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Updated: 15 मार्च, 2021 12:09 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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चिकित्सा के क्षेत्र में भारत अब 'विश्वगुरू' बनने की राह पर अग्रसर हो चला है. भारत में स्वदेश निर्मित दो कोरोना वैक्सीन का टीकाकरण जारी है. नौकरशाह से सियासतदां बने शाह फैसल ने भी इस कोरोना वैक्सीनेशन की तारीफ में जो कसीदे पढ़े थे, उसमें भारत के विश्वगुरू बनने की बात कही थी. वैक्सीन निर्माण भारत के चिकित्सा क्षेत्र का एक क्रांतिकारी कदम था और इसे विश्वगुरू बनने की ओर बढ़ते भारत की नींव माना जा रहा था. यह सपना अब पूरा होता भी दिखने लगा है. पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐसी शानदार 'खोज' की है, जिससे अब भारत को 'नोबेल' पुरस्कार मिलना तय माना जा रहा है.

'चमत्कारिक प्लास्टर' की अद्भुत खोज

चुनावी राज्य पश्चिम बंगाल में कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर 'हमला' किया गया था. इस हमले में वह 'घायल' हो गई थीं और 48 घंटों तक डॉक्टरों की कड़ी निगरानी में रही थीं. इस दौरान डॉक्टरों ने जी-जान लगाकर तृणमूल कांग्रेस मुखिया का उपचार किया. 'दीदी' के पैर में लगी चोट पर पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने एक ऐसा 'चमत्कारिक प्लास्टर' लगाया, जो दो दिनों के अंदर ही फ्रैक्चर को ठीक कर सकता है. ममता बनर्जी अस्पताल से डिस्चार्च हुईं, तो वह व्हीलचेयर पर थीं और उनके पैर पर क्रेप बैंडेज बंधा हुआ था. डॉक्टरों के बांधे हुए प्लास्टर से उनके पैर का कथित फ्रैक्चर चमत्कारिक रूप से सही हो गया. मेरा मानना है कि डॉक्टरों को उनकी इस महान खोज के लिए अब 'नोबेल' पुरस्कार से कम तो कुछ नहीं दिया जाना चाहिए.

'दीदी' के पैर में लगी चोट पर पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने एक ऐसा 'चमत्कारिक प्लास्टर' लगाया, जो दो दिनों के अंदर ही फ्रैक्चर को ठीक कर सकता है.'दीदी' के पैर में लगी चोट पर पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने एक ऐसा 'चमत्कारिक प्लास्टर' लगाया, जो दो दिनों के अंदर ही फ्रैक्चर को ठीक कर सकता है.

कम से कम 7 दिन चढ़ता है कच्चा प्लास्टर

तथ्यों की बात करें, एक नॉर्मल ऑर्थो का डॉक्टर दर्द, मोच और फ्रैक्चर पर पहले कच्चा प्लास्टर ही चढ़ाता है. यह प्लास्टर एक हफ्ते से लेकर 15 दिनों के लिए चढ़ाया जाता है. दर्द, मोच या फ्रैक्चर की 15 दिन बाद स्थिति देखकर आगे पक्का प्लास्टर (45 दिनों के लिए) चढ़ाया जाता है. ममता बनर्जी के मामले में पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए केवल 2 दिनों के लिए कच्चा प्लास्टर चढ़ाया. डॉक्टरों द्वारा बांधे गए प्लास्टर ने दर्द, मोच या फ्रैक्चर को चमत्कारिक ढंग से पूरी तरह से ठीक कर दिया और ममता को क्रेप बैंडेंज बांधकर 'व्हीलचेयर' पर रवाना कर दिया गया. चौंकाने वाली बात ये भी रही कि डॉक्टरों ने जो कच्चा प्लास्टर बांधा था. वह पैर को 90 डिग्री के कोण (एंगल) पर सीधा न रखते हुए 120 डिग्री के एंगल पर बांधा था. शायद ममत बनर्जी की स्पीडी रिकवरी में इसका भी बड़ा योगदान हो सकता है. खैर, चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टरों के इस 'अतुलनीय योगदान' को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार जरूर मिलना चाहिए.

ममता दीदी हो सकती हैं वंडर वुमेन

एक चीज ये भी हो सकती है कि बंगाल की शेरनी (शिवसेना ने कहा था) ममता बनर्जी कोई सुपरहीरोइन हों. मार्वल और डीसी की कई फिल्मों में आश्चर्यजनक शक्तियों को धारण करने वाली महिलाओं को दिखाया गया है. 'दीदी' में भी शायद ऐसी ही कोई शक्ति हो, जिसकी वजह से उनकी चोट जल्दी ठीक हो गई. वंडर वुमेन और कैप्टन मार्वल सरीखी कई सुपरहीरोइन इन फिल्मों में दिखाई गई हैं. अगर ऐसा है, तो उन्हें पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं रखना चाहिए. मेरी मांग है कि 2024 में देश की जनता ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाए और पूरा देश उनकी इस शक्ति या कला का लाभ ले. पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य विभाग ममता बनर्जी के पास ही है. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि उन्होंने डॉक्टरों की इस खोज में उनकी काफी मदद की होगी.

पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य विभाग ममता बनर्जी के पास ही है.पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य विभाग ममता बनर्जी के पास ही है.

चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणी रहा है भारत

माना जाता रहा है कि प्राचीन काल से ही भारत ने चिकित्सा के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं. आदिकाल में भगवान शिव ने पहले अपने ससुर प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया और बाद में बकरे का सिर लगाकर पहली प्लास्टिक सर्जरी की थी. ये बात हास्य के लिहाज से ठीक है. लेकिन, ऐसे तमाम उदाहरण हिंदू धर्मग्रंथों में मिलते हैं. किसी अन्य धर्म के विषय में अपनी राय अपने पास ही रखूंगा. वरना फतवा जारी होने का खतरा बना रहता है. वैसे चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में जब दुनिया की तमाम सभ्यताएं शिशु की तरह घुटनों चल रही थीं. तब भारत में शल्य चिकित्सा के पितामह माने जाने वाले सुश्रुत ने 'सुश्रुत संहिता' लिखकर देश के चिकित्सीय ज्ञान का डंका बजाया था. सुश्रुत संहिता के अनुसार, शल्य क्रिया (सर्जरी) के लिए 125 तरह के उपकरणों का इस्तेमाल होता था.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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