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Updated: 06 अप्रिल, 2022 03:47 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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प्यारे संगीत सोम सेना वाले भाइयों

सुना कि मीट होने के शक पर आप लोगों ने मेरा यानी बिरयानी का ठेला, वो भी सोयाबीन वाली बिरयानी का ठेला पलट दिया. तर्क दिया कि नवरात्रि चल रही. कहा ये भी गया कि 'बिरयानी' भावनाओं को भड़का रही है. कैसे भड़का रही है? क्या कभी सोचा आप लोगों ने बतौर डिश ये बात मुझे किस हद तक और कितना आहत करेगी. अभी मैं ये कह दूं कि भड़काने का काम आप लोग कर रहे हैं तो आप लोगों को मिर्ची लग जाएगी. आप लोग सी सी करेंगे. लेकिन जानते आप भी हैं कि सच्चाई यही है. भड़काने वाला डिपार्टमेंट आप लोगों का है. रही बात मेरी तो मैंने 5 रुपये से लेकर 500 रूपये तक में जैसी आदमी की हैसियत है, उस हिसाब से उसका पेट भरा है. आप लोगों का एजेंडा क्या है मुझे इस बारे में बात नहीं करनी. लेकिन हां मैं अपनी बात जरूर करूंगी और अपना एजेंडा भी बताउंगी. मगर उससे पहले मेरा एक सवाल है. आप बहुत बड़े नेता और धर्मरक्षक हैं तो बताइये कि दुनिया में सबसे सेक्युलर कौन है? क्या है वो जिसने कभी चाहते हुए तो कभी न चाहते हुए परिस्थितियों के साथ एडजस्ट किया और कभी चूं तक नहीं की. जवाब है आपके पास?

Biryani, Letter, Open Letter, Food, Meerut, Navratri, Hindu, Muslim, Satireसंगीत सोम सेना के लोगों ने बिरयानी के साथ जो किया है वो दिल को झकझोर कर रख देने वाला है

मुझे पता है नहीं होगा. इसलिए मैं खुद बता देती हूं. दुनिया में अगर कुछ सबसे सेक्युलर है तो वो मैं यानी बिरयानी हूं. ये बात आपके ईगो पर चोट करेगी. आप परेशान होंगे. तो बताना जरूरी है कि ऐसा नहीं है कि मुझमें हमेशा मीट ही पड़ा. लोगों ने प्रयोग किये. मेरे अंदर से मांस निकाल कर सोयाबीन भरी गयी. (हां वही जिसका ठेला आप लोगों ने मेरठ में पलटा है)

मुझमें गाजर, गोभी, शिमला मिर्च डाल कर वेज बिरयानी की संज्ञा दी गयी. लोगों ने मुझमें अंडा डाला उसे अंडा बिरयानी का नाम दिया इसी तरह कुछ महानुभाव वो भी थे, जिन्होंने गोश्त के मसाले में पनीर डाली और उसे मुझ में मिलाया और कहा लो भाई हो गयी पनीर बिरयानी तैयार! क्या मैंने कभी बुरा माना? मैंने हमेशा इसे स्वीकार किया. 

मेरे टॉलरेंस का अंदाजा आप लगा पाएं? अभी आप लोगों का वो लेवल नहीं है. लेकिन आप लोगों की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए एक बात बताना बहुत जरूरी है. पनीर बिरयानी, वेज बिरयानी, सोयाबीन बिरयानी, मशरूम बिरयानी, गोभी बिरयानी. ऐसी कोई भी 'बिरयानी' बिरयानी के नाम पर एक बड़ा झूठ है. धोखा है. मक्कारी है.

दरअसल ऐसी डिश पुलाव है. फ्राइड राइस है. लेकिन बिरयानी नहीं. ये बात मुझे पता है लेकिन क्या मैंने कभी विरोध किया? बाकी आप चाहे मानें या नहीं लेकिन पुलाव को तो मैंने स्वयं मान्यता दी है और अपने से अलग कर दिया है.

भले ही इतिहासकार मुझे लेकर अपनी सुविधा और सुचिता के हिसाब से तर्क दें. लेकिन जो लोग थोड़ा बहुत भी पढ़े लिखे हैं जानते होंगे कि मैं हिंदुस्तान से नहीं हूं. दिल्ली के लाजपतनगर का कोई घर हो या लखनऊ के अमीनाबाद में लगा कोई ठेला अगर मैं वहां तक पहुंची हूं तो इसकी एक अहम् वजह वो लंबी यात्रा है जो मैंने की है.

आप लोग मेरे विरोध में हैं तो आपको इस बात को अपने दिमाग में बैठना होगा कि पर्शिया मेरी जन्मभूमि भले ही हो. लेकिन मैं जितनी सुदूर फारस की हूं उतनी ही हैंदराबाद, थलासेरी, कोलकाता, लखनऊ, मुरादाबाद और भोपाल की. भले ही मेरे पास दिखाने को कागज न हों और मेरे तार मुगल बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल या फिर तैमूर लंग से जुड़े हों लेकिन सत्य यही है कि वो थे और मैं हूं.

आप समझिये इस बात को कि मेरा होना ही और आगे रहना ही मेरी प्रासंगिकता है. यदि मैंने ये मुकाम पाया है तो इसमें किसी भी तरह की कोई जोर जबरदस्ती नहीं है. अपने जन्म से लेकर आजतक मैं किसी निर्मल धारा सरीखी थी. बहना और बहते रहना मेरी एक बड़ी क्वालिटी है जिसपर मैंने कभी न तो समझौता किया और ही शायद कभी करूंगी.

आप लोगों ने खुद को कैसा बना दिया है? उसे देश और दुनिया दोनों देख रहे हैं. लेकिन बात चूंकि मैं अपनी खुदकी कर रही हूं तो एक बात जरूर जान लीजिये कि मैंने तो अपने को कुछ ऐसा बनाया कि जैसा देस वैसा भेस. यानी अगर किसी को मटन पसंद था मैंने अपने खुशबूदार चावलों में समाहित किया. इसी तरह जिसे फिश, बीफ, चिकेन, पोर्क, प्रॉन, लॉबस्टर, याक, ईमू पसंद था मैंने वैसे लोगों की भी पसंद का ख्याल रखा और अपने को वैसा बनाया.          

संगीत सोम सेना वाले या किसी और सेना के मेरे प्यारे भाइयों एक बात याद रखिये. खाना बेहद निजी या ये कहें कि व्यक्तिगत विषय है और क्योंकि आप लोगों ने मुझे यानी बिरयानी को नवरात्रि का हवाला देर सड़कों पर बिखेरा है. तो यकीन जानिये न तो मुझे गुस्सा आ रहा है न मैं दुखी हूं. बल्कि मुझे आप लोगों के इस भोलेपन पर हंसी आ रही है. हंसी आ रही है उस खोखले अहंकार और धर्म के दम्भ पर जो आपको ऐसा बहुत कुछ करने पर मजबूर कर दे रहा है जिससे मैं यानी बिरयानी नहीं बल्कि एक देश के रूप में हिंदुस्तान की छवि धूमिल हो रही है. 

लिखने को बहुत कुछ है. आप पढ़ भी लेते. लेकिन बात फिर वही है सोशल मीडिया के इस दौर में लिखने से कहां ही क्रांति आने वाली है तो इसलिए कम लिखे को ज्यादा पढ़िए और समझिये.

आपकी 

बिरयानी (नवरात्रि में सोयाबीन थी लेकिन आप मटन, चिकन, बीफ, फिश, अंडा कुछ भी मान सकते हैं)  

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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