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Helmet review: कंडोम के टॉपिक पर बनी फिल्म बोल्ड तो होगी, क्या दर्शकों के लिए इतना काफी है?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 03 सितम्बर, 2021 08:53 PM
  • 03 सितम्बर, 2021 08:53 PM
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पिछले कुछ सालों में विकी डोनर, ड्रीम गर्ल, लुका छुप्पी जैसी तमाम थीम फिल्मों का सिलसिला दिखता है. थीम फिल्मों के दौर में हेलमेट की कहानी भी अपनी जगह बेहतर दिखती है. मगर असल दिक्कत कहानी पर लिखी गई कमजोर स्क्रिप्ट में है.

ओटीटी प्लेटफॉर्म जी 5 पर एक्सक्लूसिव रिलीज हुई हेलमेट की सबसे ख़ास बात यही है कि अपराशक्ति खुराना पहली बार लीड कैरेक्टर में नजर आ रहे हैं. उनके अपोजिट नूतन की पोती प्रनूतन बहल हैं. हेलमेट की सपोर्टिंग कास्ट को भी इसकी खासियतों में शुमार किया जा सकता है. फिल्म की कहानी एक ऐसे बोल्ड टॉपिक पर है जो सामजिक दायरे में बिल्कुल झिझक, संकोच और शर्म की बात है. एक बोल्ड टॉपिक या किसी भी फिल्म को बढ़िया बनाने के लिए चार चीजों की जरूरत पड़ती हैं. बढ़िया राइटिंग, एक्टिंग, निर्देशन और संपादन. दुर्भाग्य डिनो से मोरिया के को-प्रोडक्शन में बनी हेलमेट में खराब स्क्रिप्ट ने चारों चीजों पर असर डाला है जो शुरू से लेकर अंत तक नजर आता है. हुआ ये कि एंटरटेनिंग होने के बावजूद हेलमेट वैसा असर छोड़ने में नाकामयाब रही इसे देखते हुए जिसकी गुंजाइश साफ महसूस हो रही थी.

ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देश जनसंख्या विस्फोट का सामना कर रहे हैं. भारत जैसे देशों में तो सामजिक ढांचे की वजह से स्थितियां ज्यादा खराब हैं. परिवार नियोजन के अलावा यौनरोग और संक्रामक बीमारियां भी चिंताजनक मसला हैं. निश्चित ही कंडोम तमाम परेशानियों को कम करने का कारगर उपाय है. हालांकि हेलमेट कंडोम की सिर्फ उपयोगिता बताने के लिए नहीं बनाई गई. बल्कि इसमें उन परिस्थितियों को फोकस किया गया जिसकी वजह से लोग कंडोम खरीदने में झिझक या शर्म महसूस करते हैं. सार्वजनिक रूप से बात नहीं कर पाते. लाखों करोड़ों खर्च करने के बावजूद कंडोम के प्रचार, प्रसार और कारोबार से जुड़ी तमाम एजेंसियों और कंपनियों को जमीन पर 'जन असहयोग' का सामना करना पड़ता है.

पिछले कुछ सालों में विकी डोनर, ड्रीम गर्ल, लुका छुप्पी जैसी तमाम थीम फिल्मों का सिलसिला दिखता है. थीम फिल्मों के दौर में हेलमेट की कहानी भी अपनी जगह बेहतर दिखती है. मगर असल दिक्कत कहानी पर लिखी गई कमजोर स्क्रिप्ट में है. कई बार लगता है कि अपारशक्ति के भाई आयुष्मान खुराना की विकी डोनर से प्रेरित होकर कुछ चीजों में मामूली फेरबदल के साथ फिर लिख दिया गया हो. इसमें...

ओटीटी प्लेटफॉर्म जी 5 पर एक्सक्लूसिव रिलीज हुई हेलमेट की सबसे ख़ास बात यही है कि अपराशक्ति खुराना पहली बार लीड कैरेक्टर में नजर आ रहे हैं. उनके अपोजिट नूतन की पोती प्रनूतन बहल हैं. हेलमेट की सपोर्टिंग कास्ट को भी इसकी खासियतों में शुमार किया जा सकता है. फिल्म की कहानी एक ऐसे बोल्ड टॉपिक पर है जो सामजिक दायरे में बिल्कुल झिझक, संकोच और शर्म की बात है. एक बोल्ड टॉपिक या किसी भी फिल्म को बढ़िया बनाने के लिए चार चीजों की जरूरत पड़ती हैं. बढ़िया राइटिंग, एक्टिंग, निर्देशन और संपादन. दुर्भाग्य डिनो से मोरिया के को-प्रोडक्शन में बनी हेलमेट में खराब स्क्रिप्ट ने चारों चीजों पर असर डाला है जो शुरू से लेकर अंत तक नजर आता है. हुआ ये कि एंटरटेनिंग होने के बावजूद हेलमेट वैसा असर छोड़ने में नाकामयाब रही इसे देखते हुए जिसकी गुंजाइश साफ महसूस हो रही थी.

ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देश जनसंख्या विस्फोट का सामना कर रहे हैं. भारत जैसे देशों में तो सामजिक ढांचे की वजह से स्थितियां ज्यादा खराब हैं. परिवार नियोजन के अलावा यौनरोग और संक्रामक बीमारियां भी चिंताजनक मसला हैं. निश्चित ही कंडोम तमाम परेशानियों को कम करने का कारगर उपाय है. हालांकि हेलमेट कंडोम की सिर्फ उपयोगिता बताने के लिए नहीं बनाई गई. बल्कि इसमें उन परिस्थितियों को फोकस किया गया जिसकी वजह से लोग कंडोम खरीदने में झिझक या शर्म महसूस करते हैं. सार्वजनिक रूप से बात नहीं कर पाते. लाखों करोड़ों खर्च करने के बावजूद कंडोम के प्रचार, प्रसार और कारोबार से जुड़ी तमाम एजेंसियों और कंपनियों को जमीन पर 'जन असहयोग' का सामना करना पड़ता है.

पिछले कुछ सालों में विकी डोनर, ड्रीम गर्ल, लुका छुप्पी जैसी तमाम थीम फिल्मों का सिलसिला दिखता है. थीम फिल्मों के दौर में हेलमेट की कहानी भी अपनी जगह बेहतर दिखती है. मगर असल दिक्कत कहानी पर लिखी गई कमजोर स्क्रिप्ट में है. कई बार लगता है कि अपारशक्ति के भाई आयुष्मान खुराना की विकी डोनर से प्रेरित होकर कुछ चीजों में मामूली फेरबदल के साथ फिर लिख दिया गया हो. इसमें बॉलीवुड की पारंपरिक प्रेम कहानी का तड़का भी लगा दिया. फ़िल्म का हीरो लकी (अपारशक्ति खुराना) अनाथ है. अच्छा सिंगर है और गुप्ता जी के बैंड में काम करता है. गुप्ता जी की भांजी रुपाली (प्रनूतन बहल) को ट्रू वाला लव करता है. रुपाली के साथ प्राइवेट टाइम बिताने के लिए शादी के माहौल में जगह खोज लेता है पर प्रोटेक्शन के लिए दुकान में जाकर कंडोम खरीदने का साहस उसमें नहीं है. रुपाली का पिता लकी की हैसियत की वजह से शादी से मना कर देता है. गुप्ता जी नौकरी से भी निकाल देते हैं. रुपाली के पिता और मामा लकी को कहीं नौकरी ना मिले इसकी कोशिश करते रहते हैं.

Photo: Zee 5

रुपाली भागने को तैयार है पर 12वीं पास लकी खुद को साबित करना चाहता है. लेकिन सवाल है कि साबित करे कैसे? ना तो कोई नौकरी देने को तैयार है और ना ही उसके पास इतने पैसे हैं कि अपना बैंड ही खोल ले. लकी के दो पक्के यार भी हैं- माइनस (आशीष वर्मा) और सुल्तान (अभिषेक बनर्जी). माइनस मोटी बुद्धि का है और सुल्तान का पोल्ट्री फॉर्म चल नहीं रहा जिसे उसने माफिया से लिए भारी कर्ज से शुरू किया था. उस पर भी कर्ज चुकता करने का दबाव है. तीनों एक प्लान बनाते हैं और माल से भरा ट्रक लूट लेते हैं. हालांकि कार्टून्स में उन्हें स्मार्टफोन की जगह कंडोम के पैकेट मिलते हैं. अब मुश्किल ये होती है कि कंडोम को लेकर जिस तरह की झिझक और शर्म है उस दायरे में कंडोम को बेचा जाए तो कैसे? इसका जवाब है हेलमेट में चेहरा छिपाकर.

कई कमियों के बावजूद हेलमेट की सबसे अच्छी बात इसका नैरेटिव है जो काफी हद तक एंटरटेनिंग है. खासकर ट्रक लूटने और उससे पैसे बनाने तक की लेंथ. बाकी फिल्म में बहुत सारी चीजें देखी-दिखाई लगती हैं. पहला हाफ तो ठीक ठाक है मगर दूसरा हाफ कमजोर बन पड़ा है. क्लाइमेक्स भी कोई ख़ास नहीं. हेलमेट की स्क्रिप्ट को अच्छे ट्विस्ट और टर्न्स के जरिए एक उम्दा में फिल्म में तब्दील किया जा सकता था. लकी रुपाली की लव स्टोरी का अंजाम क्या होता है, चोरी पकड़ी जाती है या नहीं, लकी और उसके दोस्त कैसे एक ट्रक कंडोम बेचने में कामयाब होते हैं उन्हें इसके लिए किस तरह की तरकीबें लगाते हैं, इन सब चीजों को जानने के लिए फिल्म देखना चाहिए.

प्रनूतन, आशीष विद्यार्थी और कुछ अन्य सपोर्टिंग कास्ट के पास करने को कुछ था नहीं. बहुत सारे किरदार फिलर की तरह हैं. अपारशक्ति, अभिषेक (स्त्री-पाताललोक फेम) और आशीष (आर्टिकल 15 और सुई धागा फेम) जिस तरह के अभिनेता हैं उन्होंने अपने हिस्से का काम उसी अंदाज में किया. बावजूद कि स्क्रिप्ट के झोल ने उसे प्रभावी नहीं होने दिया. अभिनय, निर्देशन और सम्पादन के लिए काफी हद तक एक उम्दा स्क्रिप्ट की जरूरत होती है. कई जगह बढ़िया कॉमिक टाइमिंग दिखती है. संवाद मनोरंजक और पंच लिए हुए हैं. मगर फिल्म की ये सारी खूबियां टुकड़ों में हैं, क्योंकि बीच में तमाम खराबियां (कई जगह ओवर एक्टिंग भी) भी टुकड़ों में ही नजर आती हैं जो दर्शकों का लय बिगाड़ देती हैं. फिल्म में एक दो गाने हैं मगर म्यूजिक वैसा नहीं कि उसकी तारीफ़ की जाए.

कंडोम खरीदने-बेचने को लेकर समाज में रियलिटी क्या है हल्के फुल्के अंदाज में उसे देखने के लिए हेलमेट एक बार जरूर देखने लायक फिल्म है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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