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Updated: 10 जून, 2022 05:48 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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तो, भईया...बात बहुत सीधी सी है कि नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की वजह से भारत की इस्लामिक देशों में खूब किरकिरी हो रही है. मतलब जैसा माहौल सोशल मीडिया से सड़क पर नजर आ रहा है. ऐसा लग रहा है कि इन दोनों ने भारत की नाक कटा के धर दी है. ऐसा कहना जायज भी है. क्योंकि, अरब देशों के साथ अफगानिस्तान की उस तालिबान सरकार तक ने भारत को आंखें घुरेंच दीं. जो अपने ही लोगों पर इस्लामिक कानून के नाम पर तमाम अत्याचार कर रहा है. खैर, ये उनका निजी मामला है, तो अपने को इसमें पड़ने की जरूरत नही है. मुद्दे की बात ये है कि इस्लामिक आतंकी संगठन अल कायदा ने भी भारत में आत्मघाती हमले की धमकी दी है. मतलब अरब देशों के बाद 'पैगंबर के सम्मान में अल कायदा भी मैदान में' टाइप की फीलिंग के साथ इस विवाद में आतंकी संगठन ने खुद को हीरो मानते हुए एंट्री ली है. लेकिन, इस मामले में अल कायदा की टाइमिंग बहुत गड़बड़ है. 

इस्लाम से 'बेदखल' हो गया अलकायदा

अल कायदा चीफ अयमान अल-जवाहिरी ने शायद सोचा होगा कि पैगंबर पर कथित टिप्पणी मामले में भी उसे हिजाब विवाद की तरह ही लोगों की भूरि-भूरि प्रशंसा मिलेगी. क्योंकि, कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद के दौरान अल कायदा के चीफ अयमान अल-जवाहिरी ने जब हिजाब गर्ल मुस्कान को 'भारत की महान महिला' बताया था. और, इस सम्मान पर बहुत से लोग चहके थे. लेकिन, पैगंबर पर टिप्पणी के मामले में अल कायदा की एंट्री ने अब इस्लामिक देशों के सामने ही मुसीबत खड़ी कर दी है. मतलब अब तक चौड़ में घूम रहे और उछल-उछल कर बयान दे रहे अरब देशों के साथ कई भारतीय 'बयानवीर' भी अब अल कायदा के इस्लाम से किसी भी तरह के लेने-देने को मानने से इनकार कर रहे हैं. हालत ये हो गई है कि अल कायदा के चक्कर में अब इन लोगों को मजबूरन कहना पड़ रहा है कि इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देता है.

लोगों की खुशी देखी न गई नामुराद से

अरे भाई...ठीक है... हम मानते हैं कि अल कायदा के लिए भी पैगंबर मोहम्मद उतने ही मायने रखते हैं कि जितने इस्लामिक देशों के लिए. लेकिन, कम से कम टाइमिंग का ख्याल तो कर लेते. मतलब अच्छा खासा भारत सरकार को इस्लामिक देशों ने प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिये घेरा था. देश की बेइज्जती होने पर बड़ी संख्या में लोग पानी पी-पीकर नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को कोस रहे थे. लेकिन, अल कायदा ने एक धमकी दी और सारा दबाव हवा हो गया. लंबे समय बाद भारत के सियासी दलों से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग और 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के झंडाबरदारों को भाजपा की आलोचना एक मौका मिला था. लेकिन, इस नासपीटे-नामुराद अल कायदा से इन लोगों की ये खुशी भी देखी नहीं गई. और, एक लेटर के साथ ही सारा बना-बनाया माहौल गुड़-गोबर कर दिया.

Prophet remarks row Al Qaeda warns India of suicide attacksकहावत है 'पैर पर कुल्हाड़ी मारना'. लेकिन, अलकायदा ने तो यहां खुद ही कुल्हाड़ी पर अपना पैर दे मारा है.

क्या सोचा था- 'सरदार खुश होगा...शाबासी देगा'

कहावत है 'पैर पर कुल्हाड़ी मारना'. लेकिन, अल कायदा ने तो यहां खुद ही कुल्हाड़ी पर अपना पैर दे मारा है. मतलब, अल कायदा ने शोले फिल्म वाले कालिया की तरह सोचा होगा कि सरदार खुश होगा...शाबासी देगा. लेकिन, हाय री...फूटी किस्मत. अब इस्लामिक देशों के सामने ही मुसीबत खड़ी हो गई है कि वो अपना मुंह किस तकिये के नीचे छिपाएं. खुद को लोकतंत्र का नया-नया समर्थक बताने वाला तालिबान भी अल कायदा का बयान सामने आने के बाद सन्नाटे में चला गया है. ये अलग बात है कि अब तक ये जानकारी सामने नहीं आई है कि इन्होंने शर्म से अपना मुंह छिपाया है या जहीन मुस्कुराहट भरा नूरानी चेहरा छिपा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक की जानकारी नहीं

हां, वो अलग बात है कि अल कायदा इस्लाम के नाम पर ही पूरी दुनिया में आतंकवाद फैलाता है. खैर, अल कायदा का इस्लाम से कोई लेना-देना है या नहीं, ये मामला अरब देशों का है. क्योंकि, दावा यही किया जाता है कि अयमान अल-जवाहिरी को फंडिंग यही से मिलती है. लेकिन, अपने को इससे क्या लेना-देना है? वैसे, अल कायदा की आत्मघाती हमलों की धमकी पर बात करना भी जरूरी है. लोगों को अपने बच्चों के साथ बम बांधकर उड़ा लेने की बात कहने वाले अल कायदा ने बता दिया है कि उसकी प्रेस रिलीज छापने वाले स्कूल की पीछे लगने वाली पाठशाला के ही छात्र रहे होंगे. क्या अल कायदा चीफ अयमान अल-जवाहिरी को पता नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने तेज आवाज वाले धमाकों और पटाखों पर रोक लगा रखी है. और, मोदी सरकार ने वैसे ही बीते 8 सालों से आतंकियों की नाम में दम कर रखा है. तो, आत्मघाती हमलों के लिए स्पेस कहां बचता है भाई?

जैसे भारत के आम जनमानस में पुलिस की छवि अपराध होने के बाद उसकी एंट्री वाली बनी हुई है. और, बॉलीवुड फिल्मों से लेकर रियल लाइफ इवेंट्स में भी पुलिस की टाइमिंग हमेशा से ही गड़बड़ रही है. तो, कहा जा सकता है कि जिसने भी इस 'टाइमिंग' का ध्यान नहीं रखा है. उसकी लंका लगने में टाइम नहीं लगता है. और, ये समस्या केवल पुलिस के साथ ही नहीं है. कई बार हम लोग भी ऐसी जगह मुंह खोल देते हैं, जहां शांत रहना ही सबसे श्रेयस्कर होता है. यानी कही हुई बात की टाइमिंग इतनी गड़बड़ होती है कि बात अर्थ से अनर्थ तक पहुंच जाती है. तो, प्रिय अल कायदा...तुम्हारी धमकी देने वाली टाइमिंग को 'नमन' रहेगा, बाकी तो सब चलता रहेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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