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Aazam Movie Review: दो गुना थ्रिल का मजा देती है जिमी शेरगिल की नई फिल्म

    • तेजस पूनियां
    • Updated: 28 मई, 2023 02:11 PM
  • 28 मई, 2023 02:11 PM
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Aazam Movie Review in Hindi: एक रात की इस कहानी में भरपूर थ्रिल है, भरपूर क्राइम और मिस्ट्री के भरपूर मसाले हैं. बिना कोई एकस्ट्रा मसाले के जब संयमित हाथों से मसाले किसी चीज़ पर बुरक छिड़क दिए जाएं तो वह देखने, दिखाने, बनाने और उसे चखने वालों पर करम जरूर करते हैं.

मुंबई शहर में दो महीने बाद इलेक्शन होने हैं. अचानक वहां के अंडरवर्ल्ड में हरकत होने लगी है. एक के बाद एक लोग मारे जा रहे हैं. नवाब जो अंडरवर्ल्ड का डॉन है और जल्द ही खुद भी कैंसर की वजह से मरने वाला है. कौन लोग हैं जो नवाब के मरने का इंतजार कर रहे हैं? कौन लोग हैं जो नवाब के बाद खुद कुर्सी पर बैठना चाहते हैं. बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड के मुद्दों को लेकर सैंकड़ों फ़िल्में आईं हैं. गौर से सुन लीजिए सिनेमा में हर बार अंडरवर्ल्ड की कहानियां कमजोर नहीं होती हैं कुछ 'आज़म' भी होती हैं.

यूं आज़म का अर्थ होता है महान और पराक्रमी. अब अंडरवर्ल्ड भी तो इसी ढर्रे पर चलता है ना. क्यों जी! जिसमें होगा दम वही तो बनेगा डॉन, वो भी छोटा-मोटा नहीं अक्का मुंबई का डॉन. तभी तो फिल्म में डायलॉग भी सुनने को मिलता है. 'कुर्सी पर बैठने का है तो दोस्तों को मारने की आदत डाल ले.' और 'सब टाइम का खेल है जो टाइम से तेज चलेगा जीतेगा जो टाइम के पीछे चलेगा गिरेगा.' बस यही दो संवाद इस पूरी फ़िल्म के पीछे की कहानी है.

हालिया रिलीज फिल्म आज़म में जिमी शेरगिल ने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा ही दिया

यूं तो संवादों की बौछार है इसमें और हल्के-फुल्के नहीं जोरदार. साथ ही उतने ही दमदार तरीके से उन्हें निभाती है इस फिल्म की पूरी टीम. जिसके हाथ जो संवाद लगे सबने अपना दम लगाकर झोंक डाला खुद को और बन गई मुक्कमल आज़म. लेकिन इस फ़िल्म की कहानी को देखते-सुनते हुए आपको शतरंज के खेल की भी याद आती है.

शतरंज का खेल तो आप सभी ने खेला ही होगा. जहां कई मोहरें होती  हैं. जिनमें प्यादे हैं, राजा है, हाथी हैं, वज़ीर है और हैं कुछ सैनिक और एक रानी. लेकिन इस फिल्मी शतरंज की बिसात में रानी कहीं नज़र नहीं आती. दरअसल उसकी जरूरत भी नहीं थी. अब आप कहेंगे भाई कोई...

मुंबई शहर में दो महीने बाद इलेक्शन होने हैं. अचानक वहां के अंडरवर्ल्ड में हरकत होने लगी है. एक के बाद एक लोग मारे जा रहे हैं. नवाब जो अंडरवर्ल्ड का डॉन है और जल्द ही खुद भी कैंसर की वजह से मरने वाला है. कौन लोग हैं जो नवाब के मरने का इंतजार कर रहे हैं? कौन लोग हैं जो नवाब के बाद खुद कुर्सी पर बैठना चाहते हैं. बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड के मुद्दों को लेकर सैंकड़ों फ़िल्में आईं हैं. गौर से सुन लीजिए सिनेमा में हर बार अंडरवर्ल्ड की कहानियां कमजोर नहीं होती हैं कुछ 'आज़म' भी होती हैं.

यूं आज़म का अर्थ होता है महान और पराक्रमी. अब अंडरवर्ल्ड भी तो इसी ढर्रे पर चलता है ना. क्यों जी! जिसमें होगा दम वही तो बनेगा डॉन, वो भी छोटा-मोटा नहीं अक्का मुंबई का डॉन. तभी तो फिल्म में डायलॉग भी सुनने को मिलता है. 'कुर्सी पर बैठने का है तो दोस्तों को मारने की आदत डाल ले.' और 'सब टाइम का खेल है जो टाइम से तेज चलेगा जीतेगा जो टाइम के पीछे चलेगा गिरेगा.' बस यही दो संवाद इस पूरी फ़िल्म के पीछे की कहानी है.

हालिया रिलीज फिल्म आज़म में जिमी शेरगिल ने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा ही दिया

यूं तो संवादों की बौछार है इसमें और हल्के-फुल्के नहीं जोरदार. साथ ही उतने ही दमदार तरीके से उन्हें निभाती है इस फिल्म की पूरी टीम. जिसके हाथ जो संवाद लगे सबने अपना दम लगाकर झोंक डाला खुद को और बन गई मुक्कमल आज़म. लेकिन इस फ़िल्म की कहानी को देखते-सुनते हुए आपको शतरंज के खेल की भी याद आती है.

शतरंज का खेल तो आप सभी ने खेला ही होगा. जहां कई मोहरें होती  हैं. जिनमें प्यादे हैं, राजा है, हाथी हैं, वज़ीर है और हैं कुछ सैनिक और एक रानी. लेकिन इस फिल्मी शतरंज की बिसात में रानी कहीं नज़र नहीं आती. दरअसल उसकी जरूरत भी नहीं थी. अब आप कहेंगे भाई कोई रानी यानी हिरोइन नहीं है? और आप कहेंगे कि रानी नहीं तो हम फिल्म क्यों देखें भला? तो भाई कारण तो फिल्म देखकर आपको पता चल ही जाएगा.

अब कहानी में आते हैं फिर से थोड़ा इधर अंडरवर्ल्ड में कादर को कुर्सी मिलेगी नवाब के मरने के बाद यह हवा चारों तरफ़ फैल रही है. और शतरंज के खेल की तरह ही सब शिकार करने को शिकारी बैठे हैं. नवाब की चार टांगे हैं यानी उसकी मजबूत कड़ी पहली शाकिर शेख, दूसरी फिरोज नमाजी तीसरी तात्या चौथी प्रताप शेट्टी है. इन सबके ऊपर बैठा है होम मिनिस्टर मदन शिर्के. जो चाहता है की इन लगातार हो रही मौतों के बाद जो बचेगा उसे डॉन बना देगा.

फिल्म की कहानी रोचक ही नहीं रोमांचक है. जैसे ही फिल्म का पहला फ्रेम खुलता है उसके चंद मिनटों बाद ही आप अपनी नज़रों को एकटक और धड़कनों को बढ़ता हुआ पाते है. और ऐसा हो भी क्यों ना? अंडरवर्ल्ड चीज़ ही ऐसी है फिर उसकी कहानी कोई बताने आएगा तो धड़कनें तो बढ़ेंगी ना जनाब?

इन सबमें स्क्रिप्ट इतनी कसी हुई नजर आती है कि चंद लम्हों के लिए भी आपने सिनेमाघरों में पलकें झपकाईं तो समझो बहुत कुछ छूट गया. और फिर आप उसे पकड़ने दौड़ेंगे तो पीछे ही रह जाओगे. ऐसी फ़िल्में और कहानियां बॉलीवुड में स्क्रिप्ट के लिहाज से गाहे बगाहे ही नज़र आती हैं जिनमें आपको सीट से कसकर बांधे रखने की क्षमता होती है.

क्राइम, थ्रिलर, मिस्ट्री के बराबर मसालों से तैयार हुई फिल्म को 706,कमाठीपुरा, द लास्ट डॉन और द एडवोकेट जैसी थ्रिल वाली मसाला फ़िल्में दे चुके लेखक, निर्देशक, एडिटर श्रवण तिवारी ने ही लिखा, निर्देशित और एडिट किया है. संवादों के रूप में भी श्रवण तिवारी अपने लिए इस फिल्म से ऊंचा मकाम बनाते नज़र आते हैं. 

दुर्गा नटराज का संगीत, नवाब आरज़ू के लिखे गीत और रंजीत साहू के छायाकंन, करण कुना के दमदार बैक ग्राउंड स्कोर और मुंबई में सिर्फ पूरी रात में शूट हुई इस फिल्म में अंडरवर्ल्ड में एक रात के बाद अगले दिन मुंबई को नया डॉन मिलने की कहानी खूबसूरती से देखने को मिलती है. ऐसी फिल्मों के टी बी पटेल जैसे निर्माता और वीआरजी मीडिया तथा अल्टेयर मीडिया जैसे पार्टनर मिलकर विशाल मॉल और सुमित जोशी की उम्दा कास्टिंग के लिए देखा जाना चाहिए.

देखा तो इसे इसकी सिनेमैटोग्राफी, डबिंग, वी एफ एक्स  और कलरिंग की भी देखा जाना चाहिए. साथ ही इस फिल्म को जावेद के रूप में जिम्मी शेरगिल, कादर के रूप में अभिमन्यु सिंह, डीसीपी अजय जोशी के रूप में इंद्रनील सेनगुप्ता, अनन्या के रूप में विवेक घमांडे तथा प्रताप शेट्टी के रूप में गोविंद नामदेव, नवाब के रुप में रजा मुराद, मदन शिकरे के रूप में सयाजी राव शिंदे, शाकिर शेख के रूप में अली खान, फिरोज नमाजी के रूप में अनंग देसाई, तातिया के रूप में मुस्ताक खान और हैकर के रूप में आलोक पांडेय जैसे मंझे हुए अभिनेताओं के लिए देखा जाना चाहिए। 

जिम्मी शेरगिल, अभिमन्यु सिंह, गोविन्द नामदेव, रजा मुराद, आलोक पांडेय, इंद्रनील सेनगुप्ता जैसे कलाकार मिलकर फिल्म को देखने लायक तो बनाते ही हैं. साथ ही अभय, इंजमाम, अजिताब सेन गुप्ता, गरिमा अग्रवाल, अभिजीत सिन्हा आदि जैसे लोग फिल्म को भरपूर सहारा देते हैं. तो वहीं अल्लाह वे मौला वे जैसा कैलाश खेर की आवाज में गाना फिल्म को रूहानी भी बनाता है. 

कुलमिलाकर एक रात की इस कहानी में भरपूर थ्रिल है, भरपूर क्राइम और मिस्ट्री के भरपूर मसाले हैं. बिना कोई एकस्ट्रा मसाले के जब संयमित हाथों से मसाले किसी चीज़ पर बुरक छिड़क दिए जाएं तो वह देखने, दिखाने, बनाने और उसे चखने वालों पर करम जरूर करते हैं. सच तो यही है कि यह पूरी फिल्म पूरी टीम पर अपना करम बरसाती है. तो जाइए और देख डालिए इस शुक्रवार सिनेमाघरों में 26 मई को फिर ना कहना कि कोई अच्छी अंडरवर्ल्ड की फिल्में नहीं देखीं आपने काफी समय से. 

अपनी रेटिंग - 4.5 स्टार 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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