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Fauja Movie Review: सिनेमा का ऊंचा परचम लहराता 'फौजा'

    • तेजस पूनियां
    • Updated: 11 जून, 2023 04:41 PM
  • 11 जून, 2023 04:41 PM
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ज़रूरी नहीं कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही देशभक्ति की पर बनकर आने वाली फिल्मों को आप देखने जाएं. क्योंकि फौजियों के लिए और देश के लिए यही दो दिन नहीं है बल्कि हर दिन इनका है, आपका है, अपना है.

कोई किसी फौजी से पूछे कि दुनिया में कपड़ों का सबसे महंगा ब्रांड कौन सा है? तो वह यही कहेगा इंडियन आर्मी की वर्दी, जिसे खरीदा नहीं जा सकता. बल्कि उसके लायक बनाना पड़ता है. बस यही कह रहा है आर्मी ऑफिसर फौजियों से कि यह आपके लिए गर्व की बात है कि आप इसके लायक बने. अब आपका एक ही कर्तव्य है- देश की रक्षा.

सन्नी सिंह का दादा जिसे वो फौजा कहता है. बड़े होकर फ़ौज में ही जाना है क्योंकि उसकी दस पुश्तों ने देश की सेवा की है. लेकिन इन सबमें बस फौजा नहीं जा पाया फ़ौज में लेकिन क्यों? 

जबकि उनके परिवार वालों के लिए तो देश पहले है परिवार बाद में फिर भी! और इधर जब सन्नी के पापा का जन्म हो रहा था तो उसका दादा सबकुछ छोड़ देश का झंडा सिल रहे थे लेकिन क्यों? दूसरी ओर ठेकेदार शमशेर सिंह का फौजा से 72 का आंकड़ा है बचपन से लेकिन क्यों?

 

अब इतने सारे क्यों का सवाल तो आप लोग 1 जून को कुछ चुनिंदा शहरों और वहां के सिनेमाघरों में आई इस "फौजा" फिल्म को देखकर ही जानेगें. प्रमोद कुमार की कमान से पहली बार निकला यह 'फौजा' रूपी तरकश देखते हुए यकीन मानों मैं भी कई बार फूट-फूट कर रोया.

प्रवेश राजपूत और आकाश की लिखी कहानी उन्हीं के लिखे संवाद और पटकथा आपके भीतर देशभक्ति का जज़्बा जगाए रखते हैं. फ़ौजा बने 'पवन राज मल्होत्रा', के अलावा 'कार्तिक धामू', ऐश्वर्या सिंह, ठेकेदार जोगी मल्लंग, बबली बने नवीन, हरपाल के रुप में संदीप शर्मा, महिपाल बने हरिओम कौशिक और ट्रेनिंग ऑफिसर बने निर्देशक खुद तथा हनुमान के रूप में विक्रम मलिक इस फ़िल्म को अभिनय की नजर से मजबूत ऊंचाई तो देते हैं.

लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं 'पवन राज मल्होत्रा' जोगी मलंग की कास्टिंग, शशांक विराग का डी ओ पी, सलमान अली, सोमवीर कथूरवाल, प्रतीक्षा श्रीवास्तव की आवाज में गाने लुभाते...

कोई किसी फौजी से पूछे कि दुनिया में कपड़ों का सबसे महंगा ब्रांड कौन सा है? तो वह यही कहेगा इंडियन आर्मी की वर्दी, जिसे खरीदा नहीं जा सकता. बल्कि उसके लायक बनाना पड़ता है. बस यही कह रहा है आर्मी ऑफिसर फौजियों से कि यह आपके लिए गर्व की बात है कि आप इसके लायक बने. अब आपका एक ही कर्तव्य है- देश की रक्षा.

सन्नी सिंह का दादा जिसे वो फौजा कहता है. बड़े होकर फ़ौज में ही जाना है क्योंकि उसकी दस पुश्तों ने देश की सेवा की है. लेकिन इन सबमें बस फौजा नहीं जा पाया फ़ौज में लेकिन क्यों? 

जबकि उनके परिवार वालों के लिए तो देश पहले है परिवार बाद में फिर भी! और इधर जब सन्नी के पापा का जन्म हो रहा था तो उसका दादा सबकुछ छोड़ देश का झंडा सिल रहे थे लेकिन क्यों? दूसरी ओर ठेकेदार शमशेर सिंह का फौजा से 72 का आंकड़ा है बचपन से लेकिन क्यों?

 

अब इतने सारे क्यों का सवाल तो आप लोग 1 जून को कुछ चुनिंदा शहरों और वहां के सिनेमाघरों में आई इस "फौजा" फिल्म को देखकर ही जानेगें. प्रमोद कुमार की कमान से पहली बार निकला यह 'फौजा' रूपी तरकश देखते हुए यकीन मानों मैं भी कई बार फूट-फूट कर रोया.

प्रवेश राजपूत और आकाश की लिखी कहानी उन्हीं के लिखे संवाद और पटकथा आपके भीतर देशभक्ति का जज़्बा जगाए रखते हैं. फ़ौजा बने 'पवन राज मल्होत्रा', के अलावा 'कार्तिक धामू', ऐश्वर्या सिंह, ठेकेदार जोगी मल्लंग, बबली बने नवीन, हरपाल के रुप में संदीप शर्मा, महिपाल बने हरिओम कौशिक और ट्रेनिंग ऑफिसर बने निर्देशक खुद तथा हनुमान के रूप में विक्रम मलिक इस फ़िल्म को अभिनय की नजर से मजबूत ऊंचाई तो देते हैं.

लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं 'पवन राज मल्होत्रा' जोगी मलंग की कास्टिंग, शशांक विराग का डी ओ पी, सलमान अली, सोमवीर कथूरवाल, प्रतीक्षा श्रीवास्तव की आवाज में गाने लुभाते हैं. वी एफ एक्स, सहित असिस्टेंट डायरेक्टर साहिल साहार्य, विपिन मालवत और कला निर्देशन टीम विशाल मान, मनदीप दहिया और आर जे भारद्वाज का काम सुंदर दिखता है.

नौशाद सदर खान के लिखे गीत इस फ़िल्म में फ़ौजा को वह ऊंचाई प्रदान करते हैं जिसके चलते भी यह काबिल बनती है. गाना अंगारे, तेरी गैल, सलामी तो आप साथ-साथ गुनगुनाने भी लगें हो सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं.

लेकिन इतना सब अच्छा होकर भी फिल्म में कहीं-कहीं की गई छोटी-छोटी गलतियां भी आपको अखर जाती हैं. मसलन उड़ान को उडान, कम्पोजिटर को  कम्पोझिटर पुनिया को पुनिआ (हिन्दी अंग्रेजी दोनों में गलत), क्षितिज को शितिज, म्यूजिक को मुसिक्स, एंड को अंड आदि लेकिन चलो इन्हें भी आप नज़र अंदाज कर दें इतना कौन दर्शक देखने बैठा है. फिर हर दर्शक समीक्षक भी हो यह ज़रूरी तो नहीं? 

फिर कहीं-कहीं हिन्दी भाषा में बनी इस फिल्म में हरियाणवी, पंजाबी क्यों आ जाती है भला? और तो और चलो ये भी मान लिया लेकिन जहां हरियाणवी बोलना चाहिए था वहां भी हिंदी पुट नज़र आ रहा है ऐसा क्यों? 

इतना ही नहीं एक गाने को सुनते हुए आपको विश्व सुंदरी 'ऐश्वर्या राय' की फिल्म ' ताल' के गाने ' कहीं आग लगे लग जावे' की याद आ जाए तो मेरी बला से. फिर 21 वें मिनट पर बैकग्राउंड स्कोर का एकदम से अटपटा लगना महसूस हो तो मेरी बला से. या आपको ये लगे कि हरियाणा का आदमी जो जब मर्जी हिन्दी बोल रहा है जब मर्जी हरियाणवी और तो और जब मर्जी सचिव के ऑफिस में पंजाबी बोली बोलने लगे तो मेरी बला से.

अब आप कहने लगें कि भाई जब फौजियों की इतनी प्यारी कहानी दिखाई जा रही है तो उसमें नुक्स क्यों निकालने तो यह भी सही है. ऐसा नहीं है यह फ़िल्म आपको छूती नहीं.छूती है बराबर, आपको अपनी आंखें नम करने के भरपूर मौके भी देती है. कहीं-कहीं आप दिल भी थामने को मजबूर होते हैं और ऐसा जब किसी कहानी में, फिल्म में नज़र आए तो ऐसी ऊपर बताई छोटी-मोटी कमियों को भूल जाइए.

जाते-जाते यह कहना है कि ज़रूरी नहीं कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही देशभक्ति की पर बनकर आने वाली फिल्मों को आप देखने जाएं. क्योंकि फौजियों के लिए और देश के लिए यही दो दिन नहीं है बल्कि हर दिन इनका है, आपका है, अपना है. तो जाइए देख डालिए. क्योंकि यह फौजा ही है जो देश के साथ-साथ सिनेमा का भी ऊंचा परचम लहरा रहा है.

अपनी रेटिंग- 4 स्टार

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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