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Updated: 30 नवम्बर, 2016 07:26 PM
पाणिनि आनंद
पाणिनि आनंद
  @panini.anand
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सबसे पहले तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ इस फैसले का स्वागत कि सिनेमाघरों में किसी भी फिल्म के प्रदर्शन से पहले हर बार राष्ट्रगान बजाया जाएगा. इस दौरान तिरंगा स्क्रीन पर दिखेगा और लोगों को खड़े होना अनिवार्य होगा. देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम जैसे शब्दों को हर दिल में बसाने और लोगों ने राष्ट्रीय भावना का संचार करने का इससे बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है.

लेकिन यहां एक अहम सवाल भी है. क्या देशभक्ति का भाव जगाने और राष्ट्रप्रेम का पाठ सिखाने का सारा ज़िम्मा केवल सुप्रीम कोर्ट का है और हम नागरिकों का कोई कर्तव्य नहीं. यह तो वही बात हुई कि हर चीज़ हम तभी करेंगे क्या जब सुप्रीम कोर्ट हमसे कहेगा. जैसे, सुप्रीम कोर्ट आपसे कहे कि आप फसल लगाओ, अपने देवताओं की आराधना करो, अपने माता-पिता का सम्मान करो, भारत को अखंड रखो, आम के पेड़ों से कहे कि आम दो, नदियों से कहे कि पानी दो. ऐसा तो नहीं हो सकता. कुछ हम नागरिकों का भी कर्तव्य है.

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और जब बात देशभक्ति की हो, राष्ट्रीय भावना की हो तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि हम न केवल कोर्ट के आदेश का पालन करें बल्कि उससे 10 क़दम आगे जाकर कुछ ऐसा कर गुज़रें जो देशभक्ति की भावना से हमारे दिलों की सूखी नालियों को सिंचित कर दे.

मसलन, अगर आप खाना खा रहे हैं, तो खाने से पहले राष्ट्रगान गाइए. इससे आपके मन और भोजन में राष्ट्रीय भावना का संचार होगा. आपको लगेगा कि आप देश के लिए खा रहे हैं. आपका नकम, देश का नमक है. इस खाने से जो ऊर्जा आप अर्जित करेंगे वो देश के काम आएगी. आज से शादी हो या मृत्युभोज, मेस हो या क्लब, घर का पीढ़ा हो या डाइनिंग टेबल की कुर्सियां, खाना खाने से पहले सावधान होकर खड़े हों और राष्ट्रगान गाएं, फिर खाएं.

दूसरा शराब को लेते हैं. शराब बुरी चीज़ है लेकिन यह देश शराबियों का भी है. और शराबी भले ही बुरे माने जाते हों, देशद्रोही तो नहीं होते न. शराब के ठेकों के बाहर कतार में लगे लोगों के लिए राष्ट्रगान गाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए. अगर कोई पूरा राष्ट्रगान नहीं गा पा रहा है या उसकी ज़बान लड़खड़ा रही है तो समझ लीजिए कि यह अब शराब पीने के योग्य नहीं. बल्कि ऐसा नियम तो हर पैग के पहले लागू कर देना चाहिए. जो जोश में होश खो दे और राष्ट्रगान न गा पाए, उसे शराब छूने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए.

तीसरी अहम बात है हमारे बच्चों में देशभक्ति का ज्वार होना. वो अभिमन्यु जैसे बनें, भरत की तरह एक भारत वाली कहानी के पात्र बनें. ऐसा बहुत ज़रूरी है और इसके लिए सबसे ज़रूरी यह है कि आप सहवास करने से पहले सावधान की मुद्रा में राष्ट्रगान गाएं. मैथुन से पहले राष्ट्रगान आपको राष्ट्रप्रेम से भर देगा. इसका सीधा असर आपकी संतति पर पड़ेगा. और तो और, राष्ट्रप्रेम का ज्वार आपकी नसों में जब दौड़ेगा, आपके नपुंसक रह जाने की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी.

चौथा, मंदिर में लाइन लगाकर जब आप शिवाले के बाहर या किसी बिरला मंदिर या किसी भैरव धाम, माता का दरबार, ठाकुरद्वारा टाइप जगह पर होते हैं तो वहां भी तरह-तरह के फिल्मी धुनों पर जबरन तान दिए गए भजनों को गाकर अपने अंतःकरण को गंदा न करें. वहां सावधान खड़े होकर राष्ट्रगान गाएं. आपके देवता आपके देश के हैं. आप देश के हैं. है न ज़बरदस्त कनेक्शन. फिर, जब राष्ट्रगान के साथ आप मंदिर में दाखिल होंगे, आप देशभक्ति और देवभक्ति के सागर में खुद को पार होता पाएंगे.

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पांचवां है अस्पतालों में राष्ट्रगान को अनिवार्य करना. अगर ऐसा होगा तो उपचार कर रहा डॉक्टर देशभक्ति के भाव में डूबा हुआ आपको अपना शिकार नहीं, अपना भाई समझेगा और कम पैसे में बेहतर इलाज करके देगा. आप भी खुद न सही, देश के लिए जल्द ठीक होने के लिए कृतसंकल्पित नज़र आएंगे. ओपीडी का पर्चा, दवा की लाइन, एक्सरे मशीन, ऑपरेशन थिएटर, ट्रामा सेंटर, हर जगह बस 52 सेकंड का सावधान. फिर चाहे तो आप स्टेचर पर लेटें या स्टूल पर बैठें. लेकिन 52 सेंकड तो देश के लिए बनते ही हैं.

छठा बहुत सामान्य है. सिगरेट और बीड़ी आप बैठकर पीना बंद कीजिए. खड़े होकर पीजिए. और सिगरेट जलाने से पहले आप पूरा राष्ट्रगान गाएं. इससे दो लाभ होंगे. एक तो यह कि राष्ट्रभक्ति का ज्वार आपको कम सिगरेट पीने के लिए प्रेरित करेगा. जो स्फूर्ति आपको सिगरेट या बीड़ी से मिलेगी, उससे कम नहीं होगी राष्ट्रगान गाने के बाद की स्फूर्ति. और दूसरा लाभ यह कि हाथ में लाइटर या माचिस लेकर खड़े आदमी को देखकर लोग समझ जाएंगे कि आप धुम्रपान करने वाले हैं और इस तरह पैसिव स्मोकिंग के लिए एक चेतावनी जारी हो जाएगी.

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सातवां ज़रा महीन है. कोई भी व्यक्ति शंकाओं से मुक्त नहीं है. दो शंकाएं तो सबको रोज़ सताती हैं. लघुशंका और दीर्घशंका. लेकिन राष्ट्रगान गाने को लेकर कोई शंका नहीं रखें. प्रेशर हो सकता है तेज़ हो पर देश के लिए 52 सेकंड बनते हैं. लघुशंका के बाद या दीर्घशंका के बाद जब आप उठते हैं, तब भी किसी फिल्मी गाने को गाते हुए हाथ पैर धोते ही हैं न. तो क्या 52 सेकंड देश को नहीं दे सकते. पहले गाएं और फिर करें तो और भी श्रेष्ठ. अरे इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि राष्ट्रीय भावना से भरा व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान, दीवार, गली को गंदा करने से बचेगा और यथास्थान ही शंकानिवारण करेगा.

आठवां बहुत ताज़ा है. एटीएम की लाइन में खड़े युवा जब अपने मोबाइलों पर वीडियो देखते या गेम खेलते दिखाई देते हैं तो मां कसम खून खौल जाता है. क्या इसी के लिए हमारे क्रांतिकारियों ने कुर्बानियां दी थीं. क्या इसी के लिए हमारे सैनिक सीमाओं पर जान की बाज़ी लगाए खड़े हैं. और यहां तो विशेष रूप से खड़े होने की भी ज़रूरत नहीं. खड़े तो आप हैं ही. बस शुरू हो जाइए. राष्ट्रगान गाइए. बार-बार भी गा सकते हैं अगर नंबर आने में देरी हो तो. इससे कालेधन के प्रति एक नकारात्मकता आपके मन में आएगी. और अपना पैसा आप देशहित में खर्च करने के लिए प्रेरित होंगे.

नौवां मौका थोड़ा निजी है लेकिन निजित्व देश को कुछ दे सके, ऐसी सोच होनी चाहिए. मसलन, आप अपने पार्टनर के साथ चुंबन या आलिंगन की इच्छा रखते हों, किसी मित्र, रिश्तेदार से गले लगना चाहते हों. होली या ईद पर किसी को बधाई देना चाहते हों, दिक्षांत समारोह में पुरस्कृत हो रहे हों या किसी चुनावी सभा में भाषण दे रहे हों, ऐसे किसी भी काम से पहले राष्ट्रगान गाने से इन कामों के प्रति आपका समर्पण और रुचि पवित्र और सच्ची हो जाएगी.

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दसवां मौका है तो सबके लिए लेकिन उसका मानक स्थापित करने के लिए पहले लोकतंत्र के स्तंभों को आगे आना होगा. मसलन, संसद भवन में रोज़ दिन की शुरुआत राष्ट्रगान से हो. हर नेता, चाहे वो भाषण देना चाहता हो या गाली, पहले राष्ट्रगान गाए. हर विधायक माइक फेंके या पेपरवेट, पर्चे उछाले या नोट, पहले राष्ट्रगान गाए. यही काम कलेक्टर, एसपी, डीआईजी, आई, पटवारी, तहसीलदार, सचिव वगैरह भी करें. हर फाइल साइन करने से पहले एक राष्ट्रगान तो बनता है न जी. और हां, मीडिया में भी पहले पन्ने पर रोज़ राष्ट्रगान छपे. लोग उस हिस्से को काटकर अपने पास रखें ताकि उसका अपमान न हो. टीवी की हर एंकर और रेडियो का हर उदघोषक पहले राष्ट्रगान गाए, फिर बुलेटिन शुरू करे. बस 52 सेकंड की तो बात है.

नोट- ये 10 तरीके सुझाव हैं. आप और जब जब जहां जहां राष्ट्रगान गाना चाहें, गा सकते हैं. और हां, हर राष्ट्रगान के बाद अगर मीठे की भी व्यवस्था हो तो न तो कुपोषण रहेगा और न भुखमरी. मिड-डे मील जैसी स्कीमों की ज़रूरत भी खत्म हो जाएगी. लोगों में इसके प्रति अतिउत्साह जो आएगा, सो अलग.

लेखक

पाणिनि आनंद पाणिनि आनंद @panini.anand

लेखक आजतक वेबसाइट के एडिटर हैं.

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