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Updated: 27 अगस्त, 2018 10:48 AM
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भारतीय रेलवे के बारे में आपकी राय क्या है? आखिर इतने पैसे मिलने के बाद भी भारतीय रेलवे क्यों मूलभूत सुविधाएं नहीं दे पाती? क्यों घाटे में रहती है? इसका जवाब शायद कुछ हद तक ताज़ा आंकड़ों से मिल सकता है. भारतीय रेलवे ने अप्रैल से जुलाई की तिमाही में कितने पैसे कमाए इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस अवधि में रेलवे ने सिर्फ 100 रुपए कमाने के लिए 111.51 रुपए खर्च किए.

जी हां, भारतीय रेलवे का इस तिमाही का ऑपरेशनल रेशो यानी प्रति 100 रुपए पर खर्च की गई राशि 111.51 प्रतिशत आई है. सेट टार्गेट के मुकाबले रेलवे की ग्रोथ कम रही है और खर्च ज्यादा. इसका एक कारण बढ़ी हुई पेंशन और कार्य करने के खर्च बढ़ने के कारण हुआ.

भारतीय रेलवे, पैसा, खर्च, किराया, नुकसानभारतीय रेलवे का खर्च कमाई के मुकाबले काफी ज्यादा है

ऑपरेटिंग अनुपात या ऑपरेटिंग रेशो परिचालन दक्षता का एक नाप है जो ये तय करता है कि आखिर कितना राजस्व या रेवेन्यू आया है खर्च को हटाकर. ये बताता है कि किसी संस्था की तय समय की बढ़त कैसी रही और उसने कैसा काम किया.

ये अनुपात जितना ज्यादा होता है उतना ही ज्यादा नुकसान संस्था ने कमाया होता है और यकीनन ये बताता है कि संस्था की काबिलियत क्या है. रेलवे के मामले में ये अनुपात ज्यादा है जिसका मतलब रेलवे ने कोई फंड नहीं कमाया है पटरियों की मरम्मत के लिए, नए कोच, नई गाड़ी या स्टेशन की सुविधाएं बेहतर करने के लिए.

ये आंकड़ा रेलवे के फाइनेंस विंग की तरफ से आया है. अन्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट मोड्स के मुकाबले रेलवे का रेवेन्यु कम रहा है. पैसेंजर्स से कमाई के मामले में रेलवे का टार्गेट था 17,736.09 करोड़ रुपए कमाने का था और इसके मुकाबले सिर्फ 17,273.37 करोड़ रुपए ही कमाए गए हैं. 

भारतीय रेलवे, पैसा, खर्च, किराया, नुकसानसिर्फ किराए के जरिए भी रेलवे ने कमाई के मामले में नुकसान उठाया है

रेलवे की अच्छी कमाई भी बजट और टार्गेट के मुकाबले कम रही. अगर सिर्फ कमाई की बात करें और रेलवे के हर माध्यम से कमाई को देखें तो भी रेलवे ने कम ही कमाया है. रेलवे को अनुमानित 39,253.41 करोड़ कमाने थे और उसकी कमाई 2018 की पहली तिमाही में 36,480.41 करोड़ हुई है. इसके अलावा, जुलाई तक कुल कमाई रेलवे की 56,718 करोड़ रही है जिसे 61,903 करोड़ होना चाहिए था. मतलब रेलवे अपने खुद के टार्गेट से ही करीब 5 हज़ार करोड़ पीछे है.

खर्च बढ़ने के पीछे पेंशन, रेलवे बोर्ड और शैक्षिक संस्थानों का खर्च और रोजमर्रा का खर्च शामिल है. यही कारण दिया जा रहा है कि अप्रैल-जुलाई 2018 की तिमाही में ऑपरेटिंग रेशो 111.51 पहुंच गया.

7वें वेतन आयोग के बाद बढ़ा खर्च...

केंद्र सरकार ने 7वां वेतन आयोग तो लागू कर दिया लेकिन उसके बाद रेलवे पर अतिरिक्त पेंशन का भार भी बढ़ गया. कुल पेंशन खर्च करीब 47000 करोड़ हो गया इसका मतलब कि जब तक रिव्यू किया गया तब तक रेलवे 12000 करोड़ रुपए पेंशन के रूप में पहले ही दे चुकी थी.

हालांकि, अनुमान ये लगाया जा रहा है कि साल के अंतिम क्वार्टर में ये हालात बेहतर होंगे क्योंकि लोग बढ़ेंगे. पर पिछले पांच या छह सालों की बात करें तो ऑपरेटिंग रेशो रेल्वे का 90 प्रतिशत ही रहा है.

अगर सिर्फ 2018-19 के वित्तीय वर्ष की बात करें तो रेलवे का ऑपरेटिंग रेशो 92.8 प्रतिशत होने की संभावना जताई जा रही है. ये आंकड़ा 2017-18 में 96 प्रतिशत था. मालवाहक किराए की बात करें तो 2018-19 में इसके बढ़ने की संभावना ज्यादा है. एक अनुमान कहता है कि ये 51 मिलियन टन हो सकता है.

रेलवे ने इस वित्तीय वर्ष में अपने सबसे ज्यादा खर्च की उम्मीद जताई है. ये 1.48 लाख करोड़ तक हो सकता है. इसमें रेलवे की क्षमता बढ़ाने, इलेक्ट्रिफिकेशन, स्टेशन के विस्तार और पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने का खर्च शामिल है.

कुल मिलाकर अभी जो हालात बन रहे हैं उसे लग रहा है कि इस साल भी रेलवे की माली हालत उतनी बेहतर नहीं होने वाली.

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