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Updated: 30 अगस्त, 2016 10:20 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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एक कयास के खत्म होते ही नए कयास की शुरुआत हो जाती है. रिजर्व बैंक के नव नियुक्त गवर्नर उर्जित पटेल 4 सितंबर को अपना कार्यभार संभाल लेंगे. और केंद्रीय बैंक के इतिहास में यह दिन मौजूदा गवर्नर रघुराम राजन का आखिरी दिन होगा. राजन कई महीनों तक चले सस्पेंस के बाद जा रहे हैं.

अब सवाल यह है कि जिन कारणों से रघुराम राजन और केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच तनाव पैदा हुआ, क्या वह नए गवर्नर उर्जित पटेल को भी परेशान करेंगे? इसी सवाल को दूसरे ढंग से पूछा जाए तो क्या राजन के जाने के बाद केन्द्र सरकार उन मामलों में अपनी मनमानी नए गवर्नर पर थोपने की कोशिश करेगी, जिसे राजन ने न सिर्फ अनसुना किया बल्कि मुखर होकर सरकार के दबाव की बात को जगजाहिर कर दिया?

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उर्जित पटेल पर राजन का बैगेज

महंगाई

इसमें कोई दो राय नहीं है कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रघुराम राजन को महंगाई पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी दी थी. साथ ही दिए वैश्विक हालात में राजन ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया. लेकिन इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि रिजर्व बैंक में गवर्नर के अलावा 4 डिप्टी गवर्नर भी मौजूद रहते हैं. इनमें से एक गवर्नर देश की वित्तीय नीति निर्धारित करने के लिए होता है और राजन के कार्यकाल में यह जिम्मेदारी उर्जित पटेल के पास थी. लिहाजा, यह कहना कत्तई गलत नहीं होगा कि बीते तीन साल में महंगाई को लगाम लगाने में पटेल की अहम भूमिका रही है और आने वाले दिनों में वह इस काम को और बखूबी निभाएंगे.

बीमार बैंक

देश में सरकारी बैंकों के नॉन पर्फॉर्मिग एसेट की गंभीर समस्या है. बीते कई दशकों से बड़े-छोटे सरकारी बैंक बेहिसाब कर्ज देते रहे हैं और उनका पैसा लगातार बाजार में डूबता रहा है. लिहाजा बीते तीन साल के दौरान इन बैंकों को उबारने के लिए रघुराम राजन के नेतृत्व में सघन बैंकिग सुधार देश में पहली बार लागू किया गया. यह राजन की नीतियों की ही देन है कि सरकारी बैंकों के पैसों को डकारने वाले कारोबारियों के खिलाफ अभियान चलाया जा सका. विजय माल्या सरीखे लोगों पर कानून की गाज गिराने का काम कुछ साल पहले देश की बैंकिंग में असंभव माना जाता था. अब जब राजन अलविदा कह रहे हैं तो उनके इस काम को यह सरकार या भविष्य में आने वाली कोई भी सरकार सराहना के अलावा कुछ नहीं कह सकती. हालांकि रिजर्व बैंक की वित्तीय नीति विभाग के प्रमुख रहते हुए उर्जित पटेल ने इस मुद्दे पर हमेशा राजन के साथ खड़े दिखाई दिए. इसलिए माना जा सकता है कि देश में बैंकिंग सुधार का यह सघन कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहेगा.

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ब्याज दर

रघुराम राजन और मोदी सरकार के बीच टकराव का सबसे अहम कारण राजन का ब्याज दरों में कटौती न करने पर अडि‍ग रहने को माना गया. बीते दो साल के दौरान राजन ने लगातार दलील दी कि देश में मंहगाई को काबू करने के लिए जरूरी है कि ब्याज दरों को उच्च रखा जाए. इससे बैंकिग सेक्टर को पहले मजबूत करने का काम किया जा सकेगा. वहीं जब देश के बैंक अपने-अपने एनपीए को कम कर मजबूती की स्थिति में पहुंच जाएं, तब ब्याज दरों को घटाकर कारोबार को तेज करने की कवायद की जानी चाहिए. गौरतलब है कि ब्याज दर निर्धारित करने का काम भी रिजर्व बैंक के उसी विभाग के तहत आता है जिसकी कमान उर्जित पटेल के हाथ में थी. वहीं माना जाता है कि ब्याज दरों को ऊंचा रखने में अहम भूमिका उर्जित पटेल की थी. अब राजन की विदाई के बाद यह जिम्मेदारी उन पर होगी कि वह किस तरह वित्त मंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री मोदी को ब्याज दरों को कायम रखने आथवा घटाने की अपनी दलील पर तैयार करते हैं.

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 रघुराम राजन और उर्जित पटेल

अब एक नजर राजन की जिद पर

रघुराम राजन को केन्द्रीय बैंक की कमान 2013 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने दी. जब 2014 में यूपीए की विफलताओं को गिनाकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार सत्ता पर काबिज हुई तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौ ती देश को यूपीए के 10 साल लंबे शाषन की दूर्दशा से उबारने की थी.

मोदी सरकार बनते वक्त महंगाई पैर पसार रही थी, कारोबार मंदी की चपेट में आ रहा था और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर 2009 के बाद दूसरी बड़ी मंदी का खतरा मंडरा रहा था. देश में नए रोजगार के साधन पैदा नहीं हो रहे थे, मौजूदा रोजगार तेजी से सिमट रहा था और विदेशी निवेश आने का नाम नहीं ले रहा था.

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राजन राजनीति समझे नहीं या कर गए राजनीति

इस स्थिति में मोदी सरकार ने आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए. बैंकिग का लाभ देश के आखिरी आदमी तक पहुंचाने के लिए जनधन योजना के साथ-साथ कारोबारी तेजी लाने के लिए ईज ऑफ डूईंग बिजनेस और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढाने के लिए मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों का ढ़ांचा पेश किया. इन सबके लिए यह जरूरी था कि देश में ब्याज दरों को कम किया जाए जिससे नए कारोबार को शुरू करने के लिए घरेलू कारोबारी आगे आएं और विदेशी निवेशकों के लिए माहौल लुभावना हो और वह ज्यादा से ज्यादा निवेश कर सकें.

लेकिन अपेक्षा के उलट, देश की राजनीति को समझने में राजन यहीं विफल हो गए. वह न सिर्फ ब्याज दरों को ऊपर रखते रहे बल्कि मेक इन इंडिया जैसे फ्लैगशिप कार्यक्रमों पर वह सरकार की सोच से अलग बयानबाजी करते रहे. अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्होंने कहा कि देश को जरूरत है कि विदेशों में भारत के लिए मैन्यूफैक्चरिंग कराने पर जोर दिया जाए.

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अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि केन्द्रीय बैंक का गवर्नर एक पोलिटिकल पोस्ट है और मौजूदा सरकार को इस बात की छूट हमेशा रहती है कि वह अपने मनमुताबिक आदमी को सरकारी खजाने का कस्टोडियन नियुक्त करे.

उम्मीद पर खरे उर्जित पटेल?

रघुराम राजन के विषय में सुब्रमण्यन स्वामी की एक बात बिलकुल दुरुस्त थी कि वह बाहरी हैं. राजन ने कभी देश में काम नहीं किया न ही यहां पढ़ाई की. लेकिन इसके उलट उर्जित पटेल ने कभी विदेश में काम नहीं किया. वह हमेशा से देश में या तो सरकार या फिर कॉरपोरेट जगत में काम करते रहे. उनसे उम्मीद है कि वह राजनीति की समझ बखूबी रखते होंगे. पटेल को इस बात में जरा भी कंफ्यूजन नहीं होगा कि उन्हें रिजर्व बैंक की कमान क्यों दी जा रही है. लिहाजा माना जा सकता है कि रिजर्व बैंक के बीते तीन साल के किसी कड़े फैसले पर यदि उन्हें कायम रहने की जरूरत महसूस हुई तो वह उन्हें नियुक्त करने वाली सरकार को बखूबी समझा पाएंगे.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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