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Updated: 05 अप्रिल, 2018 07:41 PM
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सरकार एक ओर तो कैशलेस अर्थव्यवस्था लाने के लिए लोगों से अपील करती है कि वे कैश के बजाए अधिक से अधिक बैंकिंग सिस्‍टम का इस्तेमाल करें. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देखने में आ रहा है कि भारतीय बैंकें कई छोटी-छोटी सुविधाओं के नाम पर मनमाने चार्ज ग्राहकों से वसूलने लगी हैं. सिर्फ एसएमएस अलर्ट का ही उदाहरण ले लिया जाए तो बैंक इससे भी खूब कमाई करते हैं. ग्राहकों के हितों की सुरक्षा करने वाली स्वतंत्र संस्था बैंकिंग एंड स्टैंडर्ड्स बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई) के अनुसार 48 में से 19 बैंक ऐसे हैं जो हर तिमाही ग्राहकों से 15 रुपए (जीएसटी समेत 17.7 रुपए) वसूल रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार यह सुविधा मुफ्त है, लेकिन कई बैंक इसके भी पैसे चार्ज कर रहे हैं. मनमानी.

यह तो सिर्फ एक उदाहरण है. बैंक ऐसे कई चार्ज के बारे में तो ग्राहकों को बताते भी नहीं. छोटे दिखने वाले ये चार्ज ग्राहकों को ज्‍यादा खटकते हैं. ग्राहकों की जेब से थोड़े-थोड़े पैसे इन चार्जेज के जरिए निकलते रहते हैं और बैंक अपनी कमाई लगातार बढ़ाते रहते हैं. तो चलिए एक नजर डालते हैं इन चार्जेज पर:

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1- पैसे ट्रांसफर करने का चार्ज (Fund transfer charges)

आजकल पैसों के लेनदेन के लिए इंटरनेट बैंकिंग की फ़ंड ट्रांसफर सेवा का उपयोग खूब किया जाता है. इससे पैसे तो चले जाते हैं, लेकिन उसमें एक छोटी सी रक़म बैंक द्वारा भी काट ली जाती है. ट्रांजेक्शन करते समय तो ये रकम छोटी लगती है, लेकिन बैंक की नज़र से देखा जाए तो एक बड़ी रक़म निकल कर सामने आती है. NEFT, RTGS, IMPS सेवाओं को फ़ंड ट्रांसफर के लिए उपयोग में लाया जाता है और इसका इस्तेमाल करने पर ग्राहक से सर्विस चार्ज भी लिया जाता है.

2- डेबिट/एटीएम कार्ड चार्ज

अगर आप आज डेबिट कार्ड का इस्तमाल करते हैं तो ध्यान रखें साल में एक बार आपके खाते से 100-500 रुपए के बीच एक रक़म काटी जाती है. ये पैसे बैंक आपके डेबिट कार्ड की सालाना फ़ीस के रूप में काटते हैं. अगर आपका कार्ड कहीं खो जाता है या नष्ट हो जाता है, तो नया कार्ड लेने के लिए भी आपको पैसे देने पड़ते हैं. जीएसटी के साथ यह रकम ग्राहकों को और भी ज्यादा पड़ती है.

3- कैश जमा/निकासी चार्ज

अगर आप अपने बैंक की होम या नॉन-होम ब्रांच से कैश का लेन-देन करते हैं तो उसके लिए भी चार्ज देना पड़ता है. रकम के हिसाब से हर बैंक ने अपने अलग-अलग चार्ज लगाए हुए हैं. ज़्यादातर बैंकों ने हर माह केवल पहली ब्रांच ट्रांजेक्शन को मुफ्त रखा हुआ है. वहीं उससे ज़्यादा ट्रांजेक्शन करने पर आपको चार्ज देना होगा.

जैसे अगर, ICICI की बात करें तो उसकी होम-ब्रांच से ग्राहक महीने में सिर्फ़ 4 बार मुफ़्त ट्रांजेक्शन कर सकता है. उसके बाद ग्राहक को 90 रुपए प्रति ट्रांजेक्शन चुकाने होंगे. वहीं नॉन-होम ब्रांच से लेनदेन करने पर 5 रुपए प्रति 1000 रुपए (न्यूनतम 150 रुपए चार्ज) के लेन-देन पर देने पड़ते हैं.

4- एटीएम चार्ज (ATM)

बैंक आपको एटीएम कार्ड देती है और उसके लिए पैसे भी चार्ज करती है, लेकिन एटीएम से पैसे निकालने को लेकर भी उसने कमाई बढ़ाने वाले नियम बना रखे हैं. अगर आप अपने ही बैंक के एटीएम से 5 बार से अधिक पैसे निकालते हैं तो आपको प्रति ट्रांजेक्शन 20 रुपए (टैक्स मिलाकर करीब 23 रुपए) चुकाने होते हैं. वहीं दूसरे बैंक के एटीएम से ट्रांजेक्श की अधिकतम सीमा 3 बार है, जिसके बाद चार्ज लगता है.

5- एसएमएस चार्जेज़ (SMS)

अगर आपको आपके बैंक की तरफ से हर लेन-देन पर मैसेज आता है या कभी भी ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने के दौरान बैंक से कोड आता है और आप इस सेवा से ख़ुश हैं तो ध्यान रखिए बैंक आपसे इस सेवा के लिए भी शुल्क लेता है. बहुत से लोगों को लगता है कि खाते में होती हर गतिविधि के लिए अगर बैंक से नोटिफिकेशन आ रहा है तो वह मुफ़्त सेवा होगी, लेकिन ऐसा नहीं है. बैंक इसके लिए भी शुल्क वसूल करते हैं. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार यह सुविधा मुफ्त है.

ICICI, HDFC और SBI जैसे बैंको की बात करें तो यह बैंक इस सेवा के लिए ग्राहकों से प्रत्येक 3 माह पर 15 रुपए (जीएसटी समेत 17.70 रुपए) चार्ज करते हैं. यह सेवा शुल्क ग्राहक के खाते से अपने आप काट लिए जाते हैं. जिसका कई बार ग्राहक को पता भी नहीं चलता है.

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6- बीमा (इंश्योरेंस)

कई बैंक दावा करते हैं कि वह अपने खाताधारक को जीवन बीमा जैसी सुविधा भी देते हैं. ये सही है, लेकिन यह सुविधा भी मुफ़्त नहीं मिलती. ग्राहक खाता खोलने के लिए, फ़ार्म पर लिखी हुई नियम एवं शर्तों पर बिना देखे साइन कर देता है, तभी वो इस बात पर भी अनजाने में सहमत हो जाता है कि वो बीमा सहित अन्य सुविधाओं के लिए शुल्क चुकाएगा. और वह सब शुल्क अपने आप उसके खाते से काट लिए जाएंगे. इसी तरह से बीमा के लिए भी बैंक द्वारा निर्धारित एक राशि होती है, जो बैंक मासिक या सालाना रूप से ग्राहक खाते से काट लेते हैं.

7- फ्यूल सरचार्ज

जब भी कोई ग्राहक पेट्रोल पम्प से तेल भरवाने के बाद अपना कार्ड स्वाइप करवाता है, तो उतने ही मूल्य का कुछ प्रतिशत हिस्सा बैंक द्वारा सरचार्ज के रूप में ले लिया जाता है. इसका भी ग्राहक को पता नहीं लगता और वो सरचार्ज उसके खाते से काट लिया जाता है. जैसे ICICI प्रत्येक पेट्रोल पम्प ट्रांजेक्शन पर 2.5% सरचार्ज लेता है. वहीं SBI में 2000 तक के ट्रांजेक्शन के लिए 0.75% और उससे अधिक मूल्य के लिए 1% सरचार्ज कटता है.

8- कार्ड पिन-रीसेट

अगर डेबिट/क्रेडिट कार्ड धारक अपने कार्ड का पास्वर्ड/पिन बदलता है तो उसके लिए भी उसके खाते से शुल्क काट लिया जाता है. जैसे HDFC बैंक पिन रीसेट के लिए ग्राहक के खाते से 50 रुपए (प्लस टैक्स) काट लेता है.

9- डेबिट कार्ड डिक्लाइन चार्ज

अगर कार्डधारक अपने कार्ड से कहीं पर ट्रांजेक्शन की कोशिश करता है और पैसे कम होने की वजह से अगर ट्रांजेक्शन नहीं हो पाता. तब भी कार्डधारक के खाते से बैंक ट्रांजेक्शन डिक्लाइन चार्ज काट लिया जाता है.

10- ट्रांजेक्शन चार्ज

हर प्रकार के ऑनलाइन एवं कार्ड ट्रांजेक्शन के लिए बैंक खाताधारक से सेवा शुल्क लेता है. कार्ड स्वाइप कराने की सूरत में ट्रांजेक्शन चार्ज लिए जाते हैं और ऑनलाइन भुगतान करते समय पेमेंट गेटवे चार्ज लिया जाता है. यह दोनों चार्ज ग्राहक को बिना बताए उसके खाते से काट लिए जाते हैं.

कई अनाधिकृत तरीक़ों से भी कई बार ग्राहक से रीटेलर द्वारा पैसे वसूल कर लिए जाते हैं. जैसे अगर कहीं किसी दुकान पर ग्राहक बोले कि उसे कार्ड स्वाइप कराना है तो रीटेलर द्वारा उससे 2.5 प्रतिशत अलग से चार्ज लिया जाता है जो पूर्ण रूप से अनाधिकृत है.

11- ई-कॉमर्स टाईअप्स

ऑनलाइन बैंकिंग का इस्तमाल करके अगर कोई ग्राहक ई-कॉमर्स साइट से ख़रीददारी करता है तो उसको बैंक द्वारा प्रोत्साहित ऑफर दिए जाते हैं. लेकिन उसके पीछे भी बैंक और वेबसाइट की सांठ-गांठ है. बैंक के प्रत्येक ग्राहक की ख़रीददारी पर ईकॉमर्स कंपनी बैंक को कमीशन देती है.

12- ब्याज (इंट्रेस्ट)

बैंकों की कमाई का सबसे मुख्य जरिया होता है इंट्रेस्ट. ये क्रेडिट कार्ड इंट्रेस्ट, लोन इंट्रेस्ट, अकाउंट इंट्रेस्ट, अलग-अलग स्कीम में लगाए पैसे और उसकी कमाई का इंट्रेस्ट कुछ भी हो सकता है.

लोन की बात करें तो इसकी प्रक्रिया ऐसे चलती है कि बैंक में एक व्यक्ति अपने खाते में पैसा जमा करता है. फिर उसके जमा कराए गए पैसों का 96 फ़ीसदी हिस्सा बैंक द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को लोन (ऋण) के रूप में दे दिया जाता है. फिर जो ऋणधारक होता है वह बैंक को सालाना लगभग 12 प्रतिशत की ब्याज दर से ब्याज देता है. जिसमें से लगभग 4 प्रतिशत ब्याज उस व्यक्ति को बैंक द्वारा दे दिया जाता है जिसके खाते से पैसे लेकर बैंक ने किसी और को लोन दिया था. और लोनधारक द्वारा आए हुए ब्याज में से बाकी बचा हुआ 8 प्रतिशत ब्याज, बैंक का मुनाफ़ा हो जाता है. तो इस तरह से बैंक अपनी कमाई करते हैं. और यह ऋण बड़े-बड़े व्यवसायियों से लेकर छोटे किसान तक सबको दिए जाते हैं और उनसे ब्याज वसूल किए जाते हैं.

तो यह थे कुछ तरीक़े जिनके द्वारा बैंक ग्राहक की जेब से पैसा निकाल लेते हैं और ग्राहक को पता भी नहीं चलता. बैंक द्वारा दी जाने वाली सेवाओं से भले ही ग्राहक ख़ुश हो, लेकिन उसके पीछे की चीज़ों को जानकर, भांपकर ही ग्राहक को कोई कदम उठाना चाहिए.

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