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Updated: 08 फरवरी, 2021 06:22 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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ईद-ए-आशिकीन, बोले तो Valentine's Day वाले हफ्ते की शुरुआत Rose Day के साथ हो गई. आज दूसरा दिन यानी Propose Day है. क्या कुंवारे क्या शादीशुदा. जैसे ही फरवरी के इस वाले हफ्ते की शुरुआत होती है जानू, शोना और बेबियों द्वारा जो चरस की जाती है कि महंगाई की मार खाता दिलबर जो इस हफ्ते के पहले तक एकदम तरो ताजा और हरे भरे पुदीने की तरह होता है. वो बेचारा सूख के छुहारे जैसा हो जाता है. नहीं मतलब आदमी जमाने से लड़कर और बजरंग दल से डरकर इश्क़ भी करे फिर जब ये हफ्ता आए तो जानू, शोना, स्वीटी, गुड्डी, बेबी के टंटे सहे ये नाइंसाफी है. गुनाह है. नसीर साहब के शब्दों को ढाल बनाकर कहें तो दोगुना है.

शादीशुदा और कुंवारों के बीच एक केटेगरी वो भी होती है जिनकी नई नई शादी हुई होती है. और साहब अगर ये शादी गलती से कहीं गर्ल फ्रेंड से हुई तो आए हाए ये वाला गम तो शब्दों में बयान भी नहीं किया जा सकता.वैलेंटाइन के पूरे हफ़्ते सबसे ज्यादा चिरांद इन्हीं लोगों के साथ होती है. ये बेचारे रोज़ भी लाएं. प्रोपोज़ भी करें, टेडी भी दिलाएं, चॉकलेट भी खिलाएं इधर उधर मुंह न मारने का प्रॉमिस भी करें मगर शक करना इंसानी फितरत है मेरे दोस्त.

Propose Day, Valentine Day, Girlfriend, Boyfriend, Relationship, Marriage, Rose Dayप्रपोज के मामले में SRK का किसे से कोई मुकाबला नहीं है

आगे जैसे जैसे इस हफ्ते के अलग अलग दिन आएंगे हम एक एक दिन का पोस्टमार्टम कर उसके गुण और दोष बताएंगे मगर चूंकि आज Propose Day है तो सारी बातें सिर्फ इसपर. पूरी ईमानदारी के साथ देखा जाए तो व्यक्तिगत रूप से हमें यही लगता है कि इश्क़ और मुहब्बत के बीच ये जो प्रपोज डे आता है न इससे बड़ा छलावा या ये कहें कि धोखा तो कोई है ही नहीं.

खुद सोच के देखिये प्रपोज के नाम पर बेचारा गरीब आशिक या माशूका क्या नहीं करते. हर रात या दिन दोपहर या फिर तड़के सुबह जब भी कॉल आ जाए फोन रखने से लेकर उठाने तक प्रपोज का खेल तो हर समय ही खेला जाता है. आदमी भी बेचारा रोज़ रोज़ एक ही बात करता है. 16 आने सच बात यही है कि जब इंसान कोई काम एक जैसा करता है तो बोरियत भी होती है. आगे मैटर क्या क्या होता है देश की जनता समझदार है.

अब चूंकि बात प्रपोज डे की हुई है तो ऐसा नहीं है कि आशिक या माशूक को प्रपोज करना कोई आसान चीज है. देखो भइया महंगाई का दौर है तो क्या हुआ आदमी को भले ही नेपाल जाकर अपनी किडनी बेचनी पड़े या किसी छोटे शहर के नर्सिंग होम जाकर 3 यूनिट खून बेचना पड़े आदमी जानू, बेबी गुड्डी स्वीटी के लिए गिफ्ट विफ्ट तो सब दे देते हैं लेकिन आशिक जिससे सबसे ज्यादा चिढ़ते हैं वो और कोई नहीं बल्कि शाहरुख खान हैं.

चाहे आज की हो या उस दौर की आप कोई भी फ़िल्म उठाकर देख लीजिए शाहरुख खान की फिल्मों में जो अंदाज प्रपोज का होता है वो आजकल के क्या प्राचीन से प्राचीन आशिकों को रश्क़ दे दे. सच बात यही है कि आदमी कितनी भी आलोचना क्यों न कर ले मगर वो शाहरुख खान ही हैं जिन्होंने प्रपोज और उसके मायने बदल कर रख दिए हैं.

चाहे सरसों के खेत में खड़े होकर प्रपोज करना हो या ट्रेन दौड़ाकर प्रपोज करना हो. जो शाहरुख खान ने कर लिया है वो न केवल कलेजे का काम है बल्कि सच्चा प्यार और माशूका के प्रति सच्ची शिद्दत है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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