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Updated: 09 फरवरी, 2021 06:17 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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सच कहूं, तो कभी-कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत जलन होती है. 'सेंस ऑफ ह्यूमर' में पीएम मोदी का कोई जोड़ नहीं है. हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि पीएम मोदी के इस मजाकिया लहजे के निशाने पर हमेशा विपक्षी दलों के नेता रहते हैं. लेकिन, ऐसे 'सेंस ऑफ ह्यूमर' का होना ही अपने आप में एक बड़ी चीज है. प्रधानमंत्री के पद पर बैठा कोई शख्स हल्के-फुल्के अंदाज में अपनी बात लोगों तक पहुंचा देता है, ये क्या कम है. पीएम मोदी ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देते हुए अपने 'शब्द तरकश' से आंदोलनजीवी और नया FDI जैसे तंज बाण तो निकाले ही. साथ ही भाषण खत्म होते-होते उन्होंने 'मोदी है तो मौका लीजिए' कहकर सदन को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया. मोदी के ये छोटे-छोटे वाक्य (वन लाइनर) बड़े खतरनाक होते हैं. इन सबके बीच इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स का 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे मुझे याद आ गया. इस सर्वे में पीएम मोदी की लोकप्रियता देश भर के नेताओं से ज्यादा थी. लेकिन, दूसरे नंबर पर थे योगी आदित्यनाथ. इसी वजह से 'मोदी है तो मौका लीजिए' में मुझे 2024 के लोकसभा चुनाव का कनेक्शन नजर आ रहा है.

योगी आदित्यनाथ को नाम बदलने की पुरानी आदत है. योगी आदित्यनाथ को नाम बदलने की पुरानी आदत है.

उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गए, तो बहुत सी चीजें बदलना शुरू हो जाएंगी. सबसे पहले तो जगहों के नाम ही बदलने शुरू हो जाएंगे. 2024 के आम चुनाव के बाद दिल्ली का नाम हस्तिनापुर रखा जा सकता है. यहां की वो तमाम सड़कें, जो बीते कुछ सालों में अपने नाम की वजह से विवादित रही हैं, उनका भी नंबर आ सकता है. 1975 में गुजरे जमाने के मशहूर अभिनेता ओमप्रकाश और धर्मेंद्र की एक जबरदस्त हिट फिल्म 'चुपके-चुपके' आई थी. इस फिल्म में शुद्ध और क्लिष्ट हिंदी शब्दों के इस्तेमाल के साथ अंग्रेजी का जमकर मजाक उड़ाया गया था. इसे ही आधार मान लिया जाए, तो रेल मंत्रालय आने वाले समय में 'बहुचक्रधारी लौहपथगामिनी' मंत्रालय कहा जा सकता है. योगी आदित्यनाथ को नाम बदलने की पुरानी आदत है. उन्होंने गोरखपुर का सांसद रहते कई नाम बदले और यूपी का सीएम बनकर भी नाम बदल रहे हैं. 2024 में एक नये 'नाम बदल डालो' मंत्रालय की घोषणा हो जाए, तो शायद ही कोई चौंकेगा.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर भी जुबानी हमला किए हैं. लेकिन, योगी आदित्यनाथ से पंगा लेने की हिम्मत उनमें भी नहीं दिखती है. यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोंक चुके अरविंद केजरीवाल ने अभी तक यूपी में कोई रैली वगैरह नहीं की है. पीएम मोदी के लिए कटु शब्दों तक का इस्तेमाल करने में परहेज ना करने वाले केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ के लिए अपनी भाषा को 'संसदीय' बनाए रखते हैं. यूपी दौरे पर आए दिल्ली सरकार के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को यूपी पुलिस ने एक इंच भी हिलने नहीं दिया था. वहीं, केजरीवाल के विधायक सोमनाथ भारती को यूपी में 'टहल' लगाने की वजह से जेल तक जाना पड़ गया था. यूपी में अखिलेश यादव हों, मायावती हों या प्रियंका गांधी ये सभी योगी पर सीधा हमला करने से बचते हैं. पीएम मोदी विपक्षी नेताओं पर तंज कसते हैं. लेकिन, योगी आदित्यनाथ तंज के भरोसे नहीं बैठते हैं. ऐसे में योगी आदित्यनाथ के प्रधानमंत्री बन जाने पर उनसे भिड़ने की हिम्मत शायद ही कोई नेता करेगा.

योगी आदित्यनाथ की पॉलिटिकल लाइन बिलकुल सीधे और सपाट तौर पर हिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है.योगी आदित्यनाथ की पॉलिटिकल लाइन बिलकुल सीधे और सपाट तौर पर हिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है.

हिंदुत्व के 'फायरब्रांड' नेता योगी आदित्यनाथ भाजपा के लिए लगभग हर राज्य के चुनाव में स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल रहते हैं. बीते कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हिंदुत्ववादी छवि को थोड़ा तोड़ा है. 2014 में 'सबका साथ, सबका विकास' में 2019 आते-आते 'सबका विश्वास' भी जुड़ गया था. लेकिन, योगी आदित्यनाथ की पॉलिटिकल लाइन बिलकुल सीधे और सपाट तौर पर हिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है. नरेंद्र मोदी पहले मुख्यमंत्री रहे, फिर प्रधानमंत्री बने. ऐसे में कहा जा सकता है कि सीएम योगी आदित्यनाथ भी उसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं. योगी की लोकप्रियता तो 'दिन दूनी और रात चौगुनी' बढ़ रही है. आपको ऐसा नेता ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा, जिसके सीएम पद की शपथ लेने के बाद से ही लोगों ने अगला पीएम बनाने मांग शुरू कर दी हो. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के सामने योगी आदित्यनाथ की छवि हिंदुत्व समर्थक कट्टरवादी नेता के रूप में थी. सीएम बनने के बाद उनके व्यवहार में नरमी आई है, लेकिन तेवर वही पुराने वाले हैं.

बीते साल नवंबर में सीएम योगी ने लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित जूनियर इंजीनियरों को नियुक्ति पत्र बांटे थे. ऑनलाइन माध्यम से उन्होंने सबसे बात भी की. इसी दौरान मेरठ के राशिद अली से बात की करते हुए उन्होंने पूछा कि चयन के लिए उन्हें कहीं से फतवा तो जारी नहीं करवाना पड़ा? अगर आप इसे समझ गए, तो आप भी मान लेंगे कि 'सेंस ऑफ ह्यूमर' योगी आदित्यनाथ का भी बहुत बढ़िया है. योगी आदित्यनाथ तौर-तरीके में फंसकर काम करने वाले नजर नहीं आते हैं. गलत को सही करने से पहले उनकी चेतावनी देने की 'अदा' के यूपी में लोग कायल हैं. प्रदेश में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए योगी ने सीएम बनते ही अपराधियों को प्रदेश छोड़ने की चेतावनी दी थी. इसके बाद अपराधियों के धड़ाधड़ एनकाउंटर हुए थे. हाल ही में कई माफियाओं की अवैध संपत्ति पर योगी का बुलडोजर भी चला है. राजनीतिक खेमों में योगी और मोदी की तुलना लंबे समय से चल ही रही है.

 पीएम मोदी का 'मोदी है तो मौका लीजिए' का इशारा अपने आप में कई गूढ़ रहस्य छिपाए बैठा है.पीएम मोदी का 'मोदी है तो मौका लीजिए' का इशारा अपने आप में कई गूढ़ रहस्य छिपाए बैठा है.

योगी आदित्यनाथ के नाम में ही योगी जुड़ा हुआ है, जो उनकी 'संत' जैसी छवि को दर्शाता है. इसी वजह से उन्होंने प्रदेश के बजट में 'हमारी सांस्कृतिक विरासत' नाम से एक अलग कोष बनाया था. जिससे राज्य के धार्मिक और सांस्कृतिक नगरों को बढ़ावा दिया जाएगा. अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे धार्मिक स्थानों के नाम इस लिस्ट में हैं. लेकिन, इसमें ताजमहल का नाम शामिल नहीं था. योगी आदित्यनाथ की नीति अभी से ही साफ दिखाई दे रही है. ऐसे में पीएम मोदी का 'मोदी है तो मौका लीजिए' का इशारा अपने आप में कई गूढ़ रहस्य छिपाए बैठा है. खैर, ये ख्याली पुलाव तो एक सर्वे के आधार पर है. पीएम मोदी के बाद भाजपा की ओर से अगला प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, ये पार्टी का आंतरिक मामला है. लेकिन, अगर योगी आदित्यनाथ पीएम की कुर्सी तक पहुंचे, तो शायद ही किसी को कहने का कुछ मौका देंगे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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