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Updated: 03 सितम्बर, 2015 07:28 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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प्याज पेट्रोल से महंगा हो चला है और लोगों को महंगाई के आंसू रुला रहा है. प्याज की कीमतें तो अब हर साल ही लोगों का चैन छीनने लगी हैं. राजधानी में प्याज की कीमतें सेंचुरी के करीब पहुंच गईं हैं. आम लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह क्या है? आइए पड़ताल करें प्याज के महंगे होते चले जाने के पीछे की वजह की...

भारत में कितना होता है प्याज का उत्पादनः भारत में प्याज का अच्छा खासा उत्पादन होता है. चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है और दुनिया के कुल प्याज उत्पादन में इसका हिस्सा 19 फीसदी है. भारत में प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले राज्यों  में महाराष्ट्र और कर्नाटक का नाम सबसे ऊपर है. देश के कुल प्याज उत्पादन का करीब 45 फीसदी हिस्सा इन्हीं दोनों राज्यो से आता है. देश में हर साल करीब 190 लाख टन प्याज का उत्पादन होता है.

प्याज का उत्पादन बढ़ा ही हैः भले ही इस वित्त वर्ष (2014-15) में प्याज का उत्पादन पिछले साल (2013-14)  के मुकाबले करीब 5 लाख टन कम (194 लाख टन से घटकर 189 लाख टन) रहा हो. फिर भी पिछले कई सालों का आंकड़ों देखे तो प्याज का उत्पादन हर साल बढ़ता गया है. 2008-09 में प्याज का उत्पादन करीब 136 लाख टन था जोकि 2014 में 189 लाख टन हो गया. इससे पता चलता है कि देश में प्याज की खेती और उत्पादन दोनों ही बढ़ते रहे हैं.

अब एक नजर कीमतों के बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारणों परः

1. सही रखरखाव की कमीः आंकड़ों से पता चलता है कि सही रखरखाव के अभाव में हर साल लगभग 20 फीसदी प्याज खराब हो जाता है. करीब 190 लाख टन के कुल उत्पादन में से करीब 30-40 लाख टन प्याज खराब हो जाता है, जिससे कंज्यूमर तक 150-160 लाख टन प्याज ही पहुंच पाता है. इसलिए सरकार इस समस्या से बचने के लिए एग्रो स्टोरेज फैसिलिटीज पर काम कर रही है.

2. बारिश ने बिगाड़ा खेलः भारत में प्याज की तीन फसलें होती हैं. रबी (मार्च-जून), खरीफ (अक्टूबर-दिसंबर) और बाद की खरीफ (जनवरी-मार्च) इनमें से पूरे साल की कुल जरूरत का करीब 60 फीसदी रबी की फसल से पूरा होता है. इस साल इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों में रबी की फसल के दौरान मार्च में हुई बेमौसम बारिश ने उत्पादन पर असर डाला. साथ ही प्याज उत्पादक राज्यों में खरीफ की फसल के दौरान बारिश कम हुई है जिससे खुदाई में देरी हो रही है और नई खरीफ की प्याज आने में एक महीना और लग सकता है. तो बारिश भी प्याज की बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेदार है. 

3. बड़े व्यापारियों का जमाखोरी का खेलः प्याज की बढ़ती कीमतों के लिए जिस बात को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है वह मुनाफा कमाने के लिए बड़े व्यापारियों द्वारा की जाने वाली प्याज की जमाखोरी. एक स्टडी के मुताबिक ज्यादातर प्याज की कीमतों के बढ़ने की वजह कृत्रिम होती हैं और इसके लिए वे बड़े व्यापारी जिम्मेदार होते हैं जोकि प्याज के सीजन में किसानों से थोक में प्याज खरीद लेते हैं. इसके बाद ये व्यापारी प्याज उत्पादन के ऑफ सीजन में जमाखोरी के जरिए प्याज की सप्लाई कम देते हैं. यह ऑफ सीजन देश में सितंबर से जनवरी के दौरान होता है और इस दौरान दशहरा, दीपावली, ईद, क्रिसमस और शादियों के कारण प्याज की मांग बढ़ जाती है.

4. व्यापारियों और सप्लायर्स का गठजोड़ः देश के दो बड़े प्याज उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक की प्याज मंडियों में की गई जांच में सीसीआई ने व्यापारियों और सप्लायर्स के बीच एक ऐसा खतरनाक गठजोड़ पाया जोकि प्याज की कीमतों को नियंत्रित करता है. इसके जिम्मेदार इन व्यापारियों और सप्लायर्स के घाघ एसोसिएशनों के मुखिया के पदों पर बड़े-बड़े नेता होते हैं. मतलब जिनके हाथ में कीमतें कम करने की कमान होती है दरअसल पर्दे के पीछे से वही अपनी जेबे भरने के चक्कर में आम आदमी की बैंड बजा रहे होते हैं.

5. व्यापारियों के पास है हर कानून का तोड़ः वैसे तो सरकार ने राज्यों से प्याज की स्टोरेज लिमिट तय करने को कहा है लेकिन इस कानून का भी तोड़ व्यापारियों ने निकाल लिया है. वह अब किसानों से डील पहले ही कर लेते हैं लेकिन माल धीरे-धीरे मांगते हैं. इस तरह प्याज किसान के पास ही पड़ा रहता है. इसका कारण यह है कि मौजूदा कानून किसानों को जमाखोरी करने से नहीं रोकता है.

6. रिटेलर भी उठाते हैं फायदाः ऐसा नहीं है कि सिर्फ बड़े व्यापारी ही प्याज की बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेदार होते हैं बल्कि रिटेलर भी फायदा कमाने के चक्कर में प्याज की कीमतें बढ़ाते हैं. ज्यादातर बड़े शहरों में रिटेलर प्याज की कीमतों को 10-170 फीसदी तक महंगा करने के जिम्मेदार होते हैं. ऐसा वे ज्यादातर कीमतों के कम होने पर करते हैं. कीमतों के बढ़ने पर हालांकि वे प्याज को ज्यादा महंगा नहीं कर पाते लेकिन फिर भी उन्हें करीब 40-60 फीसदी का मुनाफा होता है.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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