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Updated: 22 सितम्बर, 2021 02:43 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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अब इसे मिथक कहें, विश्वास कहें या फिर अंधविश्वास- इस्लाम में तमाम अच्छी बुरी बातों के बीच एक कांसेप्ट खासा प्रचलित है. कांसेप्ट के अनुसार वो मुसलमान जो धरती पर रहते हुए बुराई से बचेगा, अपने आपको बुरी चीजों से दूर रखेगा उसे जन्नत में हूरें मिलेंगी. तो भइया जब आज का समय प्राचीनकाल वाला सतयुग न होकर कलयुग हो तो फ्री में कोई काम नहीं होता. इबादत भी फ्री में नहीं होती. उसके पीछे भी स्वार्थ निहित होता है. मतलब इसे ऐसे समझिये कि अगर कोई मुल्ला जी दाढ़ी टोपी पहने पांच वक़्त नमाज पढ़ रहे हों तो कोई जरूरी नहीं कि उनकी इबादत प्योर हो, हो सकता है कि वो किसी दूसरे ही चक्कर में हों. या फिर ये भी हो सकता है कि कॉरपोरेट का कोई बंदा सूट बूट में नमाज पढ़ रहा हो और उसे दूसरे चक्कर की लालसा न होकर सच मे इबादत ही करनी हो. संभव कुछ भी है. खैर अब मुद्दे से क्या ही भटकना. बात अफगानिस्तान से जुड़ी है. घेरे में तालिबान है और मसला आईपीएल है. अफगानिस्तान में तालिबान ने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है जिसके चलते उसने जाने अनजाने इस्लाम में हूर वाले पूरे कांसेप्ट को ही चैलेंज दे दिया है.

Taliban, Afganistan, IPL, Cricket, Women, Fundamentalism, India, IslamIPL पर रोक लगाकर एक बार फिर तालिबान ने अपना कट्टरपंथी चेहरा दिखा दिया है

विचलित होने की कोई जरूरत नहीं है दरअसल हुआ कुछ यूं है कि अफगानिस्तान में तालिबान ने आईपीएल पर बैन लगा दिया है, और कारण दिलचस्प है. तालिबान ने टूर्नामेंट में शामिल डांस और स्टेडियमों में महिला दर्शकों की उपस्थिति का हवाला दिया है. वहीं जो मीडिया आउटलेट्स अफगानिस्तान में हैं उन्हें भी ये चेतावनी तालिबान की तरफ से दी गयी है कि किसी भी सूरत में आईपीएल का प्रसारण न किया जाए.

मामले में सबसे मजेदार क्या है?

इस पूरे मैटर पर तालिबान ने इस्लाम के भीतरी ढांचे में महिलाओं के 'अधिकारों' पर जोर दिया है और कहा है कि यूं तो इस्लाम के ढांचे के भीतर महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाएगा, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसपर सीमाओं का बंधन भी लगाया जाएगा.

अफगानिस्तान के नए खेल प्रमुख भी कम कलाकार नहीं हैं.

गौरतलब है कि अभी गुजरे दिनों ही अफगानिस्तान के नए खेल प्रमुख ने ये कहकर एक नए संवाद का श्री गणेश कर दिया था कि अफगानिस्तान में तालिबान 400 खेलों की अनुमति देगा मगर जब ये पूछा गया था कि क्या महिलाएं एकल खेल सकती हैं तो तालिबान ने इस पूरे मामले पर चुप्पी साध ली थी. वहीं अफगानिस्तान के नए खेल प्रमुख बशीर अहमद रुस्तमजई ने समाचार एजेंसी एएफपी को ये कहकर सारी बहस को विराम दे दिया था कि, 'कृपयामहिलाओं के बारे में अधिक सवाल न पूछें.

अपने को उदारवादी कहने वाला तालिबान महिलाओं से चिढ़ता है.

तालिबान द्वारा अपने को लिबरल, उदारवादी, सेक्युलर कहने का जितना भी दावा कर लिया जाए मगर उसकी महिलाओं के प्रति क्या सोच है? इसका अंदाजा तालिबान के प्रवक्ता के उस बयान से बड़ी ही आसानी के साथ लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया था महिलाएं मंत्री नहीं हो सकतीं, उन्हें जन्म देना चाहिए.

जी हां भले ही ये तमाम बातें विचलित करती हों लेकिन मौजूदा वक्त का सबसे बड़ा सच यही है. अभी कुछ दिन पहले ही तालिबान प्रवक्ता सैयद ज़ेकरुल्ला हाशिमी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, 'एक महिला मंत्री नहीं हो सकती, यह ऐसा है जैसे आपने उसके गले में कुछ डाल दिया जो वह नहीं ले सकती. महिलाओं के लिए कैबिनेट में होना जरूरी नहीं है. उन्हें जन्म देना चाहिए. साथ ही तब अपनी बातों में उन्होंने ये भी कहा था कि महिला प्रदर्शनकारी अफगानिस्तान की सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं'

इस्लाम के कांसेप्ट को चैलेंज करता है तालिबान!

जैसा कि हम शुरुआत में ही इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि इस्लाम में एक कांसेप्ट है जिसके अनुसार यदि कोई आदमी यहां धरती पर इज्जत तमीज से रहता है तो वहां ऊपर स्वर्ग में उसके आचरण के चलते उसके लिए हूरों का बंदोबस्त किया जाएगा. ऐसे में जो तालिबान आईपीएल में औरतों की उपस्थिति देखकर बौखला गया है.

बात बहुत सीधी और शीशे की तरह साफ़ है. तालिबान को जब यहां धरती पर महिलाओं से इतनी नफरत है. तो ऊपर जब स्वर्ग में वो हूरों (महिलाओं) को देखेगा तो उसके पुराने कीड़े फिर जागेंगे. जाहिर है वो हूरों को देखकर फील गुड नहीं फील करेगा. हो सकता है कि अपनी अकड़ में वो 'कॉन्सेप्ट' के निर्माता यानी ऊपर वाले के खिलाफ ही विद्रोह कर दे और जन्नत पर वैसे ही कब्जे की कोशिश करे जैसे उसने अफगानिस्तान पर अपना कब्ज़ा किया है.

अब चूंकि तालिबान भी जानता है कि वो ऊपर वाले से नहीं जीत पाएगा. इसलिए उसके लिए नरक का द्वार ही सही है. यूं भी जैसे तालिबान के कर्म हैं, वो या उसके लोग स्वर्ग तो वो क्या ही जाएंगे। हां मगर नरक में गर्म खौलता तेल, कड़ाई सब तैयार है. बस तालिबान के वहां आने और छाने जाने की देर है. जाते जाते एक बात हम जरूर कहना चाहेंगे कि तालिबान को उदार मानना सबसे बड़ा फ्रॉड है. ये आज भी ठीक वैसा ही है जैसा ये अब से ठीक 20 साल पहले था. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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