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कमल हसन और रजनीकांत के बीच राजनीतिक लड़ाई अब नाक का सवाल बन गई है

    • गौतमन भास्करन
    • Updated: 04 अक्टूबर, 2017 05:08 PM
  • 04 अक्टूबर, 2017 05:08 PM
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रजनीकांत ने कमल हसन को सीख तो दे दी की राजनीति में सफल होने के लिए स्टारडम के अलावा बहुत कुछ की जरुरत है. ये उनका दर्द है या डर इसके बारे में वो खुद बता सकते हैं.

फिल्म सितारों के बीच प्रतिद्वंद्विता कोई नई बात नहीं है. कई साल पहले 1965 में भारतीय सिनेमा के महानतम फिल्‍मकार सत्यजीत रे ने 'द स्टेट्समैन' अखबार के जरिए कोलकाता में अपने ही एक साथी लेखक और महान निर्देशक मृणाल सेन की जमकर आलोचना की थी. अखबार के संपादकीय पेज पर 'लेटर टू द एडिटर' कॉलम के जरिए रे ने सेन की नई फिल्म आकाश कुसुम की धज्जियां उड़ा दी थी. सत्यजीत रे ने फिल्म की कहानी की प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा किया था. इन दोनों के बीच में आरोप-प्रत्यारोप इतने तीखे हो गए थे कि खुद अखबार के एडीटर को बीच-बचाव के लिए उतरना पड़ा.

समय के साथ फिल्मी सितारों के बीच इस तरह की नोंक-झोंक और लड़ाई-झगड़े चलते रहे. फर्क बस ये था कि कुछ खुलेआम होते थे और कुछ पर्दे के पीछे. उत्तरायनम्, थंपू, एस्थाप्पन और चिंदबंरम जैसी क्लासिक फिल्में बनाने वाले स्वर्गीय जी अरविंदन और एलिप्पाथयम, निजहलकुथु जैसी यादगार फिल्में देने वाले अदूर गोपालकृष्णन के बीच की प्रतिद्वंद्विता के बारे में बहुत सारी बातें कही जाती हैं. लेकिन इन दोनों के बीच की तनातनी के बारे में किसी को खुलकर पता नहीं चला जैसे 1965 में कोलकाता में मीडिया के जरिए अपनी लड़ाई लड़ी गई थी.

राजनीति ने जिगरी दोस्तों को भी दुश्मन बना दिया

इसी तरह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके के नेता एम के करूणानिधि और साऊथ की फिल्मों के सुपरस्टार और करूणानिधि के एकमात्र दोस्त एमजी रामचंद्रन के बीच की लड़ाई भी जगजाहिर है. एमजी रामचंद्रन ने एआईएडीएमके पार्टी का गठन किया और मुख्यमंत्री भी बने. एक तरफ जहां करूणानिधि शानदार लेखक थे जिसने कई दिलचस्प रचनाएं की, जिसके जरिए उन्होंने बड़ी ही चतुराई से द्रविड़ संस्कृति को बढ़ावा दिया. तो वहीं दूसरी तरफ रामचंद्रन या एमजीआर एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने लोगों को अपनी नेचुरल एक्टिंग से...

फिल्म सितारों के बीच प्रतिद्वंद्विता कोई नई बात नहीं है. कई साल पहले 1965 में भारतीय सिनेमा के महानतम फिल्‍मकार सत्यजीत रे ने 'द स्टेट्समैन' अखबार के जरिए कोलकाता में अपने ही एक साथी लेखक और महान निर्देशक मृणाल सेन की जमकर आलोचना की थी. अखबार के संपादकीय पेज पर 'लेटर टू द एडिटर' कॉलम के जरिए रे ने सेन की नई फिल्म आकाश कुसुम की धज्जियां उड़ा दी थी. सत्यजीत रे ने फिल्म की कहानी की प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा किया था. इन दोनों के बीच में आरोप-प्रत्यारोप इतने तीखे हो गए थे कि खुद अखबार के एडीटर को बीच-बचाव के लिए उतरना पड़ा.

समय के साथ फिल्मी सितारों के बीच इस तरह की नोंक-झोंक और लड़ाई-झगड़े चलते रहे. फर्क बस ये था कि कुछ खुलेआम होते थे और कुछ पर्दे के पीछे. उत्तरायनम्, थंपू, एस्थाप्पन और चिंदबंरम जैसी क्लासिक फिल्में बनाने वाले स्वर्गीय जी अरविंदन और एलिप्पाथयम, निजहलकुथु जैसी यादगार फिल्में देने वाले अदूर गोपालकृष्णन के बीच की प्रतिद्वंद्विता के बारे में बहुत सारी बातें कही जाती हैं. लेकिन इन दोनों के बीच की तनातनी के बारे में किसी को खुलकर पता नहीं चला जैसे 1965 में कोलकाता में मीडिया के जरिए अपनी लड़ाई लड़ी गई थी.

राजनीति ने जिगरी दोस्तों को भी दुश्मन बना दिया

इसी तरह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके के नेता एम के करूणानिधि और साऊथ की फिल्मों के सुपरस्टार और करूणानिधि के एकमात्र दोस्त एमजी रामचंद्रन के बीच की लड़ाई भी जगजाहिर है. एमजी रामचंद्रन ने एआईएडीएमके पार्टी का गठन किया और मुख्यमंत्री भी बने. एक तरफ जहां करूणानिधि शानदार लेखक थे जिसने कई दिलचस्प रचनाएं की, जिसके जरिए उन्होंने बड़ी ही चतुराई से द्रविड़ संस्कृति को बढ़ावा दिया. तो वहीं दूसरी तरफ रामचंद्रन या एमजीआर एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने लोगों को अपनी नेचुरल एक्टिंग से मंत्रमुग्ध कर दिया था. खासकर महिलाएं तो उन पर जान छिड़कती थी.

तमिलनाडु में सितारों के बीच के इस दंगल का इतिहास एक बार फिर से दोहरा रहा है. इस बार दो सुपरस्टार कमल हसन और रजनीकांत आमने-सामने हैं. दुर्भाग्य इस बात का है कि अपनी दुश्मनी निभाने के लिए उन्होंने 1 अक्टूबर का दिन चुना. इस दिन अद्यार नदी के किनारे एक समारोह का आयोजन किया गया था जिसमें तमिल अभिनेता शिवाजी गणेशन की प्रतिमा का अनावरण होना था. शिवाजी गणेशन की ये प्रतिमा कई वर्षों तक मरीना बीच पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के ठीक सामने लगी थी. अदालत के निर्देश के बाद गणेशन की प्रतिमा को वहां से हटाकर अद्यार नदी के किनारे लगाया गया.

कमल हसन पिछले कुछ दिनों से राजनीति में अपनी एंट्री के रास्ते बनाने में लगे हैं. रजनीकांत ने उन पर हमला करते हुए कहा कि- राजनीति में सफल होने के लिए सेलिब्रिटी स्टेटस ही काफी नहीं है. उसके बाद भी बहुत कुछ करना पड़ता है." रजनीकांत ने गणेशन का उदाहरण दिया, जो एक अभिनेता के रूप में बहुत सफल थे लेकिन फिर भी वो राजनीति में अपने आप को स्थापित करने में नाकाम रहे.

रजनीकांत ने कहा- "लिजेंड अभिनेता शिवाजी गणेशन ने सिर्फ सिनेमा में नहीं बल्कि राजनीति में भी हम सभी के लिए सबक छोड़ा है. उन्होंने अपनी पार्टी लॉन्च की और चुनाव हारते गए. यहां तक की अपने निर्वाचन क्षेत्र में भी वो चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाए. ये उनका अपमान नहीं था बल्कि उस निर्वाचन क्षेत्र के लोगों का अपमान था. इसलिए संदेश साफ है कि राजनीति में सफल होने के लिए सिनेमा से मिली प्रसिद्धि और ताकत ही पर्याप्त नहीं होती. इनके अलावा भी बहुत कुछ होना चाहिए.

दोस्ती में दरार आते देर नहीं लगती

रजनीकांत ने कहा- "मुझे नहीं पता कि यह क्या है. लेकिन मुझे लगता है कि कमल हसन को पता होगा. और अगर वो ये सीक्रेट जानते हैं तो भी मुझे नहीं बताएंगे. शायद अगर मैंने उनसे दो महीने पहले पूछा होता तो वो जरूर बता देते." एक बस से अपना सफर शुरू करके रजनीकांत ने सुपरस्टार की ख्याति प्राप्त की. अपने भाषण में रजनीकांत कमल हसन के उस राजनीतिक वक्तव्य की ओर इशारा कर रहे थे जिसमें कमल हसन ने लोगों से सरकार में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्यपाल को चिट्ठी लिखने के लिए कहा.

रजनीकांत का ये हमला कमल हसन के हमले का पलटवार था. कमल हसन ने कुछ दिनों पहले मुरासोली के 75वीं वर्षगांठ पर परोक्ष रूप से रजनीकांत पर हमला किया था. मुरासोली डीएमके का मुखपत्र है. हसन ने तब कटाक्ष किया था- आत्म सम्मान, आत्म रक्षा से ज्यादा जरुरी है.

इस सब से मुझे द गार्जियन में लिखे एक लेख की याद आती है: "मुझे यकीन है कि ज्यादातर कार्यकर्ता-अभिनेताओं का मकसद अच्छा होता है. लेकिन अपनी ही तारीफ में खोए रहना और खुद को ही सबसे महत्वपूर्ण समझने वाले लोग मुझे पसंद नहीं. यह बहुत अच्छी बात है कि वे अपने सेलिब्रिटी स्टेटस को अच्छे काम के लिए उपयोग करना चाहते हैं. लेकिन कोई उन्हें बताए कि सिर्फ प्रसिद्धि ही पर्याप्त नहीं होती."

जाहिर तौर पर रजनीकांत ने इस बात पर बल दिया था कि राजनीति में सफल होने के लिए प्रसिद्धि और स्टारडम से आगे भी बहुत कुछ जरूरी होता है. शायद वो 'बहुत कुछ' ही है जिसकी वजह से रजनीकांत खुद को राजनीति में आने से रोक रहे हैं. और आज से नहीं बल्कि बहुत सालों से.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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