• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

KBC 12 में कितने रंग शामिल और कितने उड़े हुए!

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 29 सितम्बर, 2020 03:21 PM
  • 29 सितम्बर, 2020 03:20 PM
offline
लोकप्रिय शो कौन बनेगा करोड़पति (Kaun Banega Crorepati) का नया सीजन KBC 12 शुरू हो गया है. कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) के चलते, शो के फ़ॉर्मेट में इस बार कुछ परिवर्तन हुए हैं मगर चूंकि शो को हमेशा की तरह अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) होस्ट कर रहे हैं, इतना ही काफी है.

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है.

जब वक़्त की चोटें हर सपने हर लेती हैं

जब राह की कीलें पग छलनी कर देती हैं

ऐसे में भी गगनभेद हुंकार लगाना पड़ता है,

भाग्य को भी अपनी मुट्ठी अध‍िकार से लाना पड़ता है,

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है.

कहां बंधी जंजीरों में हम जैसे लोगों की हस्ती,

ध्वंस हुआ, विध्वंस हुआ, भंवरों में कहां फंसी कश्ती,

विपदा में मन के बल का हथियार चलाना पड़ता है,

अपने हिस्से का सूरज भी खुद ख‍ींचके लाना पड़ता है,

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है.

प‍त्थर की बंद‍िश से भी क्या बहती नद‍ियां रुकती हैं?

हालातों की धमकी से क्या अपनी नजरें झुकती हैं?

क़िस्मत से हर पन्ने पर क़िस्मत लिखवाना पड़ता है,

जिसमें मशाल-सा जज़्बा हो वो दीप जलाना पड़ता है,

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है'.

केबीसी (KBC) में अमिताभ (Amitabh Bachchan) जब इन शब्दों का पाठ करते हैं तो थकेहारे हुए लोगों के खून में एक रवानी आ जाती है. संघर्षों से जूझने के हौसले बुलंद होने लगते हैं. यह कोरोना काल (Coronavirus Pandemic) में यूं ही बांटा गया ज्ञान नहीं है बल्कि इसमें उम्र के सात दशक पार खड़े उस महानायक की अपनी जिजीविषा भी है. इसमें कोरोना संक्रमण से जूझते और उस विषाणु को परास्त कर फिर काम पर लौटते कलाकार का व्यक्तिगत अनुभव भी शामिल है. व्यक्ति जो कभी थका नहीं, हारा नहीं और जीवन की प्रत्येक मुश्क़िल के सामने डटकर खड़ा रहा, अड़ा रहा. कहता रहा 'तुम कब तक मुझको रोकोगे?' ज़नाब, ये भारतीय फिल्म उद्योग को पचास वर्ष देने...

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है.

जब वक़्त की चोटें हर सपने हर लेती हैं

जब राह की कीलें पग छलनी कर देती हैं

ऐसे में भी गगनभेद हुंकार लगाना पड़ता है,

भाग्य को भी अपनी मुट्ठी अध‍िकार से लाना पड़ता है,

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है.

कहां बंधी जंजीरों में हम जैसे लोगों की हस्ती,

ध्वंस हुआ, विध्वंस हुआ, भंवरों में कहां फंसी कश्ती,

विपदा में मन के बल का हथियार चलाना पड़ता है,

अपने हिस्से का सूरज भी खुद ख‍ींचके लाना पड़ता है,

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है.

प‍त्थर की बंद‍िश से भी क्या बहती नद‍ियां रुकती हैं?

हालातों की धमकी से क्या अपनी नजरें झुकती हैं?

क़िस्मत से हर पन्ने पर क़िस्मत लिखवाना पड़ता है,

जिसमें मशाल-सा जज़्बा हो वो दीप जलाना पड़ता है,

वापस आना पड़ता है, फिर वापस आना पड़ता है'.

केबीसी (KBC) में अमिताभ (Amitabh Bachchan) जब इन शब्दों का पाठ करते हैं तो थकेहारे हुए लोगों के खून में एक रवानी आ जाती है. संघर्षों से जूझने के हौसले बुलंद होने लगते हैं. यह कोरोना काल (Coronavirus Pandemic) में यूं ही बांटा गया ज्ञान नहीं है बल्कि इसमें उम्र के सात दशक पार खड़े उस महानायक की अपनी जिजीविषा भी है. इसमें कोरोना संक्रमण से जूझते और उस विषाणु को परास्त कर फिर काम पर लौटते कलाकार का व्यक्तिगत अनुभव भी शामिल है. व्यक्ति जो कभी थका नहीं, हारा नहीं और जीवन की प्रत्येक मुश्क़िल के सामने डटकर खड़ा रहा, अड़ा रहा. कहता रहा 'तुम कब तक मुझको रोकोगे?' ज़नाब, ये भारतीय फिल्म उद्योग को पचास वर्ष देने वाले शख़्स अमिताभ बच्चन का जादू है, जो यूं ही सिर चढ़कर नहीं बोलता'.

कौन बनेगा करोड़पति के जरिये एक बार फिर अमिताभ बच्चन अपना जादू करने वाले हैं

प्रश्नों की गुगली कोई भी फेंक सकता है. प्रतियोगी का उत्साहवर्धन भी हर होस्ट करता ही है. चलो ज्ञानवर्धन भी ठीक और साथ-साथ खेलने का अपना आनंद भी समझ आता है लेकिन 'कौन बनेगा करोड़पति' की सफ़लता का राज़ केवल और केवल अमिताभ ही हैं. कोरोना महामारी के चलते, शो के फ़ॉर्मेट में इस बार कुछ परिवर्तन हुए हैं. घड़ियाल जी का नाम इस बार पुनः परिवर्तित होकर चलघड़ी हो गया है. साथ ही इस बारहवें सीज़न में अब 'फ़ास्टेस्ट फ़िंगर फ़र्स्ट' में दस के स्थान पर आठ ही लोग रह गए हैं यद्यपि इससे कुछ विशेष अंतर् नहीं पड़ने वाला'.

हां, पांच ऐसी बातें अवश्य हैं जिसे दर्शक और प्रतियोगी दोनों ही मिस करेंगे-

दर्शकों के साथ की जाने वाली मस्ती कहां से आएगी?

वर्ष 2000 से प्रारंभ हुए केबीसी का अब तक जो सबसे प्रबल पक्ष रहा है वो है, अमिताभ का वहां बैठी ऑडियंस से कनेक्ट होना, उनके साथ हंसी-ठिठोली करना. दर्शकों को भी इस सबका ख़ूब इंतज़ार रहता है. प्रश्नोत्तर के साथ-साथ बीच में होने वाली मस्ती, हास-परिहास के पलों की कमी, पहले ही एपिसोड में बहुत अखरी. यूं अमिताभ इसका भी कोई तोड़ निकाल ही लेंगे, यह तय ही समझिये.

महिला प्रतियोगियों के लिए अब कोई कुर्सी नहीं सरकाएगा!

सोशल डिस्टेंसिंग के कारण प्रतियोगियों को अमिताभ से दूरी बनानी खलेगी, वरना हर बार तो लोग केबीसी भूल, पहले दौड़कर उनसे गले मिलते थे. कुछ तो छोड़ते ही नहीं थे. फिर अमिताभ उनका हाथ थाम उन्हें सीट तक पहुंचाते थे. उनके प्रशंसकों की दीवानगी से भरा यह दृश्य अब हर बार मिसिंग होगा. महिला प्रतियोगियों के लिए अमिताभ पूरा सम्मान दर्शाते हुए उनकी कुर्सी थाम उन्हें बिठाने में मदद करते थे. इतना ही नहीं भावुक पलों में वे ख़ुद अपनी सीट से उठ उन्हें, कभी नैपकिन तो कभी पानी ऑफ़र करते थे.

प्रतियोगियों का हौसला बढ़ाने को अब पहले सी तालियां न बजेंगी!

पहले सही ज़वाब के बाद तालियों की गड़गड़ाहट से प्रतियोगियों को बहुत प्रोत्साहन मिलता था. कुछ लोग अपने यार-दोस्तों, परिवार के सदस्यों को लाते थे. एक निश्चित धनराशि जीतने के बाद कभी-कभी अमिताभ उस प्रतियोगी को पलटकर मुस्कुराने का कह देते थे, जिसके बाद वह फिर पूरे उल्लास के साथ आगे बढ़ता था. लाइव ऑडियंस की अनुपस्थिति के कारण ये सब, अब न हो सकेगा. कुल मिलाकर जोश भरने की सारी ज़िम्मेदारी अमिताभ पर ही आ गई है.

अधिक धनराशि जीतने में मददगार ऑडियंस पोल का साथ भी छूटा!

ऑडियंस पोल, सबसे सटीक लाइफलाइन हुआ करती थी जो कि अब सम्भव नहीं. ऑडियंस अधिकांशतः सही होती थी और इस जीवनदान से कई प्रतिभागियों की डूबती नैया को सहारा मिल जाता था. तीन लाख बीस हज़ार तक की डगर आसान हो जाती थी. इसके हटने से उनकी मुश्किल बढ़ेगी और सप्तकोटि द्वार तक पहुंचने में बार-बार पसीना छलकेगा.

वीडियो कॉल का लाभ शायद ही मिले!

फ़ोन अ फ्रेंड के स्थान पर अब वीडियो कॉल का विकल्प जरूर है पर इसका भी वही हश्र होगा जो वॉइस कॉल का होता आया है. जी, यह बहुत कम ही काम आता है और प्रायः मित्र सोचने में ही समय समाप्त कर देता है. अमिताभ से बात होने की ख़ुशी में सहायक भूल ही जाता है कि उसे प्रतिभागी की मदद के लिए कॉल लगाया गया था. वीडियो कॉल में तो फिर आलम ही अलग होगा.

ख़ैर! इस बात में कोई संदेह नहीं कि केबीसी में जो भी होगा, देखने लायक़ होगा. फ़िलहाल तो हमें इस बात का धन्यवाद अदा करना चाहिए कि गला फाड़ते एंकरों और सारी दुनिया को भूल एक ही ख़बर को इलास्टिक की तरह खींचती मीडिया से निज़ात पाने का कोई मौक़ा तो मिला. इस शो के बहाने न केवल हमारे सामान्य ज्ञान में ही बढ़ोतरी होगी बल्कि तथाकथित 'चर्चाओं' की असभ्यता, अशिष्टता से दूर हो हमारी भाषा की असल सभ्यता, उसके लालित्य को जानने-समझने का भी यही उचित समय है. भीषण चीख़पुकार के दौर में यह शो एक आवश्यक मरहम बन सुक़ून देने आया है.

ये भी पढ़ें -

Lata Mangeshkar शुक्रिया, हिंदुस्तान के दिल में अपनी आवाज की मिठास घोलने के लिए

Mirzapur 2 के प्रमोशन में 'मिर्जापुर' की भद्द तो नहीं पिट गई?

आतंकवाद और ऑफिस पॉलिटिक्स की कहानी के बीच Crackdown वेब सीरीज निराश करती है

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲