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Updated: 30 जनवरी, 2018 01:23 PM
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1 फरवरी को अरुण जेटली जी नया बजट पेश करने वाले हैं और उससे पहले अरविंद सुब्रमनियन ने इकोनॉमिक सर्वे पेश कर दिया है. इस सर्वे में कई बड़ी चीजें सामने आईं. सबसे पहली तो ये कि भारतीय अर्थव्यवस्था से नोटबंदी का खराब असर खत्म हो रहा है.

क्या है इकोनॉमिक सर्वे...

इकोनॉमिक सर्वे पिछले साल बांटे गए खर्चों का लेखाजोखा तैयार करता है. इससे पता चलता है कि सरकार ने पिछले साल कहां-कहां कितना खर्च किया और बजट में की गई घोषणाओं को कितनी सफलतापूर्वक निभाया. इसके साथ ही सर्वे से यह भी पता चलता है कि पिछले साल अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी रही. इसकी मदद से ही अगले साल के लिए सुझाव भी तैयार किए जाते हैं. ये हर साल बजट से पहले पेश किया जाता है.

इस इकोनॉमिक सर्वे में एक और खास बात सामने आई जो मोदी सरकार की एक बड़ी चिंता को सामने लाकर खड़ा कर देती है. मोदी सरकार ये चाहती थी कि इस साल खेती की आय दुगनी हो जाए, लेकिन इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक खेती की आय लगभग 25% तक गिर जाएगी. कारण? पर्यावरण में बदलाव को बताया गया है.

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इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक इसी कारण ये जरूरी हो गया है कि बिजली और उर्वरक सब्सिडी के साथ सिंचाई सेवाओं का विस्तार किया जाए और सीधी आय के जरिए बनाए जाएं.

खेती से जीडीपी का 16% हिस्सा बनता है और ये भारत में 49% रोजगार बनाता है. इसलिए ये ज़रूरी हो गया है कि इसलिए ये भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है. वैसे ही 2017 में किसानों के लिए कुछ बेहतर नहीं हो पाया. अब अगर खेती की आय कम हो जाती है तो मंदी का दौर आ जाएगा और कीमतें बढ़ेंगी. किसान परेशान होंगे और ये सिर्फ समाज के लिए ही नहीं बल्कि सरकार के लिए भी चिंता की बात होगी. ये सब अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है.

पिछले कुछ सालों में किसानों ने वैसे ही बहुत कुछ झेला है. इसका कारण अनियमित मॉनसून है. कहीं बेमौसम बरसात हुई तो कहीं सूखा हो गया. इसके कारण फसलें खराब हुईं और कीमतें भी बढ़ीं. कुछ समय ऐसा आया जहां फसलें ज्यादा हो गईं और कीमतें किसानों की अपेक्षा से काफी कम हो गईं.

सर्वे के मुताबिक पर्यावरण में बदलाव ने वैसे भी किसानों को बहुत परेशान किया हुआ है और इसका असर अब पहले से ज्यादा दिख रहा है.

क्या है मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती..

अगर इकोनॉमिक सर्वे के आंकड़ों को देखें तो मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी खेती की आय को बढ़ाना. मोदी सरकार चाहती थी कि खेती की आय दोगुनी हो और अब ये तो 25% गिर जाएगी. अब सराकर के पास यही रास्ता बचा है कि किसानों को बेहतर सुविधाएं दी जाएं. अलक्षित सब्सिडी जैसे पावर और फर्टिलाइजर को हटाकर सीधी आय की व्यवस्था की जाए. किसानों के लिए बेहतर तकनीक के साथ-साथ सिंचाई की भी उतनी ही तगड़ी व्यवस्था करनी होगी कि अगर बारिश कम हुई तो भी उन्हें परेशानी न हो.

फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव Iffco यू एस अवस्थी के मुताबिक सरकार को अब इंडस्ट्री को फर्टिलाइजर सब्सिडी देने की जगह सीधे किसानों को देनी चाहिए. इससे किसान अपनी जरूरत के हिसाब से ऊर्वरक खरीद पाएंगे और सही ऊर्वरक खरीदने के कारण फसल पर भी असर पड़ेगा.

अक्टूबर 2016 में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (DBT) सब्सिडी फर्टिलाइजर के लिए लॉन्च की गई थी. ये स्कीम कुछ क्षेत्रों में तो बेहतर चल रही थी, लेकिन कुछ जगहों पर गरीब किसानों को इसका फायदा नहीं मिल रहा था.

खेती पर सबसे बड़ा असर...

सर्वे के मुताबिक कुछ तरह की फसलों पर पर्यावरण के बदलाव का ज्यादा असर होता है और कुछ पर कम. जिनके लिए खतरा सबसे ज्यादा है वो ऐसे इलाके हैं जिनमें बारिश ज्यादा होती है. दाल उगाई जाती है (दोनों खरीफ और रबी फसलों में) इसी जगह गेहूं और चावल जैसे अनाज ज्यादा सुरक्षित हैं.

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कैसे बदलेगी आय...

ऐसा अनुमान लगाया गया है कि ऐसा साल जहां 1 डिग्री तापमान बढ़ेगा वहां खेती की आय खऱीफ सीजन में 6.2% और रबी सीजन में जहां बेहतर सिंचाई की सुविधा नहीं होगी वहां 6% आय गिर जाएगी.

इसी तरह अगर बारिश 100mm कम होती है तो आय 15% खरीफ सीजन में और 7 % रबी सीजन में गिर जाएगी.

संजय मिश्रा की एक फिल्म कड़वी हवा में इसी तरह पर्यावरण के बदलाव के बारे में बात की गई थी और किसानों की समस्या को बताया गया था. कैसे किसान आत्महत्या कर रहे हैं, कर्ज के दबाव में हैं, कैसे उनका परिवार परेशानी में है. वो स्थिती सिर्फ फिल्मी नहीं थी बल्कि असल में ऐसी ही है. किसान उतने ही ज्यादा परेशान हैं और उतनी ही समस्या उन्हें हो रही है.

अब देखना ये है कि मोदी सरकार सिर्फ कर्ज माफी की टॉफी किसानों को देती है या फिर किसानों की सुविधाओं पर भी ध्यान देती है. क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो यकीनन खेती की आय कम होने से किसानों पर फर्क पड़ेगा और अर्थव्यवस्था पर भी.

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