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Mimi review: साल की सबसे बेहतरीन फिल्म

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 31 जुलाई, 2021 03:05 PM
  • 27 जुलाई, 2021 03:38 PM
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बहुत दिनों बाद बॉलीवुड की पॉपुलर धारा में हिंदू-मुस्लिम परिवार एक-दूसरे में घुसे और बेहद अंतरंग नजर आए हैं. मिमी पैन इंडिया फिल्म है जिसे मुस्लिम परिवारों में भी पसंद किया जाएगा.

लक्ष्मण उटेकर ने लुका छुप्पी के दो साल बाद मिमी से साबित कर दिया कि उनके पास कहानी सुनाने-दिखाने की लाजवाब क्षमता है. मिमी को इस साल बॉलीवुड से निकली अब तक की बेस्ट फैमिली एंटरटेनर कहा जा सकता है. एक कम्प्लीट फिल्म जिसमें सबकुछ है- ह्यूमर, इमोशन में रची बसी दमदार कहानी और सरोगेसी/चाइल्ड अडाप्शन को लेकर सोशल मैसेज.

एक बात पहले ही साफ़ कर देना ठीक होगा. मिमी को विशुद्ध कॉमेडी ड्रामा कहना ठीक नहीं. क्योंकि इसमें जितना ह्यूमर है उससे कहीं ज्यादा इमोशनल ड्रामा है. संघर्ष है और जिंदगी की जद्दोजहद है. फिल्म में कई परते हैं. उन परतों के अपने सपने और विडंबनाएं हैं. मूल कहानी मिमी मानसिंह राठौड़ यानी कृति सेनन की है. 25 साल की ख़ूबसूरत मिमी हुनरमंद है और मुंबई में एक्ट्रेस बनने का सपना देखती है. पैसों के लिए मेहमान विदेशियों के सामने डांस परफॉर्म करती है. उसके पिता संगीतकार हैं. बच्चों को म्यूजिक सिखाते हैं. घर की माली हालत बहुत ठीक नहीं. बस किसी तरह गुजर-बसर हो रही है.

भानू यानी पंकज त्रिपाठी हैं. उनके पास एक कार है और इसी से विदेशी पर्यटकों को घुमाते हैं. उनके पत्नी और मां दिल्ली में रहती हैं. भानू का कोई बच्चा नहीं है. भानू भी पैसे कमाने का तरीका खोजता रहता है. वो है फितरतबाज लेकिन दिल का साफ़ सुथरा और मददगार किस्म का इंसान. मिमी की एक मुस्लिम सहेली है- शमा यानी सई तम्हनकर. सिंगर है और मिमी के साथ ही परफॉर्म करती है. पति ने तलाक दे दिया है. अकेले पिता के घर में रहती है. पिता मौलवी हैं और मस्जिद में ही रहते हैं. अमेरिका के जॉन और समर भी हैं. समर मां नहीं बन सकतीं. वो भारत में ख़ूबसूरत हेल्दी सरोगेट मदर खोज रही हैं जो जॉन के बच्चे को गर्भ में रख सके.

जॉन-समर, भानू के जरिए मिमी तक पहुंचते हैं. मिमी 20 लाख रुपयों के लिए घरवालों से छिपकर सरोगेसी के...

लक्ष्मण उटेकर ने लुका छुप्पी के दो साल बाद मिमी से साबित कर दिया कि उनके पास कहानी सुनाने-दिखाने की लाजवाब क्षमता है. मिमी को इस साल बॉलीवुड से निकली अब तक की बेस्ट फैमिली एंटरटेनर कहा जा सकता है. एक कम्प्लीट फिल्म जिसमें सबकुछ है- ह्यूमर, इमोशन में रची बसी दमदार कहानी और सरोगेसी/चाइल्ड अडाप्शन को लेकर सोशल मैसेज.

एक बात पहले ही साफ़ कर देना ठीक होगा. मिमी को विशुद्ध कॉमेडी ड्रामा कहना ठीक नहीं. क्योंकि इसमें जितना ह्यूमर है उससे कहीं ज्यादा इमोशनल ड्रामा है. संघर्ष है और जिंदगी की जद्दोजहद है. फिल्म में कई परते हैं. उन परतों के अपने सपने और विडंबनाएं हैं. मूल कहानी मिमी मानसिंह राठौड़ यानी कृति सेनन की है. 25 साल की ख़ूबसूरत मिमी हुनरमंद है और मुंबई में एक्ट्रेस बनने का सपना देखती है. पैसों के लिए मेहमान विदेशियों के सामने डांस परफॉर्म करती है. उसके पिता संगीतकार हैं. बच्चों को म्यूजिक सिखाते हैं. घर की माली हालत बहुत ठीक नहीं. बस किसी तरह गुजर-बसर हो रही है.

भानू यानी पंकज त्रिपाठी हैं. उनके पास एक कार है और इसी से विदेशी पर्यटकों को घुमाते हैं. उनके पत्नी और मां दिल्ली में रहती हैं. भानू का कोई बच्चा नहीं है. भानू भी पैसे कमाने का तरीका खोजता रहता है. वो है फितरतबाज लेकिन दिल का साफ़ सुथरा और मददगार किस्म का इंसान. मिमी की एक मुस्लिम सहेली है- शमा यानी सई तम्हनकर. सिंगर है और मिमी के साथ ही परफॉर्म करती है. पति ने तलाक दे दिया है. अकेले पिता के घर में रहती है. पिता मौलवी हैं और मस्जिद में ही रहते हैं. अमेरिका के जॉन और समर भी हैं. समर मां नहीं बन सकतीं. वो भारत में ख़ूबसूरत हेल्दी सरोगेट मदर खोज रही हैं जो जॉन के बच्चे को गर्भ में रख सके.

जॉन-समर, भानू के जरिए मिमी तक पहुंचते हैं. मिमी 20 लाख रुपयों के लिए घरवालों से छिपकर सरोगेसी के लिए तैयार हो जाती है. जॉन-समर के भारत से भाग जाने तक ही कहानी में ह्यूमर है. और ये ह्यूमर परिस्थितिवश पैदा होता है. परिस्थितियां और पंचभरे संवाद ही दर्शकों को हंसाते हैं. जॉन-समर के भारत से भाग जाने के बाद से पूरी कहानी का ट्रैक ड्रामे में तब्दील हो जाता है लकिन इससे कहानी को लेकर कोई उलझन नहीं होती. और आखिर के 35 मिनट में तो फिल्म पूरी तरह से इमोशनल हो जाती है. रुला देने की हद तक. मजा किरकिरा ना हो इसलिए अच्छा होगा कि मिमी की पूरी कहानी को देखा जाए.

चार चीजें मिमी को बहुत ख़ास बनाती हैं. फिल्म की सधी हुई पटकथा, छोटे-छोटे पंच लिए संवाद, सिचुएशनल कॉमेडी-इमोशन ड्रामा, अभिनय और निर्देशन. मिमी की प्रेरक कहानी लक्ष्मण उटेकर के साथ रोशन शंकर ने लिखी है. संवाद भी रोशन का ही है. एक दो जगह मामूली भटकाव को छोड़ दिया जाए तो मिमी पहले सेकेंड से ही अपनी लाइन पर है. पहले फ्रेम से ही कहानी स्टेबलिश होने लगती है और कुछ ही देर में स्थायी होकर दर्शकों को अपने साथ बहा ले जाती है. जब मिमी बच्चे को जन्म देकर उसका पालन-पोषण करती है और भानू का परिवार जयपुर आता है, उसके बाद कुछ वक्त कहानी स्थिर सी जान पड़ती है. यहीं एक ट्विस्ट टर्न की जरूरत थी. वो है भी. जिसके आगे कहानी फिर संभल जाती है. लुका छुप्पी के बाद उटेकर ने अपने निर्देशन से साबित कर दिया कि अच्छी कहानी कहने और फैमिली एंटरटेनर बनाने में उनका कोई सानी नहीं. उन्हें अपनी फिल्म बेचने के लिए भी किसी सुपरस्टार की भी जरूरत नहीं है. बल्कि मिमी के रूप में उनकी कहानी खुद में इतनी ताकतवर है कि दर्शकों को आख़िर तक बांधे रखती है.

फिल्म में जो ह्यूमर है वो भद्दा या जबरदस्ती थोपा गया मालूम नहीं पड़ता. कहानी में हालात इस तरह से आते रहते हैं कि लाजवाब ह्यूमर निकलता रहता है. ठीक यही चीज इमोशन के मामले में भी है. और मिमी में यह स्वाभाविकता निश्चित ही निर्देशन-कहानी-संवाद के अलावा कलाकारों के उम्दा अभिनय की वजह से संभव हो पाया. फिल्म मुख्यत: मिमी की कहानी है. कृति सेनन ने निर्विवाद रूप से हालात के आगे विवश होकर समझौते करने वाली, विडंबनाओं से जूझने वाली और मस्तमौला निडर लड़की का उम्दा किरदार निभाया है. पूरी फिल्म में सिर्फ एक जगह उनके चेहरे पर ओवर एक्टिंग का भाव नजर आया. शुरु में जब वो अपने कमरे में मुंबई जाकर फ़िल्मी हीरोइनों को पछाड़ देने की बात कहती हैं- उनके चेहरे के भाव बनावटी लग रहे थे.

मिमी है तो कृति की फिल्म मगर पंकज त्रिपाठी पहले डेढ़ घंटे पूरी तरह से हावी नजर आते हैं. जितने फ्रेम में पंकज हैं सभी को पछाड़ देते हैं. उन्होंने क्या कमाल की एक्टिंग की है. उनके हावभाव के कहने ही क्या. धीमे-धीमे उनकी संवाद अदायगी बेमिसाल है. फिल्म में कुछ जगहों पर उनकी संवाद अदायगी को देखकर लगा जैसे उन्होंने "साहेब बीवी और गैंगस्टर" में विधायक प्रभु तिवारी की जानदार भूमिका निभाने वाले राजीव गुप्ता के टोन को अडॉप्ट किया है. भानू के किरदार को शायद ही उनसे बेहतर कोई एक्टर जी पाता. पंकज त्रिपाठी ने लक्ष्मण उटेकर की उम्मीदों को जाया नहीं होने दिया. उनके अभिनय से भी मिमी मास्टरपीस बनती है. पंकज का किरदार सालों याद रखा जाएगा.

मनोज पाहवा और सुप्रिया पाठक ने मिमी के माता-पिता की भूमिका निभाई है. इनके समेत फिल्म के सभी दूसरे किरदारों ने भी अपने हिस्से के काम को बहुत खूबसूरती से किया है. एक्टिंग फ्रंट पर मिमी का कोई भी कलाकार निराश नहीं करता.

विदेशी जोड़ा बच्चा लेने के लिए क्यों नहीं तैयार हुआ, मिमी क्यों बच्चे को गिराना नहीं चाहती, मिमी-भानू के बीच कैसा रिश्ता है और अचानक से मिमी की प्रेग्नेंसी जानकर उसके परिवार और समाज का रिएक्शन क्या होता है इन्हीं सब चीजों को फिल्म की कहानी में दिखाया गया है. वैसे मिमी मूल फिल्म नहीं है. ये मराठी फिल्म "मला आई व्हायचय" का बॉलीवुड अडॉप्शन है. साल 2011 में आई मला आई व्हायची को फीचर फिल्म कैटेगरी में बेस्ट फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला था. मिमी में एआर रहमान का संगीत अपनी जगह पर ठीक माना जा सकता है. हालांकि ये रहमान के अपने बेंचमार्क के हिसाब से औसत नजर आता है.

बहुत दिनों बाद बॉलीवुड की पॉपुलर धारा में हिंदू-मुस्लिम परिवार एक-दूसरे में घुसे और बेहद अंतरंग नजर आए हैं. ये पैन इंडिया फिल्म है जिसे मुस्लिम परिवारों में भी पसंद किया जाएगा.

मिमी का टॉपिक "सरोगेसी टूरिज्म" है. सरोगेसी के विषय को बॉलीवुड की कई फिल्मों में एड्रेस किया गया है. हालांकि ऐसी कोई फिल्म नजर नहीं आती जिसे अबतक यादगार माना जाए. मिमी एक अच्छी और ताजी कहानी की गारंटी है. इसमें पहली बार सरोगेसी टूरिज्म की अंदरूनी विडंबनाओं और विक्टिम्स के दर्द को मनोरंजक तरीके से उभारा गया है. सरोगेट मदर बनने के लिए किन हालात में लड़कियां/औरतें तैयार होती हैं उनके सामने किस तरह की चुनैतियां आती हैं, उन्हें लेकर समाज का नजरिया किस तरह का है, भ्रूण हत्या के बरक्स ममता क्या है, जैसे सवालों को बहुत मनोरंजक तरीके से एड्रेस किया गया है. एक संदेश भी है कि सरोगेसी के लिए लाखों खर्च करने और झंझट मोल लेने की बजाय किसी अनाथ बच्चे को गोंद लेकर भी मातृत्व सुख पाया जा सकता है. यानी- "माता-पिता बनने के लिए बच्चा पैदा करना जरूरी नहीं है. माता पिता बनाने के लिए बच्चा तुम्हारा होना भी जरूरी नहीं है."

मिमी को नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर देखा जा सकता है. फिल्म 26 जुलाई से स्ट्रीम हो रही है.

PHOTO- NETFLIX

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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