सैयद तौहीद
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लेखक एक दशक से डिजिटल एंटरटेनमेंट मिडिया के लिए लिख रहे है. सिनेमा केंद्रित पब्लिक फोरम से लेखन की शुरुआत की.
समाज | 10-मिनट में पढ़ें

इंटरनेट आज के विद्यार्थी की जरूरत, लेकिन वहां भी जलवा इंटरटेनमेंट मीडिया का है!
इंटरनेट दुनिया के हर कोने में उपयोगी जानकारियां उपलब्ध कराने की क्रांतिकारी तकनीक है. इसके जरिए लोग किसी भी जानकारी को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. उसका आदान-प्रदान कर सकते हैं. यह भी जानना होगा क्यों इंटरनेट का दुरुपयोग हो रहा.समाज | 6-मिनट में पढ़ें

सोशल मीडिया के दौर में भी चिट्ठियां अपनी बात कहने की अद्भुत क्षमता रखती हैं
एक जमाना था जब लोग अपना कुशल क्षेम खतों के जरिए दूसरों को बता दिया करते थे. वो एक दिलचस्प अनुभव होता था . चिट्ठी में एक अलग ही भावना होती थी जिसे पढ़ने के बाद दिल को सुकून मिलता था. तकनीक ने हमारा समय आसान जरुर कर दिया है किंतु कुछ शानदार अनुभव यात्राएं हमसे छीन ली हैं.सिनेमा | 4-मिनट में पढ़ें

OTT सामाजिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रहा है!
ओटीटी प्लेटफार्म सिनेमाघरों के विकल्प के तौर उभरे और कोरोना काल में यूजर्स के फेवरेट बन गए. दर्शकों को मनोरंजन का विकल्प देने के नाम पर लेकिन सामाजिक सीमाओं को पीछे छोड़ चुके हैं. छवियों के निर्माण के लिए समाज को हो रहे नुकसान की अनदेखी की जा रही है. मीडिया समाज का आईना कहा जाता है. आईना दिखाने के लिए उत्तरदायी होना जरूरी है.सियासत | 7-मिनट में पढ़ें

फिल्में जिनको ऑस्कर्स नॉमिनेशन तो मिले लेकिन वो जीतने में नाकाम रहीं...
एकेडमी पुरस्कारों की रेस में पहुंचने वाली कई फिल्मों की कहानी दूसरी थी. जीत की प्रबल दावेदार माने जानी वाली यह फिल्में इतिहास में कहीं खो गई.ऑस्कर्स का इतिहास केवल जीत का इतिहास नहीं अपितु कंपटीशन में हार गई दावेदार फिल्मों एवम कलाकारों का भी इतिहास है.सिनेमा | 8-मिनट में पढ़ें

काश! कुछ और बरस ज़िंदा रहते मनमोहन देसाई, बॉलीवुड को बहुत कुछ सीखना था...
मार्च में हिंदी सिनेमा के पापुलर सिग्नेचर फिल्म मेकर मनमोहन देसाई की पुण्यतिथि पड़ती है. एक ऐसा फिल्मकार जो बहुत जल्दी दुनिया छोड़ गया. फिल्मों को उन्हें अभी बहुत कुछ देना था. एक कसक सी बाक़ी रह गई कि काश कुछ बरस और जिंदा रह जाते.संस्कृति | 6-मिनट में पढ़ें
सिनेमा | 9-मिनट में पढ़ें

देशभक्ति गीतों में देश भावना को उनके गीतकारों से पहचानिए
देशभक्ति गानों के लिए मशहूर कवि प्रदीप को देश का सिनेमा याद करता है. जिस किसी ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' को सुना वो प्रदीप को भी जानता होगा. चालीस के दशक में फिल्मों से हुआ रिश्ता लंबे समय तक कायम रहा. प्रदीप की शख्सियत को उनकी रचनाओं के बहाने याद करना मुल्क की इबादत से कम नहीं है.सिनेमा | 7-मिनट में पढ़ें