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OTT सामाजिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रहा है!

    • सैयद तौहीद
    • Updated: 13 अप्रिल, 2023 01:20 PM
  • 13 अप्रिल, 2023 01:20 PM
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ओटीटी प्लेटफार्म सिनेमाघरों के विकल्प के तौर उभरे और कोरोना काल में यूजर्स के फेवरेट बन गए. दर्शकों को मनोरंजन का विकल्प देने के नाम पर लेकिन सामाजिक सीमाओं को पीछे छोड़ चुके हैं. छवियों के निर्माण के लिए समाज को हो रहे नुकसान की अनदेखी की जा रही है. मीडिया समाज का आईना कहा जाता है. आईना दिखाने के लिए उत्तरदायी होना जरूरी है.

ओटीटी पर दिखाए जा रहे सिनेमा के किरदार धुम्रपान को बढ़ावा दे रहे हैं. इस संबंध में मौजूदा नियमों की अनदेखी कर रहे हैं. मौजूदा भारतीय कानून के तंबाकू एवं उससे संबंधित उत्पाद को लेकर वैधानिक चेतावनी का उपयोग अनिवार्य करता है. किंतु अफ़सोस मौजूदा तंबाकू एवम उसके उत्पाद से जुड़ा 'कोटपा कानून 2003' ओटीटी कंटेंट को अभी तक अपने परिधि में नहीं ला सका है. सरकार ने इस संबंध में काम कर रही है. लेकिन ठोस निर्णय सामने आने में समय लग रहा है. इस दिशा में हालांकि त्वरित हस्तक्षेप की आवश्यकता है. 

सिनेमा मनोरंजन का बड़ा साधन है. जाहिर सी बात यह हमें समझ जानी चाहिए कि इन दो व्यापक जनसंचार माध्यमों के कंटेंट का क्या प्रभाव रहता है. यहां प्रसारित होने वाले कार्यक्रम सोंचने समझने की क्षमता को प्रभावित कर जाते हैं. किशोर यहां के कंटेंट से सबसे अधिक संपर्क में रहते हैं. पसंद के अभिनेताओं की नकल करना, उनके किरदारों का अपना किरदार जान लेना युवा मन की चाहत होती है. जाने अंजाने वो उन जैसे बनने की ख्वाहिश से ग्रसित हो जाते हैं. फिल्म एवं टीवी निर्मित छवियों की नकारात्मक चीजों को अपना लेना हालांकि खतरनाक है. क्रिएटिव फ्रीडम से झगड़ा नहीं. जनसंचार के माध्यम क्रिएटिव आज़ादी के दम पर ही चलते हैं. क्रिएटिव लोगों को मगर सोंचना होगा कि उनकी आज़ादी किसी के अपराध का कारण ना बने. आयु वर्गों को भ्रमित ना करे.

मीडिया निर्मित छवियों का बड़ा खामियाजा आम दर्शकों को भुगतना पड़ रहा है. ओवर द टॉप यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म समाज को हो रही हानि पर ध्यान ज़रा कम ही दे रहे हैं. नतीजतन युवा वर्ग दिशाहीन हो रहे हैं. अपने पसंदीदा किरदार एवम अभिनेताओं को आदर्श मानकर तथा तंबाकू एवं सिगरेट के संपर्क में आकर कोमल जिंदगियां तबाह हो रहीं हैं. कोमल मन पर नकारात्मक चीजों का गंभीर प्रभाव पड़ता है. एक अध्ययन के...

ओटीटी पर दिखाए जा रहे सिनेमा के किरदार धुम्रपान को बढ़ावा दे रहे हैं. इस संबंध में मौजूदा नियमों की अनदेखी कर रहे हैं. मौजूदा भारतीय कानून के तंबाकू एवं उससे संबंधित उत्पाद को लेकर वैधानिक चेतावनी का उपयोग अनिवार्य करता है. किंतु अफ़सोस मौजूदा तंबाकू एवम उसके उत्पाद से जुड़ा 'कोटपा कानून 2003' ओटीटी कंटेंट को अभी तक अपने परिधि में नहीं ला सका है. सरकार ने इस संबंध में काम कर रही है. लेकिन ठोस निर्णय सामने आने में समय लग रहा है. इस दिशा में हालांकि त्वरित हस्तक्षेप की आवश्यकता है. 

सिनेमा मनोरंजन का बड़ा साधन है. जाहिर सी बात यह हमें समझ जानी चाहिए कि इन दो व्यापक जनसंचार माध्यमों के कंटेंट का क्या प्रभाव रहता है. यहां प्रसारित होने वाले कार्यक्रम सोंचने समझने की क्षमता को प्रभावित कर जाते हैं. किशोर यहां के कंटेंट से सबसे अधिक संपर्क में रहते हैं. पसंद के अभिनेताओं की नकल करना, उनके किरदारों का अपना किरदार जान लेना युवा मन की चाहत होती है. जाने अंजाने वो उन जैसे बनने की ख्वाहिश से ग्रसित हो जाते हैं. फिल्म एवं टीवी निर्मित छवियों की नकारात्मक चीजों को अपना लेना हालांकि खतरनाक है. क्रिएटिव फ्रीडम से झगड़ा नहीं. जनसंचार के माध्यम क्रिएटिव आज़ादी के दम पर ही चलते हैं. क्रिएटिव लोगों को मगर सोंचना होगा कि उनकी आज़ादी किसी के अपराध का कारण ना बने. आयु वर्गों को भ्रमित ना करे.

मीडिया निर्मित छवियों का बड़ा खामियाजा आम दर्शकों को भुगतना पड़ रहा है. ओवर द टॉप यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म समाज को हो रही हानि पर ध्यान ज़रा कम ही दे रहे हैं. नतीजतन युवा वर्ग दिशाहीन हो रहे हैं. अपने पसंदीदा किरदार एवम अभिनेताओं को आदर्श मानकर तथा तंबाकू एवं सिगरेट के संपर्क में आकर कोमल जिंदगियां तबाह हो रहीं हैं. कोमल मन पर नकारात्मक चीजों का गंभीर प्रभाव पड़ता है. एक अध्ययन के अनुसार 12-16 आयु वर्ग के युवा ऑनस्क्रीन धूम्रपान से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं.

ब्लॉकबस्टर फिल्म 'केजीफ 2' में धूम्रपान के एक सीन को लेकर हुआ विवाद याद होगा. कर्नाटक स्टेट तंबाकू रोधी सेल ने इसका जोरदार विरोध किया था. यह मामला कोपटा अधिनियम के सेक्शन 5 का सीधा उल्लघंन था. मौजूदा कानून के तहत तम्बाकू पदार्थो को लेकर वैधानिक चेतावनी अनिवार्य है. इसमें उक्त सीन के समय 30 सेकंड की वैधानिक चेतावनी को चलाया जाना होता है. ओटीटी माध्यम को स्वयं उत्तरदायित्व तय करना चाहिए कि किस तरह से कंटेंट संबंधी मौजूदा कानूनों का पालन करना जरूरी है.

अध्ययनों के हवाले से यह बात समझ लेनी चाहिए किशोर वर्ग बड़ी आसानी से ड्रग्स एवम तंबाकू प्रोत्साहित करने वाली चीजों से प्रभावित होते हैं. छवियों का महिमामंडन आज के कंटेंट का चलन हो गया है. बुरी लतों में पड़कर किशोर छोटे एवम बड़े अपराधों के दलदल में फंस जाते हैं. असलियत दिखाने के लिए नियमों का अनदेखी करना कहीं से उचित नहीं. यह भी देख लें कि वाकई किसी छवि की आवश्यकता है भी या नहीं. कई मामलों में धूम्रपान आदि चीजों को दिखाने की जरूरत नहीं समझ आई.

सरकारी एवम स्वतंत्र मिडिया रिपोर्ट के अनुसार इस समय देश में तकरीबन 267 मिलियन लोग तम्बाकू सेवन की लत के मारे हैं. ग्लोबल तम्बाकू सेवन सर्वे 2019 में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. यह बताता है कि 13-15 आयु वर्ग के छात्रों में से हरेक पांचवां किसी ना किसी रूप में तम्बाकू की लत का शिकार था. कंटेंट से अधिक से अधिक लाभ कमाने की होड़ में सांस्कृतिक ताने बाने को नजरंदाज कर ओ टी टी मिडिया युवा एवम संवेदनशील वर्गों का नुकसान कर रहा है. ओवर द एज सामग्री के नाम पर कुछ भी परोसा जा रहा है. यह ट्रेंड हालांकि सिवाए हानि के कुछ का सबब नहीं बनने वाला. हस्तक्षेप समय की मांग है. 

ऑरमैक्स मीडिया के मुताबिक, साल 2022 में कुल 424 मिलियन ओटीटी यूजर्स थे. तकरीबन 120 मिलियन इसमें एक्टिव सब्सक्राइबर्स थे. 2021 के मुकाबले पिछले साल के आंकड़ों में 20 फीसद का इज़ाफा हुआ. ग्रामीण क्षेत्रो में शहरी इलाके की तुलना में यूसेज वृद्धि दर अधिक थी. आंकड़ों के मद्देनजर ओटीटी मिडिया का उत्तरदायित्व बड़ा है. क्योंकि पहुंच और प्रभाव बड़ा है. छवियों का सीधा प्रभाव मानव मस्तिष्क पर पड़ता है. एक गलत छवि सामाजिक ताने बाने को नुकसान पहुंचाने के लिए काफ़ी होती है. हानि तीव्र गति से देखी जाती है. भरपाई होना मुमकिन नहीं होती. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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