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इंटरनेट पर बिखरी पड़ी थी The Kashmir Files, विवेक अग्निहोत्री ने बस इसे समेटा है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 17 मार्च, 2022 01:59 PM
  • 17 मार्च, 2022 01:59 PM
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द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) बनाने के लिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और उनकी टीम ने करीब 4 साल रिसर्च करते हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के पीड़ितों से बात की है. कश्मीरी पंडितों के संगठनों के जरिये उनके दर्द को जाना. लेकिन, अगर ये कहा जाए कि The Kashmir Files इंटरनेट पर बिखरी पड़ी थी और विवेक अग्निहोत्री ने बस इसे समेटा है, तो गलत नहीं होगा.

The Kashmir Files: सिनेमाहॉल से निकलते दर्शकों के चेहरों पर नजर आने वाली भावनाओं के सहारे निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स को नेशनल टॉपिक बना दिया है. गली-मोहल्ले से लेकर सोशल मीडिया तक द कश्मीर फाइल्स की चर्चा आम हो चली है. विवेक अग्निहोत्री की द कश्मीर फाइल्स ने लोगों को 32 साल पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन की दर्दनाक सच्चाई से रूबरू कराया है. वैसे, कहीं न कहीं द कश्मीर फाइल्स को मिल रहे समर्थन की वजह कथित बुद्धिजीवी वर्ग और एक राजनीतिक धड़े द्वारा इसे एक प्रोपेगेंडा फिल्म घोषित करने की कवायद भी है. खैर, द कश्मीर फाइल्स बनाने के लिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और उनकी टीम ने करीब 4 साल रिसर्च करते हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के पीड़ितों से बात की है. कश्मीरी पंडितों के संगठनों के जरिये उनके दर्द को जाना. और, अब द कश्मीर फाइल्स के रूप में ये सबके सामने हैं. लेकिन, अगर ये कहा जाए कि The Kashmir Files इंटरनेट पर बिखरी पड़ी थी और विवेक अग्निहोत्री ने बस इसे समेटा है, तो गलत नहीं होगा.

कश्मीरी पंडितों की हत्याओं को कैमरे पर कबूलने के बाद भी आतंकियों की मेहमान नवाजी की जाती रही.

90 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था. और, इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकी संगठनों ने कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया. तो, इस नरसंहार को अंजाम देने वालों में से एक आतंकी फारुक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे (Bitta Karate) का इंटरव्यू कश्मीरी पंडितों के पलायन के एक साल बाद ही यानी 1991 में ही किया गया था. इंटरनेट पर मौजूद ये इंटरव्यू लंबे समय तक लोगों की आंखों से ओझल ही रहा. 

कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद जम्मू में बने रिफ्यूजी कैंप्स में कई पत्रकारों ने पीड़ितों से...

The Kashmir Files: सिनेमाहॉल से निकलते दर्शकों के चेहरों पर नजर आने वाली भावनाओं के सहारे निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स को नेशनल टॉपिक बना दिया है. गली-मोहल्ले से लेकर सोशल मीडिया तक द कश्मीर फाइल्स की चर्चा आम हो चली है. विवेक अग्निहोत्री की द कश्मीर फाइल्स ने लोगों को 32 साल पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन की दर्दनाक सच्चाई से रूबरू कराया है. वैसे, कहीं न कहीं द कश्मीर फाइल्स को मिल रहे समर्थन की वजह कथित बुद्धिजीवी वर्ग और एक राजनीतिक धड़े द्वारा इसे एक प्रोपेगेंडा फिल्म घोषित करने की कवायद भी है. खैर, द कश्मीर फाइल्स बनाने के लिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और उनकी टीम ने करीब 4 साल रिसर्च करते हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के पीड़ितों से बात की है. कश्मीरी पंडितों के संगठनों के जरिये उनके दर्द को जाना. और, अब द कश्मीर फाइल्स के रूप में ये सबके सामने हैं. लेकिन, अगर ये कहा जाए कि The Kashmir Files इंटरनेट पर बिखरी पड़ी थी और विवेक अग्निहोत्री ने बस इसे समेटा है, तो गलत नहीं होगा.

कश्मीरी पंडितों की हत्याओं को कैमरे पर कबूलने के बाद भी आतंकियों की मेहमान नवाजी की जाती रही.

90 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था. और, इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकी संगठनों ने कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया. तो, इस नरसंहार को अंजाम देने वालों में से एक आतंकी फारुक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे (Bitta Karate) का इंटरव्यू कश्मीरी पंडितों के पलायन के एक साल बाद ही यानी 1991 में ही किया गया था. इंटरनेट पर मौजूद ये इंटरव्यू लंबे समय तक लोगों की आंखों से ओझल ही रहा. 

कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद जम्मू में बने रिफ्यूजी कैंप्स में कई पत्रकारों ने पीड़ितों से मुलाकात की और बातचीत की. लेकिन, कश्मीरी पंडितों से बातचीत का ये वीडियो भी इंटरनेट पर मौजूदगी के बावजूद कभी चर्चा के केंद्र में नहीं आ पाया. 

इस्लामिक कट्टरपंथी और अलगाववादी नेताओं के भारत विरोधी बयानों से इंटरनेट भरा पड़ा है. लेकिन, द कश्मीर फाइल्स फिल्म के आने से पहले लोगों की नजर इन वीडियोज पर जाती ही नहीं थी. दिल्ली में बैठे कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन पर पर्दा डालने के लिए वहां भारतीय सेना द्वारा चलाए जाने वाले आतंकविरोधी अभियानों को मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों के तौर पर पेश किया. इतना ही नहीं, इंटरनेशनल मीडिया में बड़े-बड़े लेखों के जरिये इस कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने इस्लामोफोबिया का नैरेटिव गढ़ा. इतना ही नहीं देश की एक चर्चित यूनिवर्सिटी में एक वामपंथी विचारधारा की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने खुलेआम भारत को कश्मीर का हिस्सा मानने से मना कर दिया. 

90 के दशक में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन को पूर्व आतंकी और अलगाववादी नेताओं को मंच उपलब्ध कराकर साइडलाइन कर दिया गया. कथित बुद्धिजीवी वर्ग से आने वालीं बुकर अवॉर्ड विजेता लेखक अरुंधति राय की अलगाववादी नेता यासीन मलिक के साथ तस्वीरें लंबे समय से इंटरनेट पर मौजूद हैं. लेकिन, किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाए. और, ना ही अरुंधति राय और अलगाववादी नेताओं के बीच के संबंधों की पड़ताल करने की कोशिश की. 

पूर्व आतंकी और अलगाववादी नेता यासीन मलिक के अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिए गए कई इंटरव्यू में उसने ये बात कबूल की है कि कश्मीर में वायुसेना के चार अधिकारियों को मारने में उसका हाथ था. लेकिन, इस कबूलनामे के बाद भी यासीन मलिक खुला घूमता रहा. 

इतना ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मुलाकात के बाद कश्मीर की शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान के साथ बातचीत में आतंकियों को भी शामिल करने की मांग की. 

वहीं, यासीन मलिक पाकिस्तान की यात्रा पर 26/11 हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के साथ रावलपिंडी में भूख हड़ताल करता नजर आया. 






इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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