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Kabir Singh शाहिद कपूर के लिए फायदेमंद, लेकिन समाज के लिए...?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 23 जून, 2019 02:25 PM
  • 23 जून, 2019 02:25 PM
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शाहिद कपूर की फिल्म Kabir Singh उनकी सबसे बड़ी हिट साबित हो रही है. लेकिन ये शाहिद के लिए बढ़िया बात है, लेकिन समाज के लिए ये चिंता का विषय है.

Shahid Kapoor की फिल्म कबीर सिंह रिलीज के पहले दिन ही हिट साबित हुई है. Kabir Singh Box Office Collection की बात करें तो शाहिद कपूर की ये पहली फिल्म है जिसने इतनी बड़ी ओपनिंग ली. 20.21 करोड़ की ये ओपनिंग के साथ ये शाहिद की सबसे बड़ी फिल्म है. इसने पद्मावत को भी पीछे छोड़ दिया जो 19 करोड़ रुपए के साथ रिलीज के पहले दिन कोई खास कमाल नहीं कर पाई थी. कुल मिलाकर शाहिद कपूर के लिए Kabir Singh बहुत फायदेमंद रही. कबीर सिंह एक तरह से बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर बन सकती है. दूसरे दिन भारत-अफ्गानिस्तान के मैच के बावजूद इस फिल्म ने 22.71 करोड़ रुपए कमा लिए. कुल मिलाकर दो दिन का Box Office Collection 42.92 करोड़ हो गया है.

कबीर सिंह फिल्म पुरुषों के लिए तो बहुत अच्छी साबित हो सकती है, शाहिद कपूर के लिए ये वैसे ही अच्छी साबित हो गई है, लेकिन क्या ये फिल्म समाज के लिए भी उतनी ही अच्छी है? इसका जवाब जरा फिल्म की कहानी में ढूंढा जाए. कबीर सिंह जो एक मेडिकल स्टूडेंट है उसे बहुत गुस्सा आता है, वो किसी के साथ भी मार-पीट कर सकता है. उसे कॉलेज से निकालने वाले होते हैं कि उसे प्रीति (Kiara Advani) दिखती है. प्रीती के लिए वो कॉलेज में वापस रुक जाता है. प्रीति के लिए एक दोस्त भी ढूंढता है, सभी को बता देता है कि प्रीति उसकी बंदी है, प्रीति को वो पढ़ाता है न कि कॉलेज के प्रोफेसर. फिर जब प्रीति के पिता इस शादी के लिए मना कर देते हैं तो कबीर सिंह इस तरह से गुस्से में आ जाता है कि वो खुद को बर्बाद करने की कोशिश करता है. किसी न किसी से वन नाइट स्टैंड, मार-पीट, महिलाओं को गाली देना आदि सब उसका रोल होता है. कुल मिलाकर शाहिद इस फिल्म में Arjun Reddy ही हैं. फिल्म पूरी तरह से दक्षिण की फिल्म की कॉपी है. फिल्म में वो सब कुछ गलत है जिसके लिए 2019 में बहस हो सकती है. जात-पात, गुस्सा, पुरुष प्रधान, महिलाओं को एक वस्तु समझना और भी बहुत कुछ.

Shahid Kapoor की फिल्म कबीर सिंह रिलीज के पहले दिन ही हिट साबित हुई है. Kabir Singh Box Office Collection की बात करें तो शाहिद कपूर की ये पहली फिल्म है जिसने इतनी बड़ी ओपनिंग ली. 20.21 करोड़ की ये ओपनिंग के साथ ये शाहिद की सबसे बड़ी फिल्म है. इसने पद्मावत को भी पीछे छोड़ दिया जो 19 करोड़ रुपए के साथ रिलीज के पहले दिन कोई खास कमाल नहीं कर पाई थी. कुल मिलाकर शाहिद कपूर के लिए Kabir Singh बहुत फायदेमंद रही. कबीर सिंह एक तरह से बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर बन सकती है. दूसरे दिन भारत-अफ्गानिस्तान के मैच के बावजूद इस फिल्म ने 22.71 करोड़ रुपए कमा लिए. कुल मिलाकर दो दिन का Box Office Collection 42.92 करोड़ हो गया है.

कबीर सिंह फिल्म पुरुषों के लिए तो बहुत अच्छी साबित हो सकती है, शाहिद कपूर के लिए ये वैसे ही अच्छी साबित हो गई है, लेकिन क्या ये फिल्म समाज के लिए भी उतनी ही अच्छी है? इसका जवाब जरा फिल्म की कहानी में ढूंढा जाए. कबीर सिंह जो एक मेडिकल स्टूडेंट है उसे बहुत गुस्सा आता है, वो किसी के साथ भी मार-पीट कर सकता है. उसे कॉलेज से निकालने वाले होते हैं कि उसे प्रीति (Kiara Advani) दिखती है. प्रीती के लिए वो कॉलेज में वापस रुक जाता है. प्रीति के लिए एक दोस्त भी ढूंढता है, सभी को बता देता है कि प्रीति उसकी बंदी है, प्रीति को वो पढ़ाता है न कि कॉलेज के प्रोफेसर. फिर जब प्रीति के पिता इस शादी के लिए मना कर देते हैं तो कबीर सिंह इस तरह से गुस्से में आ जाता है कि वो खुद को बर्बाद करने की कोशिश करता है. किसी न किसी से वन नाइट स्टैंड, मार-पीट, महिलाओं को गाली देना आदि सब उसका रोल होता है. कुल मिलाकर शाहिद इस फिल्म में Arjun Reddy ही हैं. फिल्म पूरी तरह से दक्षिण की फिल्म की कॉपी है. फिल्म में वो सब कुछ गलत है जिसके लिए 2019 में बहस हो सकती है. जात-पात, गुस्सा, पुरुष प्रधान, महिलाओं को एक वस्तु समझना और भी बहुत कुछ.

इतने के बाद भी क्यों हिट हो रही है Kabir Singh?

- जबरदस्त एक्टिंग

शाहिद कपूर जो बिलकुल नशा नहीं करते उनके लिए ड्रग एडिक्ट गुस्सैल आदमी का रोल निभाना मुश्किल रहा होगा, लेकिन शाहिद ने ये अच्छे से निभाया.

शाहिद फिल्म में ड्रग्स, शराब, सुट्टा, लड़कीबाज़ी और हर तरह का वो काम करते हैं जो भारतीय समाज में गलत समझा जाता है.

- टूटे दिल की कथा

प्यार, टकरार, हाहाकार, धोखा, रिश्ते और दिल टूटना. ये सब कुछ भारतीय ऑडियंस को कुछ ज्यादा ही आकर्षित करता है और उसपर अगर थोड़ा एक्शन हो तो यकीनन ऑडियंस को पसंद आएगा.

- सनकी आशिक

इसके बारे में तो शायद कुछ कहने की भी जरूरत नहीं है. कबीर सिंह में एक सनकी आशिक है और भारत में जिस तरह से रिजेक्शन बर्दाश्त न कर पाने की प्रथा चली आ रही है वो कहीं न कहीं इस फिल्म में भी दिखाई गई है.

- पुरुषवादी मानसिकता

लड़की नहीं माने तो उसे उसके परिवार के सामने मारना भी सही है. इससे आपकी मर्दानगी दिखती है. लड़की तो इतना सब कुछ सहने के बाद भी मान ही जाएगी.

- कल्ट फैक्टर

इस तरह के कंटेंट को पसंद करने वाली एक तय ऑडियंस है. इसमें सबसे ज्यादा युवा वर्ग है. युवाओं को ये फिल्म बहुत पसंद आ रही है और ये यकीनन एक चिंता का विषय है.

Kabir Singh का हिट होना खुशी का नहीं चिंता का विषय है-

दक्षिण भारतीय फिल्म अर्जुन रेड्डी जब हिट हुई थी तो ही उसे लेकर बहुत सी बातें कही गई थीं. दक्षिण भारतीय फिल्मों में वैसे भी हीरो का ये रूप एक हद तक पसंद किया जाता है, लेकिन अब बात Kabir Singh की है. इस फिल्म को लेकर बहुत से निगेटिव रिव्यू आ रहे हैं, लेकिन वो कहते हैं न 'Any Publicity is good Publicity.' बस वही हो रहा है कबीर सिंह के साथ भी. कबीर सिंह का सफल होना बहुत बड़ी समस्या है.

फिल्म में कहीं एक ओर ये दिखाने की कोशिश की गई है कि 2019 में जात-पात को लेकर किसी के प्यार को ठुकराना सही नहीं है, लेकिन ये मैसेज देने में फिल्म एकदम नाकाम रही है और साथ ही साथ समाज में एक गलत मैसेज भेज रही है. मैसेज ये कि भले ही लड़की के परिवार को मारने की धमकी दो, लड़की को अपनी संपत्ति बनाकर रखो, लड़की को पीटो, उसका दोस्त बनाने का हक भी छीन लो, उसे रिश्ता तोड़ने के लिए अल्टिमेटम भी दे दो, फिर भी लड़की को तुमसे शादी कर लेनी चाहिए क्योंकि फिल्म में दो अलग-अलग जाति वालों की शादी दिखानी है.

कबीर सिंह कई मामलों में गलत है और इसे समझना होगा कि इस तरह की फिल्में यकीनन युवाओं के बीच गलत संदेश भेज सकती हैं. एक सीन में सनकी आशिक कबीर एक लड़की को चाकू दिखाकर उसे कपड़े उतारने को कहता है. क्या है ये? भारत जैसे देश में जहां रेप और छेड़खानी पहले से ही इतनी बढ़ी हुई है वहां इस तरह के सीन से क्या साबित किया जा सकता है? डायरेक्टर ने पहली फिल्म में ये किया वो गलत था, लेकिन दूसरी फिल्म में इसे दोहराना बहुत ही ज्यादा गलत था. इसे किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है. ये फिल्म किस हद तक गलत है और महिलाओं के खिलाफ है वो कमाल आर खान की इस ट्वीट से पता लगाया जा सकता है.

कबीर सिंह फिल्म में शाहिद की एक्टिंग की तारीफ हो रही है, उन्होंने वाकई काफी मेहनत भी की होगी, लेकिन इस फिल्म को करने के बाद अब शाहिद कभी फेमिनिज्म की बात सीधे तौर पर नहीं कर पाएंगे. अगर वो कभी ऐसा करते हैं तो कहीं न कहीं उन्हें ये याद दिलाया जाएगा कि वो कबीर सिंह फिल्म के हीरो थे. इस फिल्म को कुछ और तरीकों से भी बनाया जा सकता था, लेकिन महिलाओं की बेइज्जती करना और उन्हें अपनी वस्तु समझना यकीनन बेहद गलत संदेश है जो इस फिल्म से दिया गया है. उम्मीद है कि जिस तरह से ऑडियंस इस फिल्म को देखने के लिए उमड़ी है वो इस फिल्म से कोई संदेश न ले क्योंकि इसे किसी भी तरीके से एक अच्छी फिल्म तो नहीं कहा जा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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