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1945 के उस रेड फोर्ट ट्रायल की कहानी आज सुनाना बेहद जरूरी है

    • ऋचा साकल्ले
    • Updated: 12 जुलाई, 2017 03:44 PM
  • 12 जुलाई, 2017 03:44 PM
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राग देश के ट्रेलर का संसद में रिलीज होना दिखाता है इसके विषय की गंभीरता और परिपक्वता आज के संदर्भ कितनी है और आज के दौर के लिए ये फिल्म कितनी जरुरी है.

लाल किले से आई आवाज़-सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़. ये वही नारा था जिसने 1945 में हिंदुस्तान की आजादी के लिए लड़ रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बांधा था. ये नारा उठा था रेड फोर्ट ट्रायल्स में. दिल्ली के लाल किले में जब इंडियन नेशनल आर्मी के कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाहनवाज खान पर संयुक्त रुप से मुकदमा चल रहा होता तब बाहर सड़कों पर यही नारा लग रहा होता था. सड़कों पर हज़ारों नौजवान जब एक साथ ये नारा लगाते तो पूरे देश में देशभक्ति का एक ऐसा ज्वार उपजता जो हिंदुस्तान की आजादी के संघर्ष में बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. रेड फोर्ट का ये ट्रायल कई मोर्चों पर हिंदुस्तानी एकता को मजबूत करने वाला बना. और इसीलिए हिंदुस्तान की तारीख में सबसे अहम है आजाद हिंद फौज के दस मुकदमों में से ये पहला मुकदमा रेड फोर्ट ट्रायल.

रेड फोर्ट ट्रायल पर आधारित है 'राग देश'

आज रेड फोर्ट ट्रायल को याद करने का संदर्भ है पान सिंह तोमर जैसी फिल्म हमें देने वाले बॉलीवुड डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया की नई फिल्म ‘राग देश’. ‘राग देश’ का ट्रेलर लॉन्च हो गया है और फिल्म 28 जुलाई को रिलीज होने वाली है. यह फिल्म अपने ट्रेलर लॉन्च से ही ऐतिहासिकता की ओर कदम बढ़ा रही है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ जब संसद में किसी बॉलीवुड मूवी का ट्रेलर रिलीज हुआ हो और ट्रेलर के पहले सीन में लिखा दिखता हो राज्यसभा टीवी प्रजेंट्स. यानी इसे प्रोड्यूस किया है राज्यसभा टीवी ने.

29 जून को राग देश के ट्रेलर का संसद में रिलीज होना दिखाता है इसके विषय की गंभीरता और परिपक्वता आज के संदर्भ कितनी है और आज के दौर के लिए ये फिल्म कितनी जरुरी है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे इंडियन नेशनल आर्मी के तीन अधिकारी कर्नल प्रेम सेहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह...

लाल किले से आई आवाज़-सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़. ये वही नारा था जिसने 1945 में हिंदुस्तान की आजादी के लिए लड़ रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बांधा था. ये नारा उठा था रेड फोर्ट ट्रायल्स में. दिल्ली के लाल किले में जब इंडियन नेशनल आर्मी के कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाहनवाज खान पर संयुक्त रुप से मुकदमा चल रहा होता तब बाहर सड़कों पर यही नारा लग रहा होता था. सड़कों पर हज़ारों नौजवान जब एक साथ ये नारा लगाते तो पूरे देश में देशभक्ति का एक ऐसा ज्वार उपजता जो हिंदुस्तान की आजादी के संघर्ष में बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. रेड फोर्ट का ये ट्रायल कई मोर्चों पर हिंदुस्तानी एकता को मजबूत करने वाला बना. और इसीलिए हिंदुस्तान की तारीख में सबसे अहम है आजाद हिंद फौज के दस मुकदमों में से ये पहला मुकदमा रेड फोर्ट ट्रायल.

रेड फोर्ट ट्रायल पर आधारित है 'राग देश'

आज रेड फोर्ट ट्रायल को याद करने का संदर्भ है पान सिंह तोमर जैसी फिल्म हमें देने वाले बॉलीवुड डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया की नई फिल्म ‘राग देश’. ‘राग देश’ का ट्रेलर लॉन्च हो गया है और फिल्म 28 जुलाई को रिलीज होने वाली है. यह फिल्म अपने ट्रेलर लॉन्च से ही ऐतिहासिकता की ओर कदम बढ़ा रही है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ जब संसद में किसी बॉलीवुड मूवी का ट्रेलर रिलीज हुआ हो और ट्रेलर के पहले सीन में लिखा दिखता हो राज्यसभा टीवी प्रजेंट्स. यानी इसे प्रोड्यूस किया है राज्यसभा टीवी ने.

29 जून को राग देश के ट्रेलर का संसद में रिलीज होना दिखाता है इसके विषय की गंभीरता और परिपक्वता आज के संदर्भ कितनी है और आज के दौर के लिए ये फिल्म कितनी जरुरी है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे इंडियन नेशनल आर्मी के तीन अधिकारी कर्नल प्रेम सेहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जरनल शाहनवाज खान नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अगुवाई में भारत को आजाद कराने निकल पड़ते हैं. और किस तरह से उन पर अंग्रेजों द्वारा बगावत करने और हत्या करने का मुकदमा चलाया जाता है.

राज्यसभा में रिलीज़ किया गया 'रागदेश' का ट्रेलर

यह फिल्म कौमी एकता की अद्भुत मिसाल है और आज भी इसी की सबसे ज्यादा हिंदुस्तान को जरुरत है. आपको पता है ये तीनों कैदी अफसर अलग कौम से थे इसीलिए जनरल शाहनवाज को मुस्लिम लीग और कर्नल ढिल्लन को अकाली दल ने अपनी ओर केस लड़ने की पेशकश की थी लेकिन ये तीनों देशभक्त अफसर नहीं माने, इन्होंने कांग्रेस की बनाई डिफेंस टीम को ही अपनी पैरवी करने की मंजूरी दी. मुश्किल दौर में भी मजहबी भावनाओं को छोड़ इन तीनों अफसरों का ये फैसला आज भी हरएक की रग-रग में मजहबी एकता का राग देश पैदा करता है. सचमुच यही है आज के वक्त की भी जरुरत, जब हम अपनी मजहबी भावनाओं से ऊपर उठें और हमारे राग देश को पहचानें, उस पर चलें, हमारे संविधान की इज्जत करे, एक सच्चे देशभक्त बनें.

इतना ही नहीं रेड फोर्ट ट्रायल में वकीलों द्वारा जो दलीले रखीं गईं वो भी कहीं न कहीं आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं. इन तीनों अफसरों की पैरवी वाली डिफेंस टीम में कई लोगों के साथ मुल्क के उस समय के नामी गिरामी वकील भूलाभाई देसाई भी थे. अंग्रेजी हुकूमत ने तीनों पर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत का इल्जाम लगाया लेकिन सीनियर एडव्होकेट भूलाभाई देसाई की शानदार दलीलों ने इस मुकदमे को आजाद हिंद फौज के इन देशभक्त सिपाहियों के हक में कर दिया.

वकील भूलाभाई देसाई की शानदार दलीलों ने दिलाई जीत

अपनी तमाम दलीलों को साबित करने के लिए भूलाभाई ने अंग्रेजी हुकुमत के सामने मशहूर कानूनविद बीटन की एक बात रखी जिसके मुताबिक- ‘अपने मुल्क की आजादी को हासिल करने के लिए हर गुलाम कौम को लड़ने का अधिकार है क्योंकि अगर उनसे यह हक छीन लिया जाए तो इसका मतलब यह होगा कि एक बार यदि कोई कौम गुलाम हो जाए तो वो हमेशा गुलाम रहेगी.’ आज के दौर में भी यह बात देश के हर एक व्यक्ति पर लागू होती है जिसकी आजादी को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है, उसे पूरा हक है कि वो अपनी व्यक्तिगत आजादी की लड़ाई लड़े.

तिग्मांशु धूलिया मेहनती डायरेक्टर हैं. सच्ची घटनाओं पर फिल्म बनाना उनका शगल है, खुद तिग्मांशु मानते हैं कि रेड फोर्ट ट्रायल पर फिल्म बनाते हुए उनके लिए ये पता लगाना बड़ा दिलचस्प रहा कि हमने आजादी सिर्फ संवाद और वार्ता से नहीं बल्कि ब्रिटिश शासन को अपने खून और पसीने से ललकार कर हासिल की है. अब 28 जुलाई का इंतजार है जब यह फिल्म बड़े पर्दे पर उतरेगी और तब ही पता चलेगा कि तिग्मांशु ने इस सबसे बड़े ऐतिहासिक मुकदमे को दिखाने में कितना न्याय किया है. अभी तो संसद में ट्रेलर रिलीज कर तिग्मांशु धूलिया ने इसे एक ऐतिहासिक लाइन दे ही दी है. और हो भी सकता है कि यह पूरी फिल्म ही 28 जुलाई को संसद में रिलीज ही हो जाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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