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Ghoomketu Review: हर बार के विपरीत नवाज़-अनुराग की जोड़ी ने दो घंटे चौपट कर दिए!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 मई, 2020 06:53 PM
  • 22 मई, 2020 06:53 PM
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Ghoomketu Review: अपने में नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) और अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap ) समेटे घूम केतू दर्शकों को रिझाने में नाकाम हुआ है. कारण वही कमज़ोर स्क्रिप्ट और ख़राब निर्देशन फिल्म को 5 साल पुरानी बताया जा रहा है ये भी एक अहम कारण है जिसके चलते दर्शक अपने को फिल्म से जोड़ नहीं पाए हैं.

चाहे नया हो या पुराना सिनेमा (Cinema) के शौकीन किसी भी व्यक्ति से बात कर लीजिए, सार यही होगा कि फिल्में (Films) बस 2 तरह की होती हैं. पहली अच्छी कहलाती है जबकि दूसरी को बुरी कहते हैं. जिसे फिल्मों की थोड़ी बहुत समझ होगी, वो आसानी से फिल्मों को अच्छी और बुरी में परिभाषित कर लेगा. देश कोरोना की चपेट में है इसलिए लोग अपने अपने घरों में रहने को मजबूर हैं. साल 2020 को फिल्मों के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा था. कई महत्वपूर्ण फिल्में रिलीज होने वाली थीं मगर अब जबकि लॉकडाउन का चौथा चरण (Lockdown 4) है इस स्थिति में ओटीटी प्लेटफॉर्म ही मनोरंजन का एक मात्र सहारा है. तो मुश्किल वक़्त में भी दर्शकों को उनके हिस्से का मनोरंजन मिलता रहे इसलिए पुष्पेंद्र मिश्रा निर्देशित फ़िल्म घूमकेतू (Ghoomketu) को ज़ी5 पर रिलीज किया गया है. फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) लीड रोल में हैं जबकि इला अरुण (Ila Arun), रघुवीर यादव (Raghubir Yadav), अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap), रागिनी खन्ना को फ़िल्म में सपोर्टिंग कास्ट रखा गया है. फ़िल्म का जॉनर कॉमेडी है. फ़िल्म पर बात करने से पहले फ़िल्म के एक डायलॉग का जिक्र हो जाए. डायलॉग है कि, 'ये कॉमेडी बहुत कठिन चीज है, लोगों को हंसी आनी भी तो चाहिए....' इसी डायलॉग के इर्द गिर्द फ़िल्म की कहानी है.

ख़राब निर्देशन की मार  नवाज की फिल्म घूम केतू पर पड़ी है जिससे केवल दर्शकों का समय बर्बाद हुआ है

शायद निर्देशक पुष्पेन्द्र नाथ मिश्रा एक कॉमेडी फ़िल्म बनाने और उसमें नवाज़ जैसे कलाकार को कास्ट करने के बावजूद फ़िल्म की स्क्रिप्ट पर काम करना भूल गए नतीजा ये निकला कि घूमकेतू के जरिये दर्शकों को मनोरंजन तो नहीं मिला हां अलबत्ता उनका समय खूब बर्बाद हुआ.

क्या है...

चाहे नया हो या पुराना सिनेमा (Cinema) के शौकीन किसी भी व्यक्ति से बात कर लीजिए, सार यही होगा कि फिल्में (Films) बस 2 तरह की होती हैं. पहली अच्छी कहलाती है जबकि दूसरी को बुरी कहते हैं. जिसे फिल्मों की थोड़ी बहुत समझ होगी, वो आसानी से फिल्मों को अच्छी और बुरी में परिभाषित कर लेगा. देश कोरोना की चपेट में है इसलिए लोग अपने अपने घरों में रहने को मजबूर हैं. साल 2020 को फिल्मों के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा था. कई महत्वपूर्ण फिल्में रिलीज होने वाली थीं मगर अब जबकि लॉकडाउन का चौथा चरण (Lockdown 4) है इस स्थिति में ओटीटी प्लेटफॉर्म ही मनोरंजन का एक मात्र सहारा है. तो मुश्किल वक़्त में भी दर्शकों को उनके हिस्से का मनोरंजन मिलता रहे इसलिए पुष्पेंद्र मिश्रा निर्देशित फ़िल्म घूमकेतू (Ghoomketu) को ज़ी5 पर रिलीज किया गया है. फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) लीड रोल में हैं जबकि इला अरुण (Ila Arun), रघुवीर यादव (Raghubir Yadav), अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap), रागिनी खन्ना को फ़िल्म में सपोर्टिंग कास्ट रखा गया है. फ़िल्म का जॉनर कॉमेडी है. फ़िल्म पर बात करने से पहले फ़िल्म के एक डायलॉग का जिक्र हो जाए. डायलॉग है कि, 'ये कॉमेडी बहुत कठिन चीज है, लोगों को हंसी आनी भी तो चाहिए....' इसी डायलॉग के इर्द गिर्द फ़िल्म की कहानी है.

ख़राब निर्देशन की मार  नवाज की फिल्म घूम केतू पर पड़ी है जिससे केवल दर्शकों का समय बर्बाद हुआ है

शायद निर्देशक पुष्पेन्द्र नाथ मिश्रा एक कॉमेडी फ़िल्म बनाने और उसमें नवाज़ जैसे कलाकार को कास्ट करने के बावजूद फ़िल्म की स्क्रिप्ट पर काम करना भूल गए नतीजा ये निकला कि घूमकेतू के जरिये दर्शकों को मनोरंजन तो नहीं मिला हां अलबत्ता उनका समय खूब बर्बाद हुआ.

क्या है कहानी

फ़िल्म में मोहाना गांव के घूम केतू यानी नवाज़ को एक ऐसे इंसान के रूप में दिखाया गया है जिसे राइटर बनना है और जो ऊंचे ख्वाब देखता है. अपनी इस इच्छा को पूरा करने कर लिए घूम केतू गांव के अखबार 'गुदगुदी' में नौकरी पाने के लिए चक्कर लगाता है.

अखबार के दफ्तर में उसे बेशकीमती सलाह मिलती है कि कहानी लिखने के लिए स्ट्रगल जरूरी है. घूमकेतू '30 दिनों में बॉलीवुड राइटर कैसे बनें' नाम की किताब को साथ लेकर स्ट्रगल करने बंबई भाग आता है. बंबई में घूम केतू प्रोड्यूसर डायरेक्टर्स को अपनी कहानियां सुनाता है जिसका नतीजा कुछ खास नहीं निकलता.

दिलचस्प ये कि घूम केतू अपनी लिखी कहानी में रणवीर सिंह, सोनाक्षी सिन्हा बतौर हीरो हिरोइन देखता है. फ़िल्म में घूम केतू को तकरीबन सभी बड़े एक्टर्स के ऑफिस के चक्कर काटते दिखाया गया है. आखिरकार एक दिन एक फिल्म निर्माता उसे 30 दिनों में कोई अच्छी कहानी लाने को कहता है.

फ़िल्म में अनुराग पुलिस वाले हैं जिन्हें किसी भी सूरत में घर से भागे घूम केतू को घर ले जाना है. पूरी फिल्म इसी ताने बाने पर बुनी गयी है. घूम केतू फ़िल्म लिख पाता है ? पुलिस उसे घर पहुंचा पाती है? इन सभी सवालों के जवाब के लिए हमें फ़िल्म देखनी होगी.

क्या बताता है फ़िल्म का डायरेक्शन

जैसा कि हम पहले बता चुके हैं फ़िल्म की स्क्रिप्ट अच्छी नहीं थी तो न तो नवाज़ ही दर्शकों को रिझा पाए न ही बाक़ी के लोगों को अपना 100% देने का अवसर मिला. फ़िल्म 2 घंटे की है और खराब निर्देशन के कारण एक दर्शक के लिए इसे 2 घंटे तक झेलना अपने आप में एक बड़ी चुनौती था.

फ़िल्म क्यों कि गांव की पृष्ठभूमि पर है और इसमें एक आदमी के सपनों का जिक्र हुआ है इसलिये संवाद मजबूत होने थे जो कि इस फ़िल्म में नहीं हैं. फ़िल्म की कहानी में ऐसा कुछ नहीं था जिसे निर्देशक सही से पर्दे पर उतार पाता.

फ़िल्म देखते हुए महसूस होता है कि इन बातों को हम पहले देख सुन चुके हैं. काश इस फ़िल्म में कुछ नए एलिमेंट होते जो 2 घंटे तक दर्शकों को बांध के रख पाते.

एक्टिंग में भी रही कसर

फिल्म का सबसे जरूरी पहलू उसके एक्टर्स को माना जा सकता है. फ़िल्म को आप नवाजुद्दीन सिद्दीकी के अलावा इला अरूण और रघुबीर यादव की एक्टिंग के लिए देख सकते हैं. अपने रोल में अनुराग कश्यप भी बेहतरीन थे. फ़िल्म की स्क्रिप्ट और डायरेक्शन अच्छा होता तो ये फ़िल्म वाक़ई कमाल करती.

क्या बताता है तकनीकि पक्ष

फिल्म 5 साल पहले बनी थी और अब जबकि इसे ओटीटी पर रिलीज किया इसलिए ये बासीपन फ़िल्म में साफ दिखाई देता है.कलाकारों का लुक पुराना है जो इसे और बोझिल बनाता है. फिल्म में सत्यराय नागपॉल की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. बाक़ी अगर ये फ़िल्म 5 साल पहले आई होती तो इसे एक ठीक फ़िल्म कहा जाता. क्यों कि फ़िल्म आज आई है इसलिए इसे औसत से नीचे की फ़िल्म कहना गलत नहीं है.

बहरहाल अब जबकि ये फ़िल्म आ ही गयी है तो दर्शक इसे कितना पसंद करते हैं? फैसला वक़्त करेगा बाक़ी इस फ़िल्म को देखने के दो कारण हैं पहला नवाज़ की एक्टिंग और दूसरा भी नवाज़ की एक्टिंग इसके बाद जो बचा वो मलाई उतरा दूध है जो नाम का सफ़ेद है और जिसकी क्वांटिटी बढ़ाने के लिए पानी मिलाया गया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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