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बॉलीवुड की चकाचौंध में कम दिखे लेकिन खूब बिके KK

    • नाज़िश अंसारी
    • Updated: 01 जून, 2022 07:20 PM
  • 01 जून, 2022 07:20 PM
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हमारे टीनेज के दोस्त. हमारे इश्क़ को अल्फ़ाज़ देकर परवान चढ़ाने वाले. हमारे प्रेमियों को प्रेम अभिव्यक्त करने में सहायता देने वाले. दुख को बगैर आंसुओं के गाकर रोने वाले. हमारे भीगे तकियों के गवाह. हमारी खलिश, बेचैनी, आवारापन, बन्जारा पन के साथी केके अब जबकि तुम जा चुके हो तो कैसे समझोगे, जाने यह कैसी आग लगी है, जिसमें धुंआ न चिंगारी... हो न हो इस बार कोई खाब जला है सीने में...

21वीं सदी के spotify के दौर में जब अमूमन ज्यादतर लोगों के लिए म्यूजिक का अर्थ नेहा कक्कर हैं तब केके टीनएजर के लिए 'नाम सुना सा लगता है" ही रह जाते हैं. हां  जी, सिर्फ नाम. अरिजीत सिंह, अरमान कोहली के दौर में शान, उदित नारायण, कुमार शानू यहां तक कि अभिजीत को पहचानना एक बार आसान है लेकिन कृष्ण कुमार कुन्नुथ को पहचानना जिग सॉ पज़ल को सॉल्व करने जैसा है. बॉलीवुड की आंखें चौंधिया देने वाली चकाचौंध में वे कम दिखे. मगर खूब बिके. 53 की उम्र में गाते गाते अचानक उनकी मौत हो जाना जितना परेशां करता है उतना ही यह हैरां भी करता है कि घोर अशुद्धता के दौर में वे शुद्ध सात्विक जिये. शराब, सिगरेट से दूर. रोज़ की एक्सरसाइज. नियमित, संतुलित रूटीन. फिर कैसे अचानक हृदयाघात सा कुछ हो जाता है. पुलिस को मर्डर का शक है. तफ्तीश जारी है.

केके की आवाज ऐसी है जो सीधे दिल में उतरती है और आदमी मंत्रमुग्ध हो जाता है

खैर दिल की भी मर्ज़ी होती है. पंप भी आखिर मशीन ही है!

हमारी किशोर होती उम्रों मे जब एफएम रेनबो के ढेर चैनल बारिश के बाद उभरी घमोरी की तरह कचकचा के छा रहे थे, तब केके गाने आइस क्यूब बनकर हमारी रूहों को ठंडक पहुंचा रहे थे. कौन सा आशिक था उस वक़्त जिसने अपनी महबूबा को किसी रेडियो स्टेशन के किसी प्रोग्राम के जरिये 'तू ही मेरी शब है' डेडिकेट नहीं किया था. उसका दिल टूटा हुआ माना ही नहीं गया जो 'तड़प तड़प के इस दिल से' सुनते हुए रोया न था.

रो रो के जब आंसू सुख जाए तब व्यक्ति किसी फिलॉस्फर की कहता, 'बेचारा कहां जानता है, खलिश है या खला है, शहर भर की खुशी से यह दर्द मेरा भला है, जश्न ये रास न आए, मज़ा तो बस गम में आया है. मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी, नासमझ लाया गम तो यह गम ही सही.'

ईगो हर्ट लिए या...

21वीं सदी के spotify के दौर में जब अमूमन ज्यादतर लोगों के लिए म्यूजिक का अर्थ नेहा कक्कर हैं तब केके टीनएजर के लिए 'नाम सुना सा लगता है" ही रह जाते हैं. हां  जी, सिर्फ नाम. अरिजीत सिंह, अरमान कोहली के दौर में शान, उदित नारायण, कुमार शानू यहां तक कि अभिजीत को पहचानना एक बार आसान है लेकिन कृष्ण कुमार कुन्नुथ को पहचानना जिग सॉ पज़ल को सॉल्व करने जैसा है. बॉलीवुड की आंखें चौंधिया देने वाली चकाचौंध में वे कम दिखे. मगर खूब बिके. 53 की उम्र में गाते गाते अचानक उनकी मौत हो जाना जितना परेशां करता है उतना ही यह हैरां भी करता है कि घोर अशुद्धता के दौर में वे शुद्ध सात्विक जिये. शराब, सिगरेट से दूर. रोज़ की एक्सरसाइज. नियमित, संतुलित रूटीन. फिर कैसे अचानक हृदयाघात सा कुछ हो जाता है. पुलिस को मर्डर का शक है. तफ्तीश जारी है.

केके की आवाज ऐसी है जो सीधे दिल में उतरती है और आदमी मंत्रमुग्ध हो जाता है

खैर दिल की भी मर्ज़ी होती है. पंप भी आखिर मशीन ही है!

हमारी किशोर होती उम्रों मे जब एफएम रेनबो के ढेर चैनल बारिश के बाद उभरी घमोरी की तरह कचकचा के छा रहे थे, तब केके गाने आइस क्यूब बनकर हमारी रूहों को ठंडक पहुंचा रहे थे. कौन सा आशिक था उस वक़्त जिसने अपनी महबूबा को किसी रेडियो स्टेशन के किसी प्रोग्राम के जरिये 'तू ही मेरी शब है' डेडिकेट नहीं किया था. उसका दिल टूटा हुआ माना ही नहीं गया जो 'तड़प तड़प के इस दिल से' सुनते हुए रोया न था.

रो रो के जब आंसू सुख जाए तब व्यक्ति किसी फिलॉस्फर की कहता, 'बेचारा कहां जानता है, खलिश है या खला है, शहर भर की खुशी से यह दर्द मेरा भला है, जश्न ये रास न आए, मज़ा तो बस गम में आया है. मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी, नासमझ लाया गम तो यह गम ही सही.'

ईगो हर्ट लिए या दिये हुए. तुनके. खफा हुए. हाथ छुड़ाया तो हमारे हिस्से की उदासी, बेचारगी और सबसे ज्यादा गुस्से को दर्द में पिन्हा कर केके ने किस बेचैनी से कहा था अब कहना और क्या, जब तूने कह दिया, अलविदा...

दीपिका 'दीपू' कहां थीं उस वक़्त. जब फूशिया रंग की ड्रेस में दुमदार काजल लगाए हाथ हिलाती हुई पलट कर अपने जबरा फ़ैन को देखती हैं. मुस्कुराती हैं. उनके गालों के गड्ढे में ढह पड़ते हैं शाहरुख खां और गाना बजता है, तेरी नज़रों ने दिल का किया जो हशर, असर यह हुआ, अब इनमें ही डूब के हो जाऊं  पार यही है दुआ. आंखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएं हैं.

इसे लिखते हुए कानों में इस गाने की सिग्नेचर ट्यून बज रही है. यही केके हैं. हमारे टीनेज के दोस्त. हमारे इश्क़ को अल्फ़ाज़ देकर परवान चढ़ाने वाले. हमारे प्रेमियों को प्रेम अभिव्यक्त करने में सहायता देने वाले. दुख को बगैर आंसुओं के गाकर रोने वाले. हमारे भीगे तकियों के गवाह. हमारी खलिश, बेचैनी, आवारापन, बन्जारा पन के साथी केके अब जबकि तुम जा चुके हो तो कैसे समझोगे, जाने यह कैसी आग लगी है, जिसमें धुंआ न चिंगारी... हो न हो इस बार कोई खाब जला है सीने में...

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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