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Updated: 27 फरवरी, 2016 06:32 PM
विवेक शुक्ला
विवेक शुक्ला
  @vivek.shukla.1610
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चालू फरवरी महीने के दौरान राजधानी के नार्थ ब्लाक में बजट की तैयारियां दिन-रात चालू थीं. नार्थ ब्लाक का जिक्र छिड़ा है तो सर हर्बर्ट बेकर को याद करने का मन कर रहा है. बेकर ने नार्थ ब्लाक के साथ-साथ साऊथ ब्लाक, जयपुर हाऊस, हैदराबाद हाऊस, बडौदा हाऊस और लोधी रोड के सरकारी फ्लैटों का डिजाइन तैयार किया था. और जिस संसद भवन में बजट को पेश किया जाना है उसका डिजाइन एडविन लुटियन ने बेकर के सहयोग से ही तैयार किया था. वे एडविन लुटियन के आग्रह पर साल 1912 में भारत आए. दोनों पहले से मित्र थे. नई राजधानी नई दिल्ली बननी थी. इसलिए लुटियंस उन्हें अपनी कोर टीम में रखना चाहते थे.

बेकर को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने ही भारत के मौसम के मिजाज को देखते हुए राष्ट्रपति भवन और संसद भवन में जाली और छज्जों के लिए विशेष जगह बनाई. उसके बाद तो ये एक ट्रेंड सा बन गया. बेकर ने भारत आने से पहले 1892 से 1912 तक दक्षिण अफ्रीका और केन्या में बहुत सी सरकारी इमारतों और गिरिजाघरों के भी डिजाइन तैयार किए. पर उन्होंने नई दिल्ली के किसी गिरिजाघर का डिजाइन नहीं तैयार किया.

बेकर घुमक्कड़ थे. वे बार-बार राजस्थान निकल लेते थे. वहां की पुरानी हवेलियों से लेकर किलों का अध्ययन करते. इसलिए उनके काम में ब्रिटिश के साथ-साथ मुगल और राजपूत वास्तुकला का अद्भुत संगम मिलता है. उनकी डिजाइन की हुई इमारतों में भव्यता है. वे हरियाली के लिए स्पेस रखते थे. बेकर किसी बिल्डिंग का डिजाइन तैयार करते वक्त आगे के 50-60 वर्षों के बारे में सोचते थे. इसलिए उनकी इमारतों में अब भी ताजगी दिखाई देती है. वे पुरानी नहीं लगतीं. उनकी चाहत रहती थी कि उनकी इमारतों के हरेक कमरे को भरपूर सनलाइट मिले.

इस बात को देखना है तो आप लोधी रोड़ के सरकारी फ्लैट्स में हो आइये. सभी फ्लैट सन लाइट से रोशन रहते हैं. बेकर अपनी डिजाइन की इमारतों में लाल रंग की ईंटों के ऊपर सीमेंट का लेप नहीं करवाना पसंद नहीं करते थे. वे सीढ़ियों पर बहुत तवज्जो देते थे. वे दो सीढ़ियों के बीच में बहुत मामूली अंतर रखते थे. काश, उनसे आज की आर्किटेक्ट बिरादरी कुछ सीख लेती. उन्होंने खुद खड़े होकर नार्थ ब्लाक, संसद भवन और दूसरी इमारतों के कंस्ट्रक्शन के काम को देखा. वे मिस्त्रियों और दूसरे मजदूरों से लगातार बात करते थे. बेकर नई दिल्ली के निर्माण में लगे मजदूरों से छुट्टी वाले दिन कभी-कभी मिलने उनके करोल बाग इलाके में स्थित रेगरपुरा के घरों में पहुंच जाते थे. वे नई दिल्ली के बड़े ठेकेदार सोबा सिंह के मित्र थे. उनकी सलाह पर वे दिल्ली की चुनिंदा जगहों जैसे कुतुब मीनार, लाल किला, पुरानी दिल्ली और इधर के गांवों में लगातार घूमने जाते. स्थानीय लोगों से गप मारते. यही नहीं उन्होंने गुजारे लायक हिन्दी भी सीख ली थी. इससे उनका यहां पर काम आसान हो जाता था.

बेकर और उनके कालजयी काम को इस दौर में याद करने की और भी शिद्दत के साथ जरूरत है क्योंकि उन्होंने भारत में सस्ते घर बनाने की तकनीक दी. वे करीब सस्ते घरों और दूसरी इमारतों की तकनीक को लोकप्रिय करने के अपने जीवन के मिशन पर जुझारू प्रतिबद्धता के साथ जुड़े रहे. बेकर ने हाऊसिंग सेक्टर को नई व्याकरण दी. वे मानते थे कि स्थानीय पर्यावरण के मुताबिक ही घर बनें.

जाहिर है कि इस तरह से भारत में ही हो सकता है कि कोई शख्स सस्ते घरों को बनाने की तकनीक दे और आप उसे माने नहीं. कायदे से उनके बताए डिजाइन के तरीके को अपनाए जाने की जरूरत थी क्योंकि वे सस्ते पर लम्बे समय तक टिकाऊ घरों को बनाने के पक्षधर थे. बेकर की वास्तुकला आधुनिकता और परम्परा का अपने आप में संगम मानी जा सकती है. उनके डिजाइन किए घरों में लागत तो बहुत कम आती है, पर उपयोगिता के लिहाज से वे गजब के होते थे. बेकर के डिजाइन से बने घरों की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि घरों में सूर्य की रोशनी और ताजा हवा के झोंकें आते रहते हैं.

उनका इस बात पर खास फोकस रहता था कि उनकी इमारतों में सन लाइट खूब आए. बेकर स्थानीय मिट्टी और पत्थरों के चूर्ण के लेप को अपने घरों या इमारतों पर लगवाने के हिमायती थे. पहले इन दोनों को बहुत बढ़िया तरीके से पीस लिया जाता था जिससे कि इन दोनों का चूर्ण मक्खन की तरह बन जाए. बेकर ने अपने घरों में जाली का प्रयोग भी खूब किया. इसको करने के मूल में भी कहीं न कहीं भावना यह रही होगी कि इससे एक इमारत के भीतर हवा का प्रवाह खूब बेहतर तरीके से आता रहे.

अब तो आप समझ गए होंगे कि जेटली को बेकर का जिक्र क्यों करना चाहिए अपने बजट भाषण में...

लेखक

विवेक शुक्ला विवेक शुक्ला @vivek.shukla.1610

लेखक एक पत्रकार हैं.

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