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इरफान और उनके कैंसर ने जीने के सही मायने सिखा दिए

    • कावेरी बामज़ई
    • Updated: 21 जून, 2018 04:11 PM
  • 21 जून, 2018 04:11 PM
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अपनी मार्मिक चिट्ठी में न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर जैसी दुर्लभ बीमारी के बारे में बताते हुए भी इरफान बिल्कुल शांत बने रहते हैं. ये वो आदमी है जो अपने आज के साथ जी रहा है, उसे स्वीकार कर रहा है, और अपनी गरिमा बनाकर रखते हुए खुद को परिस्थितियों के हवाले कर रहा है.

2011 में अक्सा बीच स्थित उनके घर पर इंडिया टुडे के लिए मैंने उनका एक इंटरव्यू किया था. इरफान ने अपने लिविंग रूम को खाली कर दिया था ताकि उनके बेटे कभी कभी वहां फुटबॉल खेल सकें. इरफान खान ने कहा: "हमें एनएसडी में साहसी होना सिखाया गया था. मुझे कभी समझ नहीं आया कि आखिर हिम्मत से एक्टिंग का क्या संबंध है. लेकिन अब मैं समझ गया हूं. अगर आप अभिनेता हैं और आपको ये पता है कि आगे क्या होने वाला है तो आप खत्म हैं. आपको हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रहना पड़ेगा. आपको अपनी सहजता पर भरोसा करना होता है. खुद को मुक्त रखें और देखें कि क्या होता है."

एक कमाल का अभिनेता और एक बेहतरीन आदमी. इरफान खान. वो अब हमें उस साहस की झलक दिखा रहे हैं जिसका जिक्र उस इंटरव्यू में उन्होंने किया था. अभी वो अपने जीवन के सबसे कठिन समय से गुजर रहे हैं. उनकी बीमारी से संबंधित अफवाहों और सिनेमा जगत से उनकी अनुपस्थिति के बारे में इरफान ने खुद बड़ी साफगोई से बताया. ये भी बताया कि जिंदगीं कितनी कठिन और क्रूर हो सकती है.

इरफान ने पढ़ाया जीवन का पाठ

वो लिखते हैं- "मैं अपनी ही मस्ती में था. एक तेज रफ्तार ट्रेन में सफर कर कर रहा था. मेरे साथ मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, आकांक्षाएं थीं, लक्ष्य थे. मैं पूरी तरह से उनसे जुड़ा हुआ था. तभी अचानक कोई मेरे कंधे को थपथपाता है. मुड़कर मैं उसे देखता हूं. यह टीसी है: 'आपका स्टेशन आने वाला है. प्लीज नीचे उतर जाइए.' मैं उलझन में हूं. नहीं, नहीं, मेरी मंजिल ये नहीं है. कभी कभी ऐसा होता है."

खुलकर जीना किसे कहते हैं अब समझा...

2011 में अक्सा बीच स्थित उनके घर पर इंडिया टुडे के लिए मैंने उनका एक इंटरव्यू किया था. इरफान ने अपने लिविंग रूम को खाली कर दिया था ताकि उनके बेटे कभी कभी वहां फुटबॉल खेल सकें. इरफान खान ने कहा: "हमें एनएसडी में साहसी होना सिखाया गया था. मुझे कभी समझ नहीं आया कि आखिर हिम्मत से एक्टिंग का क्या संबंध है. लेकिन अब मैं समझ गया हूं. अगर आप अभिनेता हैं और आपको ये पता है कि आगे क्या होने वाला है तो आप खत्म हैं. आपको हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रहना पड़ेगा. आपको अपनी सहजता पर भरोसा करना होता है. खुद को मुक्त रखें और देखें कि क्या होता है."

एक कमाल का अभिनेता और एक बेहतरीन आदमी. इरफान खान. वो अब हमें उस साहस की झलक दिखा रहे हैं जिसका जिक्र उस इंटरव्यू में उन्होंने किया था. अभी वो अपने जीवन के सबसे कठिन समय से गुजर रहे हैं. उनकी बीमारी से संबंधित अफवाहों और सिनेमा जगत से उनकी अनुपस्थिति के बारे में इरफान ने खुद बड़ी साफगोई से बताया. ये भी बताया कि जिंदगीं कितनी कठिन और क्रूर हो सकती है.

इरफान ने पढ़ाया जीवन का पाठ

वो लिखते हैं- "मैं अपनी ही मस्ती में था. एक तेज रफ्तार ट्रेन में सफर कर कर रहा था. मेरे साथ मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, आकांक्षाएं थीं, लक्ष्य थे. मैं पूरी तरह से उनसे जुड़ा हुआ था. तभी अचानक कोई मेरे कंधे को थपथपाता है. मुड़कर मैं उसे देखता हूं. यह टीसी है: 'आपका स्टेशन आने वाला है. प्लीज नीचे उतर जाइए.' मैं उलझन में हूं. नहीं, नहीं, मेरी मंजिल ये नहीं है. कभी कभी ऐसा होता है."

खुलकर जीना किसे कहते हैं अब समझा उन्होंने

अतुल गवंडे ने अपनी शानदार किताब Being Mortal: Medicine and What Matters in the End में भी यही लिखा है: "जैसे-जैसे लोग अपने जीवन के बारे में जागरूक होते जाते हैं, वे ज्यादा मांग नहीं करते. वे अधिक धन की तलाश नहीं करते. वे अधिक शक्ति नहीं चाहते. वे सिर्फ जितना संभव हो सके, दुनिया में अपने जीवन की कहानी को आकार देने के लिए, विकल्पों को बनाने और अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार दूसरों से संबंध बनाए रखने की अनुमति चाहते हैं." यही कारण है कि अपनी मार्मिक चिट्ठी में न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर जैसी दुर्लभ बीमारी के बारे में बताते हुए भी इरफान बिल्कुल शांत बने रहते हैं. चिट्ठी के साथ उन्होंने अपनी फोटो भी भेजी है जिसमें इरफान घास पर लेटे हुए हैं और एक टोपी से उनका ज्यादातर चेहरा ढंका हुआ है. ये वो आदमी है जो अपने आज के साथ जी रहा है, उसे स्वीकार कर रहा है, और अपनी गरिमा बनाकर रखते हुए खुद को परिस्थितियों के हवाले कर रहा है.

एक नया इरफान हमारे सामने होगा

बीमार होने का सबसे बुरा पहलू जो गवंडे हमें दिखाते हैं, वो ये कि हमारा खुद से भरोसा उठ जाता है. हम अपनी कहानी बताने की ताकत खो देते हैं. इरफान खान ने दूसरों को और खुद को जो तोहफा दिया है वो है- कि अगर जिंदगी जीना एक कला है. तो फिर ये जो मुश्किलें खड़ी करती है, जो इम्तिहान लेती है, उसे बर्दाश्त करना और उसके सामने खड़े रहना एक अद्भुत कला है. संभवतः गवंडे से बेहतर मैं इसे प्रस्तुत नहीं कर सकी: "जब आप युवा और स्वस्थ होते हैं, तो आपको लगता है कि आप हमेशा जीते रहेंगे. अपनी किसी भी क्षमता को खोने के बारे में आप चिंता नहीं करते. लोग आपको बताते हैं "दुनिया आपकी मुट्ठी में है," "सारा आकाश आपका है," और ऐसी ही कई बातें.

और आप संतुष्ट रहते हैं. अपने समय को सही ढंग से इस्तेमाल करने से बचते हैं. जैसे कि नए हुनर सीख लेना या फिर अपने उज्जवल भविष्य के लिए संसाधन बढ़ाना. ये सारे काम आपकी लिस्ट में होते ही नहीं है. आप अपने दोस्तों में व्यस्त रहते हैं. अपनी मां के साथ रहना आपकी प्राथमिकता नहीं होती. अपनी नेटवर्किंग बढ़ाना ही आपके लिए जरुरी होता है.

जब हमें पता होता है कि हमारे पास अभी जीने के लिए साल पड़े हैं तो हम उपलब्धि, रचनात्मकता, और अपने आप को हर जगह शीर्ष पर देखने की इच्छा रखते हैं. लेकिन जैसे ही आपको पता चलता है कि आपके पास समय कम है और जीवन अनिश्चित है तो आप आज में जीने लगते हैं. अब आप रोजमर्रा के सुख और आपके नज़दीकी लोगों के लिए बदल जाते हैं." भारत में अभी भी कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में दबी जुबान में ही बात की जाती है. वो भी बंद दरवाजे के भीतर. अपनी बीमारी के बारे में बात करके इरफान ने दूसरों को इस शर्म और निराशा के चक्र से निकाल लिया था. जैसा की रैंडी पॉश लिखते हैं: "ये अपने सपनों को पाने के बारे में नहीं है. यह अपना जीवन कैसे जीएं उसके बारे में है. अगर आप अपने जीवन को सही तरीके से जीते हैं, तो कर्म खुद ही आपका ख्याल रखेगा, सपने खुद आपके पास आएंगे."

और इसके बाद जो आप पाएंगे वही सच्चा आनंद है, सच्ची आजादी है. जिसके बारे में इरफान बोलते हैं: "पहली बार, मुझे पता चाल कि 'स्वतंत्रता' असल में होती क्या है. इसका अर्थ क्या है. ये मुझे एक उपलब्धि की तरह महसूस हुआ. जैसे कि मैं पहली बार जीवन का स्वाद ले रहा था. इसके जादूई पक्ष को देख रहा था. ब्रह्मांड की खुफिया ताकतों में मेरा विश्वास पूर्ण हो गया. मुझे लगता है जैसे यह मेरे हर कोशिका में प्रवेश कर चुका है." असल में, इरफान की पत्नी सुतापा सिकदर ने मुझे एक ईमेल साक्षात्कार में बताया था: "हमने अब इसे स्वीकार कर लिया है. दूसरे लोग जो 30 की उम्र में हासिल करेंगे, इरफान वो 40 की उम्र में पाएंगे. और 50 की उम्र में वो उस जगह पर होंगे जहां 40 की उम्र के लोग होंगे." हम बस उम्मीद ही कर सकते हैं कि इरफान आने वाले सालों में ये साबित करें कि वो कछुए की रफ्तार से क्यों चल रहे हैं. एक ऐसा कछुआ जिससे हर कोई प्यार करता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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