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सिनेमा

Bell Bottom और Thalaivi के सबक, दर्शकों तक पहुंचने के 4 विकल्‍प और चुनौतियां

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 14 सितम्बर, 2021 05:34 PM
  • 13 सितम्बर, 2021 10:40 PM
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Bell Bottom और उसके बाद Thalaivi के कमजोर बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन को देखते हुए फिल्‍म मेकर्स की चिंताएं अपने मुनाफे को लेकर हैं. अब सिर्फ सिनेमा हॉल में फिल्‍म रिलीज करने से बात नहीं बन रही है. कोरोना काल में सिनेमा हॉल जाने को लेकर ठिठका दर्शक फिल्‍म कारोबार का कोई नया मॉडल खोजने को विवश कर रहा है.

कोरोना महामारी के दौर ने बॉलीवुड के सामने एक धर्मसंकट खड़ा कर दिया है. फिल्मों की सफलता आखिर कैसे तय की जाए, बॉक्स ऑफिस के पैमाने से? अगर बदले हालात में बॉक्स ऑफिस की कसौटी पर ही फिल्मों को सफल-असफल माना जाए तो फिर बेलबॉटम, चेहरे और थलाइवी से क्या सबक मिलते हैं. क्या ये मान लिया जाए कि तीनों फ़िल्में मनोरंजक नहीं थीं इसलिए नाकाम रहीं. क्योंकि तीनों फ़िल्में औसत और उम्मीद की अपेक्षा कारोबार करने में बेहद कमजोर दिखीं. खासकर चेहरे और थलाइवी. जबकि इसका दूसरा पक्ष यह है कि जिन्होंने भी फिल्मों को देखा, बहुतायत कंटेंट से प्रभावित रहे. जमकर तारीफ की. दर्शक और समीक्षक दोनों ने. नाकाम फिल्म भला अच्छी कैसे हो सकती है?

लेकिन हम जिस दौर में हैं उसमें हालात ही कुछ इस तरह सामने आए हैं कि नाकाम फ़िल्में भी मनोरंजक और अच्छी हैं. अच्छी फिल्म भी नाकाम साबित हो रही है. यह कोरोना के बाद का सीन है. और इसकी एकमात्र वजह कोरोना के अनुकूल फिल्मों का वितरण में कमियां हैं. सिनेमाघर खुलने के बाद बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्में जिस खस्ता हाल में दिख रही हैं उससे हर कोई डरा हुआ है और रिलीज के इंतज़ार में बैठे निर्माताओं में भगदड़ है. कई बड़ी फिल्मों की रिलीज शेड्यूल बदल दी गई. क्या फिल्मों को रोक देना और अच्छे दिनों का इंतज़ार करना सही होगा.

बॉलीवुड में वितरण की खामियों और अच्छाइयों को लेकर चार तस्वीरें बन रही हैं, जो केस स्टडी की तरह हैं.

फिल्मों का पोस्टर विकिपीडिया से साभार.

#1. केस स्टडी: ओटीटी ठीक, पर उन दर्शकों का क्या जिनके पास एक्सेस ही नहीं!

फिल्म वितरण की खामियों अच्छाइयों और कोरोना के हालात में उनकी प्रासंगिकता विचारणीय है. महामारी के हालात में वितरण के लिहाज से ओटीटी रिलीज सर्वाधिक अनुकूल स्थिति है. माध्यम में बड़ी खामी यह है कि...

कोरोना महामारी के दौर ने बॉलीवुड के सामने एक धर्मसंकट खड़ा कर दिया है. फिल्मों की सफलता आखिर कैसे तय की जाए, बॉक्स ऑफिस के पैमाने से? अगर बदले हालात में बॉक्स ऑफिस की कसौटी पर ही फिल्मों को सफल-असफल माना जाए तो फिर बेलबॉटम, चेहरे और थलाइवी से क्या सबक मिलते हैं. क्या ये मान लिया जाए कि तीनों फ़िल्में मनोरंजक नहीं थीं इसलिए नाकाम रहीं. क्योंकि तीनों फ़िल्में औसत और उम्मीद की अपेक्षा कारोबार करने में बेहद कमजोर दिखीं. खासकर चेहरे और थलाइवी. जबकि इसका दूसरा पक्ष यह है कि जिन्होंने भी फिल्मों को देखा, बहुतायत कंटेंट से प्रभावित रहे. जमकर तारीफ की. दर्शक और समीक्षक दोनों ने. नाकाम फिल्म भला अच्छी कैसे हो सकती है?

लेकिन हम जिस दौर में हैं उसमें हालात ही कुछ इस तरह सामने आए हैं कि नाकाम फ़िल्में भी मनोरंजक और अच्छी हैं. अच्छी फिल्म भी नाकाम साबित हो रही है. यह कोरोना के बाद का सीन है. और इसकी एकमात्र वजह कोरोना के अनुकूल फिल्मों का वितरण में कमियां हैं. सिनेमाघर खुलने के बाद बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्में जिस खस्ता हाल में दिख रही हैं उससे हर कोई डरा हुआ है और रिलीज के इंतज़ार में बैठे निर्माताओं में भगदड़ है. कई बड़ी फिल्मों की रिलीज शेड्यूल बदल दी गई. क्या फिल्मों को रोक देना और अच्छे दिनों का इंतज़ार करना सही होगा.

बॉलीवुड में वितरण की खामियों और अच्छाइयों को लेकर चार तस्वीरें बन रही हैं, जो केस स्टडी की तरह हैं.

फिल्मों का पोस्टर विकिपीडिया से साभार.

#1. केस स्टडी: ओटीटी ठीक, पर उन दर्शकों का क्या जिनके पास एक्सेस ही नहीं!

फिल्म वितरण की खामियों अच्छाइयों और कोरोना के हालात में उनकी प्रासंगिकता विचारणीय है. महामारी के हालात में वितरण के लिहाज से ओटीटी रिलीज सर्वाधिक अनुकूल स्थिति है. माध्यम में बड़ी खामी यह है कि इसकी एक्सेस लिमिटेड है. पहुंच ज्यादातर महानगरों में है और वो भी एक सीमित आय और आयु वर्ग के दर्शकों तक. दूसरी बड़ी खामी यह है कि करीब आधा दर्जन पेड ओटीटी प्लेटफॉर्म में औसतन यूजर्स के पास सिर्फ एक या दो प्लेटफॉर्म का ही सब्सक्रिप्शन है. यानी अगर कोई फिल्म अमेजन जी 5 पर रिलीज हो रही है तो इस बात की आशंका बनी रहेगी कि उसे नेटफ्लिक्स या दूसरे ओटीटी सब्सक्राइबर्स ना देख पाए. इसी साल ईद के मौके पर सलमान खान ने राधे: योर मोस्ट वांटेड के लिए ओटीटी रिलीज को वरीयता दी. उन्होंने एक प्लान भी पेश किया- 'पे पर व्यू ऑप्शन.' इसी योजना में डीटीएच के जरिए भी फिल्म को खरीदकर देखने का ऑप्शन था. राधे का कंटेंट भले ही खराब रहा, पर काफी हद तक जी5 और डीटीएच पर सलमान दर्शकों को आकर्षित करने में कामयाब रहें. बावजूद यह माना जा सकता है कि फिल्म व्यापक दर्शक वर्ग तक नहीं पहुंच पाई होगी जितना सिनेमाघरों के जरिए पहुंचने की संभावना रहती है. भुज और मिमी के निर्माताओं ने तो सिर्फ ओटीटी रिलीज को ही वरीयता दी.

रिलीज प्लान की खामी यह है कि सलमान जैसे सितारे और बड़े बैनर फिल्मों के बदले तो मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन छोटे मध्यम निर्माताओं की फिल्म का है. क्या उन्हें भी ओटीटी प्लेटफॉर्म उसी तरह एंटरटेन कर रहे हैं या करेंगे जैसे कि बड़े बैनर को करते हैं?

#2. केस स्टडी: सिनेमाघर ही ठीक, पर इस नुकसान का क्या

दर्शकों के बीच राधे की एक सीमित पहुंच को देखते हुए सिनेमाघरों में पारंपरिक रिलीज के लिए बेलबॉटम के निर्माताओं ने पहल की. पारंपरिक मॉडल में सबसे बड़ी चुनौती कोरोना की ही है. प्रोटोकॉल की वजह से सिनेमाघरों की क्षमता 50 प्रतिशत कम हो गई. ऊपर से मुंबई जैसे सर्किट बंद पड़े हैं जहां से बॉलीवुड कलेक्शन का सबसे बड़ा हिस्सा आता है. कोढ़ में खाज यह भी कि महामारी के नंगे नाच को देखने वाला व्यापक दर्शक समूह सिनेमाघर जाकर फिल्म देखने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. ऊपर से लिमिटेड स्क्रीन्स की वजह से फिल्मों के बीच मारामारी भी दिखी. बेल बॉटम और मार्वल की फिल्म टंगी होने के कारण चेहरे को पर्याप्त स्क्रीन्स नहीं मिले. कुल मिलाकर बॉक्स ऑफिस निर्माताओं के लिए इकलौता सहारा बनता नहीं दिखा.

#3. केस स्टडी: सिनेमाघर और ओटीटी एक अंतराल के साथ

थलाइवी के निर्माताओं ने हालात के मद्देनजर वितरण का एक मिलाजुला वितरण फ़ॉर्मूला निकालने की कोशिश की. यानी फिल्म सिनेमाघर में भी रिलीज होगी और एक छोटे अंतराल पर ओटीटी पर भी आएगी. महामारी के हालात में यह माकूल वितरण की व्यवस्था नजर आती है. पर मल्टीप्लेक्स ने बीच में रोड़ा अटका दिया. पीवीआर और आईनाक्स जैसे मल्टीप्लेक्स इस बात के लिए राजी ही नहीं हुए. दरअसल, अब तक सिस्टम यह था कि मल्टीप्लेक्स में फिल्म आने के बाद कम से कम चार हफ्ते के अंतराल पर ही ओटीटी स्ट्रीम हो. मल्टीप्लेक्स का तर्क है कि ओटीटी पर फिल्म के जल्द आने की वजह से कारोबारी नुकसान होगा. हुआ ये कि थलाइवी हिंदी को मल्टीप्लेक्स में स्क्रीन ही नहीं मिले. थलाइवी हिंदी सर्किट में सिंगल स्क्रीन के भरोसे है जिसकी हालत पहले से ही खस्ता है. जाहिर सी बात है कि फिल्म का कारोबार प्रभावित हुआ. फिलहाल के कलेक्शन के आधार पर थलाइवी को बॉक्स ऑफिस पर धराशायी कह सकते हैं.

#4. केस स्टडी: सिनेमाघर-ओटीटी दोनों साथ, मगर...

मौजूदा हालात में चौथा रिलीज प्लान सिनेमाघर-ओटीटी दोनों में एक साथ फिल्म रिलीज करना है. इसमें थलाइवी के सबक तो नजर आते हैं पर पूरे नहीं. चर्चा है कि सलमान खान और आयुष शर्मा की अंतिम: द फाइनल ट्रुथ को इसी वितरण योजना के तहत लाने की तैयारियां हो रही हैं. यहां भी एक पेंच मल्टीप्लेक्स का फंसता दिख रहा है. मल्टीप्लेक्स इसके लिए कभी राजी नहीं होंगे. मल्टीप्लेक्स के राजी नहीं होने का मतलब बॉक्स ऑफिस पर थलाइवी जैसा ही हश्र है. क्योंकि शहरी दर्शक वर्ग में मल्टीप्लेक्स ही व्यापक दर्शकों को आकर्षित करता है. थलाइवी सिंगल स्क्रीन पर थी, उसका फायदा नुकसान फिल्म के कलेक्शन में दिख रहा है.

चारों केस स्टडीज का एनालिसिस इस बात को साफ़ करता है कि फिल्मों को सिनेमाघर और ओटीटी दोनों जगह वितरण की योजना पर काम करना होगा. सिर्फ एक जगह होना किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं है. निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स समूहों को बीच का रास्ता निकालना होगा. जाहिर सी बात है कि सभी की चिंताएं अपने-अपने मुनाफे को लेकर हैं. अगर मिल बैठकर सभी पक्ष प्रॉफिट शेयरिंग को मौजूदा हालात में फिर से निर्धारित करें तो बेहतर होगा. अड़े रहने में नुकसान चौतरफा है और किसी ने भी नुकसान के लिए फ़िल्में नहीं बनाई जातीं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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