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Updated: 28 अक्टूबर, 2016 08:21 PM
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साइरस मिस्त्री को टाटा सन्स से बाहर निकाल दिया गया. टाटा समूह के लिए यह कोई पहला मौका नहीं है जब उसने अपने टॉप मैनेजमेंट में शीर्ष पर बैठे किसी मैनेजर को बाहर का रास्ता दिखाया हो. इससे पहले ऐसा वाक्या 1992 में तब देखने को मिला जब टाटा समूह के लौह पुरुष माने जाने वाले जेआरडी टाटा जीवित थे.

उस वक्त देश में रूसी मोदी सबसे विख्यात मैनेजर माने जाते थे और मैनपावर मैनेजमेंट के वह स्पेशलिस्ट थे. रूसी मोदी टाटा समूह की प्रमुख कंपनी टिस्को के चेयरमैन थे और उनके कार्यकाल में टिस्को ने नई उंचाइयों को छुआ था. लेकिन 1992 में रतन टाटा को टाटा समूह की कमान मिली और जेजे ईरानी उनके साथ टाटा समूह के नए मैनेजमेंट की जिम्मेदारी निभा रहे थे.

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नए मैनेजमेंट को रूसी मोदी रास नहीं आ रहे थे लिहाजा रतन टाटा के नेतृत्व वाले इस मैनेजमेंट ने रूसी मोदी को कंपनी से बाहर करने की तैयारी शुरू कर दी. आज जिस तरह टाटा समूह की लड़ाई का मुख्य केन्द्र मुंबई स्थित टाटा हाउस बना हुआ है, उन दिनों ये लड़ाई बिहार के जमशेदपुर में लड़ी गई. यह शहर टिस्को का मुख्यालय था. लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे.

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 जब टाटा समूह को रास नहीं आए रूसी मोदी

उस दौर में टिस्को टाटा समूह की सबसे अहम कंपनी थी लिहाजा जेआरडी टाटा चाहते थे कि रतन टाटा को इस कंपनी की कमान पूरी तरह से मिल जाए. रास्ते में बस एक रोढ़ा था- रूसी मोदी. अपने इस प्लान के चलते रतन टाटा का पटना दौरा अचानक बढ़ गया और लालू प्रसाद यादव से उनकी मुलाकातों का सिलसिला भी बढ़ गया.

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रतन टाटा के लगातार पटना दौरे से रूसी मोदी सतर्क हो गए. और जैसे ही उन्हें टाटा परिवार के प्लान का पता चला वह मुखर होकर उसका विरोध करने लगे. हालांकि टाटा समूह के टॉप मैनेजमेंट ने रूसी मोदी को दरकिनार करने के लिए उनकी कार्यकारी शक्तियों को छीन लिया. उन्हें शक्तिविहीन कर टाटा स्टील के चेयरमैन पद पर प्रमोट कर दिया. इस फैसले से उन्हें जमशेदपुर को अलविदा कहते हुए मुंबई आना पड़ता.  

टिस्को के मैनेजमेंट में इस फेरबदल का रूसी मोदी ने विरोध किया और नए मैनेजमेंट को धता करते हुए वह लगातार जमशेदपुर में बने रहे. इस शहर को टाटा कंपनी के नाम से ही जाना जाता है और टिस्को को उंचाइयों तक पहुंचाने के श्रेय के चलते यहां रूसी मोदी को भगवान की तरह पूजा जाता था. वहीं टिस्को के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर तैनात जेजे ईरानी को मौजूदा स्थिति में कंपनी संभालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था.

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चूंकि उस दौर में टाटा समूह में टिस्को आज की टीसीएस जैसा रुतबा (फ्लैगशिप) रखता था लिहाजा कंपनी के पास कड़े कदम उठाने के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचा था. एक झटके में टाटा समूह ने फैसले लेते हुए रूसी मोदी को कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. यह कंपनी के लिए एक बड़ा फैसला था. रूसी मोदी तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव और मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी माने जाते थे. बहरहाल, इस फैसले के एक हफ्ते के अंदर ही जमशेदपुर शहर रूसी मोदी के लिए आउट ऑफ बाउन्ड हो गया.

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