• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

Hum Do Humare do movie मध्यकाल में आई होती तो लेखक को 100 कोड़े खाने की सजा मिलती!

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 30 अक्टूबर, 2021 03:17 PM
  • 30 अक्टूबर, 2021 02:55 PM
offline
राजकुमार राव-कृति सेनन (Rajkummar Rao-Kriti Sanon) स्टारर हम दो हमारे दो (Hum Do Humare do) कॉमेडी ड्रामा है मगर फिल्म बहुत ठीक से नहीं बन पाई है और इसके कुछ टुकड़े ही अच्छे लगते हैं.

अच्छी बात है कि दिनेश विजन के प्रोडक्शन में बनी हम दो हमारे दो 2021 की फिल्म है. अगर ये फिल्म 18वीं सदी से पहले आई होती तो कॉमेडी के नाम पर हादसा बनाने के लिए बादशाह सलामत अभिषेक जैन (निर्देशक), प्रशांत झा (पटकथा, संवाद) और दीपक वेंकटेशन (कहानी) को कम से कम 100 कोड़े मारने की सजा देते. राजकुमार राव को ऐसी फिल्म करने के लिए पूस में रात भर नंगे बदन ठंडी झील में खड़ा होने की सजा मिलती. हम दो हमारे दो, कॉमेडी ड्रामा के नाम पर दर्शकों के साथ घटिया मजाक से कुछ कम नहीं.

पटकथा, कहानी, संवाद और निर्देशन में ही झोल हो तो भला किसी फिल्म से और क्या उम्मीद की जाए. एक खराब निर्देशन और पटकथा पर राजकुमार राव, कृति सेनन, परेश रावल या फिर रत्ना पाठक शाह से किसी तरह की उम्मीद पालने का कोई मतलब नहीं है. मिस्टर बीन वाले रोवन एटकिंसन को ही ले लिया जाता, इतने पंक्चर में भला वही क्या उखाड़ लेते. हम दो हमारे दो में सिवाय टुकड़ों की तुरपाई के और कुछ नहीं दिखता. यहां-वहां से चीजों को उठाकर बेतरतीब जोड़ दिया गया और उसे एक कहानी के रूप में परोस दिया गया- लो भई कॉमेडी फिल्म देख लो. बॉलीवुड में कुछ को लगता है कि सफलता का सबसे आसान फ़ॉर्मूला कॉमेडी ही है. वैसे है भी. बस 'साब' लोग भूल जाते हैं कि कॉमेडी ड्रामा बनाना सबसे आसान तो है मगर हकीकत में यही काम सबसे मुश्किल भी है. यहां एक मामूली गड़बड़ी से पूरा ट्रैक बर्बाद हो जाता है. और हम दो हमारे दो में तो गलतियां कई मोर्चों पर हैं.

अभिषेक जैन के निर्देशन में हम दो हमारे दो की कहानी इतनी साधारण लगती है कि 20 साल पहले गोविंदा के साथ डेविड धवन की तमाम फ़िल्में कुछ ज्यादा ही फ्रेश और मनोरंजक नजर आती हैं. हम दो हमारे दो के आगे गोविंदा की दूल्हे राजा को भी क्लासिक मान सकते हैं. फिल्म की कहानी में ताजगी के नाम पर नायक-नायिकाओं का प्रोफेशन भर फ्रेश दिखता है. नायक वीआर ऐप बनाता है और नायिका ब्लॉगिंग करती है. नायक का अनाथ होना, नायिका के माता पिता का बचपन में ही गुजर जाना, नायक का मुश्किलों से भरा बचपन, बाल श्रमिक के रूप में...

अच्छी बात है कि दिनेश विजन के प्रोडक्शन में बनी हम दो हमारे दो 2021 की फिल्म है. अगर ये फिल्म 18वीं सदी से पहले आई होती तो कॉमेडी के नाम पर हादसा बनाने के लिए बादशाह सलामत अभिषेक जैन (निर्देशक), प्रशांत झा (पटकथा, संवाद) और दीपक वेंकटेशन (कहानी) को कम से कम 100 कोड़े मारने की सजा देते. राजकुमार राव को ऐसी फिल्म करने के लिए पूस में रात भर नंगे बदन ठंडी झील में खड़ा होने की सजा मिलती. हम दो हमारे दो, कॉमेडी ड्रामा के नाम पर दर्शकों के साथ घटिया मजाक से कुछ कम नहीं.

पटकथा, कहानी, संवाद और निर्देशन में ही झोल हो तो भला किसी फिल्म से और क्या उम्मीद की जाए. एक खराब निर्देशन और पटकथा पर राजकुमार राव, कृति सेनन, परेश रावल या फिर रत्ना पाठक शाह से किसी तरह की उम्मीद पालने का कोई मतलब नहीं है. मिस्टर बीन वाले रोवन एटकिंसन को ही ले लिया जाता, इतने पंक्चर में भला वही क्या उखाड़ लेते. हम दो हमारे दो में सिवाय टुकड़ों की तुरपाई के और कुछ नहीं दिखता. यहां-वहां से चीजों को उठाकर बेतरतीब जोड़ दिया गया और उसे एक कहानी के रूप में परोस दिया गया- लो भई कॉमेडी फिल्म देख लो. बॉलीवुड में कुछ को लगता है कि सफलता का सबसे आसान फ़ॉर्मूला कॉमेडी ही है. वैसे है भी. बस 'साब' लोग भूल जाते हैं कि कॉमेडी ड्रामा बनाना सबसे आसान तो है मगर हकीकत में यही काम सबसे मुश्किल भी है. यहां एक मामूली गड़बड़ी से पूरा ट्रैक बर्बाद हो जाता है. और हम दो हमारे दो में तो गलतियां कई मोर्चों पर हैं.

अभिषेक जैन के निर्देशन में हम दो हमारे दो की कहानी इतनी साधारण लगती है कि 20 साल पहले गोविंदा के साथ डेविड धवन की तमाम फ़िल्में कुछ ज्यादा ही फ्रेश और मनोरंजक नजर आती हैं. हम दो हमारे दो के आगे गोविंदा की दूल्हे राजा को भी क्लासिक मान सकते हैं. फिल्म की कहानी में ताजगी के नाम पर नायक-नायिकाओं का प्रोफेशन भर फ्रेश दिखता है. नायक वीआर ऐप बनाता है और नायिका ब्लॉगिंग करती है. नायक का अनाथ होना, नायिका के माता पिता का बचपन में ही गुजर जाना, नायक का मुश्किलों से भरा बचपन, बाल श्रमिक के रूप में काम करना, एक फ़रिश्ते की प्रेरणा से जिंदगी में बड़े मुकाम हासिल करना, प्यार और शादी के लिए झूठ का सहारा लेना यहां तक कि किराए पर मां-बाप को खोजना अब तक ना जाने कितनी फिल्मों में दिखाया जा चुका है.

पिछले कई सालों में प्रौढ़ युगल की टाइप्ड प्रेम कहानियां भी कई मर्तबा दोहराई जा चुकी हैं. हम दो हमारे दो में जिस तरह से परेश रावल और रत्ना पाठक के प्रेम का एंगल है.

हम दो हमारे दो.

फिल्म की कहानी घिसी पिटी है. बुरी तरह से प्रेडिक्टबल. ट्विस्ट-टर्न्स भी कायदे के नहीं जिनसे चीजों को संभालने की उम्मीद पाली जाए. क्लाइमैक्स का तो कहना ही क्या. संवाद समझ से परे हैं. हम दो हमारे दो के नायक की हैसियत उसके घर की टैरिस और लॉन्चिंग इवेंट में दिखती है. मगर वो घूम स्कूटर से रहा है. हीरोइन स्ट्रगलिंग ब्लॉगर है पर उसका रुवाब युवा कॉरपोरेट सीइओ जैसा है. हीरो, कई फ्रेम में हीरोइन से ज्यादा सजा-धजा और भड़कीला नजर आता है. मेकअप पोते हुए.

हम दो हमारे दो में कुछ भी असली नहीं है. एक एक्टर कितना संभालेगा अभिनय से. राजकुमार राव, कृति सेनन, रत्ना पाठक शाह, मनु ऋषि चढ्ढा और परेश रावल अपनी अपनी जगह ठीक-ठाक ही हैं. हंगामा 2 और अब परेश की यह फिल्म देखने के बाद उनसे सिर्फ एक गुजारिश की जाए- प्रभु आप कॉमेडी से समय रहते संन्यास ले लीजिए. एक ही लकीर पर दिख रहे हैं सालों से. एक भी इंच ना आगे ना पीछे. बाकी फिल्म के बहाने अभिनय पर बात ही क्या करना. अभिनय का रंग तो अन्य चीजों से ही गाढ़ा और पक्का होता है जो अभिषेक जैन की फिल्म में है ही नहीं.

अगर कोई पूछे कि हम दो हमारे दो देख सकते हैं तो एक ही सूरत में इजाजत दी जाए. दीपावली के त्योहार में लंबी छुट्टियों को काटने के लिए अगर कुछ भी नहीं है देखने के लिए तो जाइए एक बार देख लीजिए. पर आपने यह उम्मीद पाली होगी कि लुकाछुपी, मिमी, या स्त्री देखने जा रहे हैं तो बहुत निराश होंगे और मुंह से लानतें ही निकलेंगी. कॉमेडी को लेकर दिनेश विजन के प्रोडक्शन हाउस ने तगड़ा बेंचमार्क बनाया है. मगर हम दो हमारे दो के रूप में उनका ताजा काम अब तक उनकी सबसे घटिया फिल्मों में शुमार की जाएगी.

हम दो हमारे दो 29 अक्टूबर से स्ट्रीम हो रही है. यह डिजनी प्लस हॉटस्टार के प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲