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कंगना रनौत: अब बात आत्म-मुग्धता से बहुत आगे पहुंच गयी है!

    • रीवा सिंह
    • Updated: 11 फरवरी, 2021 09:03 PM
  • 11 फरवरी, 2021 09:03 PM
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कंगना रनौत एक बेहतरीन अदाकारा हैं इसमें कोई शक़ नहीं. उनका आत्मविश्वास ग़ज़ब का है लेकिन आत्मविश्वास और आत्ममुग्धता में धागे भर का फ़र्क़ होता है, दीदी ने जब बखिया उधेड़नी शुरू की तो वह धागा भी ग़ायब हो गया और उन्हें ख़ुद होश नहीं है कि वे धागे के किस पार हैं.

जब रोम जल रहा था तब सम्राट नीरो बांसुरी बजा रहा होगा लेकिन अगर रोम हिन्दुस्तान में होता तो सम्राट अकेले बांसुरी बजाकर निशाने पर नहीं आता. उसके साथ एक फ़ौज होती होनहारों की जो थाली पीटकर बताती कि आग ऊष्मा देती है, पंचतत्त्वों में से एक है, हम सब उससे बने हैं, हमारा भोजन उससे बनता है इसलिए आग चाहे जैसी भी हो, बढ़िया है. इसके बाद नगाड़े बजाकर जलने के उत्सव को मनाया जाता. भारतवर्ष ऐसे ही उत्सव का उद्घोष कर रहा है. मिट्टी में जान फूंककर रोटी उगाने वाले लोग पिछले 70 दिनों से सड़क किनारे बैठे हैं और बैठे-बैठे आतंकवादी हो गये हैं. राकेश टिकैट सड़क पर रो रहे हैं, प्रधान मंत्री संसद में रो रहे हैं. किसके आंसू कितने खारे हैं इसपर फिलहाल कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है. नामचीन हस्तियां, जिन्हें हम हीरो या सितारा कहते हैं, आजकल कुछ अधिक व्यस्त हैं, मुंह में दही जमा है या च्युइंग गम इसपर जांच अभी बाकी है. आग की खोज के बाद सबसे बड़ा प्रश्न था कि मोदी जी आम कैसे खाते हैं, खिलाड़ी कुमार ने जान जोखिम में डालकर पता लगा लिया। सदी के महानायक किसान बिल पर ज़रूर बोलते लेकिन उनके ट्वीट्स की संख्या में हेर-फेर हो जाती है जिसे दुरुस्त करने में लगे हैं. यूपीएससी में सवाल आ गया कि बिग बी ने ट्वीट नंबर 2608 में क्या कहा था तो बच्चे कैसे बताएंगे?

अब कंगना का बड़बोलापन हद से ज्यादा बढ़ता जा रहा है

इस क्रम में यदि कोई जी-तोड़ मेहनत कर रहा है तो वह हैं एकमात्र कंगना रनौत. मणिकर्णिका एक्ट्रेस ने हाल ही में फ़िल्म थलाइवी और धाकड़ की शूटिंग पूरी की है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने व्यस्ततम रूटीन से वक़्त निकालकर शोध किया और बताया कि किसान आंदोलन में शामिल दादी बिलकिस बानो हैं, बाद में उनकी बात ग़लत साबित हुई और दादी, मोहिंदर कौर ने धाकड़ गर्ल को...

जब रोम जल रहा था तब सम्राट नीरो बांसुरी बजा रहा होगा लेकिन अगर रोम हिन्दुस्तान में होता तो सम्राट अकेले बांसुरी बजाकर निशाने पर नहीं आता. उसके साथ एक फ़ौज होती होनहारों की जो थाली पीटकर बताती कि आग ऊष्मा देती है, पंचतत्त्वों में से एक है, हम सब उससे बने हैं, हमारा भोजन उससे बनता है इसलिए आग चाहे जैसी भी हो, बढ़िया है. इसके बाद नगाड़े बजाकर जलने के उत्सव को मनाया जाता. भारतवर्ष ऐसे ही उत्सव का उद्घोष कर रहा है. मिट्टी में जान फूंककर रोटी उगाने वाले लोग पिछले 70 दिनों से सड़क किनारे बैठे हैं और बैठे-बैठे आतंकवादी हो गये हैं. राकेश टिकैट सड़क पर रो रहे हैं, प्रधान मंत्री संसद में रो रहे हैं. किसके आंसू कितने खारे हैं इसपर फिलहाल कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है. नामचीन हस्तियां, जिन्हें हम हीरो या सितारा कहते हैं, आजकल कुछ अधिक व्यस्त हैं, मुंह में दही जमा है या च्युइंग गम इसपर जांच अभी बाकी है. आग की खोज के बाद सबसे बड़ा प्रश्न था कि मोदी जी आम कैसे खाते हैं, खिलाड़ी कुमार ने जान जोखिम में डालकर पता लगा लिया। सदी के महानायक किसान बिल पर ज़रूर बोलते लेकिन उनके ट्वीट्स की संख्या में हेर-फेर हो जाती है जिसे दुरुस्त करने में लगे हैं. यूपीएससी में सवाल आ गया कि बिग बी ने ट्वीट नंबर 2608 में क्या कहा था तो बच्चे कैसे बताएंगे?

अब कंगना का बड़बोलापन हद से ज्यादा बढ़ता जा रहा है

इस क्रम में यदि कोई जी-तोड़ मेहनत कर रहा है तो वह हैं एकमात्र कंगना रनौत. मणिकर्णिका एक्ट्रेस ने हाल ही में फ़िल्म थलाइवी और धाकड़ की शूटिंग पूरी की है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने व्यस्ततम रूटीन से वक़्त निकालकर शोध किया और बताया कि किसान आंदोलन में शामिल दादी बिलकिस बानो हैं, बाद में उनकी बात ग़लत साबित हुई और दादी, मोहिंदर कौर ने धाकड़ गर्ल को अपने खेतों पर काम करने का न्यौता भी दिया.

कंगना एक बेहतरीन अदाकारा हैं इसमें कोई शक़ नहीं है. उनका आत्मविश्वास ग़ज़ब का है लेकिन आत्मविश्वास और आत्ममुग्धता में धागे भर का फ़र्क़ होता है, दीदी ने जब बखिया उधेड़नी शुरू की तो वह धागा भी ग़ायब हो गया और उन्हें ख़ुद होश नहीं है कि वे धागे के किस पार हैं. उन्हें बॉलीवुड की कोई ज़रूरत नहीं, हिन्दी सिनेमा में नारी-प्रधान फ़िल्मों की थाल उन्होंने ख़ुद सजायी है.

चूंकि मदर इंडिया सरीखी फ़िल्में मोदी-युग से पहले बनी थीं इसलिए उन्हें नहीं गिना जाना चाहिए. दीदी को यकीन है कि इस युग में समूचे ब्रह्माण्ड में उन जैसी कोई अदाकारा नहीं है. फ़िल्म थलाइवी और धाकड़ के बीच के ट्रॉन्सफ़ॉर्मेशन को उन्होंने इसका उदाहरण बताया है और भूल गयीं कि मणिकर्णिका के लिये लकड़ी के घोड़े पर शूटिंग की थी.

न-न, लकड़ी के घोड़े पर शूट करना बुरा नहीं है, अच्छा है, पशु-प्रेमी इस बात को समझते हैं. कंगना रनौत ने अभिनय के मामले में अपनी तुलना मेरिल स्ट्रीप से की. क्वीन एक्ट्रेस कहती हैं कि वे मेरिल जैसे लेयर्ड कैरेक्टर्स करती हैं और साथ ही गैल गैडोट जैसा एक्शन भी करती हैं. मतलब स्पष्ट है कि अकेली मेरिल भी उन जैसी नहीं हैं.

ग़ौरतलब है कि मेरिल को 21 बार ऑस्कर अवॉर्ड के लिये नामित किया गया है जिनमें तीन बार वे विजेता रही हैं. साथ ही वे गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड के लिये 32 बार नामित हो चुकी हैं और 9 बार यह ख़िताब जीत चुकी हैं. लेकिन अपनी क्वीन कम है के? कंगना ने तीन बार नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड जीता है और वे पद्मश्री से सम्मानित हैं.

लोगों ने इनसे पंगा लेते हुए मेरिल को बेहतर बताया तो दीदी ने धाकड़ जवाब देते हुए कहा कि मेरिल को एक भी नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड और पद्म सम्मान नहीं मिला. तो क्या हुआ कि नेशनल अवॉर्ड की योग्यता में यह साफ़ लिखा है कि फ़िल्म मेकर का भारतीय होना अनिवार्य है और फ़िल्म भारत में ही प्रोड्यूस होनी चाहिए.

अगर मेरिल को योग्यता साबित करनी है तो भारतीय फ़िल्म निर्माताओं के साथ काम करना होगा, जब पता चलेगा कि यहां बिना कपूर और ख़ान हुए घुसना मुश्किल है तो समझ आयेगा कि स्ट्रगल क्या होता है. हालांकि कंगना दीदी ने कोई ख़ास नेगेटिव रोल नहीं किया है, अभिनय बढ़िया है मग़र बहुत कुछ करना अभी बचा है.

लेकिन मेरिल को अगर रेस में रहना है तो भारत आकर फ़िल्म करनी होगी. कभी-कभी इंस्टाग्राम पर अपना वक्तव्य रखते हुए 20 हज़ार हर्ट्ज़ की सीमा लांघनी होगी. व्याकरण और नैतिकता को कूड़ेदान में फेंककर बात करनी होगी और समझना होगा कि पृथ्वी अपने ही ईर्द-गिर्द घूम रही है- अपुन ही भगवान है.

फ़िल्म पंगा की को-एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा ने हाल ही में जनहित में एक पोस्ट किया और आत्ममुग्धता के लक्षण बताये हैं. साथ में काम किया है तो सहकलाकार की बेबसी देखी नहीं जाती होगी. अब कंगना का बड़बोलापन देखकर न ग़ुस्सा आता है, न हंसी आती है. मन करता है कि काश कोई होता उनके पास जो उन्हें प्यारी-सी झप्पी देकर संभाल लेता और आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया में वापस लाता.

उन्हें बताता कि करियर में अभी बहुत कुछ करना बाकी है और यह बड़बोलापन सबसे ग़ैरज़रूरी काम है. काश उन्हें लोगों से इतना प्यार मिलता कि वे समझ पातीं कि वाय सिक्यॉरिटी के बाहर की दुनिया अब भी ख़ूबसूरत है. कोई होता जिसे उनकी इतनी फ़िक़्र होती कि गांठ बनाये बिना धागा बना देता और ले आता इस लड़की को सही-ग़लत के इस पार.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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