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The Empire web series: बाबर का चित्रण सही या गलत, मुग़ल इतिहास के सबसे अहम पड़ाव पर पर्दा क्यों?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 29 अगस्त, 2021 04:06 PM
  • 29 अगस्त, 2021 03:59 PM
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द एम्पायर (The Empire web series) में इतिहास के कई तथ्य जो बाबर के लिहाज से अहम थे उन्हें गायब करना निराश करता है. ये समझ से परे है कि ऐसा क्यों किया गया. इन कोशिशों की वजह से कभी शियाओं के साथ खड़ा होने वाला, उनके जैसे कपड़े पहनने वाला, गैर मुस्लिम दुश्मनों को भी काफिर कहने वाला और दुनिया के बेहतरीन योद्धाओं में शुमार बाबर गायब नजर आता है.

मुग़ल साम्राज्य की महागाथा 'द एम्पायर' (The Empire web series) डिजनी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है. हालांकि स्ट्रीमिंग से पहले ही शो बहस का विषय बन चुका है. मुद्दे वही हैं- बाबर विदेशी था, आक्रांता था, लुटेरा था, भारत में हमले के बाद गैरमुस्लिमों का उत्पीड़न किया, धर्मस्थलों को नुकसान पहुंचाया आदि-आदि. मीताक्षरा कुमार के निर्देशन में अलेक्स रदरफोर्ड की किताब 'एम्पायर ऑफ़ द मुग़ल' के अडॉप्शन पर बनी डिजनी की सीरीज में बाबर का ऐसा कोई रूप नहीं दिखा. सीरीज में बाबर एक बहादुर सैनिक, नेतृत्वकर्ता, निहायत ईमान पसंद और समुदाय-परिवार की फ़िक्र करने वाला योग्य और नरमदिल बादशाह के रूप में ही नजर आता है. एक ऐसा बादशाह जो हालातों से विवश होकर हमेशा युद्ध के मुहाने खड़ा रहता है. बावजूद वह युद्ध में मारे जाने वाले लोगों के लिए अफ़सोस करता है. भूखी जनता की मदद के लिए सलाहकारों को दरकिनार कर शाही गोदाम खोल देता है. इतना दरियादिल कि किसी इंसान को उसके सामजिक रुतबे की बजाय काबिलियत से आंकता है.

द एम्पायर को लेकर एक बड़ा सवाल है कि क्या बाबर के जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों को दिखाया गया या नहीं. खासकर वो हिस्से जो हिंदुस्तान से जुड़ते हैं और जिनकी वजह से तैमूर-चंगेज का वंशज और मुगलिया सल्तनत का संस्थापक आज भी बहसों में बना हुआ है. द एम्पायर का इतिहास से सिर्फ संदर्भ भर का वास्ता है.

दरअसल, डिजनी प्लस हॉटस्टार नामा की जिस किताब से ये प्रेरित होकर बनाई गई है वो मुग़ल साम्राज्य के ऐतिहासिक  सन्दर्भों को काल्पनिक कथा में पिरोकर प्रस्तुत किया गया है. हालांकि यहां भी पर्याप्त छूट ली गई है. मगर दुर्भाग्य से द एम्पायर में वो सब चीजें नहीं हैं. किसी भी तरह का इतिहास वह चाहे मुगलों से जुड़ा हो या मराठों, चौहानों से- उसमें तथ्यपरक चीजों की अपेक्षा की जाती है "फैसलापरक" नहीं. इतिहास की अपनी दृष्टि तत्कालीन समाज, देशकाल से तय होती है. दुर्भाग्य से द एम्पायर में इन चीजों का घोर अभाव दिखता है और सीरीज अलेक्स रदरफोर्ड की काल्पनिक "फैसला दृष्टि" का ही शिकार बन गई...

मुग़ल साम्राज्य की महागाथा 'द एम्पायर' (The Empire web series) डिजनी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है. हालांकि स्ट्रीमिंग से पहले ही शो बहस का विषय बन चुका है. मुद्दे वही हैं- बाबर विदेशी था, आक्रांता था, लुटेरा था, भारत में हमले के बाद गैरमुस्लिमों का उत्पीड़न किया, धर्मस्थलों को नुकसान पहुंचाया आदि-आदि. मीताक्षरा कुमार के निर्देशन में अलेक्स रदरफोर्ड की किताब 'एम्पायर ऑफ़ द मुग़ल' के अडॉप्शन पर बनी डिजनी की सीरीज में बाबर का ऐसा कोई रूप नहीं दिखा. सीरीज में बाबर एक बहादुर सैनिक, नेतृत्वकर्ता, निहायत ईमान पसंद और समुदाय-परिवार की फ़िक्र करने वाला योग्य और नरमदिल बादशाह के रूप में ही नजर आता है. एक ऐसा बादशाह जो हालातों से विवश होकर हमेशा युद्ध के मुहाने खड़ा रहता है. बावजूद वह युद्ध में मारे जाने वाले लोगों के लिए अफ़सोस करता है. भूखी जनता की मदद के लिए सलाहकारों को दरकिनार कर शाही गोदाम खोल देता है. इतना दरियादिल कि किसी इंसान को उसके सामजिक रुतबे की बजाय काबिलियत से आंकता है.

द एम्पायर को लेकर एक बड़ा सवाल है कि क्या बाबर के जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों को दिखाया गया या नहीं. खासकर वो हिस्से जो हिंदुस्तान से जुड़ते हैं और जिनकी वजह से तैमूर-चंगेज का वंशज और मुगलिया सल्तनत का संस्थापक आज भी बहसों में बना हुआ है. द एम्पायर का इतिहास से सिर्फ संदर्भ भर का वास्ता है.

दरअसल, डिजनी प्लस हॉटस्टार नामा की जिस किताब से ये प्रेरित होकर बनाई गई है वो मुग़ल साम्राज्य के ऐतिहासिक  सन्दर्भों को काल्पनिक कथा में पिरोकर प्रस्तुत किया गया है. हालांकि यहां भी पर्याप्त छूट ली गई है. मगर दुर्भाग्य से द एम्पायर में वो सब चीजें नहीं हैं. किसी भी तरह का इतिहास वह चाहे मुगलों से जुड़ा हो या मराठों, चौहानों से- उसमें तथ्यपरक चीजों की अपेक्षा की जाती है "फैसलापरक" नहीं. इतिहास की अपनी दृष्टि तत्कालीन समाज, देशकाल से तय होती है. दुर्भाग्य से द एम्पायर में इन चीजों का घोर अभाव दिखता है और सीरीज अलेक्स रदरफोर्ड की काल्पनिक "फैसला दृष्टि" का ही शिकार बन गई है. इस दृष्टि की वजह से बाबर के जीवन के तमाम जरूरी हिस्सों (हिंदुस्तान से जुड़े) को मेकर्स ने घुमा-फिराकर गायब कर दिया. कई विषयों पर नीम खामोशी है. ऐसी स्थिति में भला कैसे द एम्पायर के पहले सीजन को बाबर का मुकम्मल इतिहास माना जाए? बाबर हों या दूसरे ऐतिहासिक किरदार, दरअसल, कुछ घटनाओं पर चुप्पी या उससे मुंह फेर लेने की वजह से ही विवाद बने रहते हैं. इतिहास फैसले की बजाय सबक देता है. अच्छी दृष्टि तो वो होती है कि तथ्य उसी रूप में आए जो थे. नाकि जजमेंटल होकर उन्हें पेश किया जाए.

यह ऐतिहासिक तथ्य है कि बाबर का "कुनबा" मध्य एशिया के जिस क्षेत्र से निकलकर भारत पहुंचा था वह असभ्य, असांस्कृतिक और बर्बर थी. बाबर तैमूर की पांचवीं पीढ़ी से था जिसने हिंदुस्तान के इतिहास में सबसे खौफनाक लूटमार की. मुगलों का भारतीयकरण भी बाबर की तीसरी पीढ़ी (अकबर से) में नजर आता है. कम से कम इब्राहिम लोदी को हराने तक बाबर को लेकर चीजें काफी कुछ उसके पूर्वजों जैसी थीं. मोटे तौर पर बाबर ताउम्र सत्ता और वर्चस्व के लिए मध्य एशिया में संघर्ष करता रहा. बहुत साल खानाबदोश की तरह जीवन यापन किया. बाबर से करीब सवा सौ साल पहले तैमूर ने भी भारत पर लूटमार के मकसद से हमला किया और इसके लिए धार्मिक तर्क गढ़े थे. लूटमार की और वापस समरकंद चला गया. इतिहास में उस दौर को भयावह रूप से याद किया जाता है. तैमूर ने वही किया जो उस दौर में आक्रांता करते थे.

क्यों इतिहास से अलग दिखता है द एम्पायर का बाबर? 

यह तथ्य है. उस दौर में दूसरी रियासतों पर सैन्य कार्रवाई के लिए निकली पलटनें लूटमार पर ही आश्रित थीं. सामरिक यात्राएं हमलों के दौरान मिले संसाधनों से ही आगे बढ़ती थीं. हिंदुस्तान पहुंचने और उससे पहले तक बाबर ने भी लगभग वही सबकुछ किया और वैसे ही संसाधन जुटाए. रदरफोर्ड की कहानी दिखाने के लिए पर्याप्त नाट्यरूपांतरण और कल्पना का सहारा लिया गया है मगर सीरीज में बाबर के व्यक्तित्व के दूसरे पहलू पर लगभग पर्दा ही डाल दिया गया. भारत में उसकी मौजूदगी सिर्फ लोदी को हराने और हुमायूं की ताजपोशी तक दिखती है. जबकि 1526 में लोदी पर जीत के बाद बाबर के दो सबसे महत्वपूर्ण युद्धों ने अगले कई सालों के लिए मुगलिया साम्राज्य की नींव मजबूत थी. ये युद्ध लोदी पर जीत के ठीक एक साल बाद शुरू हुए थे. 1527 में खानवा का युद्ध और 1528 में चंदेरी का युद्ध. घघर का युद्ध भी अहम है. खानवा की जंग राणा सांगा के खिलाफ थी.

उस जंग में राणा सांगा की मदद कई राजपूत सरदार, इब्राहिम लोदी के भाई और मेवात समेत कुछ दूसरी मुस्लिम रियासतें भी कर रही थीं. युद्ध बाबर के अनुकूल नहीं था. इतिहास में इस बात के तथ्य मिलते हैं कि बाबर ने राणा सांगा के खिलाफ युद्ध को धार्मिक शक्ल दी. ठीक वैसे ही जैसे तैमूर ने भारत जैसे दूर दराज और मुश्किल इलाके पर हमले के लिए अनिच्छुक सरदारों को कथित रूप से इस्लाम के नाम पर उकसाया था. राणा सांगा से युद्ध से पहले बाबर ने शराब ना पीने की कौल ली. अल्लाह के नाम पर अपने सैनिकों को मरते दम तक जंग के लिए प्रेरित किया. बाबरनामा में उसने लिखा है- "जो भी इस दुनिया में आया है उसे मरना है. जीवन खुदा के हाथ में है, इसलिए मृत्यु से नहीं डरना चाहिए. तुम अल्लाह के नाम पर क़सम खाओ, मौत को सामने देखकर भी मुंह नहीं मोड़ोगे और जब तक जान बाक़ी है तब तक लड़ाई जारी रखोगे." राणा सांगा की हार हुई. एक साल बाद चंदेरी में भी बाकी बचे राजपूत बाबर से हार गए. बाबर ने कुछ और छोटी बड़ी लड़ाइयां जीतकर सल्तनत को बाहरी हमलों से सुरक्षित कर लिया. बाबर को लेकर हिंदुस्तान में जो विवाद है वो दरअसल, लोदी को हराने के बाद से ही शुरू होता है. इनमें धर्मांतरण, गैरमुस्लिमों के उपासनास्थलों को नुकसान पहुंचाने के तर्क दिए जाते हैं.

लोदी के बाद बाबर को लेकर खामोशी, इसी कालखंड को लेकर आजतक होती हैं बहसें  

द एम्पायर में लोदी के बाद बाबर की जंगों पर खामोशी ओढ़ ली गई है. जबकि राणा सांगा पर मुगलों की विजय इतिहास में कितना अहम स्थान रखती है यह बताने की जरूरत नहीं है. वैसे बाबर की वसीयत में यह जिक्र भी है कि उसने हुमायूं को धार्मिक विद्वेष से बचने की सलाहें दीं. सबको पूजा का अधिकार और तलवार के जोर पर धर्मांतरण और गोकशी नहीं करने की हिदायतें भी दी थीं. बाबर की वसीयत में उस समय के गैर मुस्लिमों की सामजिक स्थिति का साफ़ पता चलता है. बाबर की वसीयत लोदी और दूसरी जंगों के बाद की है. मजेदार है कि राणा सांगा से जंग के लिए इस्लाम की दुहाई देने वाला बाबर दो साल बाद हुमायूं को साम्प्रदायिक सौहार्द्र की नसीहतें देता नजर आता है. वैसे बाबर की वसीयत को लेकर भी कई तरह की बातें की जाती हैं. द एम्पायर में तो यह भी दिखाया गया है कि हिंदुस्तान में मजबूत सल्तनत के लिए बाबर की बहन खानजादा ने हुमायूं से जुड़े तथ्यों को बाबरनामा में खुद बदल दिया था. ताकि कामरान मिर्जा की जगह हुमायूं बादशाह बने.

द एम्पायर में इतिहास के कई तथ्य जो बाबर के लिहाज से अहम थे उन्हें गायब करना निराश करता है. ये समझ से परे है कि ऐसा क्यों किया गया. इन कोशिशों की वजह से कभी शियाओं के साथ खड़ा होने वाला, उनके जैसे कपड़े पहनने वाला, गैर मुस्लिम दुश्मनों को भी काफिर कहने वाला और दुनिया के बेहतरीन योद्धाओं में शुमार बाबर गायब नजर आता है. उसकी जगह जो बाबर दिखता है वो इतिहास और लोकगाथाओं से बिल्कुल अलग नजर आता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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