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Updated: 23 मार्च, 2018 06:20 PM
मंजीत ठाकुर
मंजीत ठाकुर
  @manjit.thakur
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सुबह अखबार में खबर आई तो गांव में जो भी भाई-बंदा अपने मोबाइल पर फेसबुक चलाता था, एकदम से सहमा हुआ था और गुड्डू आंखें फाड़-फाड़कर तकरीबन बेहूदगी से सबको देख रहे थे. उनसे रहा न गया, पूछ ही बैठेः काहे सब परेशान हैं इतने? ददा, पता नहीं है आपको, फेसबुक पर हमारे डेटा सुरक्षित नहीं रहे, पहले आधार वाले हमारे डेटा पर सेंध थी और अब इस फेसबुक पर दी गई सूचनाओं पर भी खतरा है.

गुड्डू भैया जोर-जोर से हंसने लगे, सुनो रे ठाकुर, एक ठो किस्सा सुनो. एक आदमी ज्योतिषी के पास हाथ दिखाने गया. ज्योतिषी ने कहा, शनि का साढ़ेसाती है. काली गाय दान करो.

आदमी उजबक की तरह देखने लग गयाः इत्ते पइसे कहां है महराज?

ज्योतिषी ने तोड़ निकालाः तो लोहे की कड़ाही में काली तिल भरकर दान करो.

आदमी ने फिर हाथ जोड़ेः पंडिज्जी, इत्ते पइसे कहां है मेरे पास?

ज्योतिषी ने आखिरी बात कहीः चल एक टोकरी कोयला ही दान कर दे.

आदमी ने फिर हाथ जोड़ लिएः नहीं कर पाऊंगा ज्योतिषी जी. इत्ते पइसे नहीं पास में.

ज्योतिषी उठ खड़ा हुआ, अबे कंगले, जब तेरे पास टोकरी भर कोयला दान करने लायक कलदार भी नहीं, तो शनि महराज भी तेरा क्या बिगाड़ लेगें. गुड्डू ने कहानी खत्म की और मुझसे पूछाः समझे ठाकुर!

मैंने भी हाथ जोड़ लिएः क्या भइया, चाहते क्या हैं कहना.

गुड्डू ने हाथ में पकड़े गिलास से लंबा घूंट भरा और बोलेः हमारे डेटा चोरी कर के कोई क्या कर लेगा यार?

फेसबुक, डाटा, चोरी, चुनाव डेटा चोरी मीडिया के लिए बड़ी खबर होगी, लेकिन आम भारतीय के लिए ये उतना बड़ा मुद्दा नहीं...क्यों, हमारी सारी सूचना तो उसमें है? क्या सूचना है बता तो सही? आय़कर भरने वाले सौ लोगों में से 89 फीसद लोग तो 5 लाख रु. से कम की आमदनी वाले हैं. बाकी जो 11 लोग आयकर देते हैं उनमें से भी 80 फीसदी लोग मुंबई के हैं तो इ डेटा चोरी होने से होगा क्या. वैसे भी अदालत में सरकारी नुमांइदे ने कहा ही है, हमारे डेटा दस फीट मोटी दीवार वाले कमरे में सुरक्षित हैं. अरे ऐसे में तो क्लाउड में सेव किया डेटा भीग भी जाता होगा. गुड्डू भैया ने फिर लंबा ठहाका लगाया.

लेकिन जो मेल पर रोज रोज प्रस्ताव आते हैं सो? गुड्डू भैया ने अपना जीमेल खोलकर दिखाया. इनबॉक्स में कोई 6,879 अनरीड मेल पड़े थे. जो आदमी मेल चेक ही नहीं करता उसका यह लोग डेटा चोरी करके करेंगे क्या? और रोजाना जो आपके पास मार्केटिंग वाले फोन किया करेंगे, लोन लो, पर्सनल भी होम भी, क्रेडिट कार्ड भी, और न जाने क्या अल्लम-गल्लम. लेकिन, ददा. देश के अधिकतर फेसबुक यूज़र को यह नहीं पता है कि सोशल मीडिया कंपनियां उनके बारे में कितना जानती हैं. फ़ेसबुक का बिज़नेस मॉडल उसके डेटा की गुणवत्ता पर आधारित है. फ़ेसबुक उन डेटा को विज्ञापनदाताओं को बेचता है. विज्ञापनदाता यूज़र की ज़रूरत समझकर स्मार्ट मैसेजिंग के ज़रिए आदतों को प्रभावित करते हैं और यह कोशिश करते हैं कि हम उनके सामान को खरीदें. मैंने अपना तर्क रखा.

तो क्या होगा. कितनी तो मीठी आवाज में बात करती हैं बेचारी. पूरी बात सुन लो, और उसके बाद आखिर में कह दो नहीं लेना है लोन. नही लेना क्रेडिट कार्ड. बात सिर्फ क्रेडिट कार्ड की नहीं है न ददा. फ़ेसबुक न सिर्फ़ सामान बल्कि राजनीति भी बेच रहा है. राजनीतिक दल, चाहे वो लोकतांत्रिक हों या न हों, हमारी सोच को प्रभावित करने के लिए स्मार्ट मैसेजिंग का इस्तेमाल करना चाहते हैं ताकि हमलोग किसी ख़ास उम्मीदवार को वोट करें. वो इसका इस्तेमाल आम सहमति को कमज़ोर करने और सच्चाई को दबाने के लिए भी करते हैं.

फेसबुक, डाटा, चोरी, चुनाव

देखो ठाकुर, हमारे देश में पहले से लोग जाति, धर्म और सौ के नोट के बदले वोट देने के आदी रहे हैं. फेसबुक और वॉट्सऐप मेसेज के बदले भी दे लेंगे तो क्या हो जाएगा? और तुम कर भी क्या लोगे? तुम जो करते हो सब तो सरकार से ज्यादा गूगल की निगाहों में है. कितने बजे उठते हो, कितने बजे पोट्टी जाते हो, कितने बजे दफ्तर जाते हो और किस रास्ते जाते हो, कौन सी कैब से जाते हो.

तेरी रग-रग से वाकिफ है गूगल. तो फिर क्या बचा लोगे उससे. कौन से डेटा की सुरक्षा चाहिए तुम्हें और कौन करेगी सुरक्षा! बात रही मेरे प्रोफाइल फोटो की, तो करने दो डाउनलोड मेरा फोटो. चिपकाने दो कलेजे से मेरा फोटो, फेविकोल लगाकर. ऐसा मत कहिए गुड्डू भइया. रवि शंकर बाबू ने क्या तगड़ी डांट पिलाई है जुकरबर्ग को.

सुन ठाकुर बुरा न मानो तो एक किस्सा और सुन लो. दिल्ली पर मुहम्मद शाह रंगीले का शासन था. खबर मिली कि नादिरशाह का हमला होने वाला है. तो रंगीला चिंतित हो गया. उसके एक वजीर ने राय दी थी. यमुना के किनारे कनातें लगवा देते हैं. हम सब चूड़ियां पहनकर कनातों में बैठे रहें. जैसे ही नादिरशाह की फौज पास आए हम सब चूड़ियां चमका कर कहें, इधर न आइयो मुए, इधर जनाने हैं. फिर वो शर्म से नहीं आएंगे.

अरे ठाकुर, हूण आए, कुषाण आए, शक भी आए. नए दौर में यह नई तकनीक भी आई है, हमें तो लुटने की आदत है. यह जुकरबर्ग क्या लूट लेगा और आधार में से कंपनियां क्या लूट लेंगी. सुनते जाओ

चराग़ हाथ में हो तो हवा मुसीबत है

सो मुझ मरीज़-ए-अना को शिफ़ा मुसीबत है.

मैं चुप हो गया. गुड्डू भैया ने ग्लास में से लंबा घूंट लिया और बोले, मरीज़-ए-अना मतलब अभिमान की बीमारी से ग्रस्त, और शिफ़ा का मतलब स्वस्थ होना. बिना मतलब समझे शेर समझ नहीं आएगा. मैं उस घड़ी को कोसता हुआ आगे निकल गया जब मैंने गुड्डू जी को आधार और फेसबुक के डेटा लीक होने की खबर पर चर्चा छेड़ी थी.

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लेखक

मंजीत ठाकुर मंजीत ठाकुर @manjit.thakur

लेखक इंडिया टुडे मैगजीन में विशेष संवाददाता हैं

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