारिकी से कुछ अनूठे प्रयोग किए, जिसका बाद की पीढ़ियों ने टेक्स्ट बुक की तरह अनुसरण किया. जैसे, लता जी के आने के बाद गीतों में प्रयोग किए जाने वाले कई उर्दू के शब्दों को सुंदर अभिव्यक्ति मिली. पहले जो 'मुहब्बत', महब्बत कही जाती थी, उसमें परिष्कार आया. उनसे पहले मात्र नूरजहां ही सटीक तौर पर मुहब्बत गाती थीं. इसे ऐसे भी देख सकते हैं कि नूरजहां से शुरू हुई सुरीले और स्तरीय पार्श्वगायन के दौर की मशाल लता जी के हिस्से ही आई. बाकी उस दौर की आवाजों के लिए जैसे लता मंगेशकर की मौजूदगी ने एक चैलेंज पैदा कर दिया था. आप फिर, 50 के दशक से शुरू करके बाद तक सैकड़ों उन गीतों को सुन सकते हैं, जिन्हें मास्टर गुलाम हैदर, अनिल विश्वास, सज्जाद हुसैन, नौशाद, सी.रामचंद्र, रोशन, हुस्नलाल भगतराम, एस. डी. बर्मन, मदन मोहन, जयदेव, शंकर जयकिशन, सलिल चौधरी, चित्रगुप्त, ग़ुलाम मोहम्मद, पं रविशंकर, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे सुधी संगीतकारों ने रचा है.

बहन आशा भोसले के साथ लता मंगेशकर

क्या अनिल विश्वास के गीत 'बेईमान तोरे नैनवा, निंदिया न आये' को लता जी के बगैर सोचा जा सकता था? ठीक उसी तरह 'रसिक बलमा' (चोरी चोरी), 'बेकस पे करम कीजिये' (मुग़ल-ए-आज़म), 'अल्लाह तेरो नाम' (हम दोनों), 'आज फिर जीने की तमन्ना है'(गाइड), 'लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो' (वो कौन थी), 'एहसान तेरा होगा मुझ पर'(जंगली), 'ये ज़िन्दगी उसी की है'(अनारकली), 'आजा रे परदेसी'( मधुमती),' चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था' (पाकीज़ा) जैसे अमर गीतों की आवाज का स्थानापन्न संभव है? शायद नहीं, एक तरह से बिलकुल भी नहीं, क्योंकि लता मंगेशकर ने इन गानों को सिर्फ गाया नहीं है. वहां पर उन्होंने एक फिल्म गीत की आम शर्त को पूरा करते हुए, अपनी तरफ से कुछ अतिरिक्त भी जोड़ा है, जो उनके पिता से मिले हुए संगीत संस्कार, उस्तादों की तालीम और बड़े दिग्गज संगीतकारों से पायी नसीहतों का मामला भी है.

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ये देखना एक दिलचस्प अनुभव हो सकता है कि कैसे अपने ढेरों गीतों में लता जी अपने भेंडी बाजार घराने की बारीक हरकतों को बड़े चुपके से कहीं कहीं पिरो डालती हैं.

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उनकी गायकी इस लिहाज से एक बड़े विमर्श की मांग करती है, जिसमें चंद मिनटों में उनके द्वारा की गई खटका, मुरकी, मींड़, टुकड़े, पलटे, तान और आलाप का अविस्मरणीय काम चकित करता है! कैसे वे एक गीत की शक्ल में किसी खास राग की तमाम सुंदरता की दर्शना करा देती हैं, अद्भुत ढंग से देखने लायक है. गायकी में छोटे-छोटे अवकाश के मध्य सलमे सितारे गूंथने की कारीगरी में लता मंगेशकर का कोई सानी नहीं है. यहीं पर आकर उनका होना, फिल्म-संगीत के समय को एक मिथक समय में बदल देता है.

अपने घराने की बारीक हरकतों को बड़े चुपके से अपने गीतों में पिरो डालती हैं

लता जी को उनके जन्मदिन के अलावा भी कई जरूरी अवसरों के बहाने हमेशा ही नए ढंग से याद किया जा सकता है, जिसमें उनकी मानवीय स्त्री छवि की गरिमापूर्ण निशानदेही हिंदी सिनेमा की दुनिया में देखी जा सकती है. उसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सब उनकी कला के द्वारा संभव होता है. समस्त दक्षिण एशियाई औरतों के बीच से निकलकर मिलने वाली एक ऐसी सलोनी आवाज का मारक सौंदर्य, जिसका आज की टेक्नोलॉजी और साइंस चाहकर भी क्लोन नहीं बना सकती.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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