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इन सितारों के लिए तो खलनायक ही नायक है

    • सिद्धार्थ हुसैन
    • Updated: 02 अगस्त, 2016 09:27 PM
  • 02 अगस्त, 2016 09:27 PM
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चाहे महाभारत हो या रामायण, हम दुर्योधन और रावण के किरदारों को कभी नहीं भूल सकते. हीरो बलवान तभी लग सकता है, अगर वो ज़ालिम और खतरनाक खलनायक को हरा सके.

किसी भी फिल्म पर अगर नजर डालें तो हीरो हीरोइन के किरदार के अलावा सबसे सशक्त किरदार खलनायक का होता है. विलेन के पास बुरा होने के बावजूद डाइमेंशन ज़्यादा होते हैं, हीरो से उसकी हार आखिर में ही होती है तब तक वो हीरो को परेशान ही करता रहता है. चाहे महाभारत हो या रामायण, हम दुर्योधन और रावण के किरदारों को कभी नहीं भूल सकते. हीरो बलवान तभी लग सकता है अगर वो ज़ालिम और खतरनाक खलनायक को हरा सके.

इस दौड़ में अब अक्षय खन्ना भी शामिल हो गए हैं, अक्षय अपनी दूसरी फिल्मी इनिंग्स खेल रहे हैं, वो भी नायक नहीं बल्कि खलनायक बन कर. हाल ही में वो 'ढिशुम' में वरुन धवन और जॉन अब्राहम को चुनौती देते नजर आए थे और अब 1969 की हिट फिल्म इत्तिफ़ाक़ के रीमेक में भी खलनायक की भूमिका में दिखाई देंगे.

अक्षय अब खलनायक के रूप में शुरू कर रहे हैं दूसरी पारी

इस फिल्म के हीरो होंगे सिद्धार्थ मल्होत्रा और हीरोइन होंगी सोनाक्षी सिन्हा. हीरो का विलेन बनना नई बात तो नहीं, लेकिन दिलचस्प ज़रूर है. जिस हीरो को आप खलनायक को मारते-पीटते देखते हैं जब खलनायक भी वही काम करता दिखे, तो दर्शकों को बहुत मज़ा आता है. आज विलेन का मतलब सिर्फ बुरा दिखना ही नहीं है. एक हैंडसम युवक भी बुरा काम करते दिख सकता है और एक साधारण शक्स हीरो बन सकता है. शायद यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री के कई हीरो विलेन के किरदार निभा चुके हैं.

ये भी पढ़ें- परफेक्शन की जिद में क्या नहीं...

किसी भी फिल्म पर अगर नजर डालें तो हीरो हीरोइन के किरदार के अलावा सबसे सशक्त किरदार खलनायक का होता है. विलेन के पास बुरा होने के बावजूद डाइमेंशन ज़्यादा होते हैं, हीरो से उसकी हार आखिर में ही होती है तब तक वो हीरो को परेशान ही करता रहता है. चाहे महाभारत हो या रामायण, हम दुर्योधन और रावण के किरदारों को कभी नहीं भूल सकते. हीरो बलवान तभी लग सकता है अगर वो ज़ालिम और खतरनाक खलनायक को हरा सके.

इस दौड़ में अब अक्षय खन्ना भी शामिल हो गए हैं, अक्षय अपनी दूसरी फिल्मी इनिंग्स खेल रहे हैं, वो भी नायक नहीं बल्कि खलनायक बन कर. हाल ही में वो 'ढिशुम' में वरुन धवन और जॉन अब्राहम को चुनौती देते नजर आए थे और अब 1969 की हिट फिल्म इत्तिफ़ाक़ के रीमेक में भी खलनायक की भूमिका में दिखाई देंगे.

अक्षय अब खलनायक के रूप में शुरू कर रहे हैं दूसरी पारी

इस फिल्म के हीरो होंगे सिद्धार्थ मल्होत्रा और हीरोइन होंगी सोनाक्षी सिन्हा. हीरो का विलेन बनना नई बात तो नहीं, लेकिन दिलचस्प ज़रूर है. जिस हीरो को आप खलनायक को मारते-पीटते देखते हैं जब खलनायक भी वही काम करता दिखे, तो दर्शकों को बहुत मज़ा आता है. आज विलेन का मतलब सिर्फ बुरा दिखना ही नहीं है. एक हैंडसम युवक भी बुरा काम करते दिख सकता है और एक साधारण शक्स हीरो बन सकता है. शायद यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री के कई हीरो विलेन के किरदार निभा चुके हैं.

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आमिर खान- 'धूम 3' में आमिर ने डबल रोल निभाया था और दोनों ही किरदार चोर के थे. लेकिन फिल्म के हीरो अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा से ज़्यादा तारीफ़ बटोरी थी.

 'धूम 3'

बल्कि अगर धूम सीरीज़ पर ही नज़र डालें तो हीरो से ज़्यादा उत्सुकता ये जानने में रही है कि फिल्म का विलेन कौन होगा. हॉलीवुड में ये उत्सुकता जेम्स बॉन्ड सीरीज़ में रहती है कि बॉन्ड के सामने विलेन कौन होगा.

रितिक रोशन- 'धूम 2' के विलेन और उनके साथ वैम्प के तौर पर थीं ऐश्वर्या राय बच्चन. जब विलेन इतने खूबसूरत और डैशिंग हों तो मन करता है हीरो हार जाए और विलेन जीत जाए.

 'धूम 2' 

विलेन की हार पर अगर दुख हो, तो समझ जाइए कि फिल्म में सबसे ज़्यादा तारीफ किसे मिलेगी. कुछ ऐसा ही हुआ था रितिक और ऐश्वर्या के साथ.

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जॉन अब्राहम- जॉन अब्राहम के हीरो बनने का कारण ही धूम बनी. अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा के अपोजिट जॉन थे, उस वक्त का सबसे हैंडसम विलेन, जो स्टाइलिश बाइक पर चोरियां प्लान करता था.

'धूम'

चोरों के अंदाज को बदल दिया था, लड़कियां हीरो से ज्यादा जॉन अब्राहम जैसे चोर की एन्ट्री पर तालियां बजाती थीं और वो स्क्रीन पर बोलता था "मैं चोर हूँ ". जॉन आज नायक हैं तो उसका श्रेय जाता है "धूम" के उस खलनायक वाले किरदार को.

शाहरुख़ खान- शाहरुख़ खान के करियर ग्राफ़ को कौन भूल सकता है जिसने बतौर हीरो "दिल आशना है" से शुरूआत की लेकिन दर्शकों के दिल में जगह बनाई अब्बास मस्तान की "बाज़ीगर" और यश चोपड़ा की "डर" से. दोनों ही फिल्मों में वो खलनायक थे, लेकिन उन्होंने नायक ये ज्यादा तारीफ हासिल की.

 बाजीगर

कह सकते हैं उनके करियर से अगर इन दो फिल्मों को हटा दें तो शायद शाहरुख का स्टारडम वो न होता जो आज है. इसके लिये उन्हें शुक्रिया सलमान और आमिर का भी करना चाहिए, सलमान ने "बाज़ीगर"करने से इंकार कर दिया था और आमिर ने "डर" अगर नहीं छोड़ी होती, तो तीसरे खान का दबदबा इंडस्ट्री में न होता.

सैफ़ अली खान- सैफ़ अली खान के करियर को दूसरी ज़िंदगी भी मिली विलेन का किरदार निभाने के बाद. "ओंकारा" में निर्देशक विशाल भारद्वाज ने अगर सैफ़ को लंगड़ा त्यागी का किरदार नहीं दिया होता तो सैफ़ आज इतने सफल न होते.

 'ओंकारा'

लंगड़ा त्यागी का किरदार हिट होने के बाद सैफ़ को फिर से हीरो के रोल्स मिलने लगे थे.

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संजय दत्त- संजय दत्त ने तो "खलनायक" टाइटल से फिल्म ही कर ली थी. सुभाष घई की ये फिल्म बॉक्स ऑफ़िस पर सुपर हिट रही है और अगर संजय दत्त जेल न गये होते तो उनकी सफलता का ये आलम था कि वो नंबर 1 स्टार हो जाते.

 'खलनायक'

बाद में 2012 में भी संजय दत्त ने जब "अग्निपथ" के रीमेक में रितिक रोशन के सामने खलनायक की भूमिका निभाई थी, तब भी उनकी तारीफ रितिक से ज्यादा हुई थी.

अमिताभ बच्चन- ये बात सिर्फ 90 के दशक के हीरोज़ पर ही फिट नहीं रही, बल्कि 70 के दशक पर नजर डालें तो जब अमिताभ बच्चन का करियर कहीं भी नहीं था, चंद फ़्लॉप फिल्मों के हीरो के तौर पर उनकी पहचान थी, इसी जमाने में अमिताभ ने 1971 में एक फिल्म की "परवाना" जिसमें वो एक तरफ़ा प्रेमी के किरदार में दिखे. फिल्म के हीरो थे नवीन निश्चल और हीरोइन थीं योगिता बाली.

 'परवाना' में अमिताभ

फिल्म में हीरोइन भले ही नवीन निश्चल को मिली हो लेकिन अभिनय के डिपार्टमेंट में सबसे ज़्यादा तारीफ अमिताभ की हुई थी. कहा जाता है कि उस वक्त के कैरेक्टर एक्टर ओम प्रकाश ने अमिताभ के अभिनय की बहुत तारीफ की थी और प्रकाश मेहरा की "ज़ंजीर" मिलने में इस रोल का भी बहुत बड़ा हाथ था. बाद में यश चोपड़ा की फिल्म "दीवार" में असल में हीरो शशी कपूर थे लोकिन दर्शकों ने अमिताभ को ही हीरो मान लिया था.

शत्रुघ्न सिन्हा- 70 के दशक के एक ऐसे अभिनेता जो विलेन के रोल इतने स्टाइल से निभाते थे कि हीरो से ज़्यादा बेचैन लोग उनकी एन्ट्री के लिए होते थे. हीरो से ज़्यादा तालियां शत्रुघ्न सिन्हा को खलनायकी के लिए मिलती थीं. उनका अनोखा स्टाइल ऐसा छाया था कि जिस फिल्म में शत्रु खलनायक होते, लोग उनके डायलॉग याद रखते थे, हीरो क्या बोल रहा है किसी को याद नहीं रहता था.

'मेरे अपने' में शुत्रुघ्‍न सिन्‍हा

फिल्म "मेरे अपने" में उनकी एक लाइन आजतक लोग दोहराते हैं "श्याम से कहना छैनू आया था" और "ख़ामोश" शब्द लगता है उनके लिए ही बनाया गया हो. शत्रुघ्न सिन्हा एक ऐसे खलनायक थे जिन्हें लोग ऐन्टी हीरो मानने लगे थे और उनकी यही सफलता बाद में उन्हें हीरो के सफर तक ले गई.

विनोद खन्ना- सत्तर के दशक में नंबर वन की रेस में अमिताभ बच्चन को टक्कर देनेवाले विनोद खन्ना ही थे, मगर इनकी शुरूआत भी बतौर खलनायक ही हुई थी. 1970 में विनोद खन्ना खलनायक थे. फिल्म ''आन मिलो सजना" में राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार के बावजूद लोग हैंडसम विलेन विनोद खन्ना को नहीं भूले.

'आन मिलो सजना' में विनोद खन्‍ना

फिर 1971 में राज खोसला की फिल्म "मेरा गाँव मेरा देश" में एक ऐसे खतरनाक डाकू का किरदार निभाया जो पर्दे पर आता तो लोग थर-थर कांपने लागते. यहां भी धर्मेंद्र जैसे बड़े स्टार के बावजूद विनोद खन्ना तारीफ बटोरने में कामयाब रहे और फिर धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता की वजह से वो खलनायक से नायक बन गए.

हिंदी सिनेमा के हर दौर में ज्यादातर हीरोज़ ने खलनायक की भूमिका निभाई है और उसकी अहम वजह है कुछ अलग करने की चाह और साथ ही अगर दर्शकों का प्यार भी मिल रहा तो एक्सपेरिमेंट करने में कोई परहेज भी नहीं होना चाहिए . देखना दिलचस्प होगा अक्षय खन्ना की नई इनिंग्स बतौर खलनायक उन्हें सफलता के नये पायदान तक ले जा पाती है या नहीं .

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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