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ये टीचर्स सिर्फ फिल्मों में नहीं, असल में भी होते हैं

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 10 सितम्बर, 2018 02:56 PM
  • 05 सितम्बर, 2018 05:06 PM
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वो टीचर्स जिन्हें पर्दे पर देखकर आपको अपना बचपन याद आया, आप भवुक भी हुए और उनके लिए आंसू भी बहाए. जिन्हें देखकर कुछ को लगा कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है. लेकिन आज बात उन फिल्मों की जो बनीं ही इसलिए क्योंकि असल जीवन में ऐसे टीचर्स होते हैं.

हमें लोग भले ही याद न रह पाएं, लेकिन फिल्में हमेशा याद रहती हैं. कभी न भुलाए जाने वाले उन बेहद खास लोगों के जीवन पर अगर फिल्म बन जाती है तो वो उन्हें अमर कर देती है. बायोपिक फिल्मों का मकसद सिर्फ यही है कि लोग उन खास लोगों को करीब से जानें और उन्हें कभी भूल न पाएं. आज किसी खिलाड़ी की बात नहीं करेंगे, आज बात होगी जीवन को दिशा देने वाले शिक्षकों यानी टीचर्स की.

वो टीचर्स जिन्हें पर्दे पर देखकर आपको अपना बचपन याद आया, आप भवुक भी हुए और उनके लिए आंसू भी बहाए. जिन्हें देखकर आपको कभी लगा कि काश आपको भी उन जैसे टीचर्स मिले होते. और कुछ को लगा कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है. लेकिन आज बात उन फिल्मों की जो बनीं ही इसलिए क्योंकि असल जीवन में ऐसे टीचर्स होते हैं.

सुपर 30-

एक शिक्षक को सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस से ज्यादा महत्वपूर्ण दिन और कौन सा हो सकता है. आज ही के दिन ऋतिक रौशन ने अपनी आने वाली फिल्म सुपर 30 का पोस्टर रिलीज़ किया. और बताया कि 'अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा... अब राजा वही बनेगा जो हकदार होगा!'

शिक्षक दिवस पर जारी किए गए सुपर 30 के पोस्टर

इस बात को बेहद बेबाकी और आत्मविश्वास से कहने वाले हैं बिहार के आनंद कुमार. आनंद वो शिक्षक हैं जिन्होंने अपने जीवन में अपार सम्मान तो पाया ही साथ ही वो मुकाम भी हासिल किया कि उनके जीवन पर फिल्म बनाई जा सके. आनंद पटना में कमजोर तबके के स्टूडेंट्स को 'सुपर 30' नाम से JEE की कोचिंग देते हैं. यहां पर स्टूडेंट्स को खाने और रहने की सुविधा भी दी जाती है. इनके कोचिंग की खास बात ये है कि हर साल इसमें पढ़ने वाले 30 बच्चों में से सभी परीक्षा में सफल होते हैं.

हमें लोग भले ही याद न रह पाएं, लेकिन फिल्में हमेशा याद रहती हैं. कभी न भुलाए जाने वाले उन बेहद खास लोगों के जीवन पर अगर फिल्म बन जाती है तो वो उन्हें अमर कर देती है. बायोपिक फिल्मों का मकसद सिर्फ यही है कि लोग उन खास लोगों को करीब से जानें और उन्हें कभी भूल न पाएं. आज किसी खिलाड़ी की बात नहीं करेंगे, आज बात होगी जीवन को दिशा देने वाले शिक्षकों यानी टीचर्स की.

वो टीचर्स जिन्हें पर्दे पर देखकर आपको अपना बचपन याद आया, आप भवुक भी हुए और उनके लिए आंसू भी बहाए. जिन्हें देखकर आपको कभी लगा कि काश आपको भी उन जैसे टीचर्स मिले होते. और कुछ को लगा कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है. लेकिन आज बात उन फिल्मों की जो बनीं ही इसलिए क्योंकि असल जीवन में ऐसे टीचर्स होते हैं.

सुपर 30-

एक शिक्षक को सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस से ज्यादा महत्वपूर्ण दिन और कौन सा हो सकता है. आज ही के दिन ऋतिक रौशन ने अपनी आने वाली फिल्म सुपर 30 का पोस्टर रिलीज़ किया. और बताया कि 'अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा... अब राजा वही बनेगा जो हकदार होगा!'

शिक्षक दिवस पर जारी किए गए सुपर 30 के पोस्टर

इस बात को बेहद बेबाकी और आत्मविश्वास से कहने वाले हैं बिहार के आनंद कुमार. आनंद वो शिक्षक हैं जिन्होंने अपने जीवन में अपार सम्मान तो पाया ही साथ ही वो मुकाम भी हासिल किया कि उनके जीवन पर फिल्म बनाई जा सके. आनंद पटना में कमजोर तबके के स्टूडेंट्स को 'सुपर 30' नाम से JEE की कोचिंग देते हैं. यहां पर स्टूडेंट्स को खाने और रहने की सुविधा भी दी जाती है. इनके कोचिंग की खास बात ये है कि हर साल इसमें पढ़ने वाले 30 बच्चों में से सभी परीक्षा में सफल होते हैं.

आनंद कुमार का किरदार निभा रहे हैं ऋतिक रौशन

अपने दिल की बात उन्होंने फेसबुक पर कुछ इस तरह साझा की-

आनंद कुमार ने फेसबुक पर शेयर की ये पोस्ट

ब्लैक-

2005 में संजय लीला भंसाली ने एक फिल्म बनाई थी 'ब्लैक' जिसमें रानी मुखर्जी और अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं. रानी ने एक अंधी और बहरी लड़की का किरदार निभाया था. और उनके संघर्षों के साथी थे उनके शिक्षक अमिताभ बच्चन.

फिल्म 'ब्लैक' हेलेन केलर के जीवन संघर्षों को दिखाती है

फिल्म में रानी का किरदार हेलेन केलर के संघर्षमय जीवन से प्रेरित था. हेलन एक अमेरिकी लेखक, पॉलिटिकल एक्टिविस्ट और लेक्चरर थीं. फिल्म की कहानी जो भी हो, लेकिन मिशेल यानी रानी की सफलता की कहानी उनके शिक्षक के बिना नहीं लिखी जा सकती थी.

इकबाल-

2005 में एक फिल्म आई थी 'इकबाल', नागेश कुकनूर की ये छोटी सी फिल्म बहुत बड़ी फिल्म साबित हुई. इकबाल श्रेयस तलपड़े की ये पहली फिल्म थी जिसमें वो बोल और सुन नहीं पाते थे, लेकिन इकबाल का क्रिकेटर बनने का ख्वाब पूरा न हुआ होता अगर उन्हें मोहित यानी नसीरुद्दीन शाह शिक्षक के रूप में न मिले होते. इसमें एक सुन बोल न सकने वाले बच्चे को क्रिकेट के दावपेच सिखाए गए थे.

'इकबाल' की सफलता का श्रेय उसके शिक्षक को ही जाता है

फिल्म की सफलता के पीछे छिपी है उस शख्स की कहानी जिससे प्रेरित होकर 'इकबाल' बनाई गई थी. बाबा सिधाए या यशवंत प्रभाकर सुन-बोल नहीं सकने वाले पहले क्रिकेटर थे. उन्हें फील्ड का 'पेंथर' भी कहा जाता था. उन्होंने अपने हुनर के दम पर महाराष्ट्र, बॉम्बे और रेलवे की ओर से फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट टीम में उन्हें इसी वजह से जगह नहीं मिल सकी थी. लेकिन कहना गलत नहीं होगा कि बाबा सिधाए की सफलता भी उनके गुरू के बिना पूरी नहीं हो सकती थी, जिन्होंने कमियों के बीच उनके सामर्थ्य को पहचाना.

हिचकी-

हाल ही में रानी मुखर्जी ने फिल्म 'हिचकी' से अपने करियर की दूसरी पारी खेली है. इसमें वो ऐसी शिक्षक बनी हैं जिसे टॉरेटेस सिंड्रोम है. ये फिल्म 2008 में बनी हॉलीवुड फिल्म 'फ्रंट ऑफ द क्लास' पर आधारित है. और ये दोनों ही फिल्में अमेरिकी मोटिवेशनल स्पीकर और शिक्षक ब्रैड कोचेन की किताब 'फ्रंट ऑफ द क्लास' बनी हैं, जिसमें ब्रैड ने अपने जीवन के संघर्षों को लिखा था.

ब्रैड कोचेन के जीवन पर आधारित है 'हिचकी'

वो कहते हैं कि वो बेहद खुशनसीब हैं कि दो-दो फिल्में उनके जीवन पर आधारित हैं. ये जानकर बहुत अच्छा महसूस होता है कि मेरी कहानी से इतने सारे लोग प्रेरित हो रहे हैं.

तारे जमीन पर-

बात जब शिक्षकों की हो तो इस फिल्म का जिक्र किया जाना बेहद जरूरी हो जाता है. 2007 में आमिर खान फिल्म निर्देशन में उतरे और उन्होंने इतिहास रच डाला. फिल्म 'तारे जमीन पर' मील का पत्थर साबित हुई. क्योंकि फिल्म में ईशान के माध्यम से समाज के सामने एक लर्निंग डिसेबिलिटी 'डिस्लेक्सिया' को सामने लाया गया, जिसे लोग अब तक सिर्फ बच्चे की कामचोरी और लापरवाही समझा करते थे.

'तारे जमीन पर' किसी एक शिक्षक के जीवन पर आधारित फिल्म नहीं

बेहद इमोशनल कर देने वाली ये फिल्म शायद कोई नहीं भूल सकता. इस फिल्म ने पेरेंट्स के सोचने ओर समझने की दिशा को बदल डाला था. आज अगर बच्चे को पढ़ाई से डर लगता है तो हर शिक्षक खुद को आमिर खान समझकर उसपर काम करता है. ये फिल्म किसी एक शिक्षक के जीवन पर आधारित नहीं थी, बल्कि विशिष्ट शिक्षा से जुड़े सभी शिक्षकों के जीवन पर आधारित थी, जो बच्चों की इन्हीं कमियों को सहर्ष स्वीकारते हुए उन्हें आगे बढ़ने में हमेशा मदद करते रहे हैं.

जीवन में शिक्षा का क्या महत्व है उसे आप अपने जीवन को देखकर खुद ही समझ सकते हैं, और अगर आप वाकई किसी शिक्षक को आज भी याद करते हैं तो ये भी तय है कि उनकी शिक्षा आपके साथ आज चल रही है. भले ही वो कुछ हैं जिनके जीवन पर फिल्में बनती हैं, लेकिन हर बच्चे के जीवन का हीरो उनका शिक्षक होता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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