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Updated: 11 दिसम्बर, 2015 01:37 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
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मैगी की दाल में जरूर कुछ काला है. मई में मुंबई हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगाया क्योंकि उसमें मौजूद लेड की मात्रा उसे जहरीला बना रही थी. अगस्त में उसी हाईकोर्ट ने अपना फैसला पलट दिया और मैगी के सभी दाग धुल गए क्योंकि जांच में वह सुरक्षित पाई गई. देश में नागरिकों के खाद्य पदार्थों की जांच करने के लिए बनी सबसे बड़ी संस्था फूड कंट्रोलर (FSSAI) ने सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर गुहार लगाई है कि मैगी को मिले ग्रीन सिग्नल से नागरिकों के ऊपर मंडरा रहा खतरा हटा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके चलते नेस्ले इंडिया से जवाब मांगा है.

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नेस्ले इंडिया के वकील हरीश साल्वे ने FSSAI की अर्जी को स्वीकारते हुए सुप्रीम कोर्ट को 5 जनवरी तक जवाब देने का समय लिया है. सुप्रीम कोर्ट वकील मुकुल रोहत्गी ने FSSAI की तरफ से अर्जी दी है हांलाकि रोहत्गी ने मैगी पर दुबारा बैन लगाने की मांग अपनी अर्जी में शामिल नहीं की है.

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क्या वाकई मैगी में कुछ काला है. दरअसल मैगी की जांच रिपोर्ट पर एक बार फिर सवाल उठ रहा है. FSSAI ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई गुहार में कहा है कि मुंबई हाईकोर्ट के निर्देश पर कराई गई जांच सही होने की कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि इस जांच के लिए एजेंसियों को सैंपल देने का काम खुद नेसले कंपनी ने किया था और इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि जांच के लिए केवल सुरक्षित सैंपल ही दिए गए हो. FSSAI ने कहा है कि कोर्ट को सैंपल किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा ही लेना चाहिए था, जिससे मैन्यूफैक्चरिंग कर रही कंपनी उसमें कोई परिवर्तन न कर सके.

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अब मैगी का मामला गंभीर लगने लगा है. मैगी सुरक्षित है या नहीं है अब बड़ा सवाल है. क्योंकि पुरानी जांच में सैंपल इस तरह लिए गए तो सवालों को नकारा नहीं जा सकते. यह ठीक उसी तरह है कि आप आरोपी को उसी के उंगलियों के निशान लेने भेज दें. अब 5 जनवरी को नेस्ले इंडिया की तरफ से कोई जवाब आएगा. लिहाजा इस मामले में जब तक दूध का दूथ और पानी का पानी नहीं हो जाता कम से कम इतना को समझा जा सकता है कि- मैगी खाने में रिस्क निहित है, इसका सेवन अपनी जिम्मेदारी पर करें.

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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