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रामलीला में अटके लोग आदिपुरुष का विश्लेषण ना करें, पुराणों के युद्ध वृतांत तो और अकल्पनीय हैं!

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 04 अक्टूबर, 2022 04:42 PM
  • 04 अक्टूबर, 2022 02:41 PM
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कुछ लोग आदिपुरुष को एनिमेशन फिल्म करार दे रहे हैं. जबकि देवताओं के युद्ध विवरण कल्पना से परे हैं. यह तो अच्छी बात है कि तकनीकी ने आज की तारीख में अकल्पनीय चीजों को दिखाना भी संभव बना दिया है. फिर निंदा क्यों?

आदिपुरुष का टीजर एक दिन पहले ही रिलीज हुआ और उसे लेकर मिली जुली प्रतिक्रियाएं दिख रही हैं. लोगों की भरमार है जो प्रभास स्टारर ओम राउत की रामायण को एनिमेशन फिल्म करार दे रहे हैं और उसपर सवाल उठा रहे हैं. टीजर में लोगों को जो रामायण दिखी है, उन्हें उसे पचाने में मुश्किलें हो रही हैं.

आदिपुरुष पर मौजूदा बहस बहुत स्वाभाविक है और इसमें दोष किसी का नहीं बल्कि पीढ़ियों के बीच के अंतर का है. दो अलग दौर, उसके माध्यम और तकनीक का. बावजूद कि यह वो कहानी है कि कोई फिल्म ना भी बनाई जाए तो राम की लीला पर फर्क नहीं पड़ने वाला. रामायण की कहानी हमारे मानस में है. उनके सोर्स जरूर अलग-अलग हैं. रामायण को लिखा भी तो अलग-अलग ही गया है. वाल्मीकि से तुलसीदास तक रामायण की जमीन अलग दिखती है. बावजूद कि उसका दर्शन एक है. और जो पीढ़ी फिलहाल सवाल करते दिख रही है- रामायण को जानने का उसका सोर्स निश्चित ही रामलीला, रामानंद सागर या उनके बाद बनाए गए रामायण के दृश्य हैं.

अलग-अलग पीढ़ियों में सच्ची रामायण और उसका जादू भी अलग-अलग मिलेगा. कोई इस सर्वे करे तो रामायण को लेकर लोगों की समझ, अपेक्षाएं और उनकी व्याख्याएं शर्तिया अलग निकलेंगी. मगर जो एक चीज कॉमन होगी वह रामायण का दर्शन है. आदिपुरुष में वह दर्शन अलग नहीं होगा. और मुझे नहीं लगता कि सवाल उठा रहे लोगों ने अलग-अलग रामायणों में दर्ज युद्ध के विवरण को पढ़ा भी होगा. या फिर तमाम पुराणों में देवताओं के शौर्य को पढ़ा होगा. पढ़े होते तो शायद फंतासी को लेकर ऐसे हैरानीभरे सवाल नहीं करते.

आदिपुरुष में प्रभास.

असल में पहली बार जब रामायण की कहानी का मंचन संस्कृत या दूसरी लोकभाषाओं से अलग फारसी और उर्दू में हुआ होगा तब भी जनमानस ने कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी होगी. जब कुछ साल पहले पहली बार राधेश्याम ने...

आदिपुरुष का टीजर एक दिन पहले ही रिलीज हुआ और उसे लेकर मिली जुली प्रतिक्रियाएं दिख रही हैं. लोगों की भरमार है जो प्रभास स्टारर ओम राउत की रामायण को एनिमेशन फिल्म करार दे रहे हैं और उसपर सवाल उठा रहे हैं. टीजर में लोगों को जो रामायण दिखी है, उन्हें उसे पचाने में मुश्किलें हो रही हैं.

आदिपुरुष पर मौजूदा बहस बहुत स्वाभाविक है और इसमें दोष किसी का नहीं बल्कि पीढ़ियों के बीच के अंतर का है. दो अलग दौर, उसके माध्यम और तकनीक का. बावजूद कि यह वो कहानी है कि कोई फिल्म ना भी बनाई जाए तो राम की लीला पर फर्क नहीं पड़ने वाला. रामायण की कहानी हमारे मानस में है. उनके सोर्स जरूर अलग-अलग हैं. रामायण को लिखा भी तो अलग-अलग ही गया है. वाल्मीकि से तुलसीदास तक रामायण की जमीन अलग दिखती है. बावजूद कि उसका दर्शन एक है. और जो पीढ़ी फिलहाल सवाल करते दिख रही है- रामायण को जानने का उसका सोर्स निश्चित ही रामलीला, रामानंद सागर या उनके बाद बनाए गए रामायण के दृश्य हैं.

अलग-अलग पीढ़ियों में सच्ची रामायण और उसका जादू भी अलग-अलग मिलेगा. कोई इस सर्वे करे तो रामायण को लेकर लोगों की समझ, अपेक्षाएं और उनकी व्याख्याएं शर्तिया अलग निकलेंगी. मगर जो एक चीज कॉमन होगी वह रामायण का दर्शन है. आदिपुरुष में वह दर्शन अलग नहीं होगा. और मुझे नहीं लगता कि सवाल उठा रहे लोगों ने अलग-अलग रामायणों में दर्ज युद्ध के विवरण को पढ़ा भी होगा. या फिर तमाम पुराणों में देवताओं के शौर्य को पढ़ा होगा. पढ़े होते तो शायद फंतासी को लेकर ऐसे हैरानीभरे सवाल नहीं करते.

आदिपुरुष में प्रभास.

असल में पहली बार जब रामायण की कहानी का मंचन संस्कृत या दूसरी लोकभाषाओं से अलग फारसी और उर्दू में हुआ होगा तब भी जनमानस ने कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी होगी. जब कुछ साल पहले पहली बार राधेश्याम ने मंचन के लिए रामायण लिखा होगा तब भी. राधेश्याम की रामायण भी अपने समय में अनूठा प्रयोग है. राधेश्याम की पटकथा पर आज भी देशभर में असंख्य रामलीलाएं खेली जाती हैं और उसे कला में क्लासिक का दर्जा प्राप्त है. राधेश्याम के जीवनकाल में उनकी रामायण की करोड़ों प्रतियां बिक गई थीं. रामायण का मूल दर्शन तो मानस के मन में बसा है. वह अपरिवर्तनीय है. भले ही समय के साथ उसके दृश्यांकन और उसकी भाषा बदलती रही हो. क्यों भूल जाते हैं कि तुलसीदास ने महाग्रंथ को जब लोकभाषा में अडाप्ट किया- शास्त्रीयता को लेकर उनके खिलाफ कम बवाल मचा था. मगर तुलसी के श्रीरामचरित मानस की खूबसूरती यही है कि इसने रामायण की लोकप्रियता में अतुलनीय विस्तार किया.

रामानंद सागर के धारावाहिक ने जो सफलता हासिल की वह भी तो इतिहास में है. और भी कई धारावाहिक आए. ऐसा तो कभी दिखा नहीं कि इसने रामलीलाओं का क्रेज ही ख़त्म कर दिया. रामचरित मानस की महिमा ख़त्म हो गई. दूसरी रामायणों का दबदबा ख़त्म हो गया. रामलीलाएं आज भी खेली जा रही हैं और साल दर साल उनकी बढ़ती संख्या लोकप्रियता का सबूत है. तो बात यह है कि आदिपुरुष भी राम की ही कहानी को एक नई तकनीकी भाषा से कहने की कोशिश है. उलटे ओम राउत की तो तारीफ़ करनी चाहिए कि उनके प्रयास से रामायण की कहानी उस जमीन पर पहुंचती दिख रही है- असल में वह जहां की है. जहां उसे होना चाहिए था. अगर रामानंद सागर के समय यह तकनीकी होती तो क्या वह इसका इस्तेमाल करने से चूकते? बिल्कुल नहीं.

आदिपुरुष वहीं है जहां उसे होना चाहिए, तकनीक असंभव को संभव कर दिखाने की कला है

राम अलौकिक नहीं थे. लेकिन रामायण के समय का देशकाल जरूर अलौकिक था. रामराज की कल्पनाओं में टहलिए कभी. यह लगभग सात हजार साल पहले का वक्त है. राम की लीलाएं, उनका पुरुषार्थ अलौकिक था. अलौकिक उनका शौर्य था. उन्होंने साधारण मनुष्य की तरह जन्म लिया था. विष्णु का अवतार कहा गया. आदिपुरुष का टीजर जब शुरू होता है राम के देशकाल को लेकर ख़ूबसूरत कल्पना नजर आती है. यह तकनीक के जरिए ही संभव हो सकता है. शांत स्वच्छ और सुंदर प्राकृतिक दृश्य . अब यह दिक्कत हमारी है कि हम आज के भूगोल में राम की कहानी को सेट करना चाहते हैं. बताइए भला, स्वर्ग की कल्पना को हमने दृष्यों में कैसे समेटा है? धुओं के जरिए ही ना. क्यों भूल जाते हैं स्वर्ग की तमाम कल्पनाओं पर अवतार का पैन्डोरा ज्यादा करीब नजर आता है. जो तकनीक की वजह से संभव हुआ. आदिपुरुष को उसकी जमीन से देखिए. वहां से नहीं जहां से देख रहे हैं.

राम एक साधारण मनुष्य थे. राघव यानी राम के किरदार में प्रभास एक मनुष्य ही नजर आते हैं. प्रभास के लुक और उनके परिधानों में कोई नाटकीयता नहीं है.ओम राउत ने राम को उनकी जमी जमाई छवि से बाहर निकालकर और ज्यादा सहज स्वीकार्य और जनप्रिय बनाने की कोशिश में दिख रहे हैं. टीजर में वह एक महान और मानवीय प्रेम का ही ख़ूबसूरत दृश्य है जिसमें राघव हाथों का सहारा देकर जानकी को झूले से उतारते दिखते हैं. रावण भी उतना ही खल बनकर उभरा है जितना वह था. हालांकि रावण के किरदार में उसका सत्व दिखाने से ओम राउत चूकते नजर आ रहे हैं. वह कर्मकांडी था. जनेऊ पहनता था. शिव का अनन्य भक्त था. त्रिपुंडधारी. टीजर के कुछ दृश्यों में कमियां दिखती भी हैं. रावण, कहीं-कहीं रावण नजर नहीं आता. आलोचना का विषय इसे बनाया जा सकता है.

पुराणों में आदिपुरुष से भी ज्यादा अकल्पनीय विवरण मिलते हैं युद्धों के

हनुमान ने एक छलांग में समुद्र लांघा था. वह हवा में तैरते हुए नहीं गए थे- बावजूद तकनीकी वजहों से कुछ साल पहले तक हम उन्हें लांघकर समुद्र पार करते नहीं दिखा सकते थे. ओम राउत के दौर में यह चुनौती नहीं है. उनकी वानर सेना वैसे ही उछल कूद रही है जैसे तमाम संदर्भ में विवरण है. रामायण में राम का अलौकिक स्वरुप युद्ध के दौरान नजर आता है. असंख्य राक्षसों का एक वार में संहार करते दिखते हैं. युद्ध के दृश्य कल्पना से परे हैं. मन के वेग से भी तेज तीर तलवार चल रहे हैं, क्या उसे 20 साल पहले दिखाना संभव था. और मंचों पर तो इनके आसपास के दृश्य भी दिखाना संभव नहीं है. बावजूद रामलीलाओं का जादू या 20 साल पहले राम कहानी पर आने वाली फिल्मों और सीरियल्स का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर ही बोला है. ओम राउत की आदिपुरुष में तमाम अकल्पनीय दृश्य सजीव नजर आ रहे हैं. जिन्होंने पुराणों के मूल स्क्रिप्ट को पढ़ा है वह आदिपुरुष देखकर निश्चित ही संतुष्ट होंगे.

आप कोई भी पुराण उठाकर युद्ध के विवरणों को देखिए. एक-एक योद्धा सहस्त्रों की सेना एक-एक वार में नष्ट कर रहा है. पलक झपकते सहस्त्रों सेना पैदा हो रही है. भयानक और अकल्पनीय अस्त्र-शस्त्र और छल कपट नजर आ रहे हैं. माया ऐसी कि दुनिया में वैसी फंतासी कहीं और देखने को नहीं मिलेगी. हिंदू धर्म के पुराणों में देवताओं के संघर्ष का जितना विवरण दर्ज था कुछ साल पहले तक वह दिखाना असंभव था. अब नहीं है. आदिपुरुष में दिखेगा. यह नए दौर की रामायण है. शर्तिया नई पीढ़ी इसे देखकर मोहित हो जाएगी.

रही बात आदिपुरुष के महत्व की, यह मौजूदा दौर में उतना ही जरूरी है जितना तुलसीदास कृत रामचरित मानस अपने दौर में रहा. राधेश्याम कृत रामायण और रामानंद सागर का रामायण भी अपने दौर में रहा. रामायण की कहानियों ने युगों की सीमा ऐसे ही लांघी हैं. उनके बीच का पीढ़ीगत अंतर देख सकते हैं. टीजर पर आ रहे व्यूज भी आदिपुरुष की स्वीकार्यता का सबूत दे रहे हैं. सिर्फ हिंदी ट्रेलर पर 24 घंटे के अंदर नए दौर लगभग साढ़े छ करोड़ व्यूज आए हैं. यह क्या है? सभी भाषाओं को मिला दीजिए तो 24 घंटे के अंदर आदिपुरुष के व्यूज 10 करोड़ से पार जाते दिख रहे हैं. नए जमाने की रामायण पर आए व्यूज असल में लोगों की सहमति को ही दिखाते हैं.

एक चीज और. फिल्म आने दीजिए यह सभी वर्ग के दर्शकों को बेहतरीन लगेगी. तकनीक के जरिए ओम राउत ने रामायण को जीवंत कर दिया है. उसे ग्लोबल भी बनाया है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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