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Updated: 28 मार्च, 2017 07:00 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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अवैध बूचड़खानों को बंद करने के यूपी सरकार के फैसले पर लगातार लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. बीजेपी के इस कदम की तारीफ और बुराई दोनों में ही लोगों ने खुलकर हिस्सा लिया है. बात कुछ ऐसी है कि मीटबैन कारोबार की नजर से कई लोगों के लिए बुरा साबित हो रहा है.

राजनीति नहीं नौकरी देखिए...

- यूपी में शुरू हुई कार्रवाई का फोकस उन 350 बूचड़खानों पर है, जो अवैध रूप से संचालित हो रहे थे. इन बूचड़खानों के साथ-साथ कई छोटी-बड़ी दुकानें और मीट मार्केट लग रहे थे.- अब देश में 75 रजिस्टर्ड बूचड़खाने हैं जिनमें से 41 यूपी में हैं. - यूपी में 23 प्लांट हैं जो मीट प्रोसेसिंग के लिए हैं. इनमें से 3 मेरट में थे जिन्हें बंद कर दिया गया है.- यूपी का मीट बैन अकेला लगभग 4000 करोड़ का घाटा मीट एक्सपोर्ट इंडस्ट्री को दे सकता है. - एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 6.5 लाख नौकरियां खत्म कर दी हैं.

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क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े?

स्टेट कॉमर्स और इंडस्ट्री मिनिस्टर निर्मला सीतारमन के द्वारा दिए आंकड़ों के अनुसार मीट एक्सपोर्ट में भैंस का मीट सबसे ज्यादा व्यापार लाता है. 2015-16 में कुल 26,684 करोड़ रुपए का ट्रेड भैंस के मीट से हुआ था. 2014-15 में ये आंकड़ा 29,283 करोड़ था. ये आंकड़ा 2016-17 जनवरी तक 21,316 करोड़ पहुंच चुका था.

यूपी में ही देश का सबसे बड़ा मीट कारोबारी है. मीटबैन से सिर्फ एक्सपोर्ट में ही नहीं बल्कि कबाब बनाने वालों से लेकर मीट खाने वालों तक सभी निराश हो गए हैं. इतना ही नहीं मीटबैन के कारण चिड़ियाघर में भी बाघों को चिकन खाना पड़ रहा है.

अब बीफ मीट के उत्‍पादन में एक बार फिर यूपी के रोल पर नजर डालते हैं. फिलहाल यहां 40 बूचड़खाने वैध हैं. जिन्हें केंद्र सरकार की एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) से बाकायदा लाइसेंस मिला हुआ है. यदि सरकार इस क्षेत्र को नियंत्रित और नियोजित करके चलाती है, तो न सिर्फ चीन बल्कि पूर्वी एशिया और अरब देशों से कड़ी कमाई होगी.

योगी सरकार का ये फैसला क्या रंग लाता है ये तो वक्त ही बताएगा पर फिलहाल इससे हाहाकार जरूर मच गया है. बीजेपी यूपी में तो बूचड़खाने बंद करवा चुकी है, लेकिन नॉर्थईस्ट में यही पार्टी कह रही है कि वहां मीटबैन नहीं किया जाएगा. पहले नोटबंदी फिर मीटबंदी के ये फैसले बीजेपी को कड़े फैसले लेने वाली पार्टी के तौर पर तो स्थापित तो कर रहे हैं, लेकिन ये फैसले आम जनता पर कितने भारी पड़ते हैं ये भी सोचने वाली बात है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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