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Updated: 13 नवम्बर, 2021 09:57 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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'खानपान बेहद व्यक्तिगत विषय है इसपर बोलने का हक़ किसी को नहीं होना चाहिए. कम से कम सरकार को तो नहीं. मतलब जिसे मुर्गा या अंडा खाना हो खाए इसी तरह जिसे पालक और टिंडे का सेवन करना हो करे. बात बाकी ये है कि अंडे से टिंडे तक कुछ भी खाने पीने की आजादी हमें हमारा संविधान देता है.' ह्म्म्म... आगे कुछ लिखने पर कुछ भसड़ हो या किसी की भावना आहत होकर एक कोने में दुबक जाए और क्रांति का बिगुल फूंक दे उपरोक्त लाइन ऐसे व्यक्ति के लिए हैं (यूं भी टी20 वर्ल्ड कप में भारत की घर वापसी ने हमें संदेश यही दिया है कि प्लेयर कितना भी भौकाली क्यों न हो. कितना हो बड़ा तुर्रम ख़ां हो जाए खिलाड़ी को हमेशा सेफ साइड खेलना चाहिए.

पद्म श्री कंगना रनौत भले ही स्वतंत्रता को भीख बता दें. लेकिन सिर्फ गांधी और पटेल नहीं आज़ादी की लड़ाई में गुजरात का भी अपना महत्व है. यानी अगर गुजरात न होता तो भारत को गोरों से आज़ादी तो मिलती लेकिन दस या बारह साल और लगते. बात आज़ादी में गुजरात के कंट्रीब्यूशन की हुई है तो 12 जून 1928 के बारडोली सत्याग्रह को कैसे भूला जा सकता है. गांधी और पटेल सत्याग्रह पर थे. कस्तूरबा भी साथ थीं.

Gujarat, Vegetarian, Non Vegetarian, Shop, Egg, Cleanness, Diseaseगुजरात के वडोदरा में म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने नॉन वेज को लेकर जो बातें कहीं हैं वो हैरत में डालती हैं

होने को तो बारडोली सत्याग्रह किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था लेकिन इस सत्याग्रह में गांधी और पटेल की बदौलत ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने अंग्रेजों को नानी याद दिला दी.

भूतकाल में गुजरात ने अंग्रेजों को भगाया था. भविष्य काल में ये गुजरात ही होगा जो नॉन वेज और नॉन वेजिटेरियन को अंग्रेजों की तरह देश से भगाएगा. क्रांति का बिगुल एक बार फिर बजा है. शुरुआत हो चुकी है बस कुछ दिन और. फिर वो दिन भी आएगा जब हम कसाइयों को पनीर का कीमा न केवल बनाते बल्कि बेचते हुए देखेंगे. अंडों से सिर्फ चूजे निकलेंगे जो एक दिन मुर्गी बनेंगे और खुल के अपनी ज़िंदगी जियेंगे.

गुजरात, नॉन वेज, देश निकाला सुनने में भले ही हैरत में डाल दे लेकिन अब जो सच है, हम होते कौन हैं उसे बदलने वाले. गुजरात में अब खुले में नॉनवेज खाने और बेचने वालों की शामत है. दरअसल हुआ कुछ यूं है कि गुजरात के वडोदरा में खुले में नॉनवेज बेचने वालों पर नकेल कसने की रणनीति अपने अंतिम दौर में है. खबरों की मानें तो वडोदरा में अधिकारियों को ये निर्देश दिए गए हैं कि नॉनवेज खुले में स्टॉल पर ना बिके और जो लोग इसे बेच रहे हैं, वह मांसाहारी भोजन को पूरी तरह से कवर करके रखें.

वडोदरा में ये निर्देश कथित तौर पर हितेंद्र पटेल द्वारा मौखिक रूप से दिए गए हैं, जो वडोदरा नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं. हितेंद्र ने ऐसे सभी खाद्य स्टालों, विशेष रूप से मांसाहारी भोजन जैसे मछली, मांस और अंडे बेचने वाले ये सुनिश्चित करें कि खाना स्वच्छता कारणों से अच्छी तरह से कवर किया जाए और उन्हें मुख्य सड़कों से भी हटा दिया जाना चाहिए.

वहीं गुजरात के कानून मंत्री हितेंद्र पटेल से भी दो हाथ आगे निकले हैं. उन्होंने पटेल की बातों को सही बताते हुए इस बात की पैरवी की है कि खुले में नॉनवेज की बिक्री से बीमारियों का प्रचार प्रसार तो होता ही है. इसके साथ में इसके कारण सड़क पर चलने वाले राहगीरों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. अपनी बात को वजन देने के लिए कानून मंत्री ने बड़ा ही अनोखा लॉजिक दिया है. मंत्री जी के मुताबिक जहां नॉनवेज की दुर्गंध से लोगों को परेशानी होती है तो वहीं इससे उठने वाले धुएं के चलते आंखों में जलन होने लगती है.

बताते चलें कि चाहे वो राजकोट का म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन हो या वडोदरा का दोनों ही म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की ओर से ये भी कहा गया है कि खुले में नॉनवेज बेचने वालों के साथ ही इसका सेवन करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. गौरतलब है कि गुजरात के कानून मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी ने राजकोट और वडोदरा के महापौर को इस तरह के आदेश के लिए बधाई का पात्र बताया.

बात बहुत सीधी है यदि ये फैसला हाइजीन को ध्यान में रखकर किया गया है तो फिर कल अगर समोसा, जलेबी, पूड़ी, पराठे और सबसे ज्यादा गोल गप्पे भी सरकार की नजर में आ जाएं तो हमें आहत नहीं होना चाहिए. लेकिन अगर मामला पॉलिटिकल है और इसे आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर सामने लाया गया है तो इसपर कविता संग्रह से लेकर कम से कम 5 वॉल्यूम का गद्य लिखा जा सकता है और इसमें संवाद की पूरी गुंजाइश है.

खैर हमारे लिख भर देने से और आपके पढ़ लेने से होना कुछ है नहीं. सरकार अपना फैसला ले चुकी है. उसका स्टैंड क्लियर है. मॉरल ऑफ द स्टोरी बस इतना है कि मौजूदा हालात में नॉन वेज बिकने पर एक न एक दिन प्रतिबंध लगेगा इसका अंदाजा तो था. मगर गुजरात के मद्देनजर वो दिन इतनी जल्दी आएगा इसका अंदाजा नहीं था. अब जबकि ये दिन आ ही गया है तो बेहतर है इंसान इसका भी मजा ले यूं भी इंसान तोस्वच्छ रहना चाहिए स्वस्थ खाना चाहिए.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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