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तमिल फिल्म Koozhangal के बहाने जानिए ऑस्कर अवॉर्ड के लिए कैसे सिलेक्ट होती है फिल्में!

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 29 अक्टूबर, 2021 04:50 PM
  • 28 अक्टूबर, 2021 06:44 PM
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ऑस्कर सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड है. और इसकी वैल्यू मूल्य में नहीं बल्कि प्रतिष्ठा और सम्मान में है. इस बार भारत की ओर से कूझंगल को आधिकारिक तौर पर भेजा जा रहा है.

शूजित सरकार के निर्देशन में बनी पीरियड ड्रामा "सरदार उधम" अगले साला 2022 में आयोजित हो रहे 94वें ऑस्कर अवॉर्ड्स की रेस में एंट्री के प्राथमिक स्तर पर ही बाहर हो गई. कुछ चिंताओं की वजह से ज्यूरी ने विक्की कौशल स्टारर फिल्म को ऑस्कर भेजने लायक नहीं समझा और इस तरह उसकी जगह तमिल फिल्म कूझंगल को चुना गया. यानी इस बार भारत की तरफ से ऑस्कर में कूझंगल ही आधिकारिक फिल्म के तौर पर रेस में शामिल है. ऑस्कर में फिल्म का भविष्य देखना दिलचस्प होगा.

ऑस्कर में भारत समेत दुनिया की फ़िल्में विदेशी भाषा की फिल्मों के लिए बनाई गई इंटरनेशनल फिल्म की कैटेगरी में आमंत्रित की जाती हैं. ये वही कैटेगरी है जिसे अब तक ऑस्कर से जुड़े फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी के रूप में सुना होगा. 2019 में ही फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी का नाम बदलकर इंटरनेशनल फिल्म कर दिया गया है. नाम भले ही बदला गया है मगर अवॉर्ड से जुड़े नियम अब भी लगभग वही हैं. विदेशी फिल्मों के लिए ऑस्कर यानी एकेडमी अवॉर्ड में 1947 से ही विशेष पुरस्कार देने की शुरुआत हुई थी. आधिकारिक रूप से पहली बार साल 1956 में "फॉरेन लैंग्वेज" के रूप में कैटेगरी बनी थी.

ऑस्कर की नजर में इंटरनेशल फिल्म क्या है?

ऑस्कर में इंटरनेशल फिल्म का मतलब अंग्रेजी में बनी फ़िल्में नहीं हैं. एकेडमी ने इंटरनेशनल फिल्म के लिए जो परिभाषा बताई है उसके मुताबिक़ कम से कम 40 मिनट लेंथ से ज्यादा और अमेरिका से बाहर बनी फीचर मोशन फ़िल्में जिनके मूल संवाद अंग्रेजी में नहीं हैं वो इंटरनेशनल फिल्म है. ऐसी फ़िल्में जो अमेरिका से बाहर अपनी टेरिटरी में प्रोड्यूस हुई हो. शर्तों को पूरा करने वाली एनिमेटेड और डॉक्यूमेंट्री फीचर फ़िल्में भी इसमें शुमार की जाती हैं. इस परिभाषा के तहत भारत में अंग्रेजी भाषा के अलावा बनी कोई भी फिल्म इंटरनेशल फिल्म है जिसे ऑस्कर में भेजा जा सकता है. जैसे भारत की कूझंगल इंटरनेशल फिल्म है.

शूजित सरकार के निर्देशन में बनी पीरियड ड्रामा "सरदार उधम" अगले साला 2022 में आयोजित हो रहे 94वें ऑस्कर अवॉर्ड्स की रेस में एंट्री के प्राथमिक स्तर पर ही बाहर हो गई. कुछ चिंताओं की वजह से ज्यूरी ने विक्की कौशल स्टारर फिल्म को ऑस्कर भेजने लायक नहीं समझा और इस तरह उसकी जगह तमिल फिल्म कूझंगल को चुना गया. यानी इस बार भारत की तरफ से ऑस्कर में कूझंगल ही आधिकारिक फिल्म के तौर पर रेस में शामिल है. ऑस्कर में फिल्म का भविष्य देखना दिलचस्प होगा.

ऑस्कर में भारत समेत दुनिया की फ़िल्में विदेशी भाषा की फिल्मों के लिए बनाई गई इंटरनेशनल फिल्म की कैटेगरी में आमंत्रित की जाती हैं. ये वही कैटेगरी है जिसे अब तक ऑस्कर से जुड़े फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी के रूप में सुना होगा. 2019 में ही फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी का नाम बदलकर इंटरनेशनल फिल्म कर दिया गया है. नाम भले ही बदला गया है मगर अवॉर्ड से जुड़े नियम अब भी लगभग वही हैं. विदेशी फिल्मों के लिए ऑस्कर यानी एकेडमी अवॉर्ड में 1947 से ही विशेष पुरस्कार देने की शुरुआत हुई थी. आधिकारिक रूप से पहली बार साल 1956 में "फॉरेन लैंग्वेज" के रूप में कैटेगरी बनी थी.

ऑस्कर की नजर में इंटरनेशल फिल्म क्या है?

ऑस्कर में इंटरनेशल फिल्म का मतलब अंग्रेजी में बनी फ़िल्में नहीं हैं. एकेडमी ने इंटरनेशनल फिल्म के लिए जो परिभाषा बताई है उसके मुताबिक़ कम से कम 40 मिनट लेंथ से ज्यादा और अमेरिका से बाहर बनी फीचर मोशन फ़िल्में जिनके मूल संवाद अंग्रेजी में नहीं हैं वो इंटरनेशनल फिल्म है. ऐसी फ़िल्में जो अमेरिका से बाहर अपनी टेरिटरी में प्रोड्यूस हुई हो. शर्तों को पूरा करने वाली एनिमेटेड और डॉक्यूमेंट्री फीचर फ़िल्में भी इसमें शुमार की जाती हैं. इस परिभाषा के तहत भारत में अंग्रेजी भाषा के अलावा बनी कोई भी फिल्म इंटरनेशल फिल्म है जिसे ऑस्कर में भेजा जा सकता है. जैसे भारत की कूझंगल इंटरनेशल फिल्म है.

कूझंगल का एक सीन

फ़िल्में ऑस्कर में भेजी कैसे जाती हैं?

इंटरनेशनल फिल्म कैटेगरी में किसी फिल्म को संबंधित देश ही आधिकारिक तौर पर भेज सकता है. हालांकि किसी एक फिल्म के चयन की प्रक्रिया भी काफी बड़ी होती है. दुनिया के तमाम देशों में ऑस्कर की तरफ से अप्रूव्ड एक बॉडी है जो फिल्मों को प्राथमिक स्तर पर छांटकर आधिकारिक तौर पर भेजती है. भारत में वह संस्था "फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया" है. फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया का काम स्क्रूटनी की अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजर कर किसी एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म को ऑस्कर में फाइनली सबमिट करना है. जैसे भारत की तरफ से 2022 में आयोजित हो रहे 94वें ऑस्कर के लिए जो फिल्म भेजी जाएगी उसे 1 जनवरी 2021 से 31 दिसंबर 2021 के बीच देश में कम से कम सात दिनों के लिए कमर्शियली रिलीज होना जरूरी है. कमर्शियली रिलीज का मतलब आम दर्शकों के लिए फिल्म का प्रदर्शन ही है.

फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया, फ़िल्में बनाने वाली अलग-अलग संस्थाओं और निर्माताओं को अपनी एंट्री भेजने के लिए आमंत्रित करती है. सभी एंट्री तय शर्तों के साथ मंगाई जाती है. उदाहरण के लिए 94वें ऑस्कर के लिए हिंदी समेत अलग अलग भारतीय भाषाओं में बनी 14 फ़िल्में प्राप्त हुई थीं. शर्तों के मुताबिक़ फ़िल्में अंग्रेजी में ना बनी हों, उन्हें देश में आम दर्शकों के लिए प्रदर्शित किया गया हो और फेडरेशन में अंग्रेजी के सबटाइटल के साथ कॉपी सबमिट की जाए. नियमों के मुताबिक़ फेडरेशन के पास एंट्री के लिए जब फ़िल्में मिल जाती हैं तो उनमें से एक फिल्म चुनने के लिए ज्यूरी बनाई जाती है. ज्यूरी का केवल एक काम है कि ऑस्कर के लिहाज से किसी एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म को चुनना. इस साल ज्यूरी को 14 फ़िल्में मिली थीं जिसमें सरदार उधम भी शामिल थी. मगर ज्यूरी ने ने अंतिम रूप से कूजमंगल को चुना. कोई भी देश इंटरनेशनल फिल्म कैटेगरी में एक फिल्म ही भेज सकता है.  

ऑस्कर के लिए कूझंगल का रेस कब का शुरू हो चुका है

94वें ऑस्कर अवॉर्ड के लिए कूझंगल चुन ली गई है. एक तरह से ज्यूरी की ओर से फाइनल किए जाने के बाद ऑस्कर के लिए किसी फिल्म का रेस शुरू हो जाता है. ऑस्कर नियमावली के मुताबिक़ अब कूजमंगल को जल्द से जल्द सबमिट करना होगा. क्योंकि नियम ही है. सिलेक्शन के बाद तत्काल सब्मिशन. हो सकता है कि सबमिट किया जा चुका हो. इसके लिए ऑस्कर की ओर से फिल्म फेडरेशन इंडिया या ऐसी ही दूसरे देशों की अप्रूव्ड बॉडीज को ऑनलाइन एक्सेस दिए जाते हैं. इसके जरिए चुनी फिल्मों के निर्माता फिल्म और उससे जुड़ी निर्माण सूचनाओं की प्रक्रिया को भेजने का काम करते हैं. नियमावली के मुताबिक़ इस साल 1 नंवबर तक यह प्रक्रिया पूरी करना है.

असल दिक्कत शुरू होती है नॉमिनेशन फेज से

यहां तक तो चीजें किसी भी देश की अपनी सीमा में रहती हैं जो स्वाभाविक रूप से बेहद आसान हैं. लेकिन असल परेशानी इसी के बाद शुरू होती है. क्योंकि आधिकारिक सबमिशन के बाद ऑस्कर नॉमिनेशन की बारी आती है जिसमें वोटिंग, नॉमिनेशन आदि की प्रक्रिया शुरू होती है. किसी फिल्म के नॉमिनेट होने के लिए प्रमोशन और लॉबिंग सबसे अहम है. इंटरनेशनल फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेशन पाने के लिए अब कूझंगल को दो बॉडीज से होकर गुजरना पड़ेगा. यही दो बॉडी तय करेंगी कि कूजमंगल को ऑस्कर नॉमिनेशन मिले या नहीं.

कौन दो बॉडीज तय करती हैं नॉमिनेशन?

ये दो बॉडीज हैं एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज़- जिसके के मेंबर्स में फिल्म इंडस्ट्री के एक्टर, निर्देशक, राइटर, एडिटर जैसे तमाम दिग्गज पेशेवर शामिल हैं. दूसरे होते हैं अकाउंटिंग कंपनी प्राइस वॉटर हाउस कूपर्स. दोनों नॉमिनेशन के लिए वोटिंग की प्रक्रिया में शामिल होते हैं. यहां सवाल उठता है कि दोनों बॉडीज के मेम्बर्स किसी फिल्म को क्यों वोट करेंगे? क्या वे सभी फ़िल्में देखते हैं या सिर्फ ऐसे ही किसी से प्रभावित होकर वोट कर देते हैं? ऑस्कर में इंटरनेशल फिल्म कैटेगरी में यह एक अहम चरण है. हर साल कई दर्जन फ़िल्में आती हैं इस कैटेगरी में. स्वाभाविक है कि वोट करने वाले सभी मेम्बर्स ने सभी फिल्मों को ना देखा हो. यहां प्रमोशन और लॉबिंग बहुत अहम है.

पहले तो निर्माता कोशिश करते हैं कि सभी मेम्बर्स उनकी फिल्मों को देखें. इसके लिए लॉस एंजिल्स में ग्रुप स्क्रीनिंग कराई जाती है. इंफ्लुएंसर के लिए तो अलग से भी स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जाती है. अमेरिका के प्रतिष्ठित पब्लिकेशन्स में एड कैम्पेन भी चलाए जाते हैं. पार्टियां होती हैं और भी दूसरे प्रमोशनल इवेंट्स चलाए जाते हैं. निर्माता यह सुनिश्चित करते हैं कि जो वोट करेंगे वो उनकी फ़िल्में ज्यादा से ज्यादा लोग देखें और सकारात्मक राय बनाए और सीक्रेट वोट देकर फिल्मों को चुनें. प्रक्रिया पर काफी खर्च आता है जिसे निर्माताओं को ही वहन करना पड़ता है. भारत की तरफ से आमिर खान ने आख़िरी बार इस तरह की एक्टिविटीज का लगान के लिए इस्तेमाल किया था और इंटरनेशल फिल्म (फॉरेन लैंग्वेज) कैटेगरी में आख़िरी पांच फिल्मों में जगह बनाने में कामयाब हुए थे. एक बार लगा भी कि लगान को शायद अवॉर्ड मिल ही जाए. कूजमंगल को भी ऑस्कर में पहली बाधा पार करना होगा. आमतौर पर फ़िल्में यहीं से बाहर हो जाती हैं.

ऑस्कर के लिए किसी देश की ओर से आधिकारिक सबमिशन के बाद की पूरी प्रक्रिया में लॉबिंग और प्रमोशनल चीजें ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण दिखती हैं. दुनियाभर की बेहतरीन फिल्मों में से किसी एक पर लोगों को कन्विंस करना वाकई जद्दोजहद भरा काम है. यह भी देखने में आया है कि मेम्बर्स को प्रभावित करने के लिए तमाम निर्माता प्रोफेशनल एजेंट्स तक हायर करते हैं. एजेंट्स का काम पीआर और अन्य माध्यमों से ज्यादा से ज्यादा वोट और फिल्म के लिए सपोर्ट जुटाना है. 94वें ऑस्कर के लिए इंटरनेशल कैटेगरी में सीक्रेट वोटिंग से 15 फ़िल्में शॉर्टलिस्ट की जाएंगी. वोटिंग ऑनलाइन और पेपर बैलेट दोनों तरह से होगा. इसके बाद ऑस्कर की नॉमिनेटिंग कमेटी 15 शॉर्टलिस्ट फिल्मों को एक-एक कर देखेगी और उसमें से आख़िरी 5 फिल्मों को नॉमिनेट करेगी. सबसे आखिर में फाइनल वोटिंग होगी. जिसमें मेम्बर्स सभी पांचों फिल्मों को देखकर उनमें से किसी एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म का चयन करते हैं. नॉमिनेशन के लिए वोटिंग दिसंबर में शुरू होगी. इसके नतीजे जनवरी मध्य में घोषित किए जाएंगे. 

ऑस्कर में और क्या है? 

ऑस्कर की कैटेगरीज में इंटरनेशल फिल्म का एक पांचवां हिस्सा भर है. वैसे ऑस्कर में इसके अलावा चार सबसे महत्वपूर्ण कैटेगरीज हैं जो- 1) फीचर फिल्म 2) एनिमेटेड फीचर फिल्म 3) डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म 4) डॉक्यूमेंट्री शोर्ट सब्जेक्ट शामिल हैं. इसमें भी फीचर फिल्म सबसे अहम है जिसमें हॉलीवुड और उसकी टेरिटरी की फ़िल्में शामिल रहती हैं. यानी अमेरिका में बनी अंग्रेजी फ़िल्में. या कनाडा, यूके ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका में बनी अंग्रेजी फ़िल्में. हर कैटेगरी में अलग अलग अवॉर्ड दिए जाते हैं. लोगों की सबसे ज्यादा नजर फीचर फिल्म कैटेगरी के अवॉर्ड्स पर रहती है. फीचर फिल्म कैटेगरी में भी कई चीजों के लिए अलग-अलग अवॉर्ड दिया जाता है. जैसे- बेस्ट फिल्म, बेस्ट डाइरेक्टर, बेस्ट सिनेमेटोग्राफर, बेस्ट राइटर, बेस्ट एक्टर-एक्ट्रेस, बेस्ट सपोर्टिंग, बेस्ट एडिटर, बेस्ट बैक ग्राउंड स्कोर आदि. इन अवॉर्ड्स के लिए भी नॉमिनेशन और वोटिंग की करीब करीब वैसी ही है जैसे कि इंटरनेशल कैटेगरी के लिए ऊपर बताई गई हैं. और इस कैटेगरी में भारत फ़िल्में नहीं भेज सकता.

ऑस्कर की स्टेच्यू के बारे में भी जान लीजिए

ऑस्कर स्टेच्यू ब्लैक मेटल बेस पर गोल्ड प्लेटेड है. इसकी लम्बाई 13.5 इंच और वजह 3 किलो 856 ग्राम है. इसमें तलवार पकड़े एक शूरवीर दिखता है. शूरवीर पांच स्कोप पर बने फिल्म की रील पर खड़ा है. ये पांच स्कोप फिल्म के अहम हिस्सों- अभिनेता, लेखक, निर्देशक, निर्माता और तकनीशियन का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऑस्कर पर मालिकाना हक़ उसको जीतने वाले का नहीं है. वह उसे बेंच नहीं सकता. ऑस्कर की वैल्यू उनके मूल्य में नहीं बल्कि प्रतिष्ठा और सम्मान में है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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