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Updated: 20 अक्टूबर, 2018 11:47 AM
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सबरीमला विवाद एक ऐसे मोड़ पर आ चुका है जहां इस मंदिर को लेकर राजनीति भी हो रही है, विरोध प्रदर्शन भी हो रहा है और फेमिनिज्म के नाम पर मंदिर पर चढ़ाई भी की जा रही है. सबरीमला में महिलाओं को न जाने देना ऐसा माना जा रहा है कि ये लैंगिक समानता के विपरीत है और इसका समर्थन और विरोध करने वालों की संख्या बराबर ही है.

गाहे-बगाहे ऐसी कई धार्मिक जगहों पर महिलाओं की एंट्री को लेकर विवाद होते रहे हैं और महिलाओं ने धार्मिक जगहों पर जाने की ठानी है. जैसे 2016 से महिलाएं हाजी अली दरगाह के अंदर जा सकती हैं. इसके बाद 2017 में तृप्ती देसाई ने शनि शिगनापुर के मंदिर के अंदर जाने की ठानी थी और उन्हें रोक दिया गया था. इसी तरह से अब सबरीमला के साथ हो रहा है. ऐसे कई मंदिर हैं जहां महिलाओं का जाना अशुभ माना जाता है और वहां सदियों से ये परंपरा चली आ रही है, लेकिन लैंगिंग असमानता का विरोध करने वाले ये नहीं जानते कि भारत में ऐसे भी मंदिर हैं जहां पुरुषों का जाना मना है या पहले कभी मना था. ऐसे एक दो नहीं बल्कि पूरे सात मंदिर हैं. हालांकि, इन मंदिरों में सबरीमला की तरह नियम नहीं हैं, लेकिन मान्यता यही कहती है कि पुरुषों को अंदर नहीं जाना चाहिए. कई जगहों पर पुरुष सिर्फ मंदिर के आंगन तक ही जाते हैं मूर्ती के पास तक नहीं.

1. अट्टुकल मंदिर (तिरुवनंतपुरम, केरल)

केरल का अट्टुकल मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां 2017 तक पोंगल के वक्त देवी को भोग सिर्फ महिलाएं ही चढ़ा सकती थीं. ये वो मंदिर है जिसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज था क्योंकि यहां एक साथ 35 लाख महिलाएं आ गई थीं. ये अपने आप में महिलाओं की सबसे बड़ा ऐसा जुलूस था जो किसी धार्मिक काम के लिए इकट्ठा हुआ था.

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अट्टुकल मंदिर में भद्रकाली की पूजा होती है और कथा है कि कन्नागी जिसे भद्रकाली का रूप माना जाता है उनकी शादी एक धनाड्य परिवार के बेटे कोवलन से हुई थी, लेकिन कोवलन ने एक नाचने वाली पर सारा पैसा लुटा दिया और जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक वो बर्बाद हो चुका था. कन्नागी की एक बेशकीमती पायल ही बची थी जिसे बेचने के लिए वो मदुरई के राजा के दरबार कोवलन गए थे. उसी समय रानी की वैसी ही पायल चोरी हुई थी और कोवलन को इसका दोषी मान उसका सिर कलम कर दिया गया था. इसके बाद कन्नागी ने अपनी दूसरी पायल दिखाई थी और मदुरई को जलने का श्राप दिया था. कन्नागी उसके बाद मोक्ष को प्राप्त हुई थीं. ऐसा माना जाता है कि भद्रकाली अट्टुकल मंदिर में पोंगल के दौरान 10 दिन रहती हैं.

2. चक्कुलाथुकावु मंदिर (नीरात्तुपुरम, केरल)

ये मंदिर भी केरल का ही है. यहां हर साल पोंगल के अवसर पर नवंबर/दिसंबर में नारी पूजा होती है. इस पूजा में पुरुष पुजारी महिलाओं के पैर धोते हैं. उस दिन को धानु कहा जाता है. इस दिन पुजारी पुरुष भी मंदिर के अंदर नहीं जा सकते. पोंगल के समय 15 दिन पहले से ही यहां महिलाओं का हुजूम दिखने लगता है. महिलाएं अपने साथ चावल, गुड़ और नारियल लेकर आती हैं ताकि पोंगल बनाया जा सके और प्रसाद के तौर पर दिया जा सके. ये मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है.

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इस मंदिर को महिलाओं का सबरीमला भी कहा जाता है. हिंदू पुराण देवी महात्मयम में इस मंदिर के बारे में बताया गया है. देवी को शुंभ और निशुंभ नाम के दो राक्षसों को मारने के लिए सभी देवताओं ने याद किया था क्योंकि वो किसी पुरुष के हाथों नहीं मर सकते थे. देवी ने यहां आकर दोनों का वध किया था.

3. संतोषी माता मंदिर (जोधपुर, राजस्थान)

वैसे तो संतोषी माता का मंदिर और व्रत दोनों ही महिलाओं के लिए है, लेकिन पुरुष भी इस मंदिर में जाते हैं. जोधपुर में विशाल मंदिर है जो पौराणिक मान्यता रखता है. हालांकि, संतोषी माता की पूजा की अगर ऐतिहासिक कहानी देखी जाए तो ये 1960 के दशक में ही ज्यादा लोकप्रिय हुई, उसके पहले नहीं. संतोषी माता के मंदिर में शुक्रवार को महिलाओं को खास पूजा करने की इजाजत है और महिलाएं ही इस व्रत को रखती हैं. व्रत कथाओं में संतोषी माता की भक्त सत्यवती की कहानी कही जाती है. शुक्रवार को यहां पुरुषों के जाने की मनाही है. हालांकि, ये मनाही सिर्फ एक दिन की ही है, लेकिन फिर भी इसे जरूरी माना जाता है.

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4. ब्रह्म देव का मंदिर (पुष्कर, राजस्थान)

पूरे हिंदुस्तान में ब्रह्मा का एक ही मंदिर है और वो है पुष्कर में. ये मंदिर ऐतिहासिक मान्यता रखता है और यहां कोई भी ऐसा पुरुष जिसकी शादी हो गई हो वो नहीं आ सकता. मान्यता है कि वैवाहिक जीवन शुरू कर चुके पुरुष अगर यहां आएंगे तो उनके जीवन में दुख आ जाएगा. पुरुष मंदिर के आंगन तक जाते हैं, लेकिन अंदर पूजा सिर्फ महिलाएं करती हैं.

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कथा के अनुसार ब्रह्मा को पुष्कर में एक यज्ञ करना था और माता सरस्वती उस यज्ञ के लिए देरी से आईं. इसलिए ब्रह्मा ने देवी गायत्री से शादी कर यज्ञ पूरा कर लिया. इसके बाद देवी सरस्वती रूठ गईं और श्राप दिया कि कोई भी शादीशुदा पुरुष ब्रह्मा के मंदिर में नहीं जाएगा.

5. कोट्टनकुलंगरा/ भगवती देवी मंदिर (कन्याकुमारी, तमिलनाडु)

ये मंदिर कन्याकुमारी में स्थित है और यहां मां भगवती या आदि शक्ति की पूजा होती है, जो दुर्गा का रूप मानी गई हैं. इस मंदिर में पुरुषों का आना मना है. यहां भी पूजा करने के लिए सिर्फ स्त्रियां ही आती हैं. किन्नरों को भी इस मंदिर में पूजा करने की आजादी है, लेकिन अगर पुरुष यहां आना चाहें तो उन्हें पूरी तरह से सोलह श्रंगार करना होगा.

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मान्यता है कि देवी यहां तपस्या करने आईं थीं ताकि उन्हें भगवान शिव पति के रूप में मिल सकें. एक और मान्यता कहती है कि सती माता की रीढ़ की हड्डी यहां गिरी थी और उसके बाद यहां मंदिर बना दिया गया. ये सन्यास का भी प्रतीक है इसलिए सन्यासी पुरुष मंदिर के गेट तक तो जा सकते हैं, लेकिन उसके आगे वो भी नहीं.

6. मुजफ्फरपुर का माता मंदिर (मुजफ्फरपुर, बिहार)

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक ऐसा देवी का मंदिर है जहां पुरुषों का आना एक सीमित समय के लिए वर्जित होता है. इस मंदिर के नियम इतने कड़े हैं कि यहां पुरुष पुजारी भी इस दौरान नहीं आ सकता और सिर्फ महिलाएं ही यहां पूजा करती हैं.

8. कामरूप कामाख्या मंदिर (गुवाहाटी, असम)

असम का कामाख्या मंदिर. मान्‍यता है कि ये वो मंदिर है, जहां देवी की पीरियड के समय पूजा की जाती है. महिलाएं यहां पीरियड्स के समय भी आ सकती हैं. यहां पुजारी भी महिलाएं ही हैं. माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है. ये मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है.

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मान्यता है कि जब सती माता ने अपने पिता के हवन कुंड में कूदकर जान दी थी तब शिव इतने क्रोधित हो गए थे कि वो सति का शरीर लेकर तांडव करने लगे. विष्णु भगवान से सृष्टि को बचाने के लिए सति के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट दिया था. सति के 108 टुकड़े हुए थे जो पृथ्वी पर जहां भी गिरे वहां शक्ति पीठ बन गई. कामाख्या में माता सती का गर्भ और उनकी योनि‍ गिरी थी. इसीलिए मूर्ति भी योनि‍ रूपी है और मंदिर में एक गर्भ ग्रह भी है. इस मंदिर की देवी को साल में तीन दिन महावारी होती है.

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